वरवर राव सहित भीमा कोरेगांव मामले के अन्य आरोपियों की स्वास्थ्य स्थिति से चिंतित परिवार

जानेमाने कवि वरवर राव फरवरी, 2020 से महाराष्ट्र के तलोजा केंद्रीय जेल में बंद हैं. वह भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी हैं. उनके परिवार ने बताया है कि जेल में उनकी हालत बिगड़ रही है. उनका यह फोटो 30 अगस्त 2018 का है. पीटीआई

11 जुलाई को 81 वर्षीय जानेमाने कवि वरवर राव ने महाराष्ट्र के तलोजा केंद्रीय कारागार से अपनी पत्नी हेमलता को फोन किया. वह बेसुध लग रहे थे और उनकी बोली भी बेतरतीब थी. यह बात वरवर राव के परिवार ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताई है. 12 जुलाई को जारी उस विज्ञप्ति में लिखा है, "स्वास्थ्य से संबंधित सवालों का उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया और अपने पिता और मां के अंतिम संस्कार से जुड़ी अजीब-अजीब सी बातें करते रहे जबकि उनके पिता की मृत्यु सात दशक पहले और मां की मृत्यु चार दशक पहले हो चुकी है.” परिवार ने बताया कि उनके साथ जेल में कैद कार्यकर्ता वरनॉन गोंजाल्विस ने उनसे फोन ले लिया और हमें जानकारी दी कि वह बोलने की हालत में नहीं हैं और न खुद से टॉयलेट जा पाते हैं, न ब्रश कर पाते हैं.

परिवार ने लिखा है कि उन्हें बताया गया है कि वरवर राव हमेशा मतिभ्रमित रहते हैं और उन्हें लगता रहता है कि उन्हें रिहा किया जा रहा है और परिवार जेल के गेट के बाहर उनका इंतजार कर रहा है. जेल में बंद सहबंदी ने परिवार को बताया है कि उन्हें न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की तुरंत जरूरत है. 12 जुलाई को वरवर राव की पत्नी हेमलता और उनकी तीनों बेटियां चिंतित और तनावग्रस्त लग रही थीं. उन लोगों ने मीडिया के जरिए केंद्र और राज्य सरकारों एवं गृह मंत्रालय से अपील की कि राव को तत्काल मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में शिफ्ट किया जाए.

12 जुलाई की दोपहर में तलोजा जेल अधीक्षक कौस्तुभ कुरलेकर ने राव की हालत गंभीर होने की बात से इनकार किया. उन्होंने मुझसे फोन में कहा, “उनकी हालत सामान्य और स्थिर है. उन्हें उम्र से संबंधित परेशानियां हैं, जैसे ब्लड प्रेशर, पल्स रेट, ऑक्सीजन का स्तर कम होना आदि लेकिन अन्य चीजें सामान्य हैं. कोई बात नहीं है.” परिवार द्वारा प्रेस को दिए बयान के बारे में उन्होंने कहा,  “कुछ गलत जानकारियां जेल से बाहर जा रही हैं, जो ठीक बात नहीं है. वे उनकी बात बताएंगे, हम अपनी बात बताएंगे.”

लेकिन राव का परिवार उनके स्वास्थ्य को लेकर बेचैन है. जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के आरोप में उस जेल में बंद 11 लोगों में वरवर राव की उम्र सबसे अधिक है. उम्र के साथ उन्हें अन्य स्वास्थ्य परेशानियां भी हैं जैसे फेफड़े का रोग और हाइपरटेंशन आदि. इससे उन्हें नोवेल कोरोनावायरस का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है. मई में तलोजा जेल में कोरोनावायरस से एक कैदी की मौत हो गई थी. पिछले महीने राव खुद बीमार पड़ गए थे और उन्हें तीन दिनों तक अस्पताल में भर्ती रखा गया और पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हुए बिना ही डिस्चार्ज कर दिया गया था. राव की बेटी पी पवना ने मुझे बताया, “ मेरी आखिरी बार उनसे 24 जून को बात हुई थी. तब उन्होंने कहा था कि वह ठीक हैं लेकिन वह सामान्य नहीं लग रहे थे और ऐसा लग रहा था कि वह दबाव में आकर ऐसा बोल रहे हैं.”

जेल से दो मिनटों के उनके फोन कॉलों के सिवा, परिवार के पास उनके स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी हासिल करने के बहुत कम माध्यम हैं. महामारी शुरू होने के साथ कारावास के अधिकारियों ने परिवार से बातचीत की अनुमति बहुत कम कर दी है. परिवार ने बताया कि जब वह अस्पताल में भर्ती थे, तब भी कारावास के अधिकारी परिवार को उनके स्वास्थ्य से संबंधित अपडेट नहीं दे रहे थे. 2 जुलाई को जब राव ने फोन किया तो वह बहुत कमजोर, बेतरतीब और यहां-वहां की बात कर रहे थे. परिवारवालों ने मुझसे कहा, “हमें डर है कि उनकी हालत में सुधार नहीं हो रहा है.”

