पुरोला हिंसा: आरएसएस की देवभूमि में मुसलमानों को नहीं स्थान

भगवा रंग में सराबोर देहरादून का बाजार. संघ परिवार की कल्पना में, उत्तराखंड एक पवित्र हिंदू भूमि, देवभूमि, है जिसमें मुसलमानों की आवाजाही और बसना प्रतिबंधित होगा. फोटो : अलीशान जाफरी
08 October, 2023

{एक}

उस रात उत्तराखंड की वादियां शांत थीं और पुरोला का छोटा सा शहर सो रहा था. लेकिन मोहम्मद अशरफ जाग रहा था. वह अपने घर के चारों ओर घूमता, बार-बार खिड़की से बाहर देखता. क्या लोग बाहर घूम रहे थे? क्या कोई हमला होने वाला था? वह पूरी रात निगरानी करता रहा और सोचता रहा कि क्या उस शहर से भाग जाना चाहिए जो लगभग 40 सालों से उसका घर रहा है. अशरफ ने हमें बताया, "मैं बहुत डर गया था. मेरे बच्चे रो रहे थे."

पुरोला में मुसलमानों की दुकानों पर पोस्टर लगा दिए गए थे जिसमें "सभी लव जिहादियों" को शहर छोड़ने की चेतावनी दी गई थी. इन पोस्टरों पर देवभूमि रक्षा अभियान नामक एक हिंदू संगठन का पता था. इसके तुरंत बाद हिंदू संगठनों ने एक विशाल रैली निकाली और दावा किया कि क्षेत्र में "लव जिहाद" का मामले बढ़ रहे हैं. उबेद खान और जीतेंद्र सैनी दो लड़कों पर पुरोला में एक नाबालिग हिंदू लड़की के अपहरण की कोशिश का आरोप लगाया गया. दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन यह मुसलमानों के खिलाफ लामबंदी का आधार बन गया.

29 मई को सैकड़ों लोग हिंदू जुलूस के लिए जुटे थे. उन्होंने “जय श्री राम” के नारे लगाते हुए पूरे शहर में जुलूस निकाला. शहर के बाजार बंद कर दिए गए थे. अशरफ का तीन पीढ़ी पुराना कपड़े का कारोबार भी बंद था. अशरफ ने कहा कि रैली जानबूझ कर उनके घर के पास से गुजरी. उनका परिवार पुरोला में सबसे पुराने और सबसे अच्छी तरह से बसे मुस्लिम परिवारों में से एक है. उनके पिता 1978 में यहां बस गए थे और अशरफ का जन्म भी यहीं हुआ. उन्होंने कहा, “वे मेरे गेट के सामने आए और गालियां देने लगे.” उन्होंने बताया कि रैली के दौरान भीड़ नारे लगा रही थी- “लव जिहादियों को भगाओ. मुसलमानों को भगाओ. मुस्लिम शासन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.” लेकिन एक नारा उभरकर सामने आया, “मुस्लिम मुक्त उत्तराखंड चाहिए.” अशरफ के तीन छोटे बच्चों ने अपनी खिड़की से इस रैली को देखा. “उनके जाने के बाद मेरे बच्चे मुझसे पूछ रहे थे, ‘पापा, वे हमें गाली क्यों दे रहे थे?’ मेरे पास कोई जवाब नहीं था. मेरे 9 साल के बच्चे ने मुझसे पूछा, 'पापा, क्या आपने कुछ किया है?’”

तनाव बढ़ने पर करीब चालीस मुस्लिम परिवार शहर छोड़ कर चले गए. लेकिन अशरफ ने यहीं रुकने का फैसला किया. “मैं भला क्यों जाऊं?” वह कहते हैं. “मेरे पास जो कुछ भी है वह यहीं है. यह मेरा घर है. मैं और कहां जाऊंगा?” उन्होंने आगे कहा, "मैंने सोचा कि यह मेरी जन्मभूमि और कर्मभूमि है. अब यहां से मैं कफन में लिपटा ही जाऊंगा. चाहे वे मेरा घर जला दें या मेरी दुकान जला दें, या मुझे मार डालें, मैं यहीं रहूंगा.”

बहुत कम लोगों ने ऐसी हिम्मत दिखाई. भारतीय जनता पार्टी, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के उत्तरकाशी जिला अध्यक्ष जाहिद मलिक की पुरोला में एक कपड़े की दुकान थी. “अगर मुझ जैसे बीजेपी के जिला प्रमुख को यह झेलना पड़ रहा है, तो आम जनता का क्या हाल होगा?” मलिक का कहना था. उन्होंने कहा कि मुसलमानों को छोड़ कर चले जाने की खुली धमकी के अलावा उन्हें व्यक्तिगत रूप से भी धमकाया गया. “तुम्हें यहां से खदेड़ देंगे. यह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा. तुम जाने वाले पहले आदमी होंगे,'' मलिक ने कहा कि हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों के लोगों ने उन्हें बताया था. "हमें जो धमकियां दी गईं उनको मैं दोहरा भी नहीं सकता." मलिक ने हमें बताया, "वे एकदम से हमारा नाम भूल गए. उन्हें हम बस ​जिहादी नजर आने लगे. सभी मुसलमानों को जिहादी बना दिया गया."

अशरफ ने हमें बताया कि मुसलमानों के खिलाफ लामबंदी खुद-ब-खुद नहीं थी. इसकी साजिश रची गई थी और खुला उकसावा था. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके प्रमुख घटकों का जिक्र करते हुए कहा कि आरोप लगाने वाले लोग "आरएसएस, वीएचपी, एबीवीपी, बजरंग दल और स्वयंभू संतों" लोग थे. यह अभियान तेजी से फैल गया. बाद में पुरोला की तरह नेतवार, चिन्यालीसौड़, नौगांव, बर्नीगाड और उत्तरकाशी के कुछ अन्य कस्बों में सामूहिक रैलियां हुईं. जब ये रैलियां हुईं, तब पुरोला की लामबंदी के समर्थन में घाटी भर के बाजार बंद थे.

पुरोला में जो कुछ शुरू हुआ वह कई मायनों में जातीय सफाए की कोशिश थी. हालांकि पुरोला ने मीडिया का बहुत ध्यान खींचा है लेकिन वहां देखी गई घटनाएं नई या अलग-थलग नहीं हैं. लगभग इसी पैटर्न को 2018 में पास के नौगांव नामक कस्बे में और 2017 में बद्रीनाथ में छोटे पैमाने पर सफलतापूर्वक लागू किया गया था. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हमें बताया कि उत्तराखंड के कम से कम तीन अन्य शहरों, घनसाली, अगस्त्यमुनि और सतपुली में भी इसकी कोशिश कही गई थी. पुरोला के बाद से मुसलमानों को बाहर निकालने की ऐसी ही कोशिशें बड़कोट, उत्तरकाशी और हल्द्वानी में भी देखी गई हैं.

मलिक ने हमें बताया, "उन्होंने इसे पुरोला में किया, अब वे इसे पूरे उत्तरकाशी जिले में करने की कोशिश करेंगे और अगर यह उत्तरकाशी में होता है, तो इसे और भी आगे बढ़ाया जाएगा." उन्होंने कहा, ''जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तो यह सभी समुदायों के लिए था. अब पिछले पांच सालों में मैं हर किसी को इसे देवभूमि कहते हुए सुन रहा हूं. संदेश यह है कि उत्तराखंड सिर्फ एक पक्ष का है. मेरी ही पार्टी के हिंदू यह भाषा बोल रहे हैं.”

मलिक सही हैं. कई मायनों में, पुरोला में जो हुआ वह उत्तराखंड को एक पवित्र हिंदू भूमि के रूप में पुनः स्थापित करने की एक बड़ी और ऐतिहासिक हिंदू दक्षिणपंथी परियोजना का एक लक्षण है. पहाड़ियों के पार, होटल और रेस्तरां गर्व से अपना नाम देवभूमि के नाम पर रखते हैं. जैसे ही कोई राजधानी देहरादून में प्रवेश करता है, “देवभूमि उत्तराखंड में आपका स्वागत है” करता बोर्ड दिखाई देता है. राज्य में प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल हैं, जिन्हें छोटा चार धाम कहा जाता है - बद्रीनाथ , केदारनाथ , गंगोत्री और यमुनोत्री - और हरिद्वार, जो हिंदुओं के लिए पवित्र माना जाने वाला शहर है. उत्तराखंड सरकार की अपनी वेबसाइट घोषणा करती है, "यह वास्तव में भगवान की भूमि (देवभूमि) है." हिंदू पवित्रता की इस छवि को प्रधानमंत्री नरेन्द्र ने भी बल दिया है. मोदी की केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्राएं और उन पर लगातार ध्यान केंद्रित करना इसकी एक मिसाल है. टीकाकरण संख्या जैसी बात पर ट्वीट करते हुए भी मोदी ने लिखा, “देवभूमि के लोगों को बहुत-बहुत बधाई.” हालांकि देवभूमि शब्द नया नहीं है, हाल के सालों में इसे तेजी से आगे बढ़ाया गया है और एक बहिष्कृत पहचान में बदल दिया गया है जिसमें गैर-हिंदुओं के लिए बहुत कम जगह है. मलिक ने कहा, ''उनकी सोच है कि देवभूमि हमारी है और मुसलमानों को यहां से हटाया जाना चाहिए.'' 

मोहम्मद अशरफ, जिन्होंने शहर के मुस्लिम निवासियों के उलट हिंदू लामबंदी के दौरान पुरोला छोड़ने से इनकार कर दिया था. फोटो : तुशा मित्तल

पहाड़ी पहचान की नुमांदगी को लेकर बने उत्तराखंड राज्य के लोगों ने पिछले दशक में अपनी पहचान को एक हिंदू पवित्र स्थान में तब्दील होते देखा है. यह नई संकीर्ण धार्मिक कल्पना मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को बाहरी लोगों के रूप में पेश करती है. कई इंटरव्यू में, हिंदुत्व समूहों के सदस्यों ने ऐसी विशेष भूमि की आवश्यकता के बारे में बात की. मुसलमानों के पास मक्का है, उन्होंने दावा किया और ईसाइयों के पास वेटिकन सिटी है. उनकी कल्पना में उत्तराखंड ऐसी परियोजना का स्वाभाविक घर है. एक देवभूमि है जिसमें मुसलमानों का आना-जाना और बसना प्रतिबंधित होगा.

यह अभियान गति पकड़ रहा है इस आधार पर कि मुसलमान हिंदू पवित्र भूमि की पवित्रता के लिए खतरा हैं. पुरोला के बाद, एक नए हिंदू दक्षिणपंथी समूह, हिंदू जागृति संगठन का बड़कोट कस्बे में उदय हुआ. इस संगठन का नेतृत्व केशव गिरि महाराज नामक लगभग बीस साल का लड़का करता है. स्थानीय लोग उसे वाराणसी के जूना अखाड़ा का बताते हैं. अपने फेसबुक प्रोफाइल पर वह आरएसएस से अपनी संबद्धता का दावा करता है. 24 मई को गिरि ने बड़कोट सब डिविजनल मजिस्ट्रेट को एक पत्र प्रस्तुत किया जिसमें विशेष रूप से मांग की गई कि चार धाम स्थलों के पचास किलोमीटर के भीतर मुसलमानों को प्रतिबंधित किया जाए. उन्होंने पत्र मुख्यमंत्री को भेजने को कहा.

इसी तरह की मांग हमारे साक्षात्कारों में भी गूंजती रही. हमने उत्तराखंड में हिंदू राष्ट्रवादी स्पेक्ट्रम के बीस से अधिक लोगों से बात की, जिनमें बीजेपी, आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, बजरंग दल और नए हिंदू कट्टरपंथी संगठन जिनका इस क्षेत्र में काफी प्रभाव है, के सदस्य और नेता शामिल हैं. इन सभी ने उत्तराखंड में हिंदू धार्मिक स्थलों के पास मुसलमानों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की. लेकिन ये सिर्फ उकसावा था. कई लोगों के लिए, लक्ष्य राज्य से मुसलमानों का धीमी गति से सफ़ाया करना प्रतीत हुआ. पुरोला ने स्पष्ट कर दिया है कि क्या संभव है.

शुद्ध देवभूमि की कहानी "भूमि जिहाद", "लव जिहाद", "मजार जिहाद" और हाल ही में "व्यापार जिहाद" के बारे में हिंदुत्वादी षड्यंत्र सिद्धांतों पर निर्भर है. यह निराधार दावा किया जाता है कि उत्तराखंड में मुस्लिम, जो राज्य की आबादी का 13.5 प्रतिशत हैं, जमीन पर कब्जा करके, हिंदू औरतों को बलगरा कर, मजार बना कर और स्थानीय कारोबार पर कब्जा जमा कर हिंदुओं पर हावी होना चाहते हैं.

इस बीच राज्य पुलिस अक्सर ऐसी लामबंदियों को नजरंदाज करती है. इन संगठनों द्वारा जताई गई आशंकाओं को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बयानों और नीतियों ने और पुख्ता कर दिया है, जिन्होंने यह भी घोषणा की है कि राज्य में "लव जिहाद" और "भूमि जिहाद" को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. 10 जून को पुरोला अभियान के चरम पर, धामी ने इसे विश्वसनीयता प्रदान की. उन्होंने कहा, ''लोग इस तरह के अपराध के खिलाफ और एक साजिश के तहत लव जिहाद को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ सामने आ रहे हैं.'' उन्होंने कहा कि ''उत्तराखंड आने वाले लोग कौन हैं, इसकी जांच करने के लिए'' सत्यापन अभियान चलाया जाएगा. इससे पहले अप्रैल में उन्होंने कहा था, "हमारे राज्य के धर्म और संस्कृति को संरक्षित किया जाना चाहिए."

धामी के बयान और कार्य हिंदू दक्षिणपंथी परियोजना के अनुरूप हैं. जबकि संघ परिवार ने देश के अन्य हिस्सों में सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा दिया है. उत्तराखंड कुछ बड़े प्रयोग के रूप में खड़ा है यानी एक सूक्ष्म मॉडल, एक विशेष रूप से हिंदू भूमि, सच्चे अर्थों में एक हिंदू राष्ट्र बनाने की प्रयोगशाला.

पुरोला के छोटे लेकिन हलचल भरे बाजार में, रमेश थपियाल एक साधारण दवा की दुकान चलाते हैं. माथे पर तिलक लगाए एक दुबला-पतला, अधेड़ उम्र का सांवला आदमी, जिसे एक साधारण फार्मासिस्ट समझने की गलती करना आसान होगा. लेकिन थपियाल पुरोला में हिंदू अधिकार के एक प्रमुख व्यक्ति हैं, जो वीएचपी का हिस्सा हैं और वर्तमान में बजरंग दल की पुरोला ब्लॉक इकाई के प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं. पिछले दो—तीन सालों में बजरंग दल ने शहर में अपनी पकड़ मजबूत की है. थपियाल ने पुरोला में सामूहिक रैलियों को क्षेत्र में समूह का तीसरा सफल आंदोलन बताया. पिछले दो आंदोलन ईसाई समुदायों के ख़िलाफ थे.

बीजेपी जिला कार्य समिति और बजरंग दल की पुरोला इकाई के सदस्य राम पवार ने मुझसे कहा, "शुरुआत में, हम सब कुछ किया करते थे, लेकिन राजनीतिक लाइन में कुछ काम वर्जित हैं या संवैधानिक नहीं हैं और लोगों को चुनाव लड़ना पड़ता है. तो, यह निर्णय लिया गया कि अगर आप हिंदुओं के लिए काम करना चाहते हैं, तो अन्य मोर्चा होनी चाहिए. काम का बंटवारा करना होगा. मारना, डराना, धमकाने का काम. हमारे जिला प्रमुख ने फैसला किया कि हम यह काम नहीं करेंगे. तय हुआ कि विहिप और बजरंग दल की तरह अन्य संगठन भी बनाए जाएं जो अपने मिशन पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और हिंदू आस्था के लिए काम कर सकते हैं. इन समूहों में बीजेपी के भीतर से भी लोगों को भेजा गया था.'' उन्होंने आगे कहा, “उनके स्पेशलिस्ट होते है, थोड़े दबंग किस्म के होते हैं.”

संघ परिवार का इस क्षेत्र में लगभग अस्सी सालों से प्रभाव रहा है लेकिन पिछले पांच सालों में इसमें तेजी देखी गई है. आरएसएस के जिन पदाधिकारियों से हमने बात की, उनके अनुसार यह संगठन राज्य में पहली बार 1940 में हरिद्वार में उभरा, उसके बाद 1941 में नैनीताल में. संघ सह प्रान्त प्रचार प्रमुख संजय ने हमें बताया कि संघ की वर्तमान में उत्तराखंड के दो हजार गांवों में उपस्थिति है. उन्होंने कहा, 2025 में संघ की शताब्दी तक, संगठन का लक्ष्य ग्रामीण भारत में एक लाख गांवों तक "सीधे पहुंचने" के लक्ष्य के साथ विस्तार करना है. इसके हिस्से के रूप में, उत्तराखंड में भी एक महत्वपूर्ण विस्तार की योजना बनाई गई है. पांच हजार गांवों तक पहुंचने का लक्ष्य है.

वर्तमान में, संघ उत्तराखंड में चौदह सौ शाखाएं चलाता है, अगले दो वर्षों में इसे दोगुना करने की योजना है. संघ की आंतरिक प्रणाली के तहत उत्तराखंड को 26 जिलों में बांटा गया है. इन्हें आगे 78 नगर और 128 खंड, शहरी और ग्रामीण इलाकों में विभाजित किया गया है. “हमारा लक्ष्य है कि अगले दो वर्षों में इन सभी में इलाकों में एक संघ प्रचारक हो,” संजय ने कहा. उन्होंने कहा कि हाल ही में संपन्न शिविर में चालीस नए प्रचारकों या पूर्णकालिक विचारकों की पहचान की गई थी.

पुरोला शहर जहां हिंदू समूहों ने रैलियां आयोजित किया और सभी मुसलमानों को शहर छोड़ने की धमकी दी. हालांकि पुरोला ने मीडिया का बहुत ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन वहां देखी गई घटनाएं नई या अलग-थलग नहीं हैं. इसी तर्ज पर आस-पास के शहरों में सफलतापूर्वक इसे लागू किया गया था. फोटो : तुषा मित्तल

पुरोला बाजार से लगभग एक किलोमीटर ऊपर की ओर, कस्बे का आरएसएस कार्यालय 25 साल पहले बनाया गया था. पुरोला जिला सचिव गोविंद रावत ने हमें बताया कि यह क्षेत्र में 33 शाखाएं चलाता है और लगभग सभी पंचायतों में नियमित बैठकें हो रही हैं.

रावत ने कहा, "हम जनता को जागृत करते हैं कि दूसरे धर्मों के लोग यहां आ रहे हैं, उन्हें उनके जाल में नहीं फंसना चाहिए. यहां विभिन्न प्रकार के जिहाद चल रहे हैं." उन्होंने कहा कि इस बारे में बात करने के लिए गांव स्तर पर छोटी-छोटी सभाएं आयोजित की जाती हैं. गोविंद ने कहा, ''हम संदेश देते हैं कि हम देवभूमि के लोग हैं. और इसे देवभूमि ही रहने दो." पास में बैठे एक अन्य आरएसएस कार्यकर्ता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, “हर जगह घटनाएं हो रही हैं. लव-जिहाद के कारण हत्याएं हो रही हैं. जमीन जिहाद से कब्जा हो रहा है. अगर लोगों को जागरूक किया जाए तो इसे रोका जा सकता है, लोगों को जगाने के लिए उदाहरण दिए जाते हैं.”

