सीएए-एनआरसी : बिहार बंद के दौरान औरंगाबाद के मुस्लिम मोहल्लों में पुलिसिया उन्माद

21 दिसंबर को सीएए और एनआरसी के खिलाफ राजद के बुलाए बंद के दौरान औरंगाबाद जिले के मुस्लिम मोहल्लों में पुलिस ने बेलगाम हिंसा की. पुलिस ने 11 नाबालिग और तीन महिलाओं समेत 39 लोगों को गिरफ्तार भी किया है. संतोष कुमार/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
03 January, 2020

मनोज कुमार बिहार के औरंगाबाद जिले के जिला ग्रामीण विकास अभिकरण में असिस्टेंट इंजीनियर हैं. 19 दिसंबर को उन्हें एक लिखित आदेश मिला कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ 21 दिसंबर को राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से बिहार बंद बुलाए जाने को लेकर कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए औरंगाबाद शहर की जामा मस्जिद के पास उनकी ड्यूटी लगेगी. आदेशानुसार, वह 21 दिसंबर की सुबह से जामा मस्जिद के निकट ड्यूटी पर तैनात थे. दोपहर 12.15 बजे के बाद वहां यकायक पत्थरबाजी शुरू हो गई और कई घंटों तक पुलिसिया कार्रवाई चली. जामा मस्जिद के पास मुस्लिम आबादी वाले कुरैशी मोहल्ला, शाहगंज, पठान टोली, न्यू काजी मोहल्ला और अन्य इलाकों में पुलिस की जबरदस्त कार्रवाई हुई और 40 के आसपास लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस का दावा है कि उपद्रवियों का हमला पूर्व नियोजित था और डॉ. नेहाल की गली तथा कुरैशी मोहल्ले से उन पर जम कर रोड़ेबाजी की गई.

मनोज कुमार ने 21 तारीख को औरंगाबाद नगर थाना क्षेत्र में दिए अपने लिखित आवेदन में कहा है कि डॉ. नेहाल की गली और कुरैशी मोहल्ले से कुल 39 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें तीन औरतें भी हैं. बयान के अनुसार, गिरफ्तार किए गए सभी लोग रोड़ेबाजी में शामिल थे और बालिग थे. मनोज कुमार के बयान में सभी का नाम, पता और उम्र दर्ज है. उम्र बताती है कि सभी बालिग हैं. लेकिन इनमें से कम से कम 11 लोग नाबालिग हैं. बयान में ये भी कहा गया है कि रोड़ेबाजी में कई पुलिस पदाधिकारी भी जख्मी हुए.

कल 2 जनवरी को अदालत ने तीन महिलाओं की जमानत याचिका खारिज कर दी और आज 3 जनवरी को 25 लोगों के जमानती आवेदन को भी अदालत ने खारिज कर दिया. गिरफ्तार लोगों की तरफ से केस लड़ रहे वकील मेराज ने मुझे बताया कि उन्होंने नाबालिगों के मामलों की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में कराने का आवेदन भी किया है जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया है.

लेकिन, असिस्टेंट इंजीनियर के बयान के उलट इलाके में लगे सीसीसीवी कैमरों में कैद हुए वीडियो फुटेज और कुछ परिवारों से मुलाकात में जो बातें सामने आई हैं, वे पुलिसिया तांडव की कहानी बयां कर रही हैं. सीसीटीवी फुटेज में पुलिस बिना वजह सड़क किनारे और घर की चहारदीवारी के भीतर खड़ी गाड़ियों पर डंडे बरसाती और पथराव करती नजर आ रही है.

मैंने 31 दिसंबर को कुरैशी मोहल्ला, शाहगंज और पठान टोली के आधा दर्जन परिवारों से मुलाकात की. इन परिवारों ने पुलिस पर भीषण अत्याचार के आरोप लगाए हैं. कई परिवारों का कहना है कि पुलिस कर्मचारी दरवाजा तोड़ कर घरों में दाखिल हो गए और निर्दोष युवकों की बेरहमी से पिटाई की तथा जेल में डाल दिया. इन परिवारों का कहना है कि गिरफ्तारी घरों से की गई, लेकिन पुलिस ने एफआईआर में इन्हें पत्थरबाजी करते हुए घटनास्थल से गिरफ्तार बता दिया. कई परिवारों ने यह भी कहा कि घरों में महिलाएं थीं, लेकिन पुलिस के साथ कोई महिला पुलिस कर्मचारी नहीं थी.

