राहुल कांग्रेस का दिवालियापन

आप की हार पर जश्न मनाना कांग्रेस का नैतिक पतन

1 फ़रवरी, 2025 को दिल्ली चुनाव के दौरान सदर बाज़ार में एक जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी. उन्होंने बीजेपी और अरविंद केजरीवाल की आलोचना की. दिल्ली में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली, फिर भी आप की हार पर पार्टी और समर्थक ख़ुश दिखे. (सलमान अली/हिंदुस्तान टाइम्स)

We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing

दिल्ली विधानसभा चुनावों के नतीजों ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि संगठन को लेकर बीजेपी की गंभीरता और अपने मतदाताओं और मुद्दों की बारीक समझ, उसके काम आए. आम आदमी पार्टी (आप) ने भी अपनी क्षमता अनुसार चुनवा लड़ा और बीजेपी को कांटे की टक्कर दी तथा वोट शेयर के मामले में चुनाव सर्वेक्षणों को ग़लत साबित कर दिया था. लेकिन इन नतीजों से सबसे ज़्यादा ख़ुश कांग्रेस नज़र आई, जिसने कोई सीट नहीं जीती. ये ख़ुश लोग उच्च जाति के वे उदारवादी, ज़्यादातर हिंदू और कुछ मुस्लिम, हैं जो दिल्ली के वातानुकूलित कमरों से कांग्रेस पार्टी को चला रहे हैं.

आप की हार में कांग्रेस का अच्छा-ख़ासा योगदान रहा. इसके कई उम्मीदवारों ने आप का खेल बिगाड़ने का काम किया. मसलन, संदीप दीक्षित के तीसरे स्थान पर रहने के चलते नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र में अरविंद केजरीवाल हार गए. लेकिन पार्टी ने इसे अपनी उपलब्धि के रूप में पेश किया. एक राष्ट्रीय पार्टी एक ऐसे कार्य का जश्न मना रही थी, जिससे सीधे तौर पर उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी को लाभ पहुंचा.

ऐसा नहीं है कि आप सरकार या पार्टी में सब अच्छा है. आप पर दो आरोप हैं. उसने अपने समर्थक आधार रहे दलितों की अवहेलना की जिससे उनमें असंतोष पैदा हुआ. इसका कारण केजरीवाल का आरक्षण और सकारात्मक कार्रवाई के प्रति ढुलमुल रवैया है. उनका यह रवैया आरक्षण विरोधी कार्यकर्ता के रूप में उनके शुरुआती दिनों में ही स्पष्ट था. यह एक ऐसा नज़रिया था जो आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में आरंभ से ही मौजूद था. इस पार्टी के शुरुआती नेता, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, हाल के वर्षों में उच्च न्यायपालिका में आरक्षण का विरोध करते रहे हैं. इस तरह का विचार न सिर्फ़ अन्याय है, बल्कि यह भारतीय समाज की सच्चाई को समझने में विफलता को भी दर्शाता है. यह महज़ संयोग नहीं है कि आप की पंजाब और दिल्ली में सरकारें बनीं. इन दोनों राज्य में इस चुनाव से पहले तक वर्ण और जाति, मतदाताओं को लामबंद करने वाली ताक़त नहीं थे जबकि ये भारतीय राजनीति में बड़ी भूमिका निभाते हैं.

Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute