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बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र मगध क्षेत्र में एक नई सामाजिक और राजनीतिक चेतना उभरती दिखाई दे रही है. ख़ुद को महाभारत काल के मगध सम्राट जरासंध का वंशज मानने वाला चंद्रवंशी समाज, इस बार चुनावी राजनीति में सक्रिय और असरदार भूमिका में दिख रहा है.
बीते 1 नवंबर को राज्य में जरासंध की 5228वीं जयंती मनाई गई. इस दौरान मैंने गया जी से होते हुए राजगीर और जहानाबाद का दौरा किया. इन इलाकों में चन्द्रवंशी कहार समाज बसता है. इस साल फ़रवरी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजगीर में जरासंध अखाड़े पर जरासंध की एक प्रतिमा लगवाई और जयंती को राजकीय छुट्टी घोषित की. राजगीर कभी मगध की राजधानी हुआ करता था. इसे लेकर चन्द्रवंशी समाज खुश है. हालांकि, चुनावी आचार संहिता के चलते इस बार जयंती का भव्य आयोजन नहीं हो सका, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए पूरे प्रदेश में इसकी चुनावी गूंज सुनाई दी.
बिहार का यह चंद्रवंशी समुदाय एक बड़ी आबादी वाला अतिपिछड़ा समाज है. इस बार चुनाव में सभी प्रमुख दलों ने समाज से उम्मीदवार उतारे हैं. इसे समाज अपनी जीत मान रहा है. अपने चुनावी दौरे में उनका मन टटोलने की कोशिश करते समझ आया कि इस नई राजनीतिक चेतना के उभरने में तीन ख़ास वजह रही हैं: सोशल मीडिया के ज़रिए भरपूर जानकारी मिलना, जातीय पहचान पर आधारित राजनीतिक जागरूकता और सामाजिक मतभेदों को लेकर बढ़ती संवेदनशीलता.
चुनाव के बीच जारी एक वायरल वीडियो बखूबी असर जमाता दिख रहा है. वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि एक बाभन भूमिहार व्यक्ति चंद्रवंशी समाज के नेता को वोट न देने की बात कह कर भद्दी जातिगत टिप्पणी कर रहा है. उस वीडियो में वह व्यक्ति चंद्रवंशी समाज के नेता को पानी पिलाने वाला कह कर अपमानित कर रहा है. यह वीडियो पिछले लोकसभा चुनाव का बताया जा रहा है. उस चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के चंदेश्वर चंद्रवंशी राजद के सुरेन्द्र यादव से जहानाबाद सीट हार गए थे. वहीं, बाभन भूमिहार समाज में वीडियो में कही गई बात को लेकर कोई पछतावा नहीं है. जहानाबाग कचहरी में वकालत करने वाले राजेश कुमार ने, जो बाभन समाज से हैं, मुझसे कहा, ‘सही तो कहा है, वह पानी पिलाते थे. हम वोट बीजेपी को देते हैं, प्रत्याशी को देते हैं.’
हसनपुर गांव के रहने वाले सोनी राम डोली यूनियन से जुड़े हैं. राजगीर में हुई मुलाक़ात के दौरान उन्होंने बताया कि साल के छह महीने वह पर्यटकों को डोली में बैठाकर पहाड़ पर दर्शन के लिए ले जाते हैं और बाकी वक्त राजमिस्त्री का काम करते हैं. चुनावी आचार संहिता की वजह से इस साल वह अपने ईष्टदेव की जयंती को पूरी भव्यता के साथ नहीं मना पाए थे. वायरल वीडियो के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, 'हमने वह वीडियो देखा. हम सब अपने रिश्तेदारों को फ़ोन करके कह रहे हैं कि बाभन को वोट नहीं देना. उन्होंने हमारे समाज के नेता को हराया और गाली दी.' सोनी बताते हैं कि उनकी यूनियन में 12 गांव के लोग जुड़े है, जो उन्हीं की बिरादरी से हैं और वीडियो को लेकर काफी संवेदनशील हुए हैं. सोनी राम की तरह, समाज के युवा और अन्य सदस्य व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे मंचों से इस संदेश को फैला रहे हैं कि जहां कहीं भी भूमिहार प्रत्याशी खड़ा है, उसे वोट नहीं दिया जाए.
