आतंकी हमलों का चुनावी इस्तेमाल करती रही है बीजेपी

नवंबर 2008 में मुंबई आतंकी हमलों के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने जो वक्तव्य दिए उन पर नजर डालने से पता चलता है कि बीजेपी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का राजनीतिकरण करना नई बात नहीं है. प्रशांत विश्वानाथन/ब्लूमबर्ग/गैटी इमेजिस

नवंबर 2008 में जब मुंबई चार दिनों तक आतंकी हमले की गिरफ्त में थी, उस वक्त भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने जो वक्तव्य दिए उन पर नजर डालने से पता चलता है कि “बीजेपी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का राजनीतिकरण” करना नई बात नहीं है. वह आतंकी हमला 26 नवंबर को शुरू हुआ था और 29 नवंबर तक जारी रहा. आतंकी हमले के पहले दिन बीजेपी ने देश को आश्वासन दिया कि वह भारत पर हो रहे “पूर्ण युद्ध” में राष्ट्रीय प्रगतिशील गठबंधन सरकार के साथ खड़ी है. लेकिन पार्टी अपनी इस घोषणा पर 24 घंटे भी नहीं टिक पाई और नरेन्द्र मोदी ने आगे आकर केन्द्र सरकार की आलोचना की.

28 नवंबर को बीजेपी ने मुंबई आतंकी हमले के खिलाफ जनता में बढ़ रहे असंतोष को भुनाने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ दिया. उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुंबई आकर उस हमले की जगह ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल के बाहर मीडिया को संबोधित किया और हमले को रोकने में असफल रहने के लिए सरकार की आलोचना की. मोदी ने यह भाषण 29 नवंबर को दिल्ली और 4 दिसंबर को राजस्थान में होने जा रहे विधान सभा चुनाव के पहले दिया गया था. उसी दिन बीजेपी ने राष्ट्रीय अखबारों में मुंबई हमले को चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल करते हुए विज्ञापन जारी किया. काले रंग की पृष्ठभूमि में लाल रंग के छीटों वाले उस विज्ञापन में लिखा था : आतंकवादी जब जी चाहे भयानक हमले करते हैं. लचर सरकार. इच्छाशक्तिहीन और असक्षम. आंतकवाद से लड़ो. बीजेपी को वोट दो.

बीजेपी ने राष्ट्रीय अखबारों में मुंबई हमले को चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल करते हुए विज्ञापन जारी किया. काले रंग की पृष्ठभूमि में लाल रंग के छीटों वाले उस विज्ञापन में लिखा था : आतंकवादी जब जी चाहे भयानक हमले करते हैं… लचर, इच्छाशक्तिहीन और असक्षम सरकार. आंतकवाद से लड़ो…बीजेपी को वोट दो.

14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले में 40 से अधिक सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई. इसके बाद भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में आक्रमण किया. लग रहा है कि बीजेपी अपनी पुरानी आदत नहीं भूली है. आगामी लोक सभा चुनावों के लिए प्रचार करते हुए इसके नेताओं ने मृत सीआरपीएफ जवान और वायु सेना के हमले की बार-बार दुहाई दी है. जब विपक्ष ने बीजेपी पर सशस्त्रबल के बलिदान का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया तो मोदी और बीजेपी ने उसका बचाव किया और अपने क्रूर इतिहास पर पर्दा डालने की कोशिश की.

1 मार्च को मोदी ने कन्याकुमारी में जो भाषण दिया उसमें उन्होंने मुबंई हमले के वक्त बीजेपी की प्रतिक्रिया को नजरअंदाज कर दिया. मोदी ने कन्याकुमारी में जनता को संबोधित करते हुए कहा, “कुछ पार्टियों ने मोदी से नफरत करते-करते देश से नफरत करना शुरू कर दिया.” भारत सरकार का दावा है कि बालाकोट में किए गए भारतीय वायु सेना के हमले में आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के अड्डे तबाह कर दिए गए हैं. जैश ने पुलवामा हमले की जिम्मेदारी ली थी. लेकिन उसके बाद आई जमीनी खबरों ने सरकार के इस दावे को चुनौती दी जिसके बाद विपक्ष ने सरकार से हमले के असर का सबूत देने को कहा. इन विपक्षी नेताओं की ओर इशारा करते हुए, मोदी ने कहा, “ये वही लोग हैं, जिनके बयानों को खुशी-खुशी पाकिस्तान की संसद और रेडियो ऑफ पाकिस्तान में दोहराया जा रहा है. मैं उनसे पूछना चाहता हूं - क्या आप अपने सशस्त्र बलों का समर्थन करते हैं, या उन पर संदेह करते हैं?”

लेकिन न मोदी ने और न ही बीजेपी ने मुंबई आतंकी हमलों के वक्त, जब आतंक रोधी अभियान जारी था, यूपीए सरकार की आलोचना करते वक्त कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई थी. पुलवामा हमले के बाद विपक्ष अपनी प्रतिक्रिया देते वक्त, गुप्तचर विफलता के लिए मोदी सरकार की आलोचना करने से बचा. लेकिन इसके विपरीत मुंबई हमले के बाद नेरन्द्र मोदी ने 27 नवंबर 2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख कर सुझाव दिया था कि प्रधानमंत्री को सभी मुख्यमंत्रियों की, खासकर तटीय और सीमा से लगे राज्यों के मुख्यमंत्रियों की, बैठक बुलानी चाहिए और आंतरिक सुरक्षा की समीक्षा करनी चाहिए. मोदी ने भारतीय सामुद्रिक सुरक्षा की कमजोरी की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि आतंकियों ने मुबंई तट से प्रवेश कर हमले को अंजाम दिया.

इस पत्र को लिखने के दूसरे ही दिन सार्वजनिक कर दिया गया. उस दिन विपक्ष के नेता और 2009 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार एलके अडवाणी ने मीडिया को बताया, “शांति, सांप्रदायिक सद्भाव और देशभक्ति को बनाए रखना हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए.”

लेकिन इसके अगले ही दिन बीजेपी ने अपना विज्ञापन जारी किया. हिंदी में जारी एक विज्ञापन में कहा गया था, “जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी”. एक अन्य विज्ञापन में पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी का खुला पत्र प्रकाशित किया गया जिसमें उन्होंने लिखा था, “परंपरागत भाईचारे और अमन को बनाए रखते हुए हमें ऐसी सरकार का चुनाव करना होगा जो आंतकवाद का मुकाबला सख्ती से कर सके.” बीजेपी को मुंबई आतंकी हमले के मद्देनजर आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त मोर्चा या वोटों के लिए इसका इस्तेमाल करने के बीच किसी एक को चुनना था और उसने गम और आतंक के साये में एकताबद्ध भारतीयों को विभाजित करने का रास्ता चुना.

आतंकी हमलों को रोकने में असफल यूपीए सरकार के खिलाफ अभियान को आगे ले जाने में पार्टी का नेतृत्व मोदी ने किया. 28 नवंबर को मोदी गुजरात से मुंबई आए और ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल के सामने खड़े हो कर मीडिया को बताया कि हमले के मद्देनजर मनमोहन सिंह का राष्ट्र के नाम संबोधन “निराशाजनक” था. मोदी ने मीडिया को उस पत्र के बारे में भी बताया जो सिंह को लिखा था और उसमें लिखी बातों को दोहराया. किसी ने भी इस बारे में टिप्पणी नहीं की कि पाकिस्तान की संसद और रेडियो ने मोदी के बयान पर क्या प्रतिक्रिया दी.

मोदी ने यूपीए पर भारतीय जल क्षेत्र में पाकिस्तान की गतिविधियों के बारे में उनकी चेतावनी को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया. मोदी ने कहा कि गुजरात से जिन मछुवारों को पाकिस्तान की मरीन पुलिस पकड़ के ले जाती है उनकी वोट को रख लेती है. मोदी ने कहा, “मैंने सरकार को एक साल पहले सरकार से कहा था कि हमारी जो वोट ले जा रहे हैं उन वोट का देश के खिलाफ दुरुपयोग होगा और जो आशंका मैंने प्रकट की थी वह दुर्भाग्य से सच हो गई है.” लेकिन पुलवामा हमले के बाद जिन लोगों ने इंटेलिजेंश विफलता की बात की उन पर बीजेपी और उसके समर्थकों ने हमला किया और उनकी देशभक्ति और सेना के प्रति समर्थक पर सवाल उठाए.

उस भाषण में मोदी ने बताया कि गुजरात सरकार ने हमलों में मारे गए पुलिसकर्मियों के परिजनों के लिए महाराष्ट्र सरकार को एक करोड़ रुपए का दान दिया है. मारे गए पुलिसकर्मियों में महाराष्ट्र पुलिस के आतंकरोधी दस्ते (एटीएस) के प्रमुख हेमंत करकरे भी थे. करकरे परिवार के न चाहते हुए भी मोदी ने करकरे के आवास का भ्रमण किया और अपनी संवेदना व्यक्त की.

मोदी और बीजेपी द्वारा करकरे को श्रद्धांजलि देने के विरोधाभास के बारे में मीडिया में खबरे आईं. आतंक रोधी दस्ते के प्रमुख के बतौर करकरे ने 2008 में मालेगांव में हुए विस्फोटों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं के कथित रूप से हाथ होने का खुलासा किया था. इस खुलासे के बाद बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने यूपीए सरकार के कहने पर आरएसएस को फर्जी मामले में फंसाने का आरोप करकरे पर लगाया था.

करकरे की मौत के बाद भी बीजेपी नेताओं ने दावा किया कि यूपीए सरकार भगवा आतंक के होने को लेकर इस कदर अंधी हो गई थी जिसके कारण मुंबई हमला हो पाया. 28 नवंबर को अडवाणी ने प्रेस को दिए एक वक्तव्य में कहा, “यह बात समाने आई है कि आतंकी के पास से बरामद मोबाइल फोन पाकिस्तान का है. यह इस तथ्य की पुष्टि करता है कि इंटेलिजेंस ऐजेंसियों की ऊर्जा को तथाकथित हिंदू आंतकवाद को खोजने में खर्च किया जा रहा है जिससे मुबंई आक्रमणकारियों का षड्यंत्र छिपा रह गया.”

इसके एक दिन पहले मनमोहन सिंह ने अडवाणी को संयुक्त रूप से मुंबई का दौरा करने और साथ में राष्ट्र को संबोधित करने का प्रस्ताव दिया था ताकि भारतीय राजनीतिक दलों के बीच एकता को दिखाया जा सके. लेकिन यह नहीं हो पाया और आडवानी ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया, “प्रधानमंत्री ने साथ मुंबई चलने का सुझाव दिया था और मैंने सहर्स स्वीकार कर लिया और अपनी पूर्व निर्धारित यात्राओं को स्थगित कर दिया. लेकिन दोपहर में मुझे बताया गया कि कमांडो कार्रवाई अभी जारी है इसलिए शुक्रवार को जाना बेहतर होगा.” यह अप्रत्यक्ष तरीके से भ्रमण को टालने के लिए सिंह को जिम्मेदार बताना था. तो भी यह समझना कठिन है कि बीजेपी द्वारा विज्ञापन जारी करने और मोदी के आतंकवाद को रोक पाने में यूपीए सरकार को विफल करार देने के बाद सिंह, अडवाणी को अपने साथ लेकर जाते.

मुंबई हमले की 10वीं वर्षगाठ के अवसर पर मिंट ने एक खबर प्रकाशित की जिसमें बीजेपी के उपरोक्त निर्णय के पीछे के कारणों को बताया गया है. एक वरिष्ठ बीजेपी नेता और सांसद का हवाला देते हुए उस रिपोर्ट में कहा गया है कि “आक्रमक पाकिस्तान विरोधी और हिंदुत्वादी छवि पेश करने के लिए अडवाणी ने मोदी को लगाया था. “उस वरिष्ठ नेता ने बताया कि हमारा कोई भी सीनियर नेता मुंबई नहीं आना चाहता था. वे लोग दिल्ली से अपना काम कर रहे थे लेकिन किसी को तो मुंबई में दिखाई देना था. दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे ने “मोदी से संपर्क किया और उन्होंने इसे तुंरत स्वीकार कर लिया”.

एक तरह से कह सकते हैं कि मोदी, अडवाणी और बीजेपी योजना के तहत काम कर रहे थे. दिल्ली विधान सभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान समाप्त होने से कुछ घंटे पहले 27 नवंबर 2008 को राज्य के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीजेपी के विजय कुमार मल्होत्रा ने मालेगांव जांच को काल्पनिक आतंकवाद को खोजने का प्रयास बताया और कहा, “विकास को रोकने में लगे असली आतंकवाद पर नजर रखने की जगह सारा प्रयास हिंदू आतंकियों को ढूंढने में लगाया जा रहा है जिससे जांच एजेंसिंया लचर हो गई हैं.”

राजस्थान में भी बीजेपी ने मुंबई हमले को वोटों के लिए प्रयोग किया. 29 नवंबर 2008 को प्रकाशित इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंक को रोकने में केन्द्र सरकार की असफलता के विरोध में बीजेपी ने सभी निर्वाचन क्षेत्रों में आतंकवाद का पुतला जलाने की योजना बनाई है. उसने ऐसा किया या नहीं इसकी जानकारी मेरे पास नहीं है. साथ ही बीजेपी ने आतंकी हमलों को कांग्रेस की अल्पसंख्यक समर्थक नीति के साथ जोड़कर दिखाने का भी प्रयास किया. 29 नवंबर को इंडिया टुडे ने बीजेपी नेता रामदास अग्रवाल को उद्धृत करते हुए लिखा, “कांग्रेस का तुष्टिकरण का इतिहास रहा है. ये लोग आतंकवाद के खिलफ नरमी से पेश आ कर देश को बर्बाद कर देंगे.”

मुंबई आक्रमण के बाद मोदी, अडवाणी और बीजेपी ने जिस तरह से उस त्रासदी का लाभ लेना चाहा उससे यदि पुलवामा हमले के बाद विपक्ष की प्रतिक्रिया की तुलना करें तो देखा जा सकता है कि विपक्ष ने सरकार के साथ अधिक एकबद्धता का प्रदर्शन किया है. यह कहना मुश्किल है कि विपक्ष की इस परिपक्वता का जनता में क्या असर हुआ. लेकिन मुंबई हमलों के बाद बीजेपी के व्यवहार को दिल्ली और राजस्थान की जनता ने पसंद नहीं किया था. उस साल दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बन गई.