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नालंदा लोकसभा के बिहार शरीफ में मुकेश ठाकुर की बाल काटने की दुकान एक घने बरगद के पेड़ के नीचे है. वैसे तो उनकी दुकान में एक ही कुर्सी है लेकिन जब शहर में लू चल रही होती है तो अक्सर लोग उनके सैलून के पास मंडराते रहते हैं. पिछले सप्ताह जब उनकी कुर्सी पर मेरी गर्दन और उनके हाथ में कैंची थी, तो मैंने झिझकते हुए पूछा, "किसको वोट दे रहे हैं". ठाकुर थोड़ी देर चुप रहे. फिर उन्होंने बताया कि उन्होंने राजनीतिक चर्चा बंद कर दी है क्योंकि इससे उनके सैलून में हमेशा भीड़ रहती थी. “चाय की दुकान और सैलून पर लोग बेमतलब राजनितिक बात करते हैं. आप बताइए हम धंधा कैसे करें" ठाकुर ने कहा. थोड़ी देर बाद मैंने कहा, "माहौल ऐसा है जैसे मंदिर से ही लोगों को रोजगार मिल जाएगा". ठाकुर ने बाल काटते हुए कहा, "आप इ तो देखिए के केतना बरस से नहीं बना था मंदिर. ऐसा काम किया मोदी जो कोई नहीं कर पाया. देश विदेश में नाम है हमारा."
"इ एगो नीतीसवा को देख लीजिए. औरत सब के आरक्षण देके माथा पर चढ़ा दिया है. आप देखते जाइए, एक दिन ऐसा समय आएगा कि आदमी मौग हो जाएगा. औरत बाहर से आएगी और कहेगी पैर दबाओ. अनपढ़ के समय ही ठीक था जब आदमी (औरत को) दबा के रखता था," ठाकुर ने मेरे बालों पर कैंची चलाते हुए कहा. मगही में मौग शब्द का इस्तेमाल उन मर्दों को उपेक्षित करने के लिए किया जाता है जो पारंपरिक और सामाजिक रूप से औरतों के लिए निर्धारित कामों को करते हैं, जैसे खाना बनाना, बच्चे पलना, घर की साफ़-सफ़ाई करना. कोई भी मर्द परंपरा से ऊपर उठ कर औरतों की बराबरी की बात करता है तो उसे मौग माना जाता है. मौग उन मर्दों को भी कहा जाता है जो अपनी बीवियों की बात मानते हैं, उनसे अच्छा व्यवहार करते हैं और समाज में लड़ाई-झगडे नहीं करते. ठाकुर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकार द्वारा औरतों को राजनितिक, शैक्षिणिक और नौकरियों में दिए आरक्षण से नाराज़ थे. उनकी नज़र में ये संवैधानिक सुविधाएं औरतों को सामाजिक रूप से आदमी के बराबर बना देगी जो समाज के लिए ख़तरा है.
मैंने उनसे कहा कि संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण तो मोदी जी ने भी दिया है. इस पर वह चुप हो गए. फिर तपाक से बोले, “मगर मोदी जी तो इ भी कहते हैं कि सनातनी सतर्क रहें.” यह सही है कि जनमानस में मोदी सरकार की धरणा एक ऐसे पार्टी की है जो हिंदू धर्म को सर्वोपरि रखती है. जो कोई भी सामाजिक असमानता या शोषण, जो जाति या लिंग आधारित है, और जिसे हिंदू धर्म की मान्यता है, बीजेपी उसके ख़िलाफ़ नहीं जाएगी ऐसा लोगों में विश्वास है.
ठाकुर अकेले नहीं हैं जो बीजेपी को इसलिए समर्थन देते हैं क्योंकि वह उन्हें रूढ़िवादी संस्कृतियों, जाति-आधारित भेदभाव, महिला विरोध और धार्मिक हिंसा का सरंक्षक मानते हैं. पिछले कुछ महीनों से बिहार के आधे दर्जन लोक सभा में लगातार घुमा हूँ मैं. हर जगह मोदी समर्थक वे लोग हैं जो महिलाओं को मर्दों से कम आंकते हैं, अनुसूचित जाति के ऊपर अत्याचार को अपना हक़ समझते हैं, आरक्षण को ख़त्म करना चाहते हैं, अपने पेशे की सफलता में पूजा पाठ का योगदान मानते हैं, ब्राह्मणों की बात को अकाट्य मानते हैं, मुसलमानों से नफरत करते हैं और समाज में चलती आ रही रूढ़िवादी परम्पराओं में विश्वास करते है. भारतीय जनता पार्टी और उनके मातृ संघठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, के नेताओं ने इन विचारों को कभी न कभी खुलकर समर्थन भी किया है. चाहे वह 2016 में उत्तर प्रदेश के बीजेपी उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह का बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती को वैश्या कहना हो या फिर कई बीजेपी नेताओं द्वारा सोनिया गांधी को बार डांसर कहना हो. चाहे वह 2017 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का आरक्षण की समीक्षा मांगना हो या 2022 में दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा द्वारा मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार की आम घोषणा हो. हालिया चुनावी प्रचारों में प्रधानमंत्री मोदी स्वयं हिंदुओं को मुसलमानों के ख़िलाफ़ उकसाते नज़र आए कि उनका धन मुसलमानों में बांट दिया जाएगा. पिछले दस सालों में मोदी कई बार प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद को ताक पर रखकर ब्राह्मण पुजारियों के सामने दंडवत झुके हैं और उन्हें राजकीय सम्मान दिया है. इसके अतिरिक्त, 2017 में बीजेपी का उत्तर प्रदेश विधान सभा जीतने के बाद, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जाति व्यवस्था का समर्थन किया था और उन्हें खेत में बने मेड़ की तरह बताया था जो समाज के लिए जरूरी है. ऐतिहासिक रूप से भी आरएसएस की स्थापना का मूल उद्देश्य समाज में हिंदू धर्म की पुनः स्थापना करना था जिसमे हिंदुओं का जीवन मनुस्मृति जैसे पुस्तकों में दिए धार्मिक नियमों पर आधारित कर दिया जाए.
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