जामा मस्जिद से करीब सात से आठ मिनट पैदल चलने पर पठान टोली आती है. इस गली का पहला मकान फिरोज खान का है. इस मकान से 24 साल के सैयद अहमद खुर्शीद, 22 वर्ष के सैयद कमर खुर्शीद और 18 वर्षीय सैयद अकबर खुर्शीद को पुलिस ने पकड़ा. तीनों खुर्शीद अहमद के बेटे हैं. खुर्शीद अहमद न्यू काजी मोहल्ले में रहते हैं. पठान टोली में उनकी बहन सूफिया बानो की ससुराल है.

मकान के प्रवेशद्वार में गत्ते का पैबंद लगा हुआ है, जो बताता है कि हाल ही में दरवाजा टूटा होगा. सूफिया बानो ने मुझे बताया, “डेढ़ बजे के करीब चाहरदीवारी के बाहर से कुछ पुलिस वाले झांकते नजर आए, तो मैं डर गई. अहमद खुर्शीद उस वक्त कपड़े धो रहा था और कमर खुर्शीद तथा अकबर खुर्शीद सर्दी अधिक होने के कारण कमरे में बैठ कर मोबाइल पर कुछ देख रहे थे. मैंने अहमद से कहा कि वह भी कमरे में चला जाए. वह कमरे में चला गया, तभी पुलिस मुख्य दरवाजे पर डंडा बरसाने लगी और आखिरकार दरवाजा तोड़ कर भीतर दाखिल हो गई. वे 20 से 25 की संख्या में थे. उनमें से 4-5 पुलिस वाले कमरे में गए और तीनों को बंदूक के मुट्ठे से मारते हुए बाहर ले गए. मैं रो रही थी. मैंने पुलिस से मिन्नतें कीं कि वे लोग रोड़ेबाजी में शामिल नहीं थे, तो पुलिस ने कहा कि अगर तेरा भतीजा पत्थर नहीं फेंक रहा था, तो कमरे के भीतर क्यों बैठा था. मैं रोते हुए घर से बाहर निकल आई, तो पुलिस वालों ने कहा कि मैं शरीफ औरत हूं तो बाहर क्यों रो रही हूं. मुझे घर में जाकर रोना चाहिए.”

थाने में दिए गए आवेदन में कमर खुर्शीद, अकबर खुर्शीद और अहमद खुर्शीद को डॉ. निहाल की गली के पास ईंट-रोड़े बरसाते वक्त पुलिस की कार्रवाई में गिरफ्तार करने का दावा किया गया है. रोड़ेबाजी के पुलिस के आरोपों के संबंध में उनके पिता 92 वर्षीय खुर्शीद अहमद से पूछा गया, तो उन्होंने मुझे बताया कि दिनभर वे लोग न्यू काजी मोहल्ला में स्थित अपने घर पर थे. उन्होंने कहा, “दोपहर करीब एक बजे वे तीनों मेरी बहन के पास पठान टोली में आए थे. उनका पत्थरबाजी से कोई लेना-देना है ही नहीं.”

सैयद अहमद खुर्शीद और कमर खुर्शीद लखनऊ के नदवा कॉलेज में आलीम की पढ़ाई कर रहे हैं. अहमद का फाइनल ईयर चल रहा है और कमर खुर्शीद फर्स्ट ईयर में है. वहीं, अकबर खुर्शीद जामिया मिल्लिया इस्लामिया में सेकेंड ईयर में हैं.

खुर्शीद अहमद बताते हैं, “हमलोग 18 तारीख को आसनसोल में एक दावत में शरीक हुए थे और 19 को वापस औरंगाबाद लौटे. जिन तीन बच्चों को पुलिस ने पकड़ा है, उनकी यहां किसी से जान-पहचान भी नहीं है क्योंकि वे यहां बहुत कम समय तक रहे.”

खुर्शीद 1977 से यहां हैं. पहले वह धनबाद में एक निजी कंपनी में काम करते थे. 1995 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और घर पर आकर गाड़ी चलाने लगे. उन्होंने कहा, “मैंने अब तक की जिंदगी में पहली बार पुलिस की ऐसी कार्रवाई देखी है. पुलिस घर में आई, इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन दुखद यह है कि मेरे बेटों को झूठा इल्जाम लगा कर गिरफ्तार किया गया. करियर शुरू होते ही उनके करियर पर पुलिस ने दाग लगा दिया. कल अगर मैं उनका चरित्र प्रमाण पत्र बनवाने जाऊंगा, तो क्या मुझे वे पाक-साफ प्रमाण पत्र देंगे? पुलिस का ऐसा रवैया पहले नहीं था. यह कार्रवाई पूर्वनियोजित थी और मुझे लगता है कि ऊपर से इसका आदेश मिला था.”