राजगीर के पूर्व पार्षद इंद्र मोहन निराला समाज में उभर रही इस नई राजनीतिक चेतना की तस्दीक करते हुए इसके असर को बताते हैं. वह कहते हैं, 'हमारे समाज को बड़े दलों ने 11 विधानसभा सीटें दी हैं. इसके आलावा भी छोटे दलों के हमारे उम्मीदवार और निर्दलीय उम्मीदवार समाज की एकजुटता को दर्शाते हैं. पहले ऐसा नहीं था. हमारे समाज से पार्षद, अध्यक्ष, मुखिया, जिला परिषद, प्रखंड प्रमुख सब चुनकर आ रहे हैं.' वह मानते हैं कि वायरल वीडियो का असर चुनाव नतीजों में दिखेगा. उन्होंने कहा, 'हमारे समाज की सभी समितियों के ग्रुप में वह वीडियो घूम रहा है. मैं समाज के 100 से अधिक ग्रुपों से जुड़ा हूं. वीडियो भेज कर हम लोगों से बोल रहे हैं कि जहां भी बाभन प्रत्याशी हो उसको हराओ.' उन्होंने आगे कहा, 'पहले सम्मान है उसके बाद कुछ और. जहां भी भूमिहार खड़ा है हम उसको वोट नहीं देंगे और अपनी जात वाला जिस भी दल से आए हम हर तरह से उसका समर्थन करेंगे.' उन्होंने कहा, ‘पैसे से कोई भी काम करा सकता है. लेकिन हमारा पैसा हमारा स्वाभिमान है. काम करने से ऊर्जा मिलती है. अब आप यह कह रहे हैं कि कहार था, पानी पिलाता था. यह कैसे सांसद बनेगा, विधायक बनेगा?’ उन्होंने कहा कि समाज के युवाओं में वीडियो को लेकर काफ़ी गुस्सा है.
जदयू सदस्य और अतिपिछड़ा आयोग के पूर्व सदस्य अरुण वर्मा नीतीश कुमार के समर्थन में मज़बूती से डटे हैं. वह कहते हैं, 'जरासंध महाराज के नाम को पहचानने का काम नीतीश कुमार ने किया. अगर नीतीश कुमार नहीं होते तो हमारे राजा का इतिहास ज़िंदा नहीं होता.' उन्होंने आगे कहा, 'एक प्रतापी राजा होने के बावजूद आप टीवी सीरियल में देखिए या महाभारत पढ़िए उनको राक्षस की तरह दिखाया जाता है, लेकिन नीतीश कुमार ने सिद्ध कर दिया कि महाराज जरासंध एक महापुरुष थे.'
हालांकि, मगध की खोई प्रतिष्ठा के उद्धारक का सहरा जहां नीतीश कुमार के सर सजा है, वहीं अतिपिछड़ी श्रेणी में तेली, तमोली और दांगी जातियों को शामिल करने और जरासंध अखाड़े पर दस रुपए का टिकट लगाए जाने को लेकर समाज में नाराजगी भी है. निराला ने हमें बताया कि अतिपिछड़ी श्रेणी में तीन जातियों को जोड़ देने से इन जातियों ने अधिक जगह ले ली है. रामबली चन्द्रवंशी ने इसको लेकर आंदोलन भी किया था. अब वह जन स्व़राज पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं. रामबली ने बताया, 'जरासंध अखाड़े पर दस रुपए का टिकट लगाया गया है. यह बेहद ग़लत है. एक गरीब परिवार से अगर पांच लोग आ जाएं, तो वह पूजा नहीं कर पाएंगे. अब बताइए उनके दर्शन के लिए किसी टिकट की क्या ज़रूरत है.'
राष्ट्रीय सहारा अख़बार के जहानाबाद रिपोर्टर मनोहर सिंह चन्द्रवंशी समाज से आते हैं. उन्होंने कहा, 'अभी समाज राजनीतिक तौर पर पिछड़ा ही है. इस बार थोड़ा परिवर्तन दिख रहा है. यह समाज ग़रीबी के कारण पीछे हो गया था. इसकी बड़ी वजह है यह अपने इतिहास को नहीं जानता था. अब इसकी नज़र धीरे-धीरे खुल रही है.' उन्होंने बताया कि आज पूरे बिहार में उनके समाज के बीच जो एकता दिख रही है, वह लंबे समय से मनाई जा रही जरासंध जयंती की वजह से है. 'नहीं तो किसी भी चुनाव में तीन-चार से अधिक टिकट नहीं मिलते थे. इस बार तो कम्युनिस्ट और कांग्रेस तक ने एक-एक टिकट दिया है,' उन्होंने कहा.
वायरल वीडियो पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने पूछा, 'हम अगर उनको ऐसा बोल देते, तो क्या वह हमको यहां रहने देते?' उन्होंने बताया कि यह हमारे सम्मान-स्वाभिमान की लड़ाई है. चुनाव में इसका असर दिखाई पड़ेगा.
चंद्रवंशी समाज की यह बढ़ती राजनीतिक चेतना केवल जहानाबाद तक सीमित नहीं है. स्वतंत्र पत्रकार कुमार साहिल इस पूरे घटनाक्रम को एक व्यापक सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में देखते हैं. वह बताते हैं कि जातिगत जनगणना में चंद्रवंशी समाज की आबादी लगभग 2 प्रतिशत है. वह कहते हैं कि औरंगाबाद को लंबे समय से राजपूतों का चित्तौड़गढ़ कहा जाता रहा है, 'लेकिन जैसे-जैसे चंद्रवंशी समाज के हर तबके से पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी अपने समुदाय को ढूंढने और समझने लगे हैं, वैसे-वैसे बहुत से मिथक टूट रहे हैं. या यूं कहें कि जिन तथ्यों पर परदे पड़े थे, उन्हें साफ़ किया जा रहा है.'
इसी साल जून में हुई एक हत्या भी चंद्रवंशी समाज की एकजुटता को मज़बूत कर गई. औरंगाबाद के माली थाना के सोरी गांव के रहने वाले अंकुश चंद्रवंशी महज 17 साल के थे. उन पर आरोप था कि उन्होंने अपनी कॉलोनी के गेट पर 'चंद्रवंशी क्षत्रिय' का बोर्ड लगाया था. वहां के कुछ राजपूत समुदाय के लोगों से यह बर्दाश्त नहीं हुआ. उन्होंने घर में घुस कर सोते हुए अंकुश की गोली मारकर हत्या कर दी.
हालांकि चंद्रवंशी समाज के युवाओं ने डरने से इनकार किया. उनका कहना है कि इतिहास में अनेक वर्ग क्षत्रिय रहे हैं, जो कालांतर में विभिन्न जातियों के रूप में पहचाने गए . वह पूछ रहे थे, 'क्या क्षत्रिय होने पर किसी का कॉपीराइट है?'
इस घटना के बाद पूरे प्रदेश के चंद्रवंशी समाज में एक नया जागरण आया. फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर समुदाय के नेता एकजुट हुए. जगह-जगह लोग लामबंद हुए, रैलियां निकलीं, संगोष्ठियां हुईं और मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री तक को ज्ञापन सौंपे गए.
इस घटना के विरोध में मगध, शाहाबाद, राजगीर, नालंदा, नवादा, आरा, सासाराम, पटना, जहानाबाद, अरवल, गया, जमुई, गोविंदपुर, चेनारी, तरारी, डेहरी-ऑन-सोन, औरंगाबाद, रोहतास, छपरा, मुंगेर, वैशाली समेत अनेक जिलों में कार्यक्रम आयोजित किए गए.
