2013 के माओवादी हमले की जांच पर बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने, हमले में मारे गए थे कांग्रेसी नेता

कांग्रेस के नेताओं ने इस हमले को राजनीतिक षडयंत्र बताया है. एपी

2013 की मई में माओवादी विद्रोहियों ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला किया. हमले में पार्टी के शीर्ष नेताओं सहित कम से कम 27 लोग मारे गए. जिस वक्त यह हमला हुआ उस वक्त राज्य में मुख्यमंत्री रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी. घटना के बाद कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने कहा, “यह एक साधारण हमला नहीं है. एक राजनीतिक साजिश है." उन्होंने दवा किया, "कुछ ताकतें कांग्रेस को सत्ता में वापस आते नहीं देखना चाहतीं."

हमले के बाद राज्य सरकार की सिफारिश पर गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी को इसकी जांच सौंप दी. दिसंबर 2018 में, घटना के पांच साल बाद कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव जीता और 18 दिसंबर को राज्य का मुख्यमंत्री बनने के कुछ घंटे बाद भूपेश सिंह बघेल ने इस माओवादी हमले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन करने की घोषणा की. उन्होंने घटना को "आपराधिक राजनीतिक साजिश" बताते हुए कहा, "साजिशकर्ताओं को बेनकाब नहीं किया गया है. राजनेताओं का ऐसा नरसंहार इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ. दोषियों को पकड़ने के लिए एसआईटी का गठन किया गया है.”

लेकिन केंद्र सरकार ने इस मामले को राज्य सरकार को सौंपने से इनकार कर दिया. 8 फरवरी 2019 को छत्तीसगढ़ सरकार को लिखे एक पत्र में गृह मंत्रालय ने कहा है कि एनआईए ने पहले ही आरोपपत्र दायर कर दिया है और जांच चल रही है. इस साल अगस्त में, हमले में बच गए दो लोगों, विवेक वाजपेयी और दौलत रोहरा ने जांच को स्थानांतरित करने से इनकार करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की. वाजपेयी कांग्रेस की राज्य इकाई के सचिव हैं. वाजपेयी और रोहरा ने अदालत से मामले के पूरे रिकॉर्ड की जांच कराने का अनुरोध किया. सितंबर में उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और एनआईए को नोटिस जारी कर याचिका का जवाब देने के लिए कहा है.

माओवादी हमला 25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के जगदलपुर-सुकमा राजमार्ग से सटे दरभा घाटी की झीरम घाटी में हुआ था. कांग्रेस के लगभग 200 नेताओं और कार्यकर्ताओं को ले जाने वाले बीस से ज्यादा गाड़ियों का काफिला परिवर्तन यात्रा में शामिल होने के लिए जा रहा था. यह क्षेत्र "लाल गलियारे" में पड़ता है. लाल गलियारा देश के मध्य, पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों को समेटे वह क्षेत्र है जहां माओवादियों की भारी गतिविधियां होती हैं. 150 माओवादियों के एक दल ने बारूदी सुरंग विस्फोट कर काफिले को रोका और फिर गोलाबारी शुरू कर दी. पूर्व विदेश मंत्री विद्या चरण शुक्ल, राज्य में विपक्ष के पूर्व नेता महेंद्र कर्मा, छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रदेश कमिटी के अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश कुमार पटेल तथा अन्य कांग्रेसी नेताओं के साथ मरने वाले लोगों में उदय मुदलियार और गोपी माधवानी भी शामिल थे.

छत्तीसगढ़ पुलिस ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के अज्ञात सदस्यों के खिलाफ शस्त्र अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया. अगले दिन, माओवादी पार्टी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली. इस विज्ञप्ति ने स्पष्ट कर दिया कि महेंद्र कर्मा उनका प्राथमिक लक्ष्य था. कर्मा माओवादी विद्रोह का मुकाबला करने के लिए 2005 में शुरू किए गए राज्य प्रायोजित सलवा जुडूम के संस्थापक थे. माओवादियों ने दावा किया कि सरकार ने सलवा जुडूम और ऑपरेशन ग्रीन हंट के नाम पर बस्तर क्षेत्र में कई आदिवासियों को यातनाएं दीं और मार डाला. ऑपरेशन ग्रीन हंट को कांग्रेस-नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की केंद्र सरकार की अगुवाई में एक बहु-राज्य काउंटर इंसरजेंसी ऑपरेशन के रूप में शुरू किया गया था.

इस हमले में जीवित बचे शिव नारायण द्विवेदी और चौलेश्वर चंद्राकर ने मीडिया को बताया कि नक्सली चिल्लाकर सभी से आत्मसमर्पण करने के लिए बोल रहे थे. द्विवेदी ने कहा, “मेरे दाहिने हाथ में गोली लगी थी और मैं सड़क पर पड़ा था. मैंने देखा कि महेंद्र कर्मा मेरी तरफ ही सुरक्षित पड़े हुए हैं. महेंद्र कर्मा और नंद कुमार पटेल का नाम पुकारते हुए अचानक नक्सली कार के पास पहुंचे. कर्मा खड़े हो गए. लगभग 10 लोग उन्हें घेरे खड़े थे. उन्होंने नक्सलियों से कहा कि वे उन्हें ले जाएं लेकिन गोलीबारी बंद कर दें. फिर नक्सली जंगल में घुस गए और लगभग 100 मीटर चलने के बाद उन्होंने कर्मा को बाकी कांग्रेसी नेताओं से अलग किया और कर्मा को मार डाला."

हालांकि गृह मंत्रालय ने एनआईए को इसकी जांच सौंपी थी लेकिन राज्य सरकार ने सुरक्षा उपायों और निवारक उपायों पर गौर करने के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन किया. जांच अभी जारी है.

21 मार्च 2014 को जांच एजेंसी ने सीपीआई (माओवादी) के शीर्ष नेताओं- गणपति और रमन्ना सहित 26 अभियुक्तों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी करने के लिए एनआईए अदालत में एक अर्जी दायर की. मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति, उस वक्त सीपीआई (माओवादी) के महासचिव थे. रावुला श्रीनिवास, जिन्हें रमन्ना के नाम से भी जाना जाता है, इस क्षेत्र के एक शीर्ष माओवादी नेता थे. एनआईए अदालत ने इस मामले की केस डायरी और गवाहों के बयानों को देखते हुए उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया.

इसके अगले महीने एनआईए ने गणपति और रमन्ना सहित सात फरार अभियुक्तों को आत्मसमर्पण करने की सूचना देने के लिए एक और अर्जी दायर की. 8 अगस्त को, एनआईए अदालत ने सभी सात अभियुक्तों को अदालत में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया. इसने दोहराया कि केस डायरी और गवाहों के बयानों ने हमले में उनकी भागीदारी को स्पष्ट रूप से दर्शाया है.

एक साल से ज्यादा समय तक जांच करने के बाद एनआईए ने सितंबर 2014 में सीपीआई (माओवादी) के 9 सदस्यों के खिलाफ अपना पहला आरोपपत्र पेश किया. “जांच में सामने आया कि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर घात लगाकर किया गया हमला सीपीआई (माओवादी) की एक बड़ी साजिश का हिस्सा था जिसे टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन (टीसीओसी) कहा जाता है. यह सीपीआई (माओवादी) की एक घोषित पार्टी कार्रवाई और सुनियोजित गतिविधि है जिसे हर साल फरवरी से मई के महीने तक पार्टी की पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी द्वारा संचालित किया जाता है,” एनआईए ने आरोपपत्र में कहा है. “इस दौरान, कैडर सुरक्षा कर्मियों और सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले करते हैं... टीसीओसी के अंत में, टीसीओसी के परिणामों के विश्लेषण के लिए क्षेत्रीय समितियों से लेकर पार्टी की केंद्रीय समिति तक, हर स्तर पर समीक्षा बैठकें आयोजित की जाती हैं."

एनआईए उस समय तक गणपति और रामन्ना को हमले में आरोपी मानते हुए अपनी जांच कर रही थी. हालांकि, बिना किसी स्पष्टीकरण के, एनआईए ने सितंबर की चार्जशीट में अभियुक्तों की सूची से गणपति और रमन्ना के नाम हटा दिए. हालांकि उन्हें पहले एनआईए अदालत में आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया था. आरोपपत्र में केवल स्थानीय स्तर के नेताओं के नाम हैं. जिन 9 लोगों पर आरोप लगाया गया था, उनमें से कई दंडकारण्य क्षेत्र में कार्यरत समूह, दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमिटी की एक उप-इकाई, दरभा डिवीजन कमिटी के कैडर थे.

अपनी याचिका में वाजपेयी ओर रोहरा ने कहा, “एनआईए ने पहली चार्जशीट दाखिल की ... जिसमें स्टेटमेंट चार्ज इस तरह से बनाया गया था कि हमला दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमिटी (डीकेएसजेडसी) द्वारा अपने स्थानीय स्तर के कमांडरों और नेताओं द्वारा रची गई साजिश के तहत किया गया था." याचिका में आगे कहा गया, “किसी उच्च स्तरीय षडयंत्र का उल्लेख नहीं किया गया था जिसमें गणपति और रमन्ना जैसे शीर्ष माओवादी नेता शामिल हों. इस तरह की चूक के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था.”