भीमा कोरेगांव मामले में जेल में कैद अन्य लोगों के परिजनों और वकीलों ने बताया है कि महामारी के दौरान बड़ी मुश्किल से इन कैदियों से बात हो पा रही है. 11 में से कम से कम चार विचाराधीनों को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कते हैं और इससे उन्हें नोवेल कोरोनावायरस का खतरा अधिक है. यहां तक कि ये सभी 11 लोग महाराष्ट्र के तलोजा और भायखला जेलों में बंद हैं जिनमें पहले से ही क्षमता से अधिक लोग कैद हैं. इस संबंध में बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका भी डाली गई है. सुप्रीम कोर्ट ने जेलों की भीड़ को कम करने पर जोर दिया है लेकिन इस मामले के आरोपियों की जमानत याचिकाओं को सभी अदालतों ने बार-बार खारिज किया है.

भीमा कोरेगांव मामले के दो आरोपी आनंद तेलतुंबडे और गोंजाल्विस के वकील मिहिर देसाई ने कहा कि सभी 11 बंदियों के लिए परिवार और वकीलों से संपर्क कर पाना समस्या है. इसी प्रकार अन्य दो अभियुक्तों की वकील सूसन अब्राहम ने भी बताया. बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह बंदियों की नियमित रूप से परिजनों के साथ टेलीफोन या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा बात कराएं. सूसन ने बताया, "किसी का भी परिजनों से संपर्क नहीं हो रहा है. अप्रैल में बंदियों को महीने में एक बार फोन करने दिया जाता था. मई में 2 सप्ताह में एक बार फोन करने की इजाजत दे दी गई और अब यह लोग कह रहे हैं कि हफ्ते में एक बार. और वह भी अधिकतम 4 मिनट के लिए." सूसन अब्राहम गोंजाल्विस की पत्नी भी हैं और यह बात उन्होंने मुझे 30 जून को बताई थी. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने अभी सर्कुलर जारी कर कहा था कि इन कैदियों को 10 मिनट बातचीत करने दी जाए लेकिन किसी भी निर्देश को लागू नहीं किया गया है.

वरवर राव के परिवार ने कहा है कि पिछले 4 महीनों में उनसे मुश्किल से ही बात हो पाई है. मार्च के आखिर में कोविड-19 को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद महाराष्ट्र में सभी जेल मुलाकातों को रद्द कर दिया गया. पवना ने बताया कि तब से मई तक राव को केवल तीन बार फोन करने दिया गया है और वह भी 2 मिनट से ज्यादा कभी नहीं. राव के भतीजे और पत्रकार वेणुगोपाल ने मुझे बताया, "जेल की स्थिति के बारे में कोई प्रत्यक्ष जानकारी नहीं है." वेणुगोपाल के अनुसार, राव ने एक बार उल्लेख किया था कि जेल में “भीड़” है और उन्हें “पर्याप्त सुविधाएं” नहीं दी जा रही हैं.

राव को भीमा कोरेगांव मामले में अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और इस साल फरवरी में उन्हें तलोजा जेल शिफ्ट किया गया था. बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर मानव अधिकार संगठन पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की याचिका के अनुसार 19 जून तक नोवेल कोरोनावायरस से जुड़ी सावधानियों के मद्देनजर तलोजा जेल से 897 कैदियों को रिहा कर देना चाहिए. इस मामले में 25 मई को महाराष्ट्र सरकार ने अदालत में शपथपत्र दायर कर बताया है कि तलोजा, येरवाडा और धुले जेलों में तीन कैदियों की मौत हुई है और उनकी मौत के बाद पता चला कि उन्हें कोविड-19 संक्रमण था.

जिस वक्त महाराष्ट्र सरकार यह हलफनामा दर्ज कर रही थी उसी वक्त राव की बेटियां उनके स्वास्थ्य और उनकी चिकित्सा सुविधा से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए संघर्षरत थीं. 25 मई को तीनों बेटियों ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा. अपने उस पत्र में उन्होंने लिखा है, "जब वकीलों ने तलोजा जेल फोन किया तो वहां के स्टाफ ने फोन तो उठाया लेकिन जवाब नहीं दिया. अपने पिता की तबियत को लेकर हम बहुत चिंतित और बेचैन हैं." जेल में कोविड-19 से हुई मौत की खबर ने उनकी फिक्र को बढ़ा दिया. पवना ने बताया, "26 मई को एक कैदी के जरिए हमें पता चला कि उनको पेशाब में प्रॉब्लम है और उनका शरीर सूज गया है लेकिन हमारे पास सीधी जानकारी हासिल करने का कोई जरिया नहीं था और इसलिए हमें अपने वक्तव्य सार्वजनिक करने पड़े जिनमें हमने केंद्र, तेलंगाना और महाराष्ट्र सरकारों से अपील की थी और महाराष्ट्र और तेलंगाना के मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के राज्यपाल और मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखे थे.”