साहिल बताते हैं कि देव मंदिर से लेकर मगध के महाराजा जरासंध तक, सब उन्हीं के कुल से माने जाते हैं. उन्होंने कहा कि उनका राजपूतों से कोई विरोध नहीं, लेकिन अपनी पहचान से मुंह मोड़ना भी उचित नहीं. 'जातियों का इतिहास पढ़ने पर पता चलता है कि अनेक जातियां, जो राजपूत नाम से नहीं जानी गईं, वे भी क्षत्रिय रही हैं. इसलिए इसमें शर्म या विवाद की कोई बात नहीं है,' उन्होंने मुझसे कहा.
चंद्रवंशी समाज के ऐतिहासिक संदर्भ कई ग्रंथों और दस्तावेजों में मिलते हैं. ठाकुर ईश्वर सिंह मदाध की किताब 'राजकूट वंशावली' के पांचवें खंड के पहले पन्ने पर जरासंध के वंशजों का उल्लेख किया गया है, जहां चंद्रवंशी वंश का भी साफ़ वर्णन है.
इसी तरह राजपूत रेजीमेंट के रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी की किताब 'क्षत्रिय वंश तरंगिणी' में भी 'मगध के शासक महाराजा जरासंध' का ज़िक्र मिलता है. इस किताब में वर्तमान 'रवानी उपनाम' का भी संदर्भ है. दिलचस्प बात यह है कि आज भी मगध क्षेत्र और आसपास के इलाकों में इस समुदाय को 'चंद्रवंशी' के साथ-साथ 'रवानी' नाम से भी जाना जाता है.
ब्रिटिश विद्वान एच. एच. रीस्ले ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'ट्राइब्स एंड कास्ट ऑफ़ बंगाल' में मगध क्षेत्र के चंद्रवंशी समुदाय का उल्लेख किया है. रीस्ले ने इस समाज की सामाजिक संरचना, पारिवारिक परंपराओं और जातीय पहचान पर विस्तार से लिखा है.
इतिहासकारों का मानना है कि चंद्रवंशी समाज के ये प्राचीन संदर्भ न सिर्फ़ इसकी सामाजिक पहचान को मजबूत करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि यह समुदाय सदियों से मगध और झारखंड की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा रहा है.
इसी ऐतिहासिक धरोहर का प्रमाण ओमेगा रियासत के राजा भैरवेंद्र सिंह चंद्रवंशी हैं, जिन्होंने उमगा मंदिर और देव सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था. औरंगाबाद और आसपास के इलाकों में चंद्रवंशियों की अच्छी-ख़ासी तादाद भी इसी ऐतिहासिक उपस्थिति की ओर इशारा करती है.
हालांकि महाभारत में जरासंध को मगध का एक क्रूर सम्राट बताया गया है. वह मथुरा के राजा कंस के ससुर थे. अपने नाना कंस का वध करने को लेकर वह कृष्ण से बेहद ख़फ़ा थे. बदले की फ़िराक में उन्होंने 17 बार मथुरा पर चढ़ाई की. तंग आकर कृष्ण मथुरा को छोड़कर और द्वारका जा बसे. तबसे कृष्ण को रणछोड़ भी कहा जाता है. एक दिन मौका मिलने पर कृष्ण ने पांडवों में सबसे बलशाली भीम को इशारा किया जिसे समझते हुए भीम ने जरासंध को दो टुकड़ों में चीर दिया. कहते हैं कि चक्रवर्ती सम्राट बनने की लालसा से शिव को प्रसन्न करने के लिए जरासंध 101 राजाओं की एक साथ बली चढ़ाना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने कई राजाओं को अपना कैदी बना लिया था.
समाज के ही नंद किशोर चंद्रवंशी ने बताया कि उनका समाज बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल (कोलकाता) में बड़ी संख्या में निवास करता है. वर्ष 1906 में इन्हीं लोगों ने 'अखिल भारतीय चंद्रवंशी क्षत्रिय महासंघ' की स्थापना की थी, जिसके संस्थापक बाबू नथुनी सिंह चंद्रवंशी थे. यह महासंघ न सिर्फ़ बिहार में, बल्कि पूरे देश में अपने समुदाय के उत्थान के लिए एक मिसाल बना. हालांकि समय के साथ यह महासंघ कई गुटों में बंट गया है, फिर भी महासंघ आज तक अपनी पहचान और अधिकार की लड़ाई का प्रतीक बना हुआ है. 'यह संघर्ष केवल एक बोर्ड या नाम का नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, इतिहास और अस्तित्व की पहचान का संघर्ष है,' उन्होंने मुझसे कहा.
चंद्रवंशी चेतना मंच के अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद भीम सिंह चंद्रवंशी और अखिल भारतीय चंद्रवंशी महासभा के अध्यक्ष डॉ. प्रेम कुमार इस समुदाय के प्रमुख चेहरे हैं. डॉ. प्रेम कुमार 1990 से गया जिले से विधायक रहे हैं और उन्होंने मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष तथा नेता प्रतिपक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों की ज़िम्मेदारी संभाली है.
झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री रामचंद्र वंशी पहले ‘अखिल भारतीय चंद्रवंशी महासभा’ के अध्यक्ष रह चुके हैं, जबकि वर्तमान में उनके पुत्र ईश्वर सागर चंद्रवंशी इस संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं. इसके साथ ही ‘अखिल भारतवर्षीय चंद्रवंशी क्षत्रिय महासभा’ के अध्यक्ष अशोक आज़ाद चंद्रवंशी, बीजेपी के एमएलसी प्रमोद कुमार चंद्रवंशी, एमएलसी रामबली सिंह और ईबीसी राज्य आयोग के प्रमुख नवीन आर्य जैसे कई प्रभावशाली नेता इसी समुदाय से आते हैं.
जहानाबाद सदर सीट पर इस बार फिर चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी जदयू के प्रत्याशी हैं. उनके सामने राजद के भूमिहार समाज के राहुल कुमार हैं. पिछले लोकसभा चुनाव की यादें और वह वायरल वीडियो इस सीट पर माहौल को गर्मा रहा है.
7 नवंबर को अत्री विधानसभा के मंडई गांव में एक चंद्रवंशी पंचायत बुलाई गई. पंचायत जिला पार्षद कुंदल चंद्रवंशी के घर बैठी. इसमें तकरीबन 40 गांवों से लोग शामिल हुए. पंचायत में बीजेपी के बाभन प्रत्याशी रोहित कुमार को हराने का फ़ैसला लिया गया. पंचायत में एक नारा बुलंद किया गया कि 'जहानाबान में चंद्रवंशी नहीं तो तरारी, टेकरी, घोषी, अत्री में ब्रह्मर्षि नहीं.' इन सभी सीटों पर भूमिहार प्रत्याशी हैं.
मगध की राजनीति में इस नए उभार को समझने के लिए ‘अवध बनाम मगध’ की उस टिप्पणी को भी याद किया जा रहा है, जब उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि 'अवध जीता है, अब मगध भी जीतेंगे'. चंद्रवंशी समाज के लोग इस बात को लेकर आक्रोशित हैं. यह नैरेटिव तेजस्वी यादव को भारी पड़ सकता है. जैसा कि समाज के लोगों का कहना है, 'हम रोटी से समझौता कर सकते हैं, लेकिन अपनी माटी और अपने महाराज के नाम से नहीं.'
अब तक हर बार तेजस्वी यादव का खेमा मगध से मज़बूत समर्थन पाता रहा है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिख रहा. माना जा रहा है कि इस बार मगध राजद को झटका देगा. यह भावनाएं अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव, दोनों पर इस बार राजनीतिक रूप से भारी पड़ने वाली हैं.
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