फिरोज खान के घर से आगे बढ़ने पर 74 वर्षीय जियाउल हक का मकान आता है. जियाउल हक बिहार सरकार के परिवहन विभाग में कार्यरत थे. साल 2002 में वह रिटायर हुए. पुलिस के जत्थे ने जब उनके घर पर हमला बोला, तो घर में उनके सिवा कोई पुरुष सदस्य नहीं था. अलबत्ता 9 महिलाएं थीं. मकान में घुसने का दरवाजा अमूमन खुला ही रहता है. उस दिन भी खुला ही हुआ था. जियाउल हक और घर की बाकी महिलाएं मकान के पहले तल्ले पर थीं. पुलिस मुख्य दरवाजा खोल कर भीतर दाखिल हो गई. कुछ पुलिस कर्मचारी ग्राउंड फ्लोर के कमरों में तलाशी लेने लगे, तो कुछ पहली मंजिल पहुंच गए और जियाउल हक को कहा कि उन्हें थाने चलना होगा.

जियाउल हक ने मुझे बताया, “जब पुलिस मेरी बांह पकड़ कर ले जाने लगी, तो मैंने उनसे कहा कि क्या मैं उन्हें पत्थरबाज लग रहा हूं? इसी बीच मेरे घर की बाकी महिलाओं ने भी आपत्ति जताई, तो मुझे छोड़ दिया, लेकिन तलाशी लेने के नाम पर घर में काफी तोड़फोड़ मचाई. अलमारी तक खोल कर दिखाने को कहा.”

जियाउल हक की 20 वर्षीया भतीजी खुर्शीदा खातून ने मुझे बताया कि पुलिस वाले जब ऊपर के कमरे में गए, तो दरवाजा भीतर से बंद था. उन्होंने दरवाजा पीटना शुरू किया और यह भी कहा कि अगर दरवाजा नहीं खोला गया तो वे गोली मार देंगे. हमलोगों ने दरवाजा खोल दिया तो एक पुलिस वाले ने मुझ पर पिस्तौल तानते हुए कहा कि तुम्हें आजादी चाहिए? हम देते हैं तुमको आजादी!”

खुर्शीदा के पिता सऊदी अरब में रहते हैं और उनके तीनों भाई उस वक्त अपनी दुकानों पर थे. उन्होंने मुझे बताया कि इतनी महिलाएं थीं लेकिन पुलिस के साथ कोई महिला कर्मचारी नहीं थी. उन्होंने ये भी बताया कि पुलिस ने जाते-जाते अहाते में रखे दो स्कूटरों को क्षतिग्रस्त कर दिया.

मोहम्मद इमरान आलम का नाम आवेदन में 9वें अभियुक्त के तौर पर दर्ज है. उम्र लिखी गई है 22 वर्ष. पता है कुरैशी मोहल्ला. पुलिस का कहना है कि उसे भी पथराव करते वक्त पुलिसिया कार्रवाई में पकड़ा गया. मैं जब उस पते पर पहुंचा, तो एक फैक्ट फाइंडिंग टीम लोगों की शिकायतें दर्ज कर रही थीं. इमरान के बुजुर्ग पिता शहाबुद्दीन कुरैशी भीड़ से घिरी टीम तक अपनी शिकायत पहुंचाने की जद्दोजहद कर रहे थे. वहीं पर मेरी मुलाकात उनसे हुई. वह मुझे अपने घर ले गए और फाइल में संभाल कर रखे गए इमरान के चरित्र प्रमाण-पत्र और विद्यालय स्थानांतरण प्रमाण-पत्र निकाल कर मेरे सामने रख दिया. दोनों दस्तावेज में उसका का जन्म दिन 5 मार्च 2005 दर्ज है. यानी उसकी उम्र 14 साल 9 महीना है. वह पास के ही उर्दू स्कूल में आठवीं में पढ़ता है.

लाठी-डंडे के साथ 15 से 20 पुलिस कर्मचारी चहारदीवारी फांद कर शहाबुद्दीन के घर में दाखिल हुए थे. उनके साथ कोई महिला पुलिस कर्मचारी नहीं थी. उस वक्त इमरान कमरे में बैठ कर मोबाइल पर कुछ देख रहा था और उसकी 18 वर्षीया बहन रूही परवीन आंगन में ही नहा रही थी.