इसके बाद राव की सेहत और बिगड़ गई और वे बेहोश हो गए. 28 मई को परिवार को सूचना दिए बिना जेल अधिकारियों ने उन्हें महाराष्ट्र के जेजे अस्पताल में भर्ती कर दिया. अगले दिन हैदराबाद के चिक्कड़पल्ली पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने परिवार को बताया कि उपचार के लिए राव को जेल से अस्पताल शिफ्ट किया गया है. “हमें सिर्फ एक लाइन में यह सूचना दी गई थी और जब हमने उनसे और जानकारी देने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि उन्हें पुणे के विश्रामबाग पुलिस स्टेशन से बस इतनी ही सूचना प्राप्त हुई है.” भीमा कोरेगांव मामले की शुरुआती रिपोर्ट विश्रामबाग पुलिस स्टेशन में ही दर्ज की गई थी. 2 दिन बाद परिवार ने महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक सुबोध कुमार जायसवाल को खत लिखकर राव को अस्पताल में भर्ती किए जाने, उनकी बीमारी और उन्हें दिए जा रहे उपचार के बारे में जानकारी मांगी और अनुरोध किया कि उनकी वीडियो कॉल में बात कराई जाए. परिवार के लिखे किसी भी खत का जवाब नहीं दिया गया.

राव को तीन दिनों के अंदर ही अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. कारवां के पास उनकी मेडिकल रिपोर्ट है जिसमें लिखा है कि उन्हें डायसेलेक्ट्रोलेटेमिया है, जो खून में इलेक्ट्रोलाइट के असंतुलन से होने वाला रोग है. यह शरीर में सोडियम के स्तर को दर्शाता है. 30 मई को अस्पताल से डिस्चार्ज होने के 1 दिन पहले राव का सोडियम लेवल 113.16 मिलीइक्विवेलेंट प्रति लीटर था जो सामान्य तौर पर 135 से 145 के बीच में होना चाहिए. उनका पोटैशियम लेवल  3.55  मिलीइक्विवेलेंट प्रति लीटर था जो 3.5 से 5 के बीच में होना चाहिए. वेणुगोपाल ने मुझसे कहा, सोडियम का लेवल नीचे था और पोटेशियम आवश्यक स्तर के पास था फिर भी बिना यह जांचे कि उनकी हालत स्थिर हो गई है, उन्हें जल्दबाजी में डिस्चार्ज कर दिया गया. पवना ने मुझसे कहा, “मेडिकल जानकारों के विचार में सही समय पर उपचार ना किया जाए तो इलेक्ट्रोलाइट की कमी जानलेवा हो सकती है.”

राव के परिजन और वकीलों को संदेह है कि पूरी तरह ठीक होने से पहले राव को अस्पताल से डिस्चार्ज इसलिए किया गया ताकि उन्हें जमानत लेने से रोका जा सके. वेणुगोपाल ने बताया, “जब वह जेजे अस्पताल में थे तो उनकी हालत सबके सामने थी और सभी लोग अपना विरोध दर्ज करा रहे थे. पुलिस यह नहीं चाहती थी और उन्हें वापस जेल भेज दिया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह लोगों के संपर्क में न रहें.” दो जून को राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने राव की उस जमानत याचिका पर सुनवाई की जिसमें उनकी उम्र और खराब स्वास्थ्य तथा महामारी का हवाला देकर जमानत मांगी गई थी. वेणुगोपाल ने बताया, “हमें लगता है कि वह यह दिखाना चाहते थे कि उन्हें जेजे अस्पताल ले जाया गया था वहां से उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है और इसलिए जमानत की आवश्यकता नहीं है.” राव की वकील अब्राहम ने भी यही दावा किया. उन्होंने कहा, “चूंकि उनका जमानत आवेदन सत्र न्यायालय में लंबित था इसलिए उन लोगों ने उन्हें सिर्फ तीन दिनों के लिए भर्ती किया. वह बुजुर्ग हैं और उन्हें पूरी तरह से ठीक होने दिया जाना चाहिए था.” दो जून को जेजे अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट अदालत में पेश की गई जिसमें कहा गया है कि उन्हें उपचार मिला है और उनकी हालत स्थिर है.”