इसके बावजूद, 20 नवंबर 2014 को एनआईए ने अभियुक्तों की संपत्तियों को कुर्की करने के आदेश पर एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें फिर से गणपति और रमन्ना के नाम थे. इसके अलावा एनआईए अदालत ने 21 जनवरी 2015 को जारी अपने आदेश में कहा कि गणपति और रमन्ना सहित फरार आरोपियों के नाम पर कोई संपत्ति नहीं मिली.    

9 महीने बाद यानी सितंबर 2015 में एनआईए ने 30 और आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ अपनी पूरक चार्जशीट दायर की. याचिका में आगे कहा गया है कि "एनआईए ने एक पूरक आरोपपत्र दायर किया... जिसमें इस घटना को फिर से सीपीआई (माओवादी) की सबसे निचली स्तर की इकाई, डीकेएसजेडसी द्वारा किया गया स्थानीय स्तर का हमला माना गया." आरोपियों में केवल एक सदस्य केंद्रीय समिति सदस्य था और पोलित ब्यूरो जैसे शीर्ष निकाय से किसी का नाम नहीं था."

एनआईए द्वारा अपना आरोपपत्र पेश करने के बाद, कांग्रेस ने एनआईए की जांच को "निराशाजनक" और "अधूरा" बताया और केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा जांच की मांग की. 28 मार्च 2016 को छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक ए एन उपाध्याय ने राज्य के प्रमुख सचिव को सीबीआई जांच की मांग दोहराते हुए पत्र लिख. पत्र में कहा गया है, "एनआईए द्वारा की गई जांच ने किसी भी वैकल्पिक सिद्धांत को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है और राजनीतिक साजिश की आशंका से इनकार किया है. एनआईए के आरोपपत्र में कहा गया है कि हमला दंडकारण्य जोनल कमिटी द्वारा किया गया था, जो नक्सलियों के संगठन की बहुत ही निचली इकाई है और इस तरह के हमले के लिए निचले स्तर के नेता फैसला नहीं लेते.”

अगले दिन यानी 29 मार्च को छत्तीसगढ़ के गृह विभाग ने एक अधिसूचना जारी की जिसमें सीबीआई जांच के लिए सहमति दी गई. आठ महीने बाद, केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार को जवाब देते हुए, सीबीआई को जांच सौंपने से इनकार कर दिया. 13 दिसंबर 2016 के एक पत्र में, केंद्र सरकार ने कहा, “एनआईए ने पहले ही जांच पूरी कर ली है और इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के अनुरोध को पूरा न कर पाने का उसे खेद है.”

दो साल बाद जब राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी और एसआईटी के गठन की घोषणा हुई तब छत्तीसगढ़ के गृह विभाग ने एनआईए को पत्र लिखकर एजेंसी से मामले को आगे की जांच के लिए राज्य में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया. 29 दिसंबर 2018 को एनआईए के महानिदेशक योगेश चंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में गृह विभाग ने कहा कि “छत्तीसगढ़ सरकार एनआईए द्वारा की गई जांच से संतुष्ट नहीं है.” इसमें उपाध्याय के पत्र में उल्लेखित समान कारणों को सूचीबद्ध किया गया है. गृह विभाग के पत्र में एनआईए की चार्जशीट का हवाला दिया गया था जिसमें हमले को "सीपीआई (माओवादी) की एक बड़ी साजिश का हिस्सा" बताया गया था और कहा गया था कि अप्रैल 2013 में केंद्रीय समिति के सदस्यों की बैठक में टीसीओसी को मंजूरी दी गई थी.

पत्र में कहा गया, "चूंकि एनआईए ने आगे की जांच बंद कर दी है, जिससे अपराध में शामिल 100 से अधिक लोगों को छोड़ दिया गया है इसलिए यह जांच अधूरी है और इस घटना के षडयंत्र का खुलासा अभी तक नहीं हुआ है." सरकार का दृढ़ विश्वास है कि साजिश के शहरी सूत्र... की सही से जांच नहीं की गई है." पत्र में उल्लेख है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने इसलिए आगे की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया है क्योंकि ''कई रहस्यों का पता लगाना और उन्हें उजागर करना अभी बाकी है."

