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23 फरवरी की शाम जब खजूरीखास में रहने वाले मोहम्मद मुमताज अपने होटल संजर चिकन कॉर्नर में थे, तो 100 लोगों से ज्यादा की हिंदूवादियों की भीड़ उनके होटल पर पत्थर बरसाने लगी. मुमताज रात 10 बजे भीड़ से बच कर निकल पाए लेकिन भीड़ ने उनकी दुकान को जलाकर राख कर दिया.
मुमताज ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव को एक खत लिखकर बताया है कि उन्होंने मोहन सिंह बिष्ट को हिंदू दंगाइयों के साथ देखा था. बिष्ट दिल्ली के करावल नगर निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं. मुमताज ने खत में लिखा है कि उन्होंने बिष्ट को भीड़ से कहते सुना था कि “समय आ गया है कि इन कटुओं को ढूंढ-ढूंढ कर मार दें.” मुमताज के अनुसार बिष्ट ने भीड़ को निर्देश दिया था कि मुसलमानों के घरों और कारों में आग लगा दो और उनकी दुकानों को लूट लो और जाला दो.
उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में मुमताज की बस दुकान नहीं जलाई गई बल्कि उन्हें इसके बाद भी हमलों का शिकार होना पड़ा. हमले के दो दिन बाद दयालपुर पुलिस स्टेशन के एसएचओ तारकेश्वर सिंह पुलिस बल के साथ मुमताज के घर के सामने की गली में आए और मुमताज की छत पर आंसू गैस के गोले मारे. इसके कुछ देर बाद विधायक बिष्ट भी भीड़ लेकर वहां पहुंच गए. मुमताज ने बताया कि बीजेपी विधायक बिष्ट ने हरे रंग का विस्फोटक निकालकर उनके घर पर फेंका और जैसे ही भीड़ उनके और पड़ोसियों के घरों को लूटने लगी बिष्ट वहां से निकल गए.
मुमताज ने बताया कि इस बारे में जब वह अपनी शिकायत दर्ज कराने दयालपुर पुलिस स्टेशन गए, तो पुलिस वालों ने शिकायत में उल्लेखित हमलावर लोगों के नामों को हटा लेने का निर्देश उन्हें दिया. मुमताज ने यह भी बताया कि उन्हें विश्वास ही नहीं होता है कि बिष्ट, जिनकी विधानसभा चुनाव जितवाने में उन्होंने मदद की थी, उनके घर पर हमला करा रहे थे. दिल्ली में विधानसभा चुनाव फरवरी हिंसा के चंद दिन पहले ही संपन्न हुए थे. और तो और बीजेपी विधायक बिष्ट ने मुमताज के घर को अपना चुनावी कार्यालय बनाया था.
मुमताज के मामले की चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने उनके संजर चिकन कॉर्नर को जलाने का आरोप 10 मुसलमानों पर लगाया है और यहां तक कि चार्जशीट में उनकी दुकान का नाम ही गलत लिखा है. चार्जशीट में उनकी दुकान का नाम है “पंजाबी चिकन कॉर्नर”. उस चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने मुमताज द्वारा नामित किसी भी व्यक्ति का नाम नहीं लिखा है.
मुमताज के मामले में गिरफ्तार शादाब आलम ने बताया है कि सभी 10 लोग और अन्य दर्जन भर लोगों को दयालपुर पुलिस स्टेशन में 24 फरवरी से 28 फरवरी तक गैरकानूनी रूप से चार दिन तक बंद रखा गया और यातना दी गई. दो अन्य लोगों ने उनकी बात की पुष्टि की. मुमताज और उनके परिवार पर हुई नाइंसाफी की कहानी कारवां के सितंबर अंक की कवर स्टोरी का हिस्सा है.
दिल्ली पुलिस ने हमारे द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दिया और विधायक मोहन सिंह बिष्ट का जवाब था, “लोग तो किसी का भी नाम ले लेते हैं. इसमें मेरी कोई भागीदारी नहीं है.”
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