राव के परिवार ने बताया कि अस्पताल से जेल शिफ्ट कर दिए जाने के बाद भी उनके स्वास्थ्य के बारे में अंधकार में रखा गया. वेणुगोपाल ने कहा, “जेजे अस्पताल ने 14 दिन के अंदर इलेक्ट्रोलाइट लेवल की जांच करने के निर्देश दिए हैं लेकिन अब तक कोई रिव्यू या जांच नहीं की गई है. इस मामले में एक महीने से कुछ नहीं किया गया है और हमें यह भी नहीं पता कि उन्हें क्या उपचार दिया जा रहा है.” जब राव को अस्पताल में भर्ती किया गया था तो महाराष्ट्र के अतिरिक्त महानिदेशक (जेल) सुनील रामानंद ने समाचार पत्र द हिंदू को बताया था, “हम जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का प्रबंध करने की कोशिश कर सकते हैं.“ लेकिन, पवना का कहना है कि उन्हें वापस जेल अस्पताल शिफ्ट कर देने के बाद “हमने वीडियो कॉल की अनुमति मांगी थी लेकिन कुछ नहीं हुआ. हमारे अनुरोध पर विचार नहीं किया गया.”

12 जुलाई को जब मैंने कुरलेकर से बात की तो उन्होंने परिवार के आरोपों से इनकार किया. कुरलेकर ने मुझसे कहा कि राव बेहोश नहीं हुए थे. हालांकि राव की मेडिकल रिपोर्ट में सिंकोप की शिकायत है. उन्होंने इस बात से भी इनकार किया कि उन्हें पूरी तरह ठीक होने से पहले डिस्चार्ज कर दिया गया था. उन्होंने कहा, “जिस तरह के उपचार की जरूरत थी वह देकर ही उन्हें डिस्चार्ज किया गया था.” जेल में मरीजों के लिए तीन डॉक्टर उपलब्ध हैं और उपचार के लिए मरीजों को जेजे अस्पताल भेजा जाता है. उन्होंने बताया कि अस्पताल ने जो दवाइयां लिखी हैं वह राव को दी जा रही हैं.

जब मैंने उनसे राव के लंबित इलेक्ट्रोलाइट जांच के बारे में पूछा तो कुरलेकर ने कहा कि वह अभी नहीं हुई है लेकिन वह कल या परसों तक हो जाएगी. उन्होंने कहा कि राव का फॉलोअप उपचार पुलिस बंदोबस्त की उपलब्धता पर निर्भर करता है. उन्होंने कहा, “हमने इस संबंध में कल और परसों आवेदन दर्ज कर दिया है और जैसे ही गार्डों का बंदोबस्त हो जाएगा, हम उन्हें लेकर जाएंगे. सभी कैदी स्थिर हैं और उन्हें कोई तकलीफ नहीं है. वह 81 साल के हैं और जो बीमारियां इस उम्र में होती हैं उन्हें बस वही हैं. कुरलेकर ने दावा किया कि जेल डॉक्टर राव की रोज जांच कर रहे हैं.

लेकिन अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद राव के दो मिनट के कॉलों ने परिवार को आश्वस्त नहीं किया. 7 जून को राव ने जेल अस्पताल से परिजनों को फोन किया था. पवना ने बताया, “उनकी आवाज बहुत धीमी थी और शब्द साफ नहीं थे. हालांकि वह हम से कह तो रहे थे कि वह ठीक हैं और उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं है लेकिन हमें साफ समझ में आ रहा था कि वह हमें नहीं सुन पा रहे हैं. मेरी मां फोन में चिल्ला रही थीं लेकिन वह उनके सवालों का जवाब नहीं दे रहे थे. पवना ने बताया कि राव ने फिर 24 जून को उन्हें फोन किया. उन्होंने आगे बताया, “इस वक्त हम लोग बार-बार जेल अधिकारियों को उनकी स्थिति की जानकारी लेने के लिए फोन कर रहे हैं लेकिन हमें जानकारी नहीं मिल पा रही है.”

जब राव ने 24 जून को घर फोन किया तो हेमलता ने उनसे बात की. पवना ने बताया, “हमें साफ समझ आ रहा था कि उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है. वह अस्पष्ट और उलझे-उलझे से लग रहे थे. हमें तब और हैरानी हुई जब वह मां से हिंदी में बात करने लगे. वह हमसे कभी हिंदी में बात नहीं करते.” पवना ने बताया कि जब उनकी मां ने राव से पूछा कि वह हिंदी में क्यों बोल रहे हैं तो राव ने जवाब दिया, “ओहो तेलुगू में बात करना है” और फिर तेलुगू में बात करने लगे.

पवना ने कहा कि परिवार वालों में हिंदी में बोलने का कोई तार्किक कारण नहीं था. पवना ने बताया कि जब भी कोई तेलुगु भाषी व्यक्ति या परिवार का सदस्य उनसे जेल में मिलने जाता है तो वह कहते हैं कि उन्हें तेलुगू में बात कर अच्छा लगता है क्योंकि वहां तेलुगू में बात करने वाला कोई नहीं है. इसीलिए परिवार को उनका हिंदी में बात करना अजीब लगा.” पवना ने कहा, “हो सकता है कि जेल के अधिकारियों ने उन पर हिंदी में बात करने का जोर डाला हो या यह भी हो सकता है कि उन्हें होश ही ना हो कि अपनी पत्नी से बात कर रहे हैं. राव लोकवक्ता और लेखक हैं और बहुत अच्छा बोलते हैं. लेकिन इस बार मां से बात करते हुए उनके शब्द रुक-रुक कर निकल रहे थे.”

