कोविड महामारी के मद्देनजर कुंभ को सीमित रखना चाहते थे त्रिवेंद्र सिंह रावत, बीजेपी ने छीन ली मुख्यमंत्री की कुर्सी

2019 में एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से कहा कि महाकुंभ बिना किसी “विवाद” के होना चाहिए. भारत भर में कोविड-19 महामारी के मद्देनजर त्रिवेंद्र कुंभ को सीमित और प्रतीकात्मक रखना चाहते थे लेकिन इसके चलते उनके और अखाड़ों के बीच तनाव पैदा हुआ और अंततः उनको इस्तीफा देना पड़ा.
पीआईबी
2019 में एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से कहा कि महाकुंभ बिना किसी “विवाद” के होना चाहिए. भारत भर में कोविड-19 महामारी के मद्देनजर त्रिवेंद्र कुंभ को सीमित और प्रतीकात्मक रखना चाहते थे लेकिन इसके चलते उनके और अखाड़ों के बीच तनाव पैदा हुआ और अंततः उनको इस्तीफा देना पड़ा.
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भारतीय जनता पार्टी के नेताओं, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (एबीएपी) के महंतों और हरिद्वार महाकुंभ से जुड़े अधिकारियों के हुई बातचीत से पता चलता है कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मार्च 2021 में इसलिए रातोंरात पद से हटाया दिया गया क्योंकि वह महाकुंभ का आयोजन सीमित स्तर पर करने के पक्षधर थे.

कम से कम पांच महंतों और बीजेपी के दो नेताओं ने पुष्टि की है कि एबीएपी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उत्तराखंड के कुछ कैबिनेट मंत्री चाहते थे कि उत्तराखंड कोविड​​-19 प्रतिबंधों को ताक में रख कर महाकुंभ की "भाव्य" मेजबानी करे लेकिन त्रिवेंद्र का जोर त्योहार को "प्रतीकात्मक” रूप से मनाने पर था. महंतों के साथ बातचीत से यह भी पता चला है कि ज्योतिषों और तांत्रिकों द्वारा पंचाग की गणना के आधार पर कुंभ को 2021 में कराया गया वर्ना 12 साल में होने वाला यह कुंभ 2022 में होना तय था.

दो दशक से अधिक का राजनीतिक अनुभव रखने वाले एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने मुझे बताया कि कोविड-19 महामारी के बीच में पूर्ण कुंभ की मेजबानी करना राजनीतिक और आर्थिक निर्णय था. वरिष्ठ नेता ने उस घटनाक्रम को भी उजागर किया जिसके कारण त्रिवेंद्र को हटाया गया. उन्होंने कहा, “कुंभ को इसलिए होने दिया गया क्योंकि अगले आठ महीने बाद उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं. चुनाव से ठीक एक साल पहले सहयोगियों को नाराज करने का कोई मतलब नहीं था.” सहयोगियों से वरिष्ठ नेता का तात्पर्य अखाड़ों से है जिनके उग्र साधुओं का हिंदी पट्टी के हिंदुओं पर व्यापक प्रभाव होता है. उन्होंने समझाया कि कुंभ को टालना अखाड़ों के महंतों के लिए कमाई और समर्थन का भारी नुकसान होता. इन महंतों की उत्तर प्रदेश की जनता के बीच भारी पहुंच है. उन्होंने कहा कि कुंभ का कुल कारोबार हजारों करोड़ रुपए का होता है.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि 2019 में हुई एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री रावत से कहा था कि महाकुंभ एक प्रतिष्ठित हिंदू त्योहार है और इसकी “तैयारियों को लेकर अखाड़ों को कोई परेशानी नहीं आनी चाहिए और बिना किसी “विवाद” के महाकुंभ का आयोजन होना चाहिए. बीजेपी के नेताओं और अखाड़ों के महंतों के साथ हुई बातचीत से पता चलता है कि रावत और अखाड़ों के बीच की तनातनी में रावत को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी. बीजेपी के इन नेताओं और महंतों ने बीजेपी और आरएसएस के कोपभाजन बनने के डर से नाम न जाहिर करने की शर्त पर मुझसे बात की. जब मैंने उत्तराखंड बीजेपी के प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान से पूछा कि क्या कुंभ के कारण पूर्व मुख्यमंत्री को किनारे कर दिया गया था, तो उन्होंने मुझसे कहा कि ऐसी आपकी "धारणा में दम हो सकता है", और हो सकता है कि अखाड़ों ने इसको लेकर शिकायत की हो.

महंतों के साथ बातचीत से यह भी पता चला है कि ज्योतिषों और तांत्रिकों द्वारा पंचाग की गणना के आधार पर कुंभ को 2021 में कराया गया वर्ना 12 साल में होने वाला यह कुंभ 2022 में होना तय था.

सृष्टि जसवाल एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह भारत में खोजी पत्रकारों के समूह द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की सदस्य हैं. वह इंटरन्यूज और किसा लैब्स के साथ 2020 मोजो फेलो थीं. उन्हें नेशनल फाउंडेशन फ़ॉर इंडिया का अनुदान भी मिला है.

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