पश्चिम बंगाल में हिंदी पट्टी वाला गणित लगा मजबूत होती बीजेपी

टीएमसी को कुल मिले वोटों में मुस्लिम वोट प्रतिशत 20 प्रतिशत था.
जीत चटोपाध्याय / एसओपीए इमेजिस / लाइटरॉकेट / गैटी इमेजिस
टीएमसी को कुल मिले वोटों में मुस्लिम वोट प्रतिशत 20 प्रतिशत था.
जीत चटोपाध्याय / एसओपीए इमेजिस / लाइटरॉकेट / गैटी इमेजिस

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की जीत अप्रत्याशित रूप से एक बड़ी जीत थी. टीएमसी की जीत से पहले आ रहे लेखों में दावा किया जा रहा था कि पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की कांटे की टक्कर है. भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में जबरदस्त होहल्ले वाला चुनाव अभियान चलाया था. टीएमसी की जीत के बाद लेखकों ने दावा किया कि बंगाली गर्व की भवना और असाधारणता या इक्सेप्शनलिज्म ने हिंदुत्व के रथ को रोक दिया.

लेकिन चुनाव अभियान और परिणाम की समीक्षा करने से पता चलता है कि राज्य में वह ताकतें मजबूत हो रही हैं जिन्होंने हिंदी पट्टी की राजनीति को आकार दिया है. हमें केवल राज्य के राजनीतिक इतिहास तक सीमित रह कर समीक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि इन परिणामों को देश में जो घटित हो रहा है उसके संदर्भ में समझने की कोशिश करनी चाहिए.

बीजेपी की बुनियादी रणनीति वही थी जो उसने अन्य राज्यों और लोक सभा चुनावों में इस्तेमाल की है यानी ऊंची जाति की लामबंदी. बंगाल में पार्टी ने हिंदू राष्ट्रवाद की भाषणबाजी का इस्तेमाल किया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आदिवासी, दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग का ध्रुवीकरण किया. इसके बावजूद भी यदि पश्चिम बंगाल का चुनाव हिंदी पट्टी से अलग रहा है तो इसके पीछे उसकी डेमोग्राफी या आबादी का स्वरूप है. इस राज्य में अन्य राज्यों की तुलना में मुस्लिम आबादी अच्छी-खासी है.

राज्य की आबादी के स्वरूप ने देश में आम हो चुके परिदृश्य को और घना बना दिया है यानी यहां मुस्लिम और गैर मुस्लिम वोटों में ठोस बटवारा है. मुस्लिम बहुसंख्यक वोट, जो कि राज्य का तकरीबन 30 प्रतिशत है, टीएमसी के हिस्से में आया. ऐसे में दो गैर मुसलमान उम्मीदवारों के बीच किसी भी कड़ी टक्कर में टीएमसी की जीत तय थी. यदि पश्चिम बंगाल की मुस्लिम आबादी उत्तर प्रदेश या बिहार की तरह होती, जहां यह क्रमशः 19 प्रतिशत और 16 प्रतिशत है, तो यहां का परिणाम भी अलग आता.

चुनाव में टीएमसी को बीजेपी से तकरीबन 10 प्रतिशत अधिक वोट मिला है. टीएमसी को 47.9 प्रतिशत और बीजेपी को 38.1 प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ. लेकिन यह बड़ा अंतर गैर मुस्लिम मतदाताओं के चयन की सही तस्वीर को उजागर नहीं करता. टीएमसी को मिले वोट का 20 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा मुसलमानों का है और मुसलमान मतदाताओं के 2 प्रतिशत से भी कम ने बीजेपी को वोट दिया है. तो इससे स्पष्ट होता है कि गैर मुस्लिम मतदाताओं में बीजेपी को टीएमसी से 8 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिला है.

हरतोष सिंह बल कारवां के कार्यकारी संपादक और वॉटर्स क्लोज ओवर अस : ए जर्नी अलॉन्ग द नर्मदा के लेखक हैं.

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