संजय के मुताबिक, ''जन जागरण'' ही आरएसएस के काम का केंद्रीय फोकस है. उन्होंने कहा कि पुरोला इस बात का सबूत है कि इस तरह के संदेश फल दे रहे हैं. “यह हमारे जन जागरण की वजह से है कि पुरोला घटना को समय रहते पकड़ लिया गया,'' उन्होंने कहा. "वह हमारे परिचित लोगों में से एक था जिसने एक लड़की को दो मुस्लिम पुरुषों के साथ जाते देखा था." यह एक झूठा दावा है. दोनों आरोपियों में से एक हिंदू था और पीड़िता के परिवार ने मीडिया को बताया कि अपराध का कोई धार्मिक कोण नहीं था. फिर भी, संजय ने जोर देकर कहा कि आरएसएस के एक परिचित व्यक्ति ने लड़की के अपहरण के प्रयास को विफल कर दिया था. उन्होंने इसे देशभर में अनुकरणीय मॉडल बताया. संजय ने कहा, ''पूरे देश में सभी माताएं-बहनें सुरक्षित रहें और अगर कोई अप्रिय घटना होती है तो हमें जवाब देना चाहिए. हिंदुओं को जवाब देना चाहिए.” कुछ देर रुकने के बाद उन्होंने कहा, "हर भारतीय को जवाब देना चाहिए."

कई हिंदूवादी नेताओं के लिए पुरोला की रैलियां एक करारा जवाब थीं. थपियाल ने कहा, ''पुरोला ने राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा संदेश भेजा है. यह एक बड़ा संकेत है कि हमारा छोटा सा कदम इतना सफल रहा. इसने कई हिंदुओं को जागृत किया और दिखाया कि हम यहां एक समुदाय के बढ़ते प्रभुत्व का मुकाबला करेंगे, ताकि हमारी देवभूमि की शांतिपूर्ण घाटियां शांतिपूर्ण ही रहें. अगर ये घाटियां उबलने लगें तो पूरा देश उबल जाएगा.”

कई मुस्लिम निवासियों ने हमें बताया कि जब प्रदर्शनकारी मुस्लिम दुकानों के बैनर और बोर्ड तोड़ने के लिए आगे बढ़े, तब भी पुलिस खड़ी होकर देखती रही. पुरोला में कपड़े की दुकान करने वाले 35 साल के मालिक सलीम ने बाद में पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठाया. “मेरी दुकान के सामने सीसीटीवी कैमरे थे,” उन्होंने कहा. “आप किसी को पोस्टर लगाते हुए देख सकते हैं. पूरे पुरोला में सीसीटीवी लगे हैं. पुलिस चाहे तो इन सभी लोगों को गिरफ्तार कर सकती है.” सलीम को अपने पैंतीस साल पुराने घर को दो बैग कपड़ों और जेब में 50 रुपए के साथ छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

पुरोला की नफरती लामबंदी में एक और नाम दर्शन भारती का है. भारती एक स्वयंभू संत और देव भूमि रक्षा अभियान का संस्थापक है. मुस्लिमों से शहर छोड़ने की मांग वाले पोस्टर पर इसी संगठन का नाम है. जब हम उनसे देहरादून में उनके घर पर मिले, तो उन्होंने राज्य के पुलिस बल के प्रमुख के साथ हुई बातचीत का वर्णन किया. 7 जून को, पुरोला में तनाव चरम पर होने पर, भारती ने उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार से मुलाकात की. "मैंने उनसे कहा, 'आप शांति बनाए रखें और हम शांति बनाए रखेंगे. आप बल का प्रयोग नहीं करेंगे और हम भी नहीं करेंगे. आप प्रतिक्रिया न करें, क्योंकि जनता नाराज हो जाएगी. पुलिस अपनी जगह और जनता अपनी जगह रहे, नहीं तो जनता प्रतिक्रिया देगी.'' जब भारती ने डीजीपी से मुलाकात की तस्वीरें पोस्ट कीं, तो पुरोला पुलिस ने शहर में अशांति के लिए "अज्ञात लोगों" के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. कुमार ने इस बात से इनकार किया कि यह बातचीत इस तरह से हुई थी. कुमार ने कहा, ''वह बकवास कर रहे हैं. उन्हें स्पष्ट रूप से बताया गया था कि जो कोई भी शांति भंग करने की कोशिश करेगा उसे बख्शा नहीं जाएगा.”

धुर दक्षिणपंथी संगठनों ने भी घोषणा की थी कि वे 15 जून को एक हिंदू महापंचायत आयोजित करेंगे. पिछली महापंचायतों में हिंदू दक्षिणपं​थियों ने मुसलमानों के नरसंहार का खुला आह्वान किया था. पुरोला में मुसलमानों को जबरन बेदखल करने के बारे में सार्वजनिक आक्रोश के बाद, स्थानीय प्रशासन ने कदम उठाया और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी. नागरिक अधिकार समूहों द्वारा उत्तराखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के बाद राज्य प्रशासन ने भी महापंचायत की अनुमति देने से इनकार कर दिया. भारती ने कहा कि इसके बाद उन्हें तीन दिनों के लिए घर में नजरबंद कर दिया गया. उन्होंने कहा, ''हमारी महापंचायत लोगों को लव जिहाद, भूमि जिहाद और व्यापार जिहाद के खिलाफ जागृत करने के लिए थी.'' उन्होंने कहा, ''बड़े पैमाने पर एक महापंचायत होगी. सरकार या कोई और इसे रोक नहीं पाएगा. हो सकता है कि हम नाम बदल दें और ऐसा करें, लेकिन हम ऐसा जरूर करेंगे.''

भारती को जिस नरमी का सामना करना पड़ा, उसके उलट, पुरोला के मुसलमानों ने कहा कि जून के पहले सप्ताह तक, उनकी दुकानों पर धमकी भरे पोस्टर चिपकाए जाने के बाद भी, उन्हें प्रशासन से कोई सहारा नहीं मिला था. 5 जून को, अशरफ एक पत्र के साथ उपविभागीय मजिस्ट्रेट, देवेन्द्र शर्मा के पास पहुंचे. “हमने कहा कि हम यहां केवल पांच या छह मुस्लिम परिवार बचे हैं. हमारी दुकानें 29 मई से बंद हैं और हमें घाटा हो रहा है. हमने अपनी दुकानें फिर से खोलने के लिए पुलिस सुरक्षा मांगी,'' अशरफ ने हमें बताया.

उन्होंने एसडीएम के व्यवहार को रूखा और असंवेदनशील बताया. "जैसे ही हमने कार्यालय में प्रवेश करने की कोशिश की, मैंने कहा, 'सर हम आपको एक पत्र देना चाहते हैं.' उन्होंने कहा, 'कौन सा पत्र?' मैंने कहा, 'हम मुस्लिम समुदाय से हैं, हम यहां पुलिस सुरक्षा मांगने आए हैं.' उन्होंने एक जूनियर की ओर इशारा करते हुए कहा, 'ठीक है, इसे पत्र दे दो' और आगे बढ़ गए.' एसडीएम शहर का सर्वोच्च अधिकारी होता है. अशरफ ने कहा, ''उनके सभी बराबर होने चाहिए. उन्हें हमें कुछ आश्वासन देना चाहिए था कि हम आपके साथ हैं, कुछ नहीं होगा." शर्मा को हमने कई फोन कॉल किए, जिनका उन्होंने जवाब नहीं दिया.

अशरफ ने कहा कि जूनियर अधिकारी ने उन्हें आश्वासन दिया कि पुरोला पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस अधिकारी खजान सिंह चौहान उनकी दुकानों की सुरक्षा के लिए कुछ पुलिस अधिकारियों को लगाएंगे. दो घंटे बाद चौहान ने अशरफ के घर एक पुलिसकर्मी भेजकर उन्हें थाने बुलाया. अशरफ ने कहा कि उन्हें बताया गया, "आपकी दुकान नहीं खुलेगी." जब उन्होंने पूछा कि क्यों, तो अशरफ मुताबिक एसएचओ ने आगे कहा, “जनता के बीच आपको लेकर बहुत विरोध है. आप लोगों को इकट्ठा करते हैं, आप उन्हें अपने घर में नमाज़ पढ़ाते हैं, आप बाहर से लोगों को बुलाते हैं. लोग आपके ख़िलाफ़ हैं और आपकी दुकान पर हमला हो सकता है.'' अशरफ स्तब्ध रह गए. चौहान ने इस बात से इनकार किया कि ऐसा कुछ हुआ था. 

पुरोला में धारा 144 के बीच हिंदू महापंचायत को रोकने के लिए तैनात पुलिस. पिछली महापंचायतों में हिंदू राष्ट्रवादियों ने मुसलमानों के नरसंहार का खुला आह्वान किया था. एएनआई फोटो

पुरोला में लगभग 45 निवासी मुस्लिम परिवार और लगभग 300 प्रवासी मुस्लिम मजदूर थे जो काम के लिए शहर में आए थे. शहर में कोई मस्जिद नहीं है, इसलिए वे धार्मिक अवसरों के दौरान दो स्थानों पर सामूहिक रूप से नमाज अदा करते हैं. अशरफ़ की छत एक थी, जहां करीब डेढ़ सौ लोग इकट्ठा होते थे. वे पिछले आठ सालों से ऐसा कर रहे थे. अशरफ ने कहा, ''हम तो यहां तक कि पर्दे लगाकर नमाज पढ़ते थे.'' उन्होंने कहा, हालिया रमज़ान के दौरान, उन्होंने एक निर्दिष्ट नमाज़ स्थल के रूप में एक महीने के लिए एक जगह किराए पर ली.

इस एकजुटता ने हिंदू समूहों को परेशान कर दिया, जिन्होंने आरोप लगाया कि एक धार्मिक साजिश चल रही थी, और कई लोगों ने दावा किया कि मुसलमानों को संभवतः अरब देशों से "अंतरराष्ट्रीय फंडिंग" मिल रही थी. यह दावा पुरोला में बीजेपी नेताओं ने हमसे दोहराया. अशरफ ने कहा, "वे कहते हैं कि यहां मदरसों और मुस्लिम संगठनों के जरिए बाहरी फंडिंग होती है. उन्हें कोई और बुरी चीज़ नहीं मिली, इसलिए उन्होंने हमें नमाज़ पर निशाना बनाया." अशरफ ने कहा कि उन्हें विशेष रूप से अलग कर दिया गया क्योंकि नमाज उनके घर पर आयोजित की गई थी. उन्हें एक तरह के सरगना के रूप में देखा गया था.

अशरफ ने बोलते समय कंधे उचकाए, उसकी आवाज धीमी थी, और उसमें बेदिली का भाव था. उन्होंने हमसे कहा, "यहां रहने के लिए मुझे एक चीज़ बदलनी होगी. उन्हें नमाज़ से दिक्कत है. हम इसे बदल देंगे.” उन्होंने अब इस बात पर सहमति जताई है कि पुरोला में मुसलमान सामूहिक नमाज नहीं पढ़ेंगे. यह उस शहर में सुरक्षित रह पाने की कीमत थी जो उनका जन्मस्थान है. जून के दूसरे सप्ताह में, प्रशासन द्वारा एसडीएम की उपस्थिति में बुलाई गई एक शांति बैठक में, हिंदू समूहों ने विशेष रूप से सार्वजनिक, सामूहिक नमाज का विरोध किया. उस बैठक में अशरफ इसे बंद करने पर सहमत हो गए. जब अशरफ ने हिंदू समूहों की मांग को ध्यान में रखते हुए यह घोषणा की, तो उन्होंने कहा कि प्रशासन से किसी ने भी यह कहने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया कि मुसलमानों को नमाज अदा करने का हक होना चाहिए.

ईद से एक दिन पहले, अशरफ उन लोगों में शामिल थे जिन्हें प्रशासन ने ईद की तैयारियों के बारे में जानकारी लेने के लिए बुलाया था. उनसे कहा गया कि वे निजी तौर पर नमाज पढ़ सकते हैं लेकिन सोशल मीडिया पर ईद की कुर्बानी की कोई तस्वीर अपलोड नहीं की जानी चाहिए. लेकिन अशरफ ने पहले ही शहर की नई हकीकत के सामने घुटने टेक दिए थे. यही कहानी बड़कोट में सामने आई, जहां हिंदू समूहों ने पुलिस की मौजूदगी में मांग की कि मुसलमानों को सामूहिक नमाज अदा करने की अनुमति नहीं दी जाए. इसके चलते जो लोग बचे थे उनमें से कई को शहर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. बैठक में मौजूद बड़कोट के एक मुस्लिम निवासी ने हमें बताया, "उन्होंने कहा कि यहां कभी नमाज नहीं होगी." इस मुलाकात के तीन दिन बाद वह अपने परिवार के साथ शहर छोड़कर चले गए. “प्रशासन कह रहा था कि हम वहां हैं लेकिन इसका कोई मतलब नहीं था. ये लोग पुलिस स्टेशन और तहसील के सामने बैठे हैं और खुलेआम नफरत भरे भाषण दे रहे हैं, हम पुलिस पर कैसे भरोसा करें?”

पुरोला और बड़कोट में ईद के दिन कई दुकानों के शटर गिरे हुए थे. लगभग सभी दुकानें मुसलमानों की थीं. अशरफ जल्दी उठे और नमाज के लिए 33 किलोमीटर की दूरी तय कर मैदानी इलाके मोरी शहर पहुंचे. पहली बार, उन्होंने एक ऐसे शहर में नमाज पढ़ी जो उनका अपना नहीं था.

{दो}

उत्तराखंड से मुसलमानों को बाहर करने का प्रयास हिंदू दक्षिणपंथ की एक शताब्दी पुरानी परियोजना है. 1900 की शुरुआत में, हिंदू महासभा के संस्थापक और आरएसएस के वैचारिक पूर्ववर्ती मदन मोहन मालवीय ने गंगा सभा की स्थापना की सभा. समूह शुरू में गंगा पर बांध बनाने के ब्रिटिश प्रयासों के खिलाफ लड़ रहा था, लेकिन जल्द ही उसका गुस्सा धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो गया. 1932 में, जब हरिद्वार की नगर परिषद की स्थापना हुई, तो अंग्रेजों और मालवीय के बीच चर्चा के आधार पर, ऐसे उपनियम बनाए गए जो हर की पौडी के पास गैर-हिंदुओं को प्रतिबंधित करते थे.

हरिद्वार के धार्मिक स्थलों पर अभी भी गंगा सभा का बोलबाला है. उज्जवल पंडित बीजेपी की युवा शाखा के पूर्व उपाध्यक्ष और गंगा सेवक दल के सचिव हैं. यह गंगा सभा का हिस्सा है. “जब हरिद्वार नगर पालिका का गठन किया गया था, तो इस स्थान की पवित्रता और इसकी धार्मिक परंपराओं को ध्यान में रखते हुए, एक कानून बनाया गया था कि हर की पौड़ी के उत्तर और दक्षिण में चार किलोमीटर के भीतर किसी भी शराब, सिगरेट, मांस की खपत या बिक्री की अनुमति नहीं दी जाएगी,'' पंडित ने हमें बताया. “इसके अलावा, कोई भी गैर-हिंदू यहां प्रवेश नहीं कर सकता है और अगर वह किसी सरकारी नौकरी पर हो तो उसे सूर्यास्त से पहले यहां से चले जाना होता है. गैर-हिंदू यहां नहीं बस सकते, कोई स्थापित व्यवसाय नहीं चला सकते या घर नहीं खरीद सकते.'' पंडित ने दावा किया कि पिछले कुछ सालों में, जैसे-जैसे हरिद्वार का विकास हुआ, उप-कानून को आमतौर पर कम लागू किया गया. उन्होंने कहा कि हाल ही में, जो एक "योजनाबद्ध रणनीति" प्रतीत होती है, कुछ गैर-हिंदू यहां आए और इस क्षेत्र में मजदूर, सब्जी विक्रेता और बढ़ई के रूप में काम करना शुरू कर दिया है, और क्षेत्र की "शुद्धता को नुकसान पहुंचा रहे हैं". 

जुलाई 1927 में बैंगलोर में गाय के साथ खड़े एमके गांधी और मदन मोहन मालवीय. मालवीय ने अंग्रेजों के साथ पहले कानून पर बातचीत की, जिसमें हरिद्वार के कुछ हिस्सों से गैर-हिंदुओं को बाहर रखा गया. दिनोदिया फोटोज

गंगा सेवक दल वर्तमान में उप-कानूनों को लागू करने के लिए एक टास्क फोर्स के रूप में काम करता है, जो "धर्म विरोधी गतिविधि पर नज़र रखने" और उल्लंघन करने वालों के बारे में पुलिस को सचेत करने के लिए काम करता है. उन्होंने कहा, जब लोगों ने "इस क्षेत्र पर अतिक्रमण करना शुरू कर दिया", तो इसने उन्हें गैर-हिंदुओं की पहचान करने के लिए एक अभियान शुरू करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने अनुमान लगाया कि उन्होंने हाल ही में कम से कम बारह लोगों को पुलिस को सौंपा था, जिनमें से कई ने दावा किया था कि उन्होंने अपनी मुस्लिम पहचान छिपाई थी और हिंदू नाम रखे थे. उन्होंने पुलिस को उन हिंदू दुकान मालिकों के बारे में भी सचेत किया था जिन्होंने मुसलमानों को जगह किराए पर दी थी. नाम न छापने की शर्त पर बोलते हुए, हरिद्वार पुलिस के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि गैर-हिंदुओं पर प्रतिबंधों को रेखांकित करने वाले नगरपालिका उपनियम मौजूद हैं. उनके अनुसार मुख्य प्रतिबंध यह है कि गैर-हिन्दू हर की  पौडी क्षेत्र में रात में नहीं रह सकते. उन्होंने कहा कि पुलिस को ऐसी गैर-हिंदू उपस्थिति की शिकायतें मिलती हैं. उन्होंने कहा, ''हम रात में रुकने वालों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं.''

हरिद्वार के इस संस्करण को हिंदू राष्ट्रवादी संगठन और यहां तक कि बीजेपी के कुछ बड़े नेता भी पूरे उत्तराखंड में लागू करना चाहते हैं. बीजेपी नेता और बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय, "भूमि जिहाद" के खिलाफ बोलने वाले राज्य के पहले अधिकारियों में से एक थे. अजय ने हमें बताया, "पहाड़ी इलाकों में स्थानीय लोग पलायन कर रहे हैं, लेकिन एक खास समुदाय की आबादी बढ़ रही है.उत्तराखंड हिंदुओं के लिए बहुत पवित्र है और इस भूमि की पवित्रता बनाए रखी जानी चाहिए. राज्य के विशेष धार्मिक एवं सांस्कृतिक चरित्र को कायम रखा जाना चाहिए. हमारे धार्मिक स्थलों के आसपास एक अधिसूचित क्षेत्र होना चाहिए और गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर कुछ प्रतिबंध होने चाहिए.''

पंडित का जनसांख्यिकी परिवर्तन और भूमि के नुकसान के बारे में चिंता की व्याख्या उन भव्य मुस्लिम साजिशों की तुलना में अधिक सरल है, जिनका वह उल्लेख करते हैं. उत्तराखंड का अधिकांश भाग पहाड़ी है, यहां कृषि योग्य भूमि सीमित है और उद्योगों की संभावनाएं बहुत कम हैं. रोजगार के रास्ते हमेशा न्यूनतम रहे, उच्च जाति के राज्य के अधिकांश युवा भारतीय सेना में शामिल होते थे या काम के लिए कहीं और पलायन करते थे. पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए आंदोलन खुद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछड़ी जातियों के लिए शिक्षा और रोजगार में कोटा लागू करने के प्रयास से प्रेरित हुआ था, यह कदम संघ का था. परिवार ने पूरे उपमहाद्वीप में विरोध किया था.

लेकिन मुसलमानों ने भी राज्य के निर्माण के संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई. मलिक ने हमें बताया, "हम राज्य बनने से पहले से ही उत्तराखंड में हैं, हमने उत्तराखंड आंदोलन में भूमिका निभाई थी. हमारे परिवार झंडे लेकर रैलियां करते थे. जब हम छोटे थे तब भी हम इसमें शामिल होते थे. हमने विरोध किया, मैंने झंडे उठाए, मैंने भूख हड़ताल भी की है. मेरे पूर्वजों ने इस भूमि के लिए भूख हड़ताल की है और आज हमें यहां से ऐसे निकाला जा रहा है जैसे आप दूध से मक्खियां निकालते हैं."