रूही ने बताया, “पुलिसवाले दीवार फांद कर भीतर आए और कमरे से इमरान को खींच कर बाहर निकाला और बेरहमी से उसे पीटने लगे. मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की कि वे इस तरह क्यों मार रहे हैं, तो उन्होंने मुझे भी एक डंडा जड़ दिया और घसीटते हुए इमरान को अपने साथ ले गए. वे लोग गंदी-गंदी गालियां दे रहे थे.”

पुलिस ने जिन तीन औरतों को पत्थरबाजी के आरोप में गिरफ्तार किया है, उनमें से दो इमरान की रिश्तेदार हैं. इन औरतों के परिजनों का कहना है कि वे शादी की एक रस्म में हिस्सा लेने के लिए रिश्तेदार के घर में थे तभी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दावत के खाने को भी पलट दिया.

मसूद फैजल नाम के शख्स की उम्र आवेदन में 28 साल दर्ज है. लेकिन उसके परिजनों और सर्टिफिकेट के अनुसार उसकी उम्र फरवरी 2020 में 17 साल होगी. इसी तरह सद्दाम की उम्र आवेदन में 19 साल बताई गई है, लेकिन सर्टिफिकेट में वह महज 12 साल का है.

गिरफ्तारी की स्थितियां व जगहों को लेकर पुलिस के दावों को कई और भी लोगों ने खारिज किया है. पुलिस का दावा है कि शाहबाज नवाब को उन्होंने छत से पत्थर फेंकते हुए पकड़ा था लेकिन उनके परिजनों की तरफ से दो सीसीटीवी फुटेज मुहैया कराए गए हैं जो कुछ और कहानी कह रहे हैं. एक फुटेज में वह गाड़ी पार्क करते हुए नजर आ रहे हैं और दूसरी फुटेज में पुलिस एक कोने में उन्हें बुरी तरह पीटती दिख रही है. शाहबाज नवाब जामा मस्जिद के पास स्थित शाहगंज मोहल्ले में ही रहते हैं और बिजनेस करते हैं. शाहबाज के एक रिश्तेदार ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर मुझे बताया, “शाहगंज मोहल्ले में पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच पथराव हो रहा था. हमारा फोर व्हीलर रोड के किनारे खड़ा था. हमें डर था कि पथराव से गाड़ी क्षतिग्रस्त हो जाएगी इसलिए शाहबाज और उनके चचेरे भाई गाड़ी को गली में पार्क कर देने के लिए मकान से नीचे उतरे. चचेरे भाई गाड़ी चला रहे थे और शाहबाज लोगों की भीड़ को हटा रहे थे ताकि गली में गाड़ी लगवा दें. उसी वक्त पुलिस ने शाहबाज को पकड़ लिया और बेरहमी से उनकी पिटाई की. इसके बाद उन्हें थाने ले गए.”

पुलिस की पिटाई से शाहबाज बुरी तरह जख्मी हो गए. पुलिस की ही मार से कम से कम आधा दर्जन और लोग घायल हुए हैं. उन्हें इलाज के लिए पुलिस ने सदर अस्पताल में भर्ती कराया था. उनमें से कुछ को अब जेल में डाल दिया गया है.   

कुरैशी मोहल्ले के ही शब्बीर कुरैशी की तीन मोटरसाइकिलों को पुलिस ने क्षतिग्रस्त कर दिया और घर में घुस कर तोड़फोड़ मचाई. वारदात के वक्त घर में मौजूद रही 20 वर्षीया आरफी खातून ने मुझे बताया, “उस वक्त घर में एक भी पुरुष सदस्य मौजूद नहीं था. पुलिस को हमने यह बताया भी लेकिन वे नहीं माने. बिना कोई महिला पुलिस कर्मचारी लिए 15 से 20 पुरुष पुलिस कर्मचारी घर में घुस गए और गंदी-गंदी गालियां दीं.” आरफी स्नातक की छात्रा हैं. उन्होंने पैर में दो जगह सुर्ख जख्मों को दिखाते हुए कहा, “जब तोड़फोड़ करने से मना किया, तो उन्होंने लाठी से मुझ पर वार किया और काफी खोजबीन के बाद भी कोई पुरुष नहीं मिला, तो वे लोग खाली हाथ लौट गए.”

21 दिसंबर की पुलिस की एकतरफा कार्रवाई से पहले औरंगाबाद साल 2018 में भी एक बार सुर्खियों में आया था. दरअसल, तलवार और अन्य धारदार हथियार लेकर निकाले गए रामनवमी के जुलूस पर कथित तौर पर पथराव के बाद शहर दंगे की चपेट में आ गया था. दर्जनों दुकानों में भीषण लूटपाट और आगजनी की गई थी. इनमें ज्यादातर दुकानें मुसलमानों की थीं.

दिलचस्प बात है कि 21 दिसंबर को राजद के बंद के दौरान पथराव की पहली वारदात जिस मोहल्ले से हुई थी, उसी मोहल्ले के पास 2018 के रामनवमी के जुलूस पर भी कथित तौर पर पथराव किया गया था, जिसके बाद हालात बेकाबू हो गए थे.

26 मार्च 2018 को रामनवमी से ठीक पहले शहर में एक बाइक रैली निकाली गई थी. इस रैली पर नवाडीह गांव में कथित तौर पर पथराव हुआ था, जिसके बाद एक दर्जन दुकानों में आग लगा दी गई थी. पुलिस इस घटना की गंभीरता को समझ नहीं पाई और मुख्य जुलूस में ढीली व्यवस्था रखी. बाइक रैली के अगले दिन तकरीबन 10000 लोगों ने शहर से होकर रामनवमी का जुलूस निकाला था. इस जुलूस पर भी किसी ने पथराव कर दिया था, जिसके बाद हालात संगीन हो गए थे. इस मामले में पुलिस ने 78 लोगों को नामजद आरोपी बनाया था. इनमें बीजेपी प्रवक्ता उज्जवल कुमार, बीजेपी नेता अनिल सिंह और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता दीपक कुमार शामिल  थे.

साल 2018 के दंगे में क्षतिग्रस्त कुछ दुकानों के मालिकों से मैंने बात की थी, तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि पुलिस की निष्क्रियता के कारण इतनी दुकानें लुटीं और जलाई गईं. पीड़ितों ने बताया था कि दंगाई दुकानें लूट रहे थे, जला रहे थे और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई थी. लेकिन 21 दिसंबर की घटना को लेकर मुस्लिमों ने पुलिस पर मूकदर्शक बनने का नहीं बल्कि बर्बरता करने का आरोप लगाया है.

सीएए और एनआरसी के खिलाफ 21 दिसंबर का राजद का बिहार बंद पूर्व नियोजित था. बिहार के अन्य जिलों की तरह औरंगाबाद में भी इसका पालन किया जा रहा था. 21 दिसंबर की सुबह से औरंगाबाद शहर की दुकानें बंद थीं. दोपहर को राजद की तरफ से एक जुलूस रमेश चौक से शुरू हुआ, जो जामा मस्जिद आकर खत्म हो गया था. उस वक्त दोपहर करीब 12.30 बज रहे थे. थाने में दिए गए आवेदन में कहा गया है कि इस जुलूस को स्थानीय पार्षद सिकंदर हयात नेतृत्व दे रहे थे. आवेदन के अनुसार, जुलूस जब पांडेय पुस्तकालय (जामा मस्जिद से कुछ कदम पीछे) के पास पहुंचा, तो जूलूस में शामिल लोग जबरन दुकानें बंद कराने लगे और उन्होंने दुकानदारों से मारपीट की. सिकंदर हयात अपने साथ आए उपद्रवियों को पुलिस प्रशासन पर हमला करने के लिए ललकार रहे थे. उसी वक्त उपद्रवियों ने पुलिस पर पथराव किया.

सिकंदर हयात को पुलिस ने 21 दिसंबर को गिरफ्तार किया. वह भी कुरैशी मोहल्ले में रहते हैं. उनके 79 वर्षीय पिता नसीमुद्दीन पुलिस की कहानी से इत्तेफाक नहीं रखते. उन्होंने मुझे बताया, “जुलूस खत्म होने के बाद वह घर आ गया था. बगल में ही भाई का घर है. वहां था. जब शोरगुल हुआ, तो वह लोगों को समझाने के लिए बाहर निकला, तभी पुलिस ने पकड़ लिया.” नसीमुद्दीन के मुताबिक, सिकंदर पहले बीजेपी में थे, लेकिन बाद में पार्टी से अलग हो गए. उन्होंने बताया कि वह राजद समर्थक है, सक्रिय नेता नहीं.

जिस जगह पर पहली दफा पथराव की बात कही गई है, उसे तेली मोहल्ला कहा जाता है. राजद के स्थानीय नेता युसूफ अंसारी ने पुलिस के बयान को सिरे से खारिज करते हुए मुझे बताया कि जुलूस खत्म हो जाने के बाद बंद समर्थक अपने घरों की तरफ लौट रहे थे, तभी तेली मोहल्ले में उन पर पथराव किया गया.

पुलिसिया कार्रवाई को लेकर पठान टोली और कुरैशी मोहल्ले के लोगों से बात करते हुए तेली मोहल्ले के बीजेपी के एक नेता अनिल कुमार का जिक्र बार-बार आया. अनिल कुमार बीजेपी के नगर अध्यक्ष रह चुके हैं. वह पार्टी से 1990 से जुड़े हुए हैं. उससे पहले वह आरएसएस से जुड़े हुए थे. तेली मोहल्ले में उनकी इलेक्ट्रानिक्स की दुकान है.

राजद नेता युसूफ अंसारी को संदेह है कि अनिल कुमार की शह पर ही बंद समर्थकों पर पथराव करवाया गया था क्योंकि “वे लोग सीएए-एनआरसी का समर्थन करते हैं और 21 दिसंबर को बंद के सफल होने से नाराज थे.”

कुरैशी मोहल्ला, शाहगंज, पठान टोली आदि इलाके के मुस्लिमों ने पुलिस की कार्रवाई को एकतरफा और प्रतिशोधात्मक बताया, लेकिन दूसरी तरफ अनिल कुमार और आसपास के हिंदू दुकानदारों ने पुलिस की तारीफ में कसीदे पढ़े. अनिल कुमार ने अपने ऊपर लगे आरोपों को यह कह कर खारिज कर दिया कि अगर उन्होंने कोई गलती की है, तो उनके खिलाफ पुलिस में कोई शिकायत क्यों नहीं है? अनिल कुमार ने मुझे बताया, “राजद के बंद बुलाए जाने के कारण हमलोगों ने अपनी दुकानें बंद रखी थीं. दोपहर 12.30 बजे डीएम साहब का आदेश हुआ कि दुकानें खोली जाएं. हम 8-10 दुकानदार दुकानें खोलने लगे. इतने में कुरैशी मोहल्ले से 50-60 लोग आए और इस्लाम टोली में दुकानें बंद कराने लगे और मेन रोड पर आ गए. यहां की दुकानों से सामान फेंकने लगे. हमलोगों ने पांडेय पुस्तकालय के पास तैनात दारोगा संजय जी से कहा कि वह कार्रवाई करें, वरना माहौल खराब हो जाएगा. उन्होंने तुरंत नगर थाने में फोन कर अतिरिक्त फोर्स भेजने को कहा. हमलोगों ने भी दुकान का सामान फेंकने का विरोध किया, तो वे लोग ईंट-पत्थर चलाने लगे. पुलिस ने मामले को अच्छे से संभाला वरना और भी बड़ा बवाल हो सकता था.”

पठान टोली के एक स्थानीय युवक ने अनिल कुमार के पथराव वाले दावे पर सवाल उठाया. उसने नाम नहीं छापने की शर्त पर मुझे कहा, “मैं घटना के वक्त वहीं था. मैंने देखा कि पहला पथराव राजद के जुलूस से लौट रहे लोगों पर हुआ था, उसके बाद जवाबी पत्थरबाजी की गई.”

मजहर साहिल कुरैशी मोहल्ले से कुछ दूर रहते हैं. पुलिस ने अहाते में खड़ी उनकी एक मोटरसाइकिल और एक चार पहिया वाहन को क्षतिग्रस्त कर दिया. मजहर ने भी पुलिस और बीजेपी नेता के दावे को झुठलाया और कहा कि उस तरफ कोई भी बंद करवाने नहीं गया था बल्कि जुलूस खत्म होने के बाद तेली मोहल्ले से होकर लोग अपने घर की तरफ लौट रहे थे, तभी उन पर पथराव किया गया.

पिछले दिनों अमन बिरादरी, बिहार महिला समाज, ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क और डब्ल्यूएसएस की तरफ एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने औरंगाबाद का दौरा किया था. इस टीम का हिस्सा रहे ताबिल ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं है कि पथराव हुआ है लेकिन इस पथराव को लेकर पुलिस की कार्रवाई से साफ जाहिर होता है कि उनका निशाना पहले से तय था.

भूल सुधार : इस खबर के तीसरे पैरा में 2 जनवरी और 3 जनवरी की जगह 2 दिसंबर और 3 दिसंबर लिख गया था. इस भूल को सुधार लिया गया है. कारवां को गलती का खेद है.