जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने छेड़ा जमीन जेहाद का शगूफा लेकिन सिर मुंडाते ही पड़े ओले

जम्मू संभाग में पुंछ जिले का एक दृश्य. नवंबर 2020 में अदालत के निर्देशों के बाद,जम्मू और कश्मीर दोनों के संभागीय आयुक्तों के कार्यालयों ने उन लोगों की सूची अपलोड की जिन्होंने अवैध रूप से राज्य की भूमि पर कब्जा कर लिया था. आशुतोष शर्मा

जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों और कुछ मामलों में उनके रिश्तेदारों को सरकार द्वारा प्रकाशित सूची में राज्य की जमीन पर अतिक्रमण करने वालों के रूप में दर्ज किया गया है. 9 अक्टूबर 2020 को जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने रोशनी अधिनियम, जिसे औपचारिक रूप से जम्मू-कश्मीर राज्य भूमि (कब्जाधारी के लिए स्वामित्व का अधिकार) अधिनियम 2001 के रूप में जाना जाता है, को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. 2001 में फारूक अब्दुल्ला सरकार के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने रोशनी अधिनियम पारित किया था जिसमें राज्य सरकार के स्वामित्व वाली भूमि को उन लोगों को हस्तांतरित करने का प्रस्ताव था जिनका पहले से ही जमीन पर कब्जा था और जो इसके लिए सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क अदा करने को तैयार थे. इसका उद्देश्य बिजली के लिए चल रही उर्जा-परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए संसाधन तैयार जुटाना था. उच्च न्यायालय ने अब अधिनियम के तहत किए गए सभी भूमि हस्तांतरण को अवैध घोषित कर दिया है. साथ ही केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन को उन लोगों की (जिन्होंने अधिनियम के तहत राज्य की भूमि प्राप्त की थी और अवैध तथा अनधिकृत कब्जे वाली राज्य की जमीन) की सूची तैयार करने का निर्देश दिया. अदालत ने इन सूचियों को "अतिक्रमणकारियों की पूरी पहचान के साथ" एक आधिकारिक वेबसाइट पर पोस्ट करने के लिए कहा है.

बीजेपी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता ने अदालत के फैसले को "भूमि जिहाद" पर "सर्जिकल स्ट्राइक" बताया. उनके शब्दों के चयन का अर्थ था कि मुख्य रूप से मुसलमानों ने रोशनी अधिनियम के तहत लाभ उठाया था. नवंबर में बीजेपी के केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने रोशनी भूमि योजना को "भारत का सबसे बड़ा भूमि घोटाला" कहा था.

24 नवंबर को अदालत के निर्देशों का पालन करते हुए जम्मू और कश्मीर दोनों के डिवीजनल कमिश्नरों के कार्यालयों ने रोशनी अधिनियम के तहत लाभांवित होने वाले और सामान्य रूप से राज्य की भूमि पर अवैध कब्जा करने वाले लोगों की अलग-अलग सूची अपलोड की. विडंबना यह है कि दस्तावेजों से पता चलता है कि बीजेपी के नेता या तो रोशनी योजना के तहत भूमि के लाभार्थी रहे हैं या भूमि अतिक्रमणकारियों की सूची में शामिल हैं. 2011 में जमीन हथियाने के मामलों की जांच के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले एक वकील शेख शकील अहमद के अनुसार सूचियां यह भी बताती हैं कि रोशनी अधिनियम के बहुसंख्यक लाभार्थी जम्मू में हैं और गैर-मुस्लिम हैं. सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए और 9 अक्टूबर के अदालत के आदेश में दर्ज किए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्य की 604602 कनाल भूमि को जम्मू और कश्मीर में रोशनी अधिनियम के तहत आवंटित किया गया था. एक कनाल एक एकड़ के लगभग आठवें हिस्से के बराबर होता है. इसमें से 571210 कनाल जम्मू में और केवल 33392 कनाल कश्मीर में आवंटित किए गए थे. भूमि लाभार्थियों के विवरण से बीजेपी के "भूमि जिहाद" की कहानी का पर्दाफाश होता है.

जम्मू संभागीय आयुक्त की वेबसाइट पर अपलोड की गई एक सूची में कहा गया है कि “कविंदर गुप्ता” ने जम्मू जिले की भलवाल तहसील के घिनक गांव में 39 कनाल भूमि का अतिक्रमण किया. हालांकि इस सूची में "अवैध रूप से रहने वाले के पेशे" को "किसान" के रूप में दर्ज किया गया है. कविंदर ने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने अवैध रूप से जमीन पर कब्जा किया है. "अगर मेरे अवैध कब्जे के तहत कोई ऐसी भूमि है, तो मामले की जांच होनी चाहिए," उन्होंने मुझे बताया. "लोग जानते हैं मेरी छवि साफ है." उन्होंने दावा किया कि सूची कहती है कि "कविंदर गुप्ता और बेटे," जबकि उनका केवल एक बेटा है. हालांकि सूची में कहा गया है कि “कविंदर गुप्ता और ओआरएस” यानी अन्य.

जम्मू संभागीय आयुक्त की वेबसाइट पर पोस्ट की गई रोशनी योजना से लाभ पाने वाले लोगों की सूची में बीजेपी के एक अन्य नेता रणबीर सिंह पठानिया के पिता का भी उल्लेख है. रणबीर जम्मू संभाग में रामनगर निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व विधायक हैं. सूची में दर्ज किया गया है कि उनके पिता बूपिंदर सिंह ने उधमपुर जिले की मजल्टा तहसील में केहल गांव में 970 रुपए में 9 कनाल भूमि प्राप्त की.

रणबीर ने रोशनी योजना के तहत कोई भी भूमि प्राप्त करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, "जिस भूमि के बारे में सवाल किया गया है वह हमारे परिवार की मालिकाना भूमि का हिस्सा है और इसे गलत तरीके से राज्य को दिया गया है," उन्होंने मुझे लिखा. उन्होंने कहा कि "जिस जमीन पर सवाल उठा है" वह पैतृक भूमि है और इसे राज्य की जमीन का हिस्सा नहीं माना जाना चाहिए. उन्होंने खसरा संख्या 1718 और 1744 के तहत आने वाली भूमि का उल्लेख किया. सूची में खसरा संख्या "1772/1718” का उल्लेख उनके पिता के स्वामित्व वाली भूमि के लिए किया गया है. रणबीर ने कहा, "यह एक सोची समझी साजिश के तहत मुट्ठी भर राजस्व अधिकारियों और असंतुष्टों द्वारा और जनता द्वारा ठुकराए हुए राजनीतिक विरोधियों ने एक पैसे देकर छपवाई फर्जी खबर है." उन्होंने कहा कि "मेरे पिता के सभी जीवित कानूनी उत्तराधिकारियों में से," किसी के पास "रोशनी योजना से मिली एक इंच जमीन नहीं है या किसी भी राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव नहीं किया गया है."

दिवंगत बीजेपी नेता शिव चरण गुप्ता का नाम जम्मू संभाग में राज्य-भूमि अतिक्रमणकारियों की सूची में है. शिव उधमपुर जिले के उधमपुर निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी के विधायक थे. सूची में कहा गया है कि उन्होंने उधमपुर जिले की उधमपुर तहसील में डंडयाल गांव में 11 कनाल भूमि पर अवैध कब्जा किया है. इसमें उल्लेख किया गया है कि उनकी मृत्यु हो गई है और फिलहाल भूमि पर "कब्जा उनके बेटों का है." शिव के दोनों पुत्र बीजेपी सदस्य हैं. (पवन गुप्ता 2015 में बीजेपी के साथ गठबंधन वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सरकार में वित्त राज्य मंत्री थे और योगेश्वर गुप्ता उधमपुर नगर परिषद के अध्यक्ष हैं.) पवन पहली बार उधमपुर से निर्दलीय विधायक चुने गए थे. 2016 में मंत्री परिषद से बाहर कर दिए जाने पर उन्होंने बीजेपी छोड़ दी थी लेकिन 2019 में फिर से पार्टी में शामिल हो गए. अपने पिता का नाम सूची में आने के एक दिन बाद पवन ने एक संवाददाता सम्मेलन कर आरोपों का खंडन किया.

पवन ने बताया, "सूची सामने आने के बाद मुझे संबंधित तहसीलदार से एक प्रमाण पत्र मिला जिसमें स्पष्ट किया गया था कि हमने राज्य की किसी भी भूमि का अतिक्रमण नहीं किया है. मेरे भाई, जो नगरपालिका परिषद उधमपुर के अध्यक्ष हैं, ने लगभग एक महीने पहले डिप्टी कमिश्नर उधमपुर से उसी भूमि पर खेल स्टेडियम का निर्माण कराने का अनुरोध किया था." पवन ने कहा, "मेरा नाम मुझे बदनाम करने के लिए सूची में शामिल किया गया है."

“राज्य की अतिक्रमित भूमि” की सूची में बीजेपी के एक अन्य नेता अब्दुल गनी कोहली का भी नाम है जो पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार में परिवहन मंत्री थे. इसमें कहा गया है कि उन्होंने जम्मू जिले के बाहू तहसील के चन्नी रामा गांव में 16 कनाल राज्य भूमि का अतिक्रमण किया है. सूची में यह भी उल्लेख किया गया है कि भूमि का उपयोग एक शैक्षणिक संस्थान के लिए किया जा रहा है. कोहली ने कहा, "10 कनाल भूमि पर कुछ विवाद है. मामला उच्च न्यायालय में है."

बीजेपी के एक अन्य सदस्य अनिल गुप्ता का नाम भी राज्य की भूमि पर अतिक्रमण करने वालों की सूची में दर्ज है. अनिल जम्मू और कश्मीर बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष चमन लाल गुप्ता के बेटे हैं और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे हैं. वह चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, जम्मू के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी हैं. सूची में कहा गया है कि अनिल ने जम्मू जिले के दीली गांव में पांच कनाल राज्य भूमि पर कब्जा किया है. 

अनिल ने दावा किया कि सूची में उनके नाम का "गलत ढंग से उल्लेख" किया गया है. उन्होंने कहा कि तहसील जम्मू दक्षिण के दीली गांव की जमीन के साथ उनका कोई ''संबंध नहीं'' है. अनिल ने कहा कि उन्होंने सूची में नाम आने पर "आपत्ति" जताई और मामले को संभागीय आयुक्त के सामने उठाया. "मुझे लगता है कि उन्होंने मेरा नाम हटा दिया है," उन्होंने मुझे 18 फरवरी को बताया था लेकिन उनका नाम अभी भी सूची में है.

पिछले साल रोशनी योजना के लाभार्थियों के विवरण सामने आने के बाद से बीजेपी ने अपना रुख नरम कर दिया है. अदालत के फैसले के दो महीने बाद केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन ने 7 दिसंबर 2020 को उच्च न्यायालय में एक समीक्षा याचिका दायर की, जिसमें अदालत के अक्टूबर के फैसले की समीक्षा की मांग की गई. हालांकि यह सुनिश्चित करते हुए कि राजस्व विभाग अदालत के आदेशों को लागू करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रहा है, याचिका में गुहार लगाई गई है कि अदालत को समाप्त कर दिए गए कानून के तहत ''उन भूमि-रहित कृषकों और व्यक्तियों में, जो खुद उन छोटे इलाकों में रहते हैं" तथा "अमीर और संपत्तिवान लोगों में जो जमीन हड़पने वाले हैं, में फर्क करना होगा.

जम्मू-कश्मीर बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता और वकील सुनील सेठी ने मुझसे कहा, "कोई भी फैसले से संतुष्ट नहीं है." सेठी उच्च न्यायालय में अब तक दायर 47 समीक्षा याचिकाओं में से एक में वकील भी हैं. उन्होंने कहा, "हमारा राजनीतिक रुख और समीक्षा याचिका में यह भी मानना है कि जिन लोगों के पास कानूनी तौर पर या लीज पर या आवंटित रूप से राज्य की भूमि है उन्हें राज्य की भूमि के अतिक्रमणकारियों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है."

2014 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट ने रोशनी अधिनियम के कार्यान्वयन में अनियमितता की ओर इशारा किया गया था. इसमें उल्लेख किया कि 25448 करोड़ रुपए के लक्ष्य के खिलाफ, इस योजना ने 2007 से 2013 के बीच सिर्फ 76 करोड़ रुपए पैदा किए थे. कैग के खुलासे के बाद अंकुर शर्मा नाम के एक वकील ने 2014 में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय में रोशनी भूमि-आवंटन की केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा जांच कराने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की थी. याचिका में मांग की गई थी कि रोशनी अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया जाए और योजना के तहत हस्तांतरित भूमि को फिर से प्राप्त किया जाए.

9 अक्टूबर का अदालती फैसला शर्मा की याचिका और एसके भल्ला की ओर से वकील अहमद द्वारा 2011 में दायर एक अन्य जनहित याचिका के जवाब में आया. जम्मू के रहने वाले सेवानिवृत्त प्रोफेसर भल्ला भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता हैं. पूर्व राज्य में भूमि हड़पने की बढ़ती घटनाओं के बारे में समाचार रिपोर्टों के जवाब में जनहित याचिका दायर की गई थी. अहमद के अनुसार जनहित याचिका में मांग की गई थी कि अदालत राजनेताओं, नौकरशाहों और “भू-माफिया” के बीच सांठगांठ की जांच करे.