नए राज्य के निर्माण के बाद रोजगार के अवसर कम रहे और छोटे मुस्लिम समुदायों ने छोटे-मोटे काम, चिनाई, बाल-काटने, बिजली का काम, पेंटिंग या सब्जी बेचने का काम किया. ये ऐसे काम थे जिनसे राज्य की उच्च जाति की अधिकांश आबादी परहेज करती थी. इसे मुसलमानों द्वारा कथित हिंदू भूमि की पवित्रता को खतरे में डालने के डर से हथियार बनाया गया है. राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही राज्य में धार्मिक पर्यटन को, मुख्य रूप से चार धाम को, बड़े पैमाने पर बढ़ावा दे रही हैं, जिससे राज्य की सीमित अर्थव्यवस्था भूमि की पवित्रता पर ज्यादा निर्भर हो गई है. हर साल लगभग 50 लाख तीर्थयात्री अकेले चार धाम की यात्रा करते हैं, जो उत्तराखंड की पूरी आबादी का लगभग आधा है. मोदी ने यहां तक दावा किया कि अगले दस सालों में उत्तराखंड में पिछले सौ वर्षों की तुलना में अधिक पर्यटक आएंगे. भूस्खलन की आशंका वाली पहाड़ियों पर धार्मिक पर्यटन के लिए बनाए गए विशाल राजमार्ग और होटल उनकी देवभूमि को अमिट नुकसान पहुंचा रहे हैं, यह थोड़ी चिंता की बात लगती है.

पंडित नमामि गंगे के उत्तराखंड राज्य उप-समन्वयक हैं. नमामि गंगे को 2014 में मोदी के आने बाद लागू किया गया था. जब हम हरिद्वार में गंगा के किनारे बैठे, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि शहर के उपनियम एक मॉडल के रूप में काम करते हैं जिन्हें देश भर में लागू किया जाना चाहिए. उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश की एक टीम हाल ही में यह देखने के लिए हरिद्वार आई थी कि उप-कानून कैसे लागू किया गया था और अयोध्या में इसी तरह के प्रतिबंध लागू करने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा, "हमारे सभी तीर्थ स्थलों में, चाहे वह अयोध्या, मथुरा, काशी हो इस प्रकार के नियम होने चाहिए." उन्होंने झूठा दावा किया कि वेटिकन सिटी में गैर-ईसाइयों को अनुमति नहीं है. "चाहे वह मक्का हो या वेटिकन सिटी, धार्मिक बाहरी लोगों को वहां जाने की अनुमति नहीं है, तो हम इसे भारत में क्यों नहीं लागू करें?"

बीजेपी नेता और बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय. वह राज्य में "भूमि जिहाद" का मुद्दा उठाने वाले पहले राजनेताओं में से एक थे. फोटो : अलीशान जाफरी

पुरोला में दूसरी रैली के एक दिन बाद, अठारह किलोमीटर दूर नौगांव में एक नया व्हाट्सएप ग्रुप सक्रिय हुआ. इसे सनातन पहचान कहा गया. जून के अंत तक इसके 849 सदस्य थे. नौगांव के दवा की दुकान वाला दीपक रावत इसका सदस्य था. पुरोला जैसी ही रैलियां नौगांव में आयोजित की गईं. “कटारपंती आ गई है लोगों में” उसने कहा. लेकिन पुरोला में जो हुआ वह भी एक परिचित पटकथा थी, जो उसने पांच साल पहले ही देखा था उसकी पुनरावृत्ति थी. 2018 में, एक समुदाय के रूप में मुसलमानों को शहर से बाहर निकाल दिया गया था. बाजार में बातचीत के दौरान एक वाक्य खूब सुना, “उनको भगा दिया.”

नौगांव के काश्तकार सुमित रावत ने इस घटना का वर्णन किया. उसने कहा कि एक मुस्लिम कूड़ा बीनने वाले ने एक युवा लड़की का अपहरण कर लिया था. लड़की बाथरूम में बंद थी और वहां से गुजर रहे लोगों ने मदद के लिए उसकी पुकार सुनी. उसे बचाए जाने के तुरंत बाद, "हिंदुओं ने एक विशाल रैली निकाली." यह मुख्य बाजार की सड़क के लगभग एक किलोमीटर तक फैली हुई थी. सुमित ने आगे कहा, रैली का उद्देश्य "मुसलमानों से छुटकारा पाना" था. वह भी रैली में शामिल था. सुमित ने कहा, "कुछ डर के मारे छिप गए, कुछ डर गए और चले गए. हम चाहते हैं कि मुसलमानों को हमारे क्षेत्र में कोई अधिकार न मिले. हम उनमें से किसी पर कैसे भरोसा कर सकते हैं?”

नौगांव के निवासियों का अनुमान है कि उस समय लगभग पचास मुस्लिम यानी शहर की पूरी मुस्लिम आबादी, छोड़कर चली गई थी. उनमें से कई की कपड़ों की पुरानी दुकानें थीं या बाजार में कपड़े की ​ठेलियां चलती थीं. सुमित ने कहा कि ठेलियों और कुछ दुकानों में आग लगा दी गई. जैसे कि पुरोला के किसी मुस्लिम की करनी पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने का आधार बन गई. सुमित ने कहा कि रैली किसी एक संगठन ने नहीं बल्कि लोगों के एक समूह ने बुलाई थी जिसमें शहर के व्यापार मंडल, युवा संगठन और हिंदू संगठनके लोग शामिल थे. पहाड़ों में, व्यापार मंडल महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं और अक्सर संघ से जुड़े लोगों के नेतृत्व में होते हैं.

जगदीश असवाल नौगांव व्यापार मंडल के प्रधान और आरएसएस के सदस्य हैं. वह नौगांव बाजार में आभूषण की दुकान चलाते हैं. उन्होंने हमें बताया, "यह एक बहुत बड़ा आंदोलन था." “कुछ हिंसा हुई थी, अगर कोई गलत करता है तो यह स्वाभाविक है. कोई भी किसी विशेष समुदाय के लोगों को परेशान नहीं करना चाहता, लेकिन वे ही गलत काम करते हैं. इन लोगों का एक नेटवर्क है. ये साजिश है, हिंदुओं के खिलाफ एक सुनियोजित योजना है.” असवाल ने दावा किया कि मुसलमानों की मौजूदगी ने देवभूमि के रूप में उत्तराखंड की पहचान को खतरे में डाल दिया है. "अगर इस तरह की मानसिकता वाले लोग यहां आएंगे तो देवभूमि कलंकित होगी." क्षेत्र के हिंदू राष्ट्रवादी एक ऐसे नौगांव की आकांक्षा रखते हैं, जो पूरी तरह से मुसलमानों से मुक्त हो.

यमुना से दस किलोमीटर ऊपर, बड़कोट अब कुछ इसी तरह के दौर से गुजर रहा है. वहां एक सामूहिक रैली के एक वीडियो में, एक लाउडस्पीकर में बज रहा है "हर घर भगवा छायेगा, राम राज्य अब आएगा.'' अन्य वीडियो में एक भीड़ को मुस्लिम दुकानों के साइनबोर्ड उतारते हुए देखा जा सकता है, जिसके बाद भीड़ ज़ोर-ज़ोर से जय-जयकार कर रही है, जबकि पुलिस खड़ी होकर देख रही है. एक मुस्लिम निवासी के अनुसार, कांग्रेस से जुड़े नगर पालिका अध्यक्ष अनुपमा रावत जैसे प्रशासन के सदस्य भी रैली में मौजूद रहे. उन्होंने कहा कि इस साल के चुनाव में अध्यक्ष के आकांक्षी स्थानीय नेता और बीजेपी सदस्य कपिल देव रावत ने भी धमकी भरे भाषण दिए. निवासी ने कहा, "रावत ने कहा कि मुसलमानों को 14 या 15 तारीख तक चले जाना चाहिए, अन्यथा वे देखेंगे कि इससे कैसे निपटा जाता है." कपिल ने रैली में हिस्सा लेने की पुष्टि की. उन्होंने कहा कि उन्होंने भाषण में कहा था कि ''लव जिहाद'' की घटनाओं का विरोध किया जाना चाहिए. हालांकि, उन्होंने मुसलमानों को छोड़ने के लिए खुले तौर पर आह्वान करने से इनकार किया. 

जैसे ही रैली बड़कोट से गुज़री, मुस्लिम दुकानों पर काले क्रॉस लगा दिए गए. इसके तुरंत बाद, शहर की अधिकांश मुस्लिम आबादी भाग गई. बड़कोट के एक दूसरे मुस्लिम निवासी ने अपनी दुकान के शटर पर काले क्रॉस का निशान बना देखकर अपनी प्रतिक्रिया बताई. उन्होंने कहा, "मेरा पहला विचार 'हील हिटलर' था." “मैंने हिटलर का इतिहास पढ़ा है. इस तरह उसने यहूदियों को चिन्हित किया था. यह वही रणनीति है. इसी तरह हमारी पहचान की जा रही है.” बाजार की लगभग सभी तैंतालीस मुस्लिम दुकानों की इस तरह पहचान की गई..

निवासियों का अनुमान है कि बड़कोट की मुस्लिम आबादी लगभग चार सौ लोगों की है, जिसमें लगभग चालीस पुराने समय के निवासी परिवार हैं. जहां पुरोला के कई मुसलमान वापस आ गए हैं, वहीं बड़कोट के कई मुसलमान नहीं लौटे हैं. हमने पांच मुस्लिम परिवारों का पता लगाया जिन्हें बड़कोट छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और जिन्होंने कहा था कि वे शायद कभी वापस नहीं लौटेंगे. सभी ने आतंक और भय की भावना व्यक्त की. दूसरे निवासी ने कहा, "बड़कोट में जो हुआ वह पुरोला से भी बदतर है. यहां मुसलमान ख़त्म हो गए हैं.” बड़कोट छोड़ने वाले मुसलमानों में से कोई भी प्रतिशोध के डर से बिना नाम बताए बोलने को तैयार नहीं था. पहले निवासी ने कहा, "हमारी सारी चीज़ें अभी भी वहीं हैं." वे घबराई हुई भीड़ के साथ चले गए थे और अभी तक अपनी दुकानें खाली नहीं की थीं. उन्हें चिंता थी कि अगर वे शहर में हिंदू संगठनों के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बोलेंगे तो उनकी दुकान में आग लगा दी जाएगी और उनके सामान को नुकसान पहुंचाया जा सकता है.

दूसरे निवासी, जो 3 जून की रैली के कुछ दिन बाद चले गए थे, को अभी अपने भाई से फोन आया था, जो अभी भी बड़कोट में हैं. "मेरे भाई ने कहा कि जब उसके बच्चे पार्क में खेलने जाते हैं, तो दूसरों के माता-पिता अपने बच्चों को वापस बुला लेते हैं," उन्होंने हमें बताया. "उनसे लोगों ने यह भी पूछा है, 'आप कब छोड़ेंगे?' हम वहां कैसे रह सकते हैं? ऐसा लगता है मानो सभी मर गए हों. बहुत नफरत है.” उन्होंने अपना पूरा जीवन बड़कोट में बिताया था और उनके कई प्रिय मित्र हिंदू थे. "मेरा दिल दुखता है कि किसी ने फोन करके नहीं पूछा 'कहां हो, कैसे हो?"

केशव गिरि महाराज की अगुवाई में हिंदू जागृति संगठन बड़कोट से मुसलमानों को बाहर निकालने का अभियान चला रहा है. 18 जून को गिरी ने अपने फेसबुक पर एक टेलीविजन स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए राज्म में एक स्वच्छता अभियान के बारे में बताया. गिरि ने कहा, “हर तरह का स्वच्छता अभियान चलेगा. अभी शुरूआत है,'' अब हर तरह का सफाई अभियान चलेगा. यह तो एक शुरूआत है. संगठन बड़कोट में हिंदू मकान मालिकों के घर-घर जा रहा है और उनसे अपने मुस्लिम किरायेदारों को बेदखल करने के लिए कह रहा है. अष्टम सिंह रावत बड़कोट बाजार में खाद की दुकान चलाते हैं. बगल में एक नाई की दुकान है जिसका शटर बंद है और उस पर एक बड़ा काला क्रॉस का निशान है. मुस्लिम नाई अष्टम के परिवार का किरायेदार था. अष्टम ने पुष्टि की कि गिरि के समूह के आठ से दस लोग, जिनमें खुद गिरि भी शामिल था, कई बार उनकी दुकान पर आए. "उन्होंने कहा, 'उन्हें हटाओ, उन्हें हटाओ," अष्टम ने हमें बताया. उन्होंने कहा कि बड़कोट में सभी मकान मालिकों पर बहुत दबाव था और उन्होंने नाई को दुकान खाली करने के लिए कहा था.

एक अन्य मुस्लिम निवासी ने कहा कि जब उन्होंने उसके मकान मालिक से संपर्क किया तो शहर की नगरपालिका अध्यक्ष अनुपमा भी समूह के साथ थीं. उन्होंने इससे इनकार किया लेकिन रैली में शामिल होने की पुष्टि की. उन्होंने साथ ही गिरि के समूह के काम का समर्थन भी किया. उन्होंने कहा, "अगर किसी से खतरा है तो खतरा दूर कर लें, अपने घर-दुकान किराए पर न दें. तब ऐसी रैलियों की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी.” गिरि को कई कॉल हमने की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. उनकी टीम के एक जनसंपर्क व्यक्ति ने कहा कि वह सवालों का जवाब नहीं देते.

बड़कोट में संगठन से जुड़े विहिप नेता सुनील परमार ने उनकी कार्यप्रणाली के बारे में बताया. उसने कहा कि हिंदू जागृति संगठन का गठन पुरोला घटना के बाद "बड़कोट के सभी हिंदुओं को एकजुट करने" के लिए किया गया था. व्यवहार में इसका मतलब स्पष्ट था. परमार ने हमें बताया, "हमने सभी से कहा है कि अगर आप अपनी दुकानें या घर किराए पर देना चाहते हैं, तो इसे हिंदुओं को दें, हमारे लोगों को दें." उसने कहा कि अगर हिंदू मकान मालिकों ने मुसलमानों को किराया देना बंद कर दिया, तो समुदाय स्वचालित रूप से शहर छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएगा. परमार ने यह भी कहा कि मुस्लिम स्थानीय हिंदुओं की तुलना में ज्यादा किराया देते हैं. कुछ मामलों में, उसने बताया कि उनके समूह ने पैसे जमा करने और किराए या बकाया भुगतान में मदद करने की पेशकश की है, जब तक कि मुस्लिम किरायेदार को छोड़ने के लिए नहीं कहा जाता है. "अगर कोई उन्हें किराए पर नहीं देगा, तो वे कहां रहेंगे? धीरे-धीरे उन्हें जाना होगा.” उसने कहा कि इसी नाटक को नौगांव में सफलतापूर्वक लागू किया गया था, जहां उन्होंने हिंदू जमींदारों से मुसलमानों को बेदखल करने के लिए कहा था. “और अब नौगांव में कोई नहीं है.” 

बड़कोट में एक मुस्लिम दुकान, जिसे हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों क्रॉस से चिह्नित किया गया है. फोटो: तुषा मित्तल

30 जून की शाम को हम देहरादून और दिल्ली के बीच सड़क पर एक छोटे से शहर में दो बड़कोट निवासियों से मिले. वे दो सप्ताह पहले भाग आए थे. पिछले दिन, उनके एक मकान मालिक ने उनसे वह घर खाली करने के लिए कहा था जहां वे किराए पर रह रहे थे. जैसे ही रात हुई, वे एक डेस्क पर इकट्ठा हो गए और यह देखने के लिए कई बार कॉल करने लगे कि क्या वे इस नए शहर में नई दुकानें और व्यवसाय स्थापित कर सकते हैं. "मेरे दो बच्चे हैं. मेरे ऊपर बैंक का कर्ज है. मुझे उनकी शिक्षा का खर्च उठाना होगा. हमें चिंता है कि अब हम कैसे जिंदा रहेंगे,'' उनमें से एक ने कहा.

हिंसा के चलते अन्य लोग वहां से चले गए. जिस तीसरे निवासी से हमने बात की वह देहरादून के पास एक कस्बे विकासनगर में चला गया था. उन्होंने कहा कि दो हफ्ते पहले दक्षिणपंथी समूहों द्वारा एक और "लव जिहाद" का दावा विकासनगर में सामने आया था. “बजरंग दल ने यहां भी बाजार बंद करवा दिया,'' उन्होंने कहा. उन्हें डर था कि बड़कोट जैसी स्थिति दोहराई जाएगी और उन्होंने तुरंत अपने चार छोटे बच्चों को उत्तर प्रदेश में उनकी मां के पैतृक घर भेज दिया. "यह यातना है." उन्होंने कहा. “यहां भी वे हमें शांति से नहीं रहने दे रहे हैं. हम इसे कब तक सहन करेंगे?” बड़कोट के एक अन्य मुस्लिम शरणार्थी ने कहा कि उन्हें भी निराशा महसूस हो रही है. “ये सब हमें कहां से निकाल देंगे. आज उन्होंने हमें वहां से निकाल दिया. कल, वे हमें भारत से बाहर निकाल देंगे.”

पुरोला में कई हिंदू मकान मालिकों को भी मुस्लिम किरायेदारों को बेदखल करने के लिए इसी तरह के दबाव का सामना करना पड़ता है. "जीवन अब नरक बन गया है," एक हिंदू मकान मालिक, जिसने 20 साल से एक मुस्लिम को दुकान किराए पर दी हुई थी, ने हमें बताया. "लोग मुझे लगातार 24 घंटे फोन कर रहे थे और कह रहे थे कि इन्हें बाहर निकालो." जून की शुरुआत में, मुस्लिम विरोधी अभियान शुरू होने के कुछ दिनों बाद, "एक पूरी टीम" ने उनके घर का दौरा किया. “आरएसएस के लोग और अन्य हिंदू नेता दर्शन भारती को पसंद करते हैं ... लोगों से भरी एक कार मेरे घर आई,'' उन्होंने कहा. "उन्होंने मुझसे और मेरे पिता से कहा कि मुसलमानों को शरण न दें." उनके पिता ने जवाब दिया कि उनके मुस्लिम किराएदार मददगार रहे हैं और "अच्छे लोग" हैं और उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन उन्होंने दबाव डालना जारी रखा. भारती ने पुरोला में मौजूद होने से इनकार किया.

मकान मालिक ने कहा कि वे लोग दूसरी बार आए. उन्होंने उन्हें "बीजेपी कार्यकर्ता, कुछ आरएसएस के लोग, दिल्ली से भी कुछ लोग आए थे" बताया. मकान मालिक ने आगे कहा, “उन्होंने मुझे कई बार बुलाया, अलग-अलग कमरों में बिठाया और मुझसे बात की. वे मेरा ब्रेनवॉश करने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने कहा कि उन्हें कई वीडियो दिखाए गए. "उन्होंने कहा 'देखो मुसलमान क्या कर रहे हैं, देखो उन्होंने एक उदयपुर में महाराणा प्रताप की मूर्ति को तोड़ दिया, देखो वे जबरन धर्म परिवर्तन कर रहे हैं, वे अपनी जनसंख्या बढ़ा रहे हैं, वे हिंदुस्तान पर शासन करना चाहते हैं, देखो वे हमारी बहनों और बेटियों के साथ क्या कर रहे हैं.' वे अब भी मुझे ये वीडियो भेज रहे हैं.”

लगातार हंगामा करने के बाद, उन्हें शांत करने के लिए, परिवार ने हिंदू समूहों को बताया कि उन्होंने अपने मुस्लिम किराएदार को छोड़ने के लिए कह दिया है. “मैं अपने ही क्षेत्र में इन लोगों का दुश्मन नहीं बनना चाहता था. मुझे यहीं रहना है,'' उन्होंने कहा. यही बातें उन्होंने शहर के सार्वजनिक चौराहे पर सुनी थी जिसने उन्हें डरा दिया था. उन्होंने हमें बताया, "वे कह रहे थे कि जो हिंदू मुसलमानों को शरण देंगे, उनका बहिष्कार किया जाएगा. 'हम उनकी शादियों में नहीं जाएंगे या उनके सामाजिक समारोहों में शामिल नहीं होंगे, उन्हें अपने घरों या अपने त्योहारों पर नहीं बुलाएंगे.' यह बात बीजेपीई कस्बे के चौराहे पर कह रहे थे. उन्होंने कहा, 'जो हिंदू मुसलमानों को रखते हैं, हम उनके नाम के साथ एक सूची शहर के चौराहे पर लटका देंगे.' अगर उनके परिवार में किसी की मौत हो जाती है, तो भी हम नहीं जाएंगे.''

हरिद्वार के बीजेपी नेता पंडित ने जोर देकर कहा कि पहाड़ियों में मुस्लिम स्वामित्व वाली दुकानों की उपस्थिति हिंदू धर्म पर एक समन्वित हमले का हिस्सा थी. “ऐतिहासिक रूप से पहाड़ियों में रहने वाले लोग सनातनवादी हिंदू थे. गैर-हिंदू पहाड़ियों पर मौजूद नहीं थे,” उन्होंने दावा किया. उन्होंने कहा कि जो मुसलमान काम करने के लिए राज्य में आते हैं, वे "रोजगार की आड़ में खुद को यहां स्थापित करते हैं" और फिर दूसरों को अपने साथ शामिल होने के लिए बुलाते हैं. उन्होंने कहा, ''यह एक सुनियोजित साजिश है और अब उत्तराखंड की जनता इसका पर्दाफाश करने के लिए तैयार है.''

पंडित तुरंत हिंसक इस्लामोफोबिक बयानबाजी पर उतर आए. उन्होंने कहा, ''उत्तराखंड के लोग शांतिप्रिय हैं और हर किसी का मेहमान के रूप में स्वागत करते हैं. लेकिन जब वह अतिथि गुप्त रूप से अपवित्र गतिविधियों में शामिल हो जाता है, तो उनका क्रोधित होना स्वाभाविक है. यह वीरांगनाओं, माताओं और बहनों की भूमि है जिन्होंने उत्तराखंड के निर्माण में भूमिका निभाई. ये बहादुर महिलाएं खेतों में इस्तेमाल होने वाली हंसिया को उनकी गर्दन पर इस्तेमाल करने से नहीं हिचकिचाएंगी.”

उत्तराखंड पर कब्ज़ा करने की मुस्लिम साजिश के दावों के बीच "बाहरी लोगों के पुलिस सत्यापन" की मांग उठ रही है. इसे कई बीजेपी नेताओं ने दोहराया है. इसे संघ परिवार के नेताओं ने पुरोला, नौगांव और बड़कोट में दोहराया. हिंदू समूहों की प्रमुख कहानी यह है कि फेरीवालों और विक्रेताओं के रूप में उत्तर प्रदेश से प्रवासी श्रमिक, जिन्हें वे "फेरी वाले" कहते हैं, पहाड़ी क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं, और "लव जिहाद" और आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं.

वे कहते हैं कि "फेरी वालों " का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम है. बाहरी लोगों की पृष्ठभूमि को सत्यापित करने का आह्वान वास्तव में मुसलमानों को सत्यापित करने और क्षेत्र में उनके आने को और अधिक कठिन बनाने का आह्वान है. जबकि कई लोग इसे राजनीतिक रूप से सही शब्दों में "सभी बाहरी लोगों को सत्यापित किया जाना चाहिए" कहते हैं, लेकिन जब भी वे असत्यापित बाहरी लोगों के कारण "लव जिहाद" में कथित वृद्धि का उल्लेख करते हैं तो इरादा स्पष्ट हो जाता है.

पुरोला में वीएचपी नेता वीरेंद्र रावत ने हमें बताया, "हमने राज्य सरकार को पत्र दिया है कि पहाड़ों में रहने वाले एक विशिष्ट समुदाय के लोगों का सत्यापन किया जाना चाहिए. और जो लोग यहां लंबे समय से रह रहे हैं उन्हें दूसरों को यहां नहीं बुलाना चाहिए." उन्होंने कहा कि प्रशासन के साथ बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि देवभूमि में जो हो रहा है वह बहुत निंदनीय है. इस विशिष्ट समुदाय के लोग जहां भी रहते हैं, चाहे पुरोला में या बड़कोट में, उनकी पृष्ठभूमि की जांच की जानी चाहिए, ताकि प्रशासन के पास उनके बारे में सही जानकारी हो.” ऐसा लगता है कि प्रशासन ने निर्देशों को गंभीरता से लिया है. रावत ने कहा कि पुरोला में पुलिस सत्यापन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. उत्तरकाशी जिले के पुलिस अधीक्षक अर्पण यदुवंशी ने कहा, "पुलिस सत्यापन हमेशा चलता रहता है और अब यह और भी तेजी से चल रहा है."

स्थानीय बीजेपी नेता इस अभियान के साथ पूरी तरह से लय में दिखे. उत्तरकाशी के बीजेपी जिला सचिव पवन नौटियाल ने कहा, ''हम उत्तराखंड की जनसांख्यिकी को बदलने नहीं देंगे. हम स्वागत करते हैं कि धामी एक सुंदर देवभूमि की दिशा में काम कर रहे हैं, ताकि देवभूमि वास्तव में देवभूमि बनी रहे."

थपियाल ने कहा कि पत्र में “यहां हो रहे सांस्कृतिक परिवर्तनों को रोकने” सहित अन्य मांगों को रेखांकित किया गया है. एसडीएम ने हमसे वादा किया कि ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं होंगी.” बजरंग दल की उपस्थिति हाल के वर्षों में पुरोला में काफी बढ़ गई है. उन्होंने कहा, ''पहले यहां के लोग सिर्फ बीजेपी के बारे में जानते थे, लेकिन अब वे हमारे पास आ रहे हैं.''

उन्होंने चेतावनी दी कि बढ़ती ताकत के साथ उनका अगला कदम और भी विस्फोटक होगा. थपियाल ने हमें बताया, "अगर सरकार नहीं जागी तो हमें अगला कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, हमें दूसरा आंदोलन करना पड़ेगा. अगर पुरोला से हमारा इतना छोटा सा आंदोलन इतना बड़ा आकार ले लेता है, तो कोई सोच भी नहीं सकता कि दूसरा आंदोलन शुरू होने पर यह कैसा आकार लेगा. यह आंदोलन प्रतिबंधित एवं शांतिपूर्ण था. अगर प्रशासन ने हमारी मांगें नहीं सुनीं तो दूसरा आंदोलन इतना सीमित नहीं होगा, हिंसक रूप ले सकता है और इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी, हमारी नहीं.'

{तीन}

"कुछ साल पहले, मैंने बद्रीनाथ को मुस्लिम मुक्त बना दिया था," देवभूमि रक्षा अभियान के संस्थापक दर्शन भारती ने हमें बताया. जब हम उनसे देहरादून में उनके घर पर मिले - तो उन्होंने हमें लेने के लिए एक सरकारी वाहन भेजा. हाल ही में पुलिस ने उनसे पुरोला में हुई हिंसा के संबंध में पूछताछ की थी. भारती हाल ही में देहरादून पुलिस के साथ मीटिंग से लौटे थे. उन्होंने हमसे कहा, "मुझे तय करना है कि मैं क्या करूंगा, क्या जेल जाकर खुद को गिरफ्तार करवाऊंगा या जमानत लूंगा. मैं तय करूंगा कि जनता को सबसे अच्छा संदेश क्या जाएगा." उन्होंने आगे कहा कि पुलिस ने उनसे कहा है, "तुम्हें कौन जेल में डाल सकता है?"

पुरोला में मुस्लिम दुकानों पर हमले या बड़कोट में भय अभियान के लिए अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया था. उत्तरकाशी के एसपी यदुवंशी ने कहा कि पुरोला हिंसा के खिलाफ पोस्टर चिपकाने और संपत्ति को तोड़ने के लिए दो एफआईआर दर्ज की गई हैं और संभावित संदिग्धों को नोटिस जारी किए गए हैं.

हरिद्वार धर्म संसद में दर्शन भारती (नीचे दाएं), प्रबोधानंद गिरि (ऊपर बाएं) और यति नरसिंहानंद (नीचे बाएं). बाद की बैठक में विभिन्न अखाड़ों ने भारती को "मुसलमानों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष" का नेतृत्व करने के लिए कोर कमेटी में चुना. एएनआई फोटो

देवभूमि रक्षा अभियान भारती की नवीनतम परियोजना थी. वह दशकों से हिंदू अधिकार अभियान का हिस्सा रहे हैं और अगर उनकी मानें तो उसकी भारत सरकार के खुफिया तंत्र सहित काफी राजनीतिक पहुंच है. दशकों तक देश भर में हिंदू राष्ट्रवादी बयानबाजी को आगे बढ़ाने के बाद, वह पिछले एक दशक में अखाड़ों में दूसरा सबसे बड़ा अखाड़ा निरंजनी अखाड़ा के सदस्य के रूप में उत्तराखंड में बस गए. 2019 में, उनके संगठन द्वारा राज्य में मुसलमानों के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान करने वाले एक लाख पचास हजार से अधिक पर्चे वितरित करने के बाद उन्हें कुछ समय के लिए गिरफ्तार किया गया था. 2021 में, वह हरिद्वार में एक धर्म संसद में मुख्य वक्ताओं में से एक थे, जहां विभिन्न अखाड़ों ने उन्हें "मुसलमानों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष" का नेतृत्व करने के लिए कोर कमेटी का हिस्सा बनने के लिए चुना.

