सीएए-एनआरसी : बिहार बंद के दौरान औरंगाबाद के मुस्लिम मोहल्लों में पुलिसिया उन्माद

21 दिसंबर को सीएए और एनआरसी के खिलाफ राजद के बुलाए बंद के दौरान औरंगाबाद जिले के मुस्लिम मोहल्लों में पुलिस ने बेलगाम हिंसा की. पुलिस ने 11 नाबालिग और तीन महिलाओं समेत 39 लोगों को गिरफ्तार भी किया है.
संतोष कुमार/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
21 दिसंबर को सीएए और एनआरसी के खिलाफ राजद के बुलाए बंद के दौरान औरंगाबाद जिले के मुस्लिम मोहल्लों में पुलिस ने बेलगाम हिंसा की. पुलिस ने 11 नाबालिग और तीन महिलाओं समेत 39 लोगों को गिरफ्तार भी किया है.
संतोष कुमार/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

मनोज कुमार बिहार के औरंगाबाद जिले के जिला ग्रामीण विकास अभिकरण में असिस्टेंट इंजीनियर हैं. 19 दिसंबर को उन्हें एक लिखित आदेश मिला कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ 21 दिसंबर को राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से बिहार बंद बुलाए जाने को लेकर कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए औरंगाबाद शहर की जामा मस्जिद के पास उनकी ड्यूटी लगेगी. आदेशानुसार, वह 21 दिसंबर की सुबह से जामा मस्जिद के निकट ड्यूटी पर तैनात थे. दोपहर 12.15 बजे के बाद वहां यकायक पत्थरबाजी शुरू हो गई और कई घंटों तक पुलिसिया कार्रवाई चली. जामा मस्जिद के पास मुस्लिम आबादी वाले कुरैशी मोहल्ला, शाहगंज, पठान टोली, न्यू काजी मोहल्ला और अन्य इलाकों में पुलिस की जबरदस्त कार्रवाई हुई और 40 के आसपास लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस का दावा है कि उपद्रवियों का हमला पूर्व नियोजित था और डॉ. नेहाल की गली तथा कुरैशी मोहल्ले से उन पर जम कर रोड़ेबाजी की गई.

मनोज कुमार ने 21 तारीख को औरंगाबाद नगर थाना क्षेत्र में दिए अपने लिखित आवेदन में कहा है कि डॉ. नेहाल की गली और कुरैशी मोहल्ले से कुल 39 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें तीन औरतें भी हैं. बयान के अनुसार, गिरफ्तार किए गए सभी लोग रोड़ेबाजी में शामिल थे और बालिग थे. मनोज कुमार के बयान में सभी का नाम, पता और उम्र दर्ज है. उम्र बताती है कि सभी बालिग हैं. लेकिन इनमें से कम से कम 11 लोग नाबालिग हैं. बयान में ये भी कहा गया है कि रोड़ेबाजी में कई पुलिस पदाधिकारी भी जख्मी हुए.

कल 2 जनवरी को अदालत ने तीन महिलाओं की जमानत याचिका खारिज कर दी और आज 3 जनवरी को 25 लोगों के जमानती आवेदन को भी अदालत ने खारिज कर दिया. गिरफ्तार लोगों की तरफ से केस लड़ रहे वकील मेराज ने मुझे बताया कि उन्होंने नाबालिगों के मामलों की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में कराने का आवेदन भी किया है जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया है.

लेकिन, असिस्टेंट इंजीनियर के बयान के उलट इलाके में लगे सीसीसीवी कैमरों में कैद हुए वीडियो फुटेज और कुछ परिवारों से मुलाकात में जो बातें सामने आई हैं, वे पुलिसिया तांडव की कहानी बयां कर रही हैं. सीसीटीवी फुटेज में पुलिस बिना वजह सड़क किनारे और घर की चहारदीवारी के भीतर खड़ी गाड़ियों पर डंडे बरसाती और पथराव करती नजर आ रही है.

मैंने 31 दिसंबर को कुरैशी मोहल्ला, शाहगंज और पठान टोली के आधा दर्जन परिवारों से मुलाकात की. इन परिवारों ने पुलिस पर भीषण अत्याचार के आरोप लगाए हैं. कई परिवारों का कहना है कि पुलिस कर्मचारी दरवाजा तोड़ कर घरों में दाखिल हो गए और निर्दोष युवकों की बेरहमी से पिटाई की तथा जेल में डाल दिया. इन परिवारों का कहना है कि गिरफ्तारी घरों से की गई, लेकिन पुलिस ने एफआईआर में इन्हें पत्थरबाजी करते हुए घटनास्थल से गिरफ्तार बता दिया. कई परिवारों ने यह भी कहा कि घरों में महिलाएं थीं, लेकिन पुलिस के साथ कोई महिला पुलिस कर्मचारी नहीं थी.

उमेश कुमार राय पटना के स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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