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16 दिसंबर को बेंगलुरु के टाउन हॉल जाने वाले रास्ते पर पीले बैरिकेड लगा दिए गए थे. वॉटर कैनन वैन और भारी संख्या में पुलिस इन बैरिकेडों के पीछे तैनात थी. कुछ लोग किनारे खड़े होकर खामोशी से इस मंजर को देख रहे थे और कुछ पूछ रहे थे कि हो क्या रहा है.
अन्य लोगों की तरह ही मैं भी नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019, एनआरसी और दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता का विरोध करने टाउन हॉल आई थी.
पहला विरोध प्रदर्शन शाम 4 बजे होना था. इसे स्टूडेंट्स अगेंस्ट फासिज्म नाम दिया गया था. इसका आयोजन नागरिक समूहों, गैर-सरकारी संगठनों और विपक्षी दलों के समूह हम भारत के लोग ने किया था. दूसरे प्रदर्शन का आयोजन 4.30 बजे ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ने किया था. एआईडीएसओ वामपंथी राजनीतिक दल सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) का छात्र संगठन है.
26 साल के पत्रकार वरुण शेट्टी ने मुझे बताया, "मैंने पहले कभी बेंगलुरु में विरोध प्रदर्शन में वॉटर कैनन का इस्तेमाल होते नहीं देखा." विरोध प्रदर्शन में शामिल एक बुजुर्ग महिला ने शेट्टी को एक तस्वीर दिखाई जिसमें पुलिस वाले तीन लोगों से बात करते हुए दिख रहे थे. ये लोग पुलिस की मौजूदगी को रिकार्ड करने के लिए अपना कैमरा ट्राइपॉड पर लगाने की कोशिश कर रहे थे. "उन्होंने मुझे बताया है कि पुलिस ने कैमरे लगाने पर इन लोगों को गिरफ्तार कर लेने की धमकी दी है." महिला ने शेट्टी को बताया कि पुलिस ने उसे धमकी दी है कि अगर वह घटना का वीडियो बनाना बंद नहीं करेंगी तो उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा.
प्रदर्शनकारी अन्य लोगों के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे. आखिरकार लगभग 120 लोग वहां जमा हुए. लगभग आधे घंटे बाद इन लोगों को बैरिकेड के पास जाने दिया गया. विरोध की शुरुआत में सामूहिक रूप से संविधान की प्रस्तावना का पाठ हुआ और फिर लोगों ने नारे लगाए.
विरोध प्रदर्शन जरा सा भी हिंसक नहीं था लेकिन पुलिस ने सभा को घेर लिया. शेट्टी ने कहा, "आयोजकों ने हम सभी को बैठ जाने के लिए कहा और ऐसा नहीं लग रहा था कि किसी तरह की हिंसा होने वाली है." बस थोड़ा डर तब लगा जब जनता दल (सेक्युलर) के तनवीर अहमद और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सौम्या रेड्डी प्रदर्शन में भाग लेने पहुंचे.
दोनों ने सीएए के असंवैधानिक स्वरूप के बारे में बात रखी और छात्रों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता की निंदा की. रेड्डी ने कहा, "यहां मौजूद हर व्यक्ति इस देश का नागरिक है और जाति-धर्म अलग-अलग होने के बावजूद हमें यह साबित करने की जरूरत नहीं कि हम कौन हैं. हमारा देश धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर बना है. कल हमारे छात्रों के खिलाफ इतनी क्रूरता क्यों बरती गई? क्या हम सवाल नहीं पूछ सकते?” भाषणों के बाद लोगों ने राष्ट्रगान गाया और तितर-बितर हो गए.
दो दिन बाद, सीएए और एनआरसी के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की पूर्व संध्या पर, बेंगलुरु और राज्य के अन्य हिस्सों में तीन दिनों के लिए धारा 144 लगा दी गई.
वकील और शोधकर्ता गौतम भाटिया ने, जिन्होंने संवैधानिक कानूनों पर दो किताबें लिखी हैं, ट्वीट किया, "बेंगलुरु में हिंसा की संभावना न होने के बावजूद धारा 144 लगाना सत्ता का दुरुपयोग और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है."
सोशल मीडिया और सिटिजन कलेक्टिव की अगुवाई में, निषेधात्मक आज्ञा का उल्लंघन कर लोग टाउन हॉल और मैसूर बैंक सर्किल के पास जमा हुए. लोगों ने इस बात की फिक्र नहीं की कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर सकती है. बेंगलुरु में कथित तौर पर एक सौ से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया.
28 वर्षीय गेम डिजाइनर शारिक रफीक मैसूर बैंक सर्कल में पहुंचे तो वहां उन्हें 70-80 लोग दिखाई दिए. रफीक ने मुझे बताया, "हमारे आने के कुछ समय बाद, पुलिस ने कहा कि यहां से चले जाओ." उन्होंने आगे बताया, "जैसे ही हम वहां से जाने लगे, उन्होंने लोगों को वैन में धकेलना शुरू कर दिया."