नोवेल कोरोनावायरस के खतरे के बावजूद एनआईए अदालत ने राव को जमानत नहीं दी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मद्देनजर जेलों में भीड़ कम करने के लिए महाराष्ट्र ने उच्च शक्ति संपन्न समिति का गठन किया था. 11 मई को अपनी रिपोर्ट में समिति ने सुझाव दिया था कि 60 से ज्यादा उम्र वाले और ऐसे कैदियों को जिनकी स्वास्थ्य स्थिति खराब है और जिन पर कोविड-19 का गंभीर खतरा हो सकता है, उन्हें अस्थाई तौर पर जेल से रिहा कर दिया जाना चाहिए. 4 दिन बाद 62 वर्षीय शिक्षाविद शोमा सेन के वकीलों ने अपने मुवक्किलों की ओर से जमानत के लिए आवेदन दाखिल किया लेकिन 26 जून को अदालत ने जमानत देने से यह कहकर इनकार कर दिया कि इन लोगों को गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून, 2019 के तहत गिरफ्तार किया गया है जिसमें जमानत का प्रावधान नहीं है.

पवना ने कहा कि हमें नहीं पता की अगली बार उनकी जमानत याचिका दायर करने तक उनकी हालत क्या होगी? राव की वकील अब्राहम ने 30 जून को मुझे बताया था कि जेल अधिकारियों ने अब तक परिवार से संपर्क नहीं किया है. राव के अन्य वकील सत्यनारायण ने बताया कि उन्होंने जमानत के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील की थी और उनकी स्वास्थ्य रिपोर्टें भी मांगी थीं लेकिन उनकी याचिका लंबित है. इस मामले में अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी. उन्होंने मुझे बताया, “राव 81 साल के हैं और उन्हें मानवीय आधार पर उनके मामले पर गौर करना चाहिए.”

सेन की बेटी कोयल सेन ने भी यही बताया. उन्होंने कहा कि उनकी मां की प्रतिरक्षा क्षमता कमजोर है और उन्हें कोविड-19 के मामलों के बढ़ने से चिंता हो रही है. कोयल ने कहा, “क्या वे लोग इस इंतजार में बैठे हैं कि मेरी मां बीमार हो जाएं या कोविड की गिरफ्त में आ जाएं? क्या वे लोग तब उन्हें रिहा करेंगे? उन्हें अंतरिम जमानत में रिहा क्यों नहीं करते? उन्हें घर में नजरबंद क्यों नहीं रखते?

सेन के वकील भी अब्राहम हैं. उन्होंने बताया कि सेन को ओस्टियोआर्थराइटिस, ग्लूकोमा और हाई ब्लड प्रेशर है. “सेन की स्वास्थ्य स्थिति बहुत नाजुक है और पिछले 4 महीनों से उनकी ग्लूकोमा जांच नहीं हुई है. उनको गंभीर अर्थराइटिस है और उनका दांया घुटना काम नहीं कर रहा. उन्हें सहायता की जरूरत है.”

कोयल ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से वह अपनी मां को आई ड्रॉप नहीं भेज पा रही हैं. शोमा सेन महाराष्ट्र के भायखला महिला कारावास में बंद हैं. कोयल के अनुसार अर्थराइटिस की वजह से मां को घुटनों में दर्द रहता था जो फर्श पर चटाई बिछा कर सोने से और बढ़ गया है. सेन को डॉक्टरों ने सलाह दी थी कि वह जमीन में न बैठें. कोयल ने बताया कि उनकी मां के घुटनों की हालत खराब है और वह लंगड़ा कर चल पाती हैं. कोयल ने कहा, “उन्होंने अपनी स्थिति आखरी सुनवाई में कोर्ट को बताई थी लेकिन वे लोग ध्यान नहीं दे रहे हैं.”

कोयल के अनुसार मई और जून में उनकी मां को दो-दो मिनट के सिर्फ तीन बार फोन कॉल करने की अनुमति दी गई. इतनी छोटी अवधि के फोन कॉलों में वे जेल में मेडिकल स्टाफ और चिकित्सा सुविधा पर चर्चा नहीं कर सके. उनकी मां ने बताया था कि जेल अधिकारी बंदियों को सैनिटाइजर और फेस मास्क दे रहे हैं और नियमित रूप से जांच कर रहे हैं. “वे लोग हमें जेल के अंदर वास्तव में क्या चल रहा है जानने देना नहीं चाहते. फिलहाल मां सही-सलामत हैं लेकिन उनके स्वास्थ्य की कोई गारंटी नहीं है.”

10 जुलाई को सेन को 10 मिनट लंबा कॉल करने दिया गया. उस कॉल में सेन ने कोयल को बताया था कि 60 साल से ऊपर की सभी कैदियों को अलग बैरक में शिफ्ट कर दिया गया है. इससे पहले 59 वर्षीय कार्यकर्ता और शोमा सेन की तरह भीमा कोरेगांव मामले में आरोपित, सुधा भारद्वाज और अन्य 30 कैदियों को एक ही बैरक में रखा गया था. कोयल ने बताया, “लोग दावा कर रहे हैं कि बैरक में कैदियों के लिए सुरक्षा सावधानी बरती जा रही है लेकिन 40 वरिष्ठ नागरिकों को करीब रखने से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो सकता. मैं अपनी मां की स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर डरी हुई हूं.”

भायखला जेल के सुपरिंटेंडेंट जयंत नायक ने मुझे 12 जुलाई को बताया था कि जेल में कैदियों के लिए दो डॉक्टर हैं. जब मैंने उनसे सेन और भारद्वाज की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पूछा उन्होंने कहा उन्हें इसकी जानकारी नहीं है और वह सप्ताहांत के बाद बता पाएंगे. उन्होंने कहा, “परिजनों से संपर्क करने में बंदियों को कोई समस्या नहीं है और यहां फोन कॉल करने की सुविधा दी जा रही है.”

इसी मामले के अन्य कैदी सुरेंद्र गाडगिल की पत्नी मेनाल गाडगिल ने पीयूसीएल की याचिका के साथ एक हलफनामा दायर किया था जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्होंने अपने पति से 9 जून को दो मिनट बात की थी जिसमें से 30 सेकंड पहचान प्रमाणित करने में ही निकल गए. उनका आखरी कॉल 18 जून को आया था जो कॉल 4 मिनट का था. बातचीत में सुरेंद्र ने बताया था कि उन्हें ब्लड प्रेशर जांचने का यंत्र और ग्लूकोमीटर की तत्काल आवश्यकता है. मेनाल ने बताया कि उनके पति आसक्त और बीमार लग रहे थे और स्वास्थ्य से संबंधित सवालों के जवाब देने में हिचक रहे थे. सुरेंद्र के परिवार का मानना है कि जेल के अंदर वास्तव में क्या हो रहा है इस को उजागर न करने का भारी दबाव कैदियों पर है. 12 जून को कुरलेकर ने गाडगिल के बारे में कहा था कि जिस किसी को मधुमेह या ब्लड प्रेशर है, उसकी निगरानी डॉक्टर करते हैं. “यह सरकारी खर्च पर होता है, हम उन लोगों को दवा उपलब्ध कराते हैं जिनके पास दवा नहीं है. जिसे भी दिक्कत है उसे इलाज मुहैया कराया जाता है.”

मेनाल ने मुझे बताया कि सुरेंद्र पिछले तीन सप्ताहों में तीन बार फोन किया. उन्होंने कहा, “कॉल की अवधि अधिक होनी चाहिए क्योंकि हम लोग ठीक से बात नहीं कर पाते हैं.” उन्होंने बताया कि महामारी के कारण परिवार वाले उन्हें आवश्यक वस्तु और दवाइयां नहीं भेज पा रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें जेल में डॉक्टरों की उपलब्धता और चिकित्सा सुविधा की जानकारी नहीं है.

मेनाल ने आखिरी बार 13 मार्च को जेल में सुरेंद्र से मुलाकात की थी. उन्होंने बताया कि सुरेंद्र ने उन्हें बताया था कि जेल के एक बैरक में 30 कैदी हैं जिससे बहुत भीड़ रहती है. मेनाल ने मुझसे कहा, “सुरेंद्र अपने मामले की पैरवी खुद कर रहे हैं और इसलिए उन्हें किताबें और दस्तावेज पढ़ने होते हैं लेकिन जेल में उन्हें रखने की जगह नहीं है. जब बैरक में चीजें नहीं रख पा रहे हैं तो फिर फिजिकल डिस्टेंसिंग कैसे संभव है? डायबिटीज और बीपी की शिकायत वाले लोगों को ज्यादा खतरा है.”

22 जून को गौतम नवलखा की पार्टनर सहबा हुसैन ने नवलखा के वकील देसाई को खत लिखकर ऐसी ही चिंता व्यक्त की थी. उन्होंने खत में लिखा है कि गौतम ने 20 जून को 15 दिनों के अंतराल के बाद उन्हें फोन किया था जिसमें उन्होंने तलोजा के खारगढ़ में एक स्कूल में बने क्वारंटीन सेंटर की खस्ता हालत के बारे में बताया था. इसी क्वारंटीन सेंटर में उन्हें रखा गया था. देसाई को लिखे उस ईमेल के अनुसार नवलखा ने सहबा को बताया था कि छह क्लासरूम वाले उस स्कूल में 350 कैदियों को रखा गया है. जगह की कमी के चलते लोग बरामदे और गलियारे में सो रहे हैं. इस स्कूल में तीन टॉयलेट, सात यूरिनल और एक नहाने की जगह है. नहाने के लिए बाल्टी या मग नहीं है. यह महाराष्ट्र जेल मैनुअल का उल्लंघन है जो कहता है कि जगह हवादार होनी चाहिए और हर छह लोगों के लिए एक टॉयलेट होना चाहिए. सहबा ने लिखा था कि गौतम का हाजमा ठीक नहीं है और डॉक्टर ने उन्हें कमजोरी और बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति के मद्देनजर आयरन की गोलियां दी है।