बद्रीनाथ के बारे में बात करते समय और 2017 में उन्होंने वहां जो किया था, उसके बारे में बात करते समय वह सबसे अधिक गौरवान्वित महसूस करते. इसने उत्तराखंड में हिंदू राष्ट्रवादी धुन के निर्माण की एक शुरुआत की. भारती ने प्रसन्न होकर कहा, "भले ही यह कुछ दिनों के लिए ही क्यों न हो, भले ही यह केवल प्रतीकात्मक हो, वहां एक भी मुस्लिम नहीं है."

पुरोला में मुसलमानों को भगाने में भारती स्पष्ट रूप से एक केंद्रीय खिलाड़ी थे. वहां कई लोगों ने पुष्टि की कि जब पोस्टर चिपकाए गए थे तब वह शहर में मौजूद थे. सभी पर उनके संगठन का नाम था. आधिकारिक तौर पर किसी भी संलिप्तता से इनकार करते हुए, उन्होंने इसका समर्थन करना जारी रखा. उन्होंने कहा, "जिसने भी यह किया है, यह कोई बुरी बात नहीं है, जिसने भी इसे लिखा है, उसने जो कुछ भी लिखा है वह अच्छा है." हालांकि, जब बद्रीनाथ के बारे में बात हुई, तो उन्होंने पुरोला में अपनी भूमिका स्वीकार की. भारती ने कहा, "हमने वैसा ही किया, हमने मुसलमानों की दुकानों पर उनके खिलाफ पोस्टर लगा दिए कि तुम यहां से चले जाओ. हमने किसी भी मुस्लिम को बद्रीनाथ में प्रवेश नहीं करने दिया. उस समय लोग इतने जागरूक नहीं थे और मीडिया हमारे साथ नहीं था. यह एक शुरुआती बिंदु था. लेकिन अब उत्तराखंड की जनता जाग चुकी है.”

यह एक "जागृति" थी जिसे भारती ने मुस्लिम पूजा स्थलों पर आधे दशक तक हमले के बाद सुनिश्चित किया था. उन्होंने कहा, ''पिछले आठ सालों में, पहाड़ियों में मैंने एक भी मस्जिद, मजार या मदरसा नहीं बनने दिया. हमने उन्हें रोका, हमने ख़राब चीज़ें तोड़ दीं. टिहरी झील के पास, हमने 25 साल पुरानी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया,'' उसने थोड़ा रुकते हुए कहा, "सरकार ने हमारी मदद से इसे ध्वस्त कर दिया." 2020 में, हरियाणा में एक छात्रा निकिता तोमर को दो मुस्लिम पुरुषों ने गोली मार दी थी. भारती ने कहा , "जब निकिता तोमर की हत्या हुई, तो उनके सम्मान में हमने यहां देहरादून में पहली मजार तोड़ी. उसके बाद मुझे नहीं पता कि हमने कितनों को तोड़ा है. यहां तक कि अब हम गिनती भी नहीं रखते. कुछ जगहों पर लोग खुद तोड़ने लगे हैं, वे सभी हमारे मिशन का हिस्सा थे और हमसे प्रेरित थे.

भारती ने हिंसा के प्रमुख कृत्यों के बारे में बात करते हुए कहा कि वह राज्य और केंद्र सरकार में कई राजनेताओं और प्रशासकों को अपने दोस्तों में गिनाते हैं. 1992 में, उत्तराखंड के गठन से पहले, भारती ने उस समय की बात की जब देहरादून से उधम सिंह नगर तक पूरा तराई क्षेत्र, "खालिस्तानी आतंकवादियों के हाथों में था." उन्होंने कहा कि उन्होंने लोगों से जुड़ने के लिए एक महीने की यात्रा निकाली और उत्तर प्रदेश के बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से मुलाकात की. उन्होंने कहा, ''मैंने कल्याण सिंह से बात की कि मैं लोगों को सचेत करना चाहता हूं और इसे खत्म करने में मदद करना चाहता हूं. कल्याण सिंह ने मुझे पुलिस सुरक्षा दी और मुझे हर संभव सहयोग दिया."

उन्होंने कहा कि इसके तुरंत बाद उन्हें कश्मीर में काम करने का मौका मिला, जब एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने उन्हें पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश सिंह मिश्रा से मिलवाया. उनके दावे कल्पना से परे नहीं हैं. उनके घर के बाहरी कमरे में मौजूदा एनएसए अजीत डोभाल से मुलाकात की तस्वीर लगी हुई है. डोभाल भी उत्तराखंड के मूल निवासी हैं. उन्होंने कहा कि यह तस्वीर तब की है जब वह दो या तीन साल पहले डोभाल से मिले थे, लेकिन उन्होंने कहा कि वे हाल ही में छह महीने पहले भी मिले थे. उन्होंने कहा, ''वह इस क्षेत्र को लेकर भी काफी चिंतित हैं. वे यहां की सनातन संस्कृति के बारे में भी सोचते हैं. मैंने उनके सामने वही मुद्दे उठाए, लव जिहाद और भूमि जिहाद के बारे में. यह अंतरराष्ट्रीय सीमा है, इसलिए उन्हें इसकी भी चिंता है.''

कश्मीर में 12 साल तक "बैकरूम में" रहने के बाद, 2007 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल के अंत के दौरान वह उत्तराखंड लौट आए. भारती ने दावा किया कि उन्होंने उत्तराखंड में पहली बीजेपी सरकार लाने में भूमिका निभाई थी. “राजनाथ सिंह पार्टी अध्यक्ष थे उस समय और राम लाल जी संगठन महासचिव थे. उन सभी के साथ मेरे अच्छे संबंध थे.” उन्होंने यह भी कहा कि वह राजनाथ सिंह के दूर के रिश्तेदार हैं. (राजनाथ ने सवालों का जवाब नहीं दिया.)

“मैं धामी से मिलता रहता हूं, धामी मेरा चेला है, वो अपना है” भारती ने पुष्कर सिंह धामी का जिक्र करते हुए कहा. उन्होंने 2021 में भूमि जिहाद के मुद्दे पर एक पत्र के साथ धामी से मुलाकात की थी. भारती ने कहा, "धामी ने मुझसे कहा, 'बेशक स्वामी जी, हम भूमि जिहाद पर बुलडोजर चलाएंगे. उन्होंने लव जिहाद पर कानून बनाया है और अब उन्होंने पांच सौ मजारों को ध्वस्त कर दिया है. वह इस राज्य के पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने भूमि जिहाद पर काम किया है और योगी जी के नक्शेकदम पर चले हैं.”

अन्य हिंदू कट्टरपंथी हस्तियों ने भी योगी को वह व्यक्ति बताया, जिसेने उत्तराखंड से शुरूआत की. प्रबोधानंद गिरी ने कहा, ''मैं योगी को 1985 या 86 से जानता हूं.'' गिरि से हमारी मुलाकात हरिद्वार में एक मंदिर ट्रस्ट के परिसर में हुई थी. प्रबोधानंद हिंदू रक्षा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और 2021 में हरिद्वार धर्म संसद में एक प्रमुख भागीदार थे. संसद में मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान किया गया. नफरत फैलाने वाले भाषण पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और संसद के प्रतिभागियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बावजूद, गिरि ने वीडियो और सार्वजनिक बैठकों में मुस्लिम विरोधी बातें बोलना जारी रखा है. उन्होंने हमसे कहा, "देवभूमि की पहचान बचाने के लिए हर एक जिहादी की पहचान की जानी चाहिए और उसे रोका जाना चाहिए. "सीमा पार जातीय सफाए की तुलना करते हुए उन्होंने कहा, "जैसा म्यांमार ने किया, वैसे ही भारत को जिहादियों से मुक्त कराया जाना चाहिए."

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी 25 अप्रैल 2023 को केदारनाथ मंदिर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए. धामी के बयान और कार्य उत्तराखंड में विशेष रूप से हिंदू पवित्र भूमि बनाने की हिंदू दक्षिणपंथी परियोजना के अनुरूप हैं. एएनआई फोटो

पुरोला में हिंसा से दो महीने पहले, प्रबोधानंद ने हरिद्वार में रुद्र सेना - एक अन्य हिंदू मिलिशिया - द्वारा आयोजित एक धर्म सभा में भाग लिया था, जहां व्यापक आर्थिक बहिष्कार का आह्वान किया गया था. बैठक में उन्होंने कहा, ''हरिद्वार और ऋषिकेश से संत आपको आशीर्वाद देने आए हैं. आपको बस अपने लिए खड़ा होना है. अपनी ज़मीन वापस ले लो.” उन्होंने आगे कहा, “यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह जिहादियों से कब्ज़ा की गई एक-एक इंच ज़मीन वापस लेने में हमारी मदद करे. एक बैठक आयोजित करें और सरकार को इन जमीनों को खाली करने के लिए कुछ महीनों का अल्टीमेटम दें. अन्यथा, सरकार से कहें कि आप यह काम स्वयं करेंगे और इसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी.''

योगी आदित्यनाथे के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, ''हम 2017 के चुनाव से पहले मिले थे जब वह सीएम बने थे और मैं अब भी उनसे मिलता रहता हूं. उनसे चर्चा का एक ही विषय है कि भारत की सनातन  संस्कृति की रक्षा कैसे की जाए. भारत एक हिंदू राष्ट्र है. इस हिंदू राष्ट्र की स्थापना और घोषणा कैसे की जानी चाहिए.” उन्होंने कहा कि आदित्यनाथ ने उन्हें संकेत दिया था कि चूंकि वह अब सरकार में हैं, इसलिए प्रबोधानंद को कमान संभालनी चाहिए और हिंदुत्व के लिए लड़ाई जारी रखनी चाहिए. प्रबोधानंद ने कहा, ''जब आप सरकार में होते हैं तो सरकारें धर्मनिरपेक्ष होती हैं. उन्होंने हिंदुत्व की लड़ाई मजबूती से लड़ी. मैं यह लड़ाई 1980 के दशक से लड़ रहा हूं, लेकिन 2017 के बाद मैंने सोचा कि अब जब योगी जी सरकार में हैं तो मुