22 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य सभा के उपाध्यक्ष हरिवंश नारायण सिंह द्वारा भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को लिखा एक पत्र ट्वीट किया. मोदी ने सभी भारतीयों से हरिवंश के पत्र को पढ़ने का आग्रह किया. पत्र में हरिवंश ने पीड़ा जताई कि संसद सदस्यों ने उन पर सदन की नियम पुस्तिका फेंककर डराने की कोशिश की.
जिस घटना का उल्लेख वह कर रहे थे, वह 20 सितंबर को ध्वनि मत से पारित किए गए दो विवादास्पद किसान बिलों के खिलाफ उच्च सदन में हुए हंगामें में घटित हुई थी.
हरिवंश जनता दल (यूनाइटेड) या जदयू के बिहार से राज्य सभा सांसद हैं. जदयू बिहार के सत्तारूढ़ गठबंधन और केंद्र में बीजेपी की सहयोगी है. हरिवंश पहले पत्रकार थे और टाइम्स ऑफ इंडिया समूह, आनंद बाजार पत्रिका समूह, हिंदी साप्ताहिक रविवर और हिंदी दैनिक प्रभात खबर के मुख्य संपादक के रूप में काम कर चुके हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सिंह राजपूत समुदाय से हैं जो मुख्य रूप से उत्तर भारत की एक उच्च जाति है. राज्य सभा में हुए हंगामे और हरिवंश की चिट्ठी की खबर बिहार के बीजेपी नेताओं के बीच तेजी से फैलती गई. बीजेपी नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा, "हरिवंश जी का बिहार और पूरे देश में सम्मान है." उन्होंने कहा, “कल संसद में उनके साथ हुई घटना के बाद अघोषित रूप से बिहार के लोगों और उसके गौरव को चोट पहुंची है. बिहार की जनता विपक्ष को करारा जवाब देगी." बीजेपी बिहार अध्यक्ष संजय जायसवाल ने भी हरिवंश के पत्र को ट्विटर पर पोस्ट किया और लोगों से इसे पढ़ने का आग्रह किया.
राज्य सभा में हुए हंगामे के अगले दिन आठ सांसद, जिन्हें ध्वनि मतदान के दौरान उनके आचरण के लिए निलंबित कर दिया गया था, ने संसद भवन परिसर में अपने निलंबन और खेती से जुड़े कानूनों को रद्द करने के लिए धरना-प्रदर्शन किया. अगले दिन हरिवंश निलंबित सांसदों के लिए चाय लेकर लॉन में गए. जब उन्होंने चाय लेने से इनकार कर दिया तो मोदी ने हरिवंश पर हुए हमले को बिहार की अस्मिता पर हमले से जोड़कर ट्वीट किया. उन्होंने ट्वीट में लिखा, "सदियों से बिहार की महान धरती हमें लोकतंत्र के मूल्यों को सिखा रही है. उस अद्भुत लोकाचार के अनुरूप आज सुबह बिहार से सांसद और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश जी का प्रेरणादायक और राजनेता जैसा आचरण हर लोकतंत्र प्रेमी को गौरवान्वित करेगा." एक दूसरे ट्वीट में मोदी ने कहा, "कुछ दिनों पहले जिन सांसदों ने उन पर हमला किया था और उनका अपमान किया था उनके लिए व्यक्तिगत रूप से चाय लेकर जाना और धरने पर बैठे सांसदों के मन कर देने से पता चलता है कि श्री हरिवंश जी विनम्र मन और बड़े दिल वाले व्यक्ति है." सिंह के लिए बीजेपी का मुखर समर्थन राज्य चुनावों में बिहार में राजपूत समुदाय को लुभाने की कोशिश की एक मिसाल है.
राजपूतों को लुभाने की दूसरी मिसाल वह विवादित पत्र हैं जिनके बारे में जदयू और बीजेपी ने दावा किया वे पत्र राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठतम राजपूत नेताओं में से एक रघुवंश प्रसाद सिंह ने मृत्यु से पहले 13 सितंबर को लिखा था. उस समय रघुवंश का दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इलाज चल रहा था. रघुवंश की मृत्यु के कुछ दिन पहले एक पत्र मीडिया में सामने आया था, जिसे उन्होंने 10 सितंबर को राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को लिखा था. “मैं आपके साथ 32 साल से खड़ा हूं पर अब नहीं. हमें माफ कर दें." अन्य भी पत्र सामने आएं, जिसमें उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कुछ विशेष विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के बारे में लिखा है.
राजद ने इन पत्रों की सत्यता पर संदेह जताया है और सवाल किया है कि जब वे गंभीर रूप से बीमार थे तो रघुवंश पत्र कैसे लिख सकते थे. हालांकि, जैसा कि द वायर की रिपोर्ट में बताया गया है, जदयू और बीजेपी ने इन पत्रों की व्याख्या इस संकेत के रूप में की कि पार्टी ने उनकी उपेक्षा की है. मोदी ने एक ट्वीट में रघुवंश को श्रद्धांजलि दी और कुमार से आग्रह किया कि वह रघुवंश की विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित करके रघुवंश की इच्छाओं को पूरा करें. राजपूत वोट को साधने की कोशिश में जदयू और बीजेपी ने रघुवंश के निधन से पहले ही उनके पत्रों को राजद के साथ उनकी नाखुशी के संकेत के रूप में प्रोजेक्ट किया.
जून के महीने में बिहार के एक हिंदी फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद "न्याय" मांगने का दावा करने वाले ऑनलाइन और ऑफलाइन अभियान में बीजेपी भी आक्रामक रूप से आगे रही है. पार्टी ने अभिनेता की तस्वीर वाले 30000 पोस्टर और इतनी ही संख्या में मुखौटे छपवाए, जिन पर लिखा था, "न भूले हैं, न भूलने देंगे." इन तीनों मामलों में एक सामान्य रूप से हिंदू-राष्ट्रवादी पार्टी द्वारा खुद को राजपूतों के रक्षक और उनके गौरव के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है.
बिहार के एक राजपूत राजनेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बिहार में राजपूत एक प्रभावशाली जाति हैं और बीजेपी इस समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है. "हरिवंश नारायण, रघुवंश प्रसाद सिंह और सुशांत सिंह राजपूत भी राजपूत समुदाय से आते हैं." उन्होंने आगे कहा, “बिहारी राजपूत एक ऐसा समुदाय हैं जिनके लिए गर्व बहुत मायने रखता है. चाहे वह सुशांत को बिहार की मिट्टी के बेटे के रूप में पेश कर रही है या हरिवंश के साथ हुए बुरे व्यवहार की याद दिला रही है, बीजेपी खुद को राजपूत गौरव के संरक्षक के रूप में पेश कर रही है."
राजपूतों को लेकर बीजेपी के आक्रामक व्यवहार का कारण भूमिहारों और राजपूतों के बीच प्रतिकूल संबंधों में निहित है, जो बिहार में दो प्रमुख सवर्ण समुदाय हैं. भूमि का स्वामित्व रखने वाला भूमिहार समुदाय पारंपरिक बीजेपी मतदाता हैं. दूसरी ओर राजपूत वोट राजद के लालू प्रसाद यादव के प्रति वफादार है.
बीजेपी के लिए इस समुदाय के महत्व का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2019 के आम चुनावों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने बिहार में 40 राजपूत उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जो किसी भी एक समुदाय को दी जाने वाली टिकटों की सबसे बड़ी संख्या थी. बिहार में बीजेपी के 17 सांसदों में से पांच राजपूत हैं. जिसमें राधामोहन सिंह पूर्व चंपारण का प्रतिनिधित्व करते हैं, आरा निर्वाचन क्षेत्र से आरके सिंह, छपरा से राजीव प्रताप रूडी, औरंगाबाद से सुशील सिंह और महाराजगंज से जनार्दन सिग्रीवाल शामिल हैं.
पटना विश्वविद्यालय में राजनीतिकशास्त्र के प्रोफेसर राकेश रंजन ने बताया, "भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ बीजेपी के साथ हैं लेकिन राजपूत पूरी तरह से पार्टी के साथ नहीं हैं क्योंकि वे उन सवर्ण जातियों में से हैं जिन्होंने लालू प्रसाद यादव को वोट दिया था."
रंजन लोकनीति नेटवर्क के लिए बिहार समन्वयक भी हैं. यह सामाजिक विज्ञान अनुसंधान संस्थान सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज की अध्ययन शाखा है. “ये सभी कदम संकेत हैं कि पार्टी राजपूत समुदाय की सहानुभूति पाना चाहती है. रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन से राजद इस वोट बैंक को खो सकता है और बीजेपी इस बहाव के लाभार्थी के रूप में खुद को आगे बढ़ा रही है.” उन्होंने अनुमान लगाया कि राजपूत बिहार की आबादी का लगभग छह प्रतिशत हिस्सा हैं.
क्षेत्रीय टीवी चैनल न्यूज18 बिहार-झारखंड के वरिष्ठ संपादक प्रभाकर कुमार ने मुझे बताया, "राजपूत संख्यात्मक रूप से महत्वपूर्ण नहीं हैं." उन्होंने समझाया, "उच्च-जाति के वोटों को संख्यात्मक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि वह प्रभावित करने वाले समुदाय की तरह होते हैं. अगर किसी गांव में 200 राजपूत हैं, तो वे अतिरिक्त 400 वोट लाएंगे क्योंकि उनका उस तरह का प्रभाव होता है. उनमें से अधिकांश भूमिमालिक परिवार से हैं और उनके अधीन काम करने वाले कई लोग होते हैं." उन्होंने कहा कि राजपूत वोट परंपरागत रूप से बीजेपी-जदयू गठबंधन और आरजेडी के बीच बंटे हुए हैं और अभी भी ऐसा होता है, "वास्तव में लालू प्रसाद यादव एनडीए से बहुत अधिक राजपूत उम्मीदवारों को मैदान में उतारेंगे." 2009 के संसदीय चुनावों में राजद के तीन राजपूत उम्मीदवार सांसद बने थे. वैशाली से रघुवंश, बक्सर से जगदानंद सिंह और महाराजगंज से उमा शंकर सिंह.
मैंने प्रभाकर से पूछा कि बिहार में चुनावी एजेंडे को कौन से मुद्दे आगे ले जा रहे हैं. उन्होंने कहा, "जब चुनावी चर्चा शुरू हुई तो हमने सोचा कि कोरोनावायरस एक प्रमुख मुद्दा होगा, फिर हमने सोचा कि प्रवासी श्रमिक मुद्दा होगा लेकिन दिलचस्प बात यह है कि अब चुनाव पूरी तरह सामने है और कोई भी इसके बारे में बात नहीं कर रहा है." उन्होंने आगे कहा, "सुशांत बिहारी गर्व का विषय बन गया और गैर-राजपूत भी सुशांत के लिए न्याय के विचार से जुड़ गए. यह जाति विशेष में नहीं था लेकिन बिहार का एक अहम मुद्दा बन गया."
मिशिगन विश्वविद्यालय में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के सहयोगी प्रोफेसर, जोयोजीत पॉल की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा "एक अफवाह की रचना : सोशल मीडिया और सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या" शीर्षक से हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि मीडिया में प्राइम टाइम ने कैसे सुशांत सिंह राजपूत मामले में कवरेज और सोशल मीडिया उन्माद ने सार्वजनिक नैरेटिव को आकार दिया है. इसकी एक महत्वपूर्ण खोज यह रही है कि राजनेताओं ने मामले को "आत्महत्या" के बजाय "हत्या" के रूप में प्रचारित करके चर्चा के विषय को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
रिपोर्ट में जून से सितंबर महीने के बीच 7818 नेताओं द्वारा किए गए 103125 ट्वीट का विश्लेषण किया गया और पाया गया कि नेताओं द्वारा हैशटैग का इस्तेमाल करते समय महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ पार्टी “शिवसेना” के लिए #ShameOnMahaGovt और # UddhavResignOrCBI4SSR जैसे हैशटैगनक प्रयोग हुए. फिलहाल उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री है. इसमें कहा गया है, "इससे पता चलता है कि नेताओं द्वारा हैशटैग का उपयोग वर्तमान महाराष्ट्र सरकार के लिए काफी हद हानिकारक है, जिसका प्रयोग विपक्षी दल, खास तौर पर बीजेपी करती आई है."
मूल रूप से बिहार के रहने वाले और बीजेपी के सदस्य रवि तिवारी सुशांत की मौत पर सक्रिय रूप से ट्वीट कर रहे हैं. तिवारी पूर्व में बीजेपी के संचार प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य थे. जब मैंने उनसे बात की, तो उन्होंने आत्महत्या की संभावना से इनकार करते हुए जोर देकर कहा कि सुशांत की हत्या की गई है. अक्टूबर की शुरुआत में एम्स में एक छह-सदस्यीय चिकित्सा दल ने हत्या की बात को नकार दिया था. तिवारी ने बताया, "जिस दिन सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु हुई, मैंने ट्वीट करना शुरू कर दिया कि यह एक हत्या है. इसने जल्द ही लोगों का ध्यान खींचा और दस दिनों के भीतर 10000 लोग इससे जुड़ गए. हमने ट्विटर और टेलीग्राम पर सोशल मीडिया अभियान शुरू किया."
मैंने तिवारी से पूछा कि सुशांत की मौत उनके लिए इतना महत्वपूर्ण मुद्दा क्यों है, तो उन्होंने कहा, "बॉलीवुड में जाने वाले छोटे शहरों के महत्वकांक्षी युवाओं को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, हम इन लोगों के लिए लड़ रहे हैं. उनकी कहानी नरेन्द्र मोदी की तरह ही है." प्रभाकर ने बताया कि सुशांत की मौत का मुद्दा अभी भी सोशल मीडिया पर चल रहा है. उन्होंने कहा, "बिहार में सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधन दोनों युवा वोट के लिए अपील करने के लिए इस मुद्दे को उठा रहे हैं." उन्होंने आगे कहा, "अभी नीतीश कुमार के अभियान का मुख्य आकर्षण 'मेरे 15 साल बनाम लालू के 15 साल' है. लेकिन पहली बार मतदाताओं के एक बड़ा हिस्से के बीच लालू के शासन की कोई स्मृति नहीं है. सुशांत सिंह राजपूत का मुद्दा आकांक्षी युवाओं से वोट की अपील करने में सक्षम हैं और इसलिए राजनीतिक दल इस मुद्दे के साथ आगे बढ़ रहे हैं."
अनुवाद : अंकिता