रफीक वहां से निकलने की कोशिश ही कर रहे थे कि एक अजनबी ने उन्हें पकड़ लिया. "उसने मुझसे पूछा, ‘क्या तुम विरोध प्रदर्शन में शामिल होने आए है क्योंकि तुम वामपंथियों की तरह दिखते हो.’” रफीक वहां से दूर चले गए और विरोध प्रदर्शन में आने वाले जिन लोगों को वे जानते थे उनसे बातचीत करने लगे. आखिरकार, दो-दो तीन-तीन के समूहों में एक जगह से दूसरी जगह जाने के बाद, रफीक टाउन हॉल के पास पहुंचे, जहां भारी भीड़ जमा थी. "वहां 300 से 400 लोग थे. सब नारे लगा रहे थे," उन्होंने बताया. "पुलिस वाले एक तरफ खड़े थे और उन्हें विरोध करने दे रहे थे.”
प्रदर्शनकारियों का एक और समूह टाउन हॉल से सड़क के पार कामत होटल में एकत्र हुआ. 32 वर्षीय फिल्म निर्माता और कलाकार अशोक विश ने देखा कि एक वैन में पुलिस वाले आए और शील्ड और लाठियों के साथ भीड़ पर बरस पड़े. उन्होंने मुझे बताया, "पुलिस बल प्रयोग कर रही थी, लेकिन आयोजक यह सुनिश्चित कर रहे थे कि प्रदर्शनकारियों में से कोई भी हिंसा न करे." उन्होंने कहा, “प्रदर्शनकारियों ने अपना पक्ष रखा, लेकिन जवाब में हिंसा नहीं की. फिर पुलिस पीछे हट गई. शांतिपूर्ण विरोध एक घंटे तक जारी रहा.”
इसके बाद, विश टाउन हॉल चले गए. उन्होंने पुलिस के साथ बातचीत कर रहे कुछ वकीलों को देखा. ये वकील पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए लोगों को रिहा करने के बारे में बात कर रहे थे. विश ने बताया, "पुलिस ने मांग की कि पहले विरोध प्रदर्शन खत्म करो."
जिन लोगों को हिरासत में लिया गया था, उन्हें टाउन हॉल से पांच किलोमीटर की दूरी पर अदुगोड़ी पुलिस स्टेशन के पास एक बरातघर ले जाया गया. इनमें 24 वर्षीय कॉपीराइटर दिया और 32 वर्षीय पत्रकार कार्तिक भी शामिल थे. कार्तिक ने मुझे बताया कि जब वे हॉल में पहुंचे, तो वहां पहले से ही तकरीबन सौ लोग मौजूद थे. इन लोगों में इतिहासकार रामचंद्र गुहा भी थे. हिरासत में लिए गए लोगों को अपनी पूरी जानकारी देने और फोन जमा करने को कहा गया. दिया और कार्तिक ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. कुछ घंटों के बाद, उन्हें दस-दस के समूह में वहां से निकल जाने दिया गया.
कार्तिक और रफीक ने बताया कि उन्होंने पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग करते देखा है. पुलिस लोगों को घसीट रही थी. वेबसाइट द न्यूज मिनट के पत्रकार प्रज्वल भट ने ट्वीट किया, “टाउन हॉल के पास हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों से भरी एक बस को शांतिनगर के पास खाली कर दिया गया क्योंकि बस को वापस जाना था और अन्य प्रदर्शनकारियों को वहां से उठाना था. भ्रम की स्थिति में, लोग बस से उतर गए और टाउन हॉल वापस चले आए.”
36 वर्षीय लेखक और संपादक अजय कृष्णन का कहना था, "मैं टाउन हॉल पहुंचा तो विरोध स्थल खाली कराया जा चुका था. लेकिन तभी अचानक 150 मीटर दूर सड़क पर बहुत बड़ा जमावड़ा दिखाई दिया, हजार के आसपास लोग वहां जमा थे. जोरदार भाषण और नारे लगने लगे. मौके पर पहुंची पुलिस ने इसे तितर-बितर करना चाहा. लेकिन भीड़ बहुत ज्यादा थी इसलिए उन्होंने कुछ नहीं किया.”
पिछले दिन कृष्णन ने मैसूर बैंक सर्कल में एक महिला को हिरासत में लेते और बुरी तरह से घसीटते हुए देखा था. वह महिला वहां खड़ी थी और उन्हें बता रही थी कि वह धारा 144 का उल्लंघन नहीं कर रही है. उन्होंने घटना का वीडियो ट्वीट किया है.
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पुलिस द्वारा कानून की पढ़ाई करने वाली एक छात्रा को हिरासत में लेने का वीडियो भी सामने आया है. वीडियो में, वह बार-बार उनसे पूछ रही है कि उसे हिरासत में क्यों लिया जा रहा है और पुलिस कुछ नहीं बता रही है.
सबीना बाशा ने भी प्रदर्शन में भाग लिया था. वह सूचना प्रौद्योगिकी फर्म में काम करती हैं. उन्हें भी मैसूर बैंक सर्कल से पुलिस ने भगा दिया था. उन्होंने बताया, "हम पांच लोग भी नहीं थे. हम लोग तख्तियां पकड़ कर बस स्टॉप पर बैठे थे. महिला पुलिस अधिकारी हमें वैन में धकेलने लगीं." बाशा ने कहा कि उन लोगों ने हिरासत का विरोध नहीं किया लेकिन वहां मौजूद एक वकील ने पुलिस से पूछा कि उन्हें हिरासत में क्यों लिया जा रहा है. उस आदमी को भी हिरासत में ले लिया गया.
इस समूह को मध्य बेंगलुरु के चामराजपेट पुलिस स्टेशन में ले जाया गया लेकिन हिरासत में लिए जाने के बारे में पूछे गए उनके सवाल का कोई जवाब नहीं दिया गया. उनके नाम, फोन नंबर और पते दर्ज करने के बाद उन्हें जाने दिया गया. उनकी पुलिस स्टेशन में उनकी वीडियोग्राफी भी की गई.
हिरासत में बाशा ने एक महिला कांस्टेबल से बातचीत की और बताया कि लोग क्यों सीएए और एनआरसी का विरोध रहे हैं. बाशा ने बताया, "मैंने उससे कहा कि यह गरीबों में भी सबसे गरीबों को प्रभावित करेगा और यह कानून मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है. महिला कांस्टेबल यह मानने को तैयार नहीं थी कि लोगों के पास नागरिकता साबित करने के दस्तावेज नहीं होंगे. उसने कहा कि आधार कार्ड इसके लिए पर्याप्त है. उसका मानना था कि “अवैध” लोग यहां आकर देश को लूटते हैं. उनके यहां आने की कीमत देश को भुगतनी पड़ती है. मैंने उससे कहा कि हमारे पास लूट के अपराध के खिलाफ कानून हैं लेकिन तथाकथित नागरिकों की पहचान करने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी.”
कई लोगों से बात करने से पता चलता है कि जहां प्रदर्शनकारियों की संख्या कम थी वहां पुलिस ने बल प्रयोग किया लेकिन जब लोगों की संख्या बढ़ गई तो पुलिस थम गई. दक्षिणपंथी नेताओं के दावों के विपरीत प्रदर्शनकारी पूरी तरह से शांत थे और उन्होंने पुलिस के खिलाफ किसी तरह की हिंसा नहीं की.
दिया ने कहा, "मैं धारा 144 लागू होने के बावजूद विरोध करने गई क्योंकि मुझे जिम्मेदारी का अहसास है. सीएए स्पष्ट रूप से भेदभाव करता है. आप किसी समुदाय को बाहर नहीं कर सकते और मैं उस बर्बरता की कल्पना तक नहीं कर सकती जिससे "जामिया और एएमयू में छात्रों को गुजराना पड़ा."
कार्तिक ने कहा, "मैं आज उम्मीद से भरा हुआ महसूस कर रहा हूं क्योंकि मैंने ऐसे लोग देखे जो नारे लगा रहे थे और गा रहे थे, हम होंगे कामयाब. पूरे देश की जनता धारा 144 को धता बता रही है और यह बहुत बड़ी बात है. मैंने हिंदू-मुस्लिम एकता के नारे सुने. मौजूदा माहौल में यह सकून देता है.”
हालांकि, पुलिस की कार्रवाई से बेंगलुरु के लोग अपेक्षाकृत असंतुष्ट रहे. मैंगलुरु में 49 वर्षीय जलील और 23 वर्षीय नौसीन बेंगरे की विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में मौत हो गई. पत्रकार इस्माइल जॉर्ज ने बताया कि पुलिस को प्रेस आईडी दिखाने के बावजूद उन पर लाठीचार्ज किया गया.
बेंगलुरु में जब प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ी तो मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने घोषणा की कि पुलिस को संयम बरतना चाहिए. 20 दिसंबर को एक भड़काऊ लगने वाले बयान में, बेंगलुरु पुलिस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया कि वह भड़काऊ पोस्टों की "छानबीन कर रही है और उन्हें इकट्ठा कर" रही है और लोगों को "अपनी भलाई के लिए "नफरत फैलाने" से बचना चाहिए. इसकी प्रतिक्रिया में कई लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के नेता और पर्यटन और कन्नड़ संस्कृति राज्य मंत्री सीटी रवि द्वारा प्रदर्शन के खिलाफ दिए बयान का भी जवाब मांगा. उस बयान में रवि ने कहा था कि गोधरा में जो हुआ था वही फिर हो सकता है और उनके धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए.
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