12 जुलाई को सहबा ने मुझे बताया कि गौतम को स्कूल से बाहर शिफ्ट कर दिया गया है. गौतम ने जेल के हॉस्पिटल वार्ड के लॉकअप में 15 दिन बिताए. अब उन्हें बैरक ले जाया जा रहा है. सहबा ने कहा, “गौतम अपने वकील को फोन नहीं कर पाए हैं क्योंकि ईमेल से इसकी इजाजत लेनी होगी. महामारी के कारण दवाई और कपड़े जैसी बुनियादी चीजें भेजना भी मुश्किल हो गया है. गौतम ने मुझे आठ दिन बाद तीन दिन पहले फोन किया था. हम तीन-चार मिनट ही बात कर सके. उन्हें न्यूनतम पांच मिनट बात करने देनी चाहिए.

कुरलेकर ने ऐसे किसी भी शिकायत से इनकार किया. उन्होंने कहा, “यहां वीडियो और वॉइस कॉल की सुविधा है और अब हमने बातचीत के समय को बढ़ाकर 10 मिनट कर दिया है. हमें सभी को यह सुविधा उपलब्ध करानी होती है और इसलिए हम कोशिश करते हैं कि ऐसी व्यवस्था हो जिससे सबको समय मिल सके.” मैंने अतिरिक्त महानिदेशक (जेल) रामानंद को ई-मेल किया है और उनका जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

देसाई ने मुझसे कहा, “सामान्य परिस्थितियों में भी जेलों की चिकित्सा सुविधाएं अपर्याप्त होती हैं और कोविड में यह बदतर हो गई हैं.” देसाई के अनुसार, “चिकित्सा सुविधाएं, डॉक्टरों के दौरों का वक्त, उपकरण और बुनियादी ढांचा अपर्याप्त है और इसलिए समय-समय पर लोगों को उपचार के लिए जेल से बाहर ले जाना पड़ता है. अब तो यह भी नहीं हो रहा है.” मई के आखिर में राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में दायर एक हलफनामे में स्वीकार किया था कि जेलों के स्वास्थ्य विभागों में कई पद रिक्त हैं.

देसाई के अनुसार, मरीजों को गंभीर रूप से बीमार पड़ने पर ही इलाज के लिए बाहर ले जाया जाता है. लेकिन ऐसे भी मामले हैं जिसमें उपचार के लिए लोगों को नियमित रूप से बाहर ले जाना पड़ता है. मिसाल के लिए जीएन साईबाबा जैसे कैदी. उन्हें नागपुर जनरल अस्पताल ले जाया जाता था लेकिन अब इस पर रोक लग गई है. साईबाबा दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाते थे. वह विकलांग हैं और व्हीलचेयर पर चलते हैं. फिलहाल वह नागपुर केंद्रीय कारागार में माओवाद से संबंध रखने के आरोप में कैद हैं.

देसाई ने बताया कि अदालतों के दबाव में जेल अधिकारियों ने कोरोना जांच की संख्या बढ़ाई है. उन्होंने बताया, “वे पहले कह रहे थे कि किसी की जांच नहीं करेंगे लेकिन जब चार लोगों की मौत हो गई और मौत के बाद आई जांच रिपोर्ट में उन्हें कोरोना पॉजिटिव पाया गया तो इसके बाद वे लोग उनकी भी जांच करने लगे जो उनके संपर्क में आए थे. अब जेल अधिकारी दावा कर रहे हैं कि वे सभी की रोज स्क्रीनिंग कर रहे हैं. यह दावा कितना सही है, हमें नहीं पता.” 3 जुलाई को हाई कोर्ट ने जेलों को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के कोविड-19 संबंधित दिशानिर्देशों का पालन करने का आदेश दिया था. 19 जुलाई को महाराष्ट्र की जेलों में 596 और 167 जेल स्टाफ कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे. इनमें से 281 कैदी और 93 जेल स्टाफ ठीक हो गए हैं.

फिलहाल उच्च शक्ति संपन्न समिति और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन हो रहा है लेकिन जेलों की भीड़भाड़ अब भी मुख्य समस्या है. महाराष्ट्र सरकार ने 15 जून को दायर अपने हलफनामे में कहा था कि राज्य की जेलों की क्षमता 24000 है लेकिन इनमें 36000 कैदी हैं. यदि सोशल डिस्टेंसिंग के नियम के पालन विचार किया जाता है तो महाराष्ट्र कि जिलों में 16000 से अधिक कैदी नहीं होने चाहिए. “इस हलफनामे और अदालतों के निर्देशों के बावजूद जेलों में अब भी 29000 कैदी हैं”, देसाई ने बताया. कुरलेकर ने स्वीकार किया कि तलोजा में क्षमता से अधिक कैदी हैं. उन्होंने बताया, “जेल की क्षमता 2124 है लेकिन इसमें 2600 कैदी हैं.”

सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों और सुरक्षा उपायों के साफ उल्लंघन के बावजूद सुधा भारद्वाज की जमानत याचिका का विरोध करते हुए एनआईए ने अदालत में तर्क दिया था कि “वैश्विक महामारी की वर्तमान अवस्था के आवरण में”, भारद्वाज “अनावश्यक लाभ लेने की फिराक में हैं”. अदालत में दायर जमानत आवेदन में भारद्वाज के वकीलों ने कहा था कि वह मधुमेह से पीड़ित हैं जिससे उन पर कोविड-19 का ज्यादा खतरा है. आवेदन में लिखा था कि पुष्ट समाचार रिपोर्टों के अनुसार, भायखला जेल एक 54 वर्षीय कैदी और जेल डॉक्टर को कोरोना हुआ है और ऐसा संभव है कि यह संक्रमण अन्य कैदियों और जेल अधिकारियों में फैल गया हो.

अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानव अधिकार संगठनों और मानव अधिकार कार्यकर्ता, कोरोनावायरस महामारी के वर्तमान दौर में कैदियों के साथ हो रहे खराब बर्ताव का विरोध कर रहे हैं. 25 जून को अल्टरनेटिव लॉ फोरम, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया और नेशनल अलायंस फॉर पीपल्स मूवमेंट सहित 14 मनावाधिकार संगठनों ने महाराष्ट्र की जेलों और क्वारंटीन सुविधाओं की खराब और खस्ता हालत के बारे में मुख्यमंत्री ठाकरे को खत लिखा था. खत में 60 साल से ऊपर के और मेडिकल चुनौतियों का सामना कर रहे कैदियों को, अपराध में भेदभाव किए बिना, अंतरिम जमानत या आपातकालीन परोल देने की मांग की गई थी. मानव अधिकार संगठनों ने जेलों और संबद्ध क्वारंटीन सेंटरों में तत्काल सोशल डिस्टेंसिंग नियमों को लागू करने की अपील की थी. खत में लिखा है कि कैदियों का उनके परिजनों और वकीलों से नियमित रूप प्रभावकारी संपर्क सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

मानवाधिकार संगठनों के उस पत्र में कैदियों को रिहा करने की बजाय कारावास कानून (1894) की धारा 7 के तहत 36 स्थानों को अस्थायी जेल या क्वारंटीन सेंटर घोषित करने के सरकार के फैसले की आलोचना थी. खत में लिखा है, “ऐसा करना कैदियों को सुरक्षा रखने के संवैधानिक जनादेश का खुला उल्लंघन है. इसके अतिरिक्त इन केंद्रों से संबंधित नियम और अधिसूचनाएं सार्वजनिक नहीं की गई हैं और नियमित संपर्क सुविधाएं भी नहीं है इसलिए ये अस्थायी जेलें विचाराधीन कैदियों के लिए ब्लैक होल जैसी हो गई है जहां उन्हें अनिश्चितकाल के लिए रखा जा रहा है.”

उसी दिन रोमिला थापर, प्रभात पटनायक और सतीश देशपांडे सहित पांच शिक्षाविदों ने भीमा कोरेगांव मामले में कैद आरोपियों और विचाराधीन कैदियों को उनके घरों में नजरबंद करने की अपील की. 600 से अधिक नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और वकीलों ने महाराष्ट्र की उच्च शक्ति प्राप्त समिति से अपील की है कि भारद्वाज और सेन को जेलों में फैल रहे कोरोना संक्रमण के मद्देनजर अस्थायी तौर पर रिहा कर दिया जाए.

वेणुगोपाल ने बताया कि नरेन्द्र मोदी सरकार सभी 11 विचाराधीन कैदियों के साथ बुरा व्यवहार कर रही है. “हम उनकी सेहत को लेकर बहुत चिंतित हैं. यदि वे लोग बाहर होते तो हम उन्हें बेहतर उपचार उपलब्ध करा सकते थे. जेल ऐसा नहीं कर रहा है, सरकार ऐसा नहीं कर रही है. सरकार जानबूझकर या अज्ञानतावश उन्हें मार रही है. हम कोर्ट में इन मामलों का सामना करने के लिए तैयार हैं लेकिन उनके साथ हो रहा ऐसा बर्ताव तुरंत रुकना चाहिए.”