31 अक्टूबर को अदालत के निर्देशों के अनुसार केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने रोशनी अधिनियम के तहत किए गए सभी भूमि हस्तांतरणों को रद्द करने का आदेश जारी किया. इसके बाद केंद्र शासित प्रदेश के कई इलाकों में बेदखली अभियान चलने लगा. जम्मू संभाग में भारत-पाकिस्तान सीमा के पास के गांवों में सीमांत किसान रोशनी फैसले से प्रभावित प्रतीत होते हैं. कठुआ स्थित नागरिक अधिकार संगठन सीमा कल्याण समिति के उपाध्यक्ष भारत भूषण ने मुझसे कहा, "राजस्व विभाग ग्रामीणों को राज्य की भूमि को खाली करने के लिए कह रहा है जिस पर वे पिछले 70 वर्षों से खेती कर रहे हैं. कठुआ, सांबा और जम्मू जिलों में सीमा और राष्ट्रीय राजमार्ग के बीच के क्षेत्रों में लगभग 95 प्रतिशत हिंदू समुदाय के हैं." भूषण ने आगे कहा, “कानून हमारे लोगों के लिए एक वरदान के रूप में आया था क्योंकि इसने हमें भूमि-स्वामित्व अधिकार दिए थे. अगर सरकार अपने मौजूदा स्वरूप में रोशनी फैसले को लागू करती है, तो करोल-कृष्णा, मानारी, करोल बेदो और करोल मटराई जैसे गांवों में लगभग 80 से 90 प्रतिशत किसान भूमिहीन हो जाएंगे.” ये हिंदू-बहुल क्षेत्र हैं.

अहमद ने जोर देकर कहा कि बीजेपी द्वारा निर्णय को सांप्रदायिक रंग दिया गया है और यह निर्णय स्वयं धर्म का उल्लेख नहीं करता है. "रोशनी मामले में 64-पृष्ठ के उच्च न्यायालय के फैसले में कहीं भी हिंदू, मुस्लिम या जमीन जिहाद का उल्लेख नहीं है लेकिन बीजेपी ने फैसले को एक विशेष समुदाय के खिलाफ हथियार के रूप में बदल दिया." उन्होंने कहा, ''हमारी जनहित याचिका ने राजनेताओं, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और भू-माफियाओं के खिलाफ जमीन हड़पने के आरोपों की जांच के लिए राज्य सतर्कता संगठन और राजस्व विभाग से त्रुटिहीन अखंडता वाले अधिकारियों सहित एक जांच दल के गठन की मांग की थी. हमने मांग की थी कि ऐसे लोगों की पहचान की जाए और उन पर मुकदमा चलाया जाए. हमारी जनहित याचिका में यही प्रार्थना है. इसमें आदिवासी लोगों, गरीबों, वाजिब लोगों, पट्टाधारकों के खिलाफ कुछ भी नहीं था.”

इस पर जोर देते हुए कि रोशनी योजना के तहत लाभार्थियों में से अधिकांश सीमांत किसान और गरीब थे, अहमद ने कहा, “1000 से 5000 मामलों में धोखाधड़ी की गई हो सकती है लेकिन रोशनी अधिनियम के तहत भूमि नियमितीकरण के सभी मामलों में ऐसा नहीं था. यह फर्जी नैरेटिव है कि मुसलमान रोशनी अधिनियम के प्रमुख लाभार्थी थे.” उन्होंने जम्मू जिले के उदाहरण की ओर इशारा करते हुए कहा कि जिले में कुल 44915 कनाल भूमि रोशनी योजना के तहत नियमित हुई है, जबकि केवल 1180 कनाल मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को आवंटित की गई थी.

बीजेपी नेताओं के अलावा संभागीय आयुक्तों की वेबसाइटों पर अपलोड की गई सूचियों में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के नेताओं का भी नाम हैं. द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक इनमें पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार में वित्त मंत्री रह चुके पीडीपी के पूर्व नेता हसीब द्राबू, व्यापारी और कांग्रेस नेता केके अमला, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी शफी पंडित की पत्नी निगहत पंडित, नेशनल कॉन्फ्रेंस के सैयद अखून और नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्व मंत्री सुज्जाद किचलू के नाम भी हैं.

“अतिक्रमित राज्य भूमि” की सूची में यह भी कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक और उमर अब्दुल्ला ने जम्मू जिले के बाहू तहसील के सुंजवान गांव में सात कनाल राज्य भूमि का अतिक्रमण किया. दोनों ने आरोप से इनकार किया है. इसी तरह की एक सूची में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद के भाई निसार आजाद और सज्जाद आजाद का भी नाम शामिल है, जिन्होंने सुंजवान गांव में ही राज्य की छह कनाल भूमि पर अतिक्रमण किया है.

व्यापारी सज्जाद ने बताया, "हमारे पिता 1999 में गुजर गए. वह 1975 में एक गुर्जर परिवार से सुंजवान में जमीन खरीदने वाले पहले गैर-स्थानीय थे. सुंजवान की जमीन ... मूल रूप से खानाबदोशों की थी जो सदियों से यहां रहते आए थे. केवल खानाबदोश परिवार यहां बसा करते थे. किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि यह बंजर भूमि लोगों द्वारा बसाई जाएगी.” उन्होंने कहा, "पूरा भुगतान चेक के माध्यम से किया गया था न कि नकदी से. हमारे पास सभी कागजात हैं." उन्होंने कहा, "हमने किसी भी राज्य भूमि का अतिक्रमण नहीं किया. हम राजनीतिक परिवार से हैं. यह सब निहित स्वार्थों के कारण प्रचारित किया गया है.”