हालांकि, गृह मंत्रालय ने यह कहते हुए मामले को स्थानांतरित करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया कि एनआईए ने पहले ही आरोपपत्र दायर कर दिया था और मुकदमा चल रहा था. अपने 8 फरवरी 2019 के पत्र में, उन्होंने कहा, " अगर कुछ नए तथ्य सामने आए हैं तो आगे की जांच के लिए राज्य सरकार एनआईए के साथ खुद को संबद्ध कर सकती है." लेकिन उन चूकों के बारे में न तो गृह मंत्रालय और न ही एनआईए ने कोई जवाब दिया जिन्हें छत्तीसगढ़ के गृह विभाग ने चिन्हित किया था.

वाजपेयी और रोहरा ने बताया कि यही कारण थे जिन्होंने उन्हें मामले को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में ले जाने के लिए प्रेरित किया. दोनों ने कहा कि हमले के गवाह होने के बावजूद एनआईए ने वाजपेयी को गवाह के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया था और रोहरा का बयान दर्ज नहीं किया.

वाजपेयी ने मुझे बताया, “हमने याचिका दायर की है क्योंकि मामले की जांच किए बिना ही मामले को बंद कर दिया गया है.”उन्होंने दावा किया कि एनआईए “साजिश के बारे में किसी भी बात” को आगे ले जाने में नाकाम रही. जबकि उसने चार्जशीट में जिक्र किया है कि उसने साजिश की संभावना की जांच नहीं की.” उन्होंने कहा, "घटना के दिन से ही जांच शुरू हो गई थी. लेकिन एनआईए ने हमले की योजना और उसकी तैयारी पर गौर करने की जहमत नहीं उठाई." वाजपेयी ने कहा कि हमलावरों ने पहले ही घात लगाकर हमला करने की योजना बनाई होगी और टोह लगाई होगी क्योंकि खुद उनकी जिंदगी दांव पर लगी थी. उन्होंने कहा, "परिवर्तन यात्रा की घोषणा एक महीने पहले की गई थी इसलिए उनके पास पूरी योजना बनाने के लिए एक महीने का समय था. एनआईए ने कभी भी दुबारा से इस बारे में सोचने की कोशिश नहीं की. इसलिए मुझे लगता है कि कुछ तो गड़बड़ है.”

वाजपेयी ने पूछा कि सीपीआई (माओवादी) ने कांग्रेस नेता नंद कुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल की हत्या क्यों की? उन्होंने बताया, "अब तक छत्तीसगढ़ के नक्सलियों ने केवल उन लोगों की हत्या की है जिनको वे दुश्मन मानते हैं. नंद कुमार पटेल और उनके बेटे की निर्मम हत्या का कोई स्पष्टीकरण नहीं है."

हमले के बाद, नक्सलियों ने नंद कुमार और दिनेश की हत्या के लिए यह कहते हुए माफी मांगी कि वे उनका लक्ष्य नहीं थे. पार्टी ने एक जून 2013 की प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, "पहली गलती दिनेश पटेल की हत्या थी क्योंकि उन्होंने हमारी पार्टी या आंदोलन के खिलाफ कुछ भी नहीं किया था." विज्ञप्ति में सीपीआई (माओवादी) की सशस्त्र शाखा पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी का जिक्र करते हुए कहा गया है कि उन्हें मारने का फैसला पीएलजीए ने जल्दबाजी में लिया था. इसमें कहा गया है कि पिछले दस वर्षों में नंद कुमार "हमारी पार्टी या आंदोलन के खिलाफ कभी नहीं रहे थे" और उन्होंने आदिवासियों की हत्याओं के खिलाफ "आवाज उठाई" थी.

वाजपेयी ने हमले के दौरान जो कुछ देखा था उसे याद करते हुए बताया, "वे लोग हमें जंगल में ले गए और हमें जमीन पर लेट जाने को कहा. उन्होंने कर्मा को तुरंत मार डाला लेकिन उन्हें पटेल और उनके बेटे को मारने में दो घंटे से अधिक का समय लगा. वे या तो किसी बात पर चर्चा कर रहे थे या वॉकी-टॉकी पर किसी के साथ बातचीत कर रहे थे. जिस इलाके में यह घटना घटी, वहां कोई मोबाइल कवरेज नहीं था, लेकिन वहां से पांच किलोमीटर दूर मोबाइल नेटवर्क उपलब्ध था. मेरा मानना है कि वे किसी ऐसे व्यक्ति से निर्देश प्राप्त कर रहे थे जो अपने वॉकी-टॉकी के जरिए मोबाइल रेंज के भीतर था. ऐसा लग रहा था कि पटेल पिता—पुत्र को मारने के निर्देश वहीं से आए थे. इस सब की जांच होनी चाहिए. वाजपेयी ने कहा कि एनआईए "गणपति और रमन्ना जैसे मुख्य आरोपियों का नाम बिना कोई स्पष्टीकरण दिए हटा नहीं सकती है."

बस्तर के बीजेपी नेता सुभाऊ कश्यप ने कांग्रेस की चिंताओं को खारिज किया. कश्यप ने मुझसे कहा, "एनआईए एक केंद्रीय एजेंसी है और कांग्रेस को उसकी जांच पर भरोसा होना चाहिए. वह अपने तरीके से जांच कराने के लिए अनावश्यक बातें कर रही है. वह जांच से डरती है क्योंकि इसमें उसके अपने लोग शामिल हैं. उनके एक मंत्री कावासी लखमा इसमें शामिल हैं.कांग्रेस के विधायक लखमा इस हमले में बच गए थे. कश्यप ने कहा, “शायद यही वजह है कि वह जांच अपने तरीके से करना चाहती है. एनआईए ने जांच सही दिशा में की है.

2013 के हमले के तुरंत बाद, राज्य की बीजेपी ने लखमा पर माओवादियों के साथ साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया था और मांग की थी कि एनआईए उनका नार्को टेस्ट कराए. हालांकि, एनआईए की रिपोर्ट में उनका नाम कहीं भी नहीं था.

11 अक्टूबर को गृह सचिव अजय कुमार भल्ला के कार्यालय के प्रवक्ता ने इस मामले पर कारवां के सवालों के जवाब में कहा, "यह मामला बहुत पुराना है. राज्य सरकार की रिपोर्ट पर 2013 में इसे एनआईए में वापस भेज दिया गया था. एनआईए ने जांच का प्रमुख हिस्सा पूरा कर लिया है और अपराध के लिए जिम्मेदार अपराधियों को पकड़ने में सक्षम है. मामला जांच के एक उन्नत चरण में है (पहले ही 36 गवाहों की जांच हो गई है). केंद्र सरकार ने मामले को वापस स्थानांतरित करने के लिए राज्य सरकार के अनुरोध की जांच की लेकिन इसमें कोई खासियत नहीं पाई. राज्य सरकार को सलाह दी गई थी कि वह एनआईए द्वारा जारी जांच से खुद को संबद्ध करे.”

जवाब में आगे लिखा है, “एनआईए ने 39 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया है. अपराध की गंभीरता को देखते हुए, एनआईए अपनी आगे की जांच जारी रखे हुए है और 28 सितंबर 2015 को पूरक आरोपपत्र दायर किया गया है. एक आरोपी को बाद में 26 अगस्त 2016 को गिरफ्तार किया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. इसलिए यह कहना सही नहीं है कि एनआईए ने अपनी जांच बंद कर दी है.” 

सामाजिक कार्यकर्ता और वकील सुदीप श्रीवास्तव इस मामले में याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधि हैं. उनके अनुसार कांग्रेस की उस रैली में गंभीर सुरक्षा चूक हुई थी. श्रीवास्तव न्यायिक आयोग के समक्ष कांग्रेस पार्टी का भी प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

श्रीवास्तव ने कहा, "अगर हम उसी महीने में रमन सिंह सरकार द्वारा आयोजित विकास यात्रा रैली से तुलना करें तो हमें सुरक्षा के इंताजामात में काफी अंतर दिखाई देता है. तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और शिक्षा मंत्री केदार कश्यप के पास प्रोटोकॉल के अनुसार जेड प्लस सुरक्षा थी. विभिन्न सरकारी विभागों के लगभग 10 सचिवों ने रैली में भाग लिया था जो 35 किलोमीटर लंबी थी. उनकी सुरक्षा में 1782 पुलिसकर्मी तैनात थे. जेड-प्लस स्तर की सुरक्षा सरकार द्वारा दी जा सकने वाली उच्चतम सुरक्षा है. श्रीवास्तव ने बताया कि कांग्रेस के नेता कर्मा के पास जेड-प्लस स्तर की सुरक्षा थी जबकि पटेल और लखमा के पास जेड-माइनस सुरक्षा थी और लगभग 200 अन्य प्रतिभागी भी वहां थे. श्रीवास्तव ने कहा, "लेकिन कांग्रेस की रैली ने 45 किमी की दूरी तय की और अशांत दरभा और झीरम घाटियों की सुरक्षा में केवल 138 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे. यह मुख्यमंत्री को मिली सुरक्षा का एक तिहाई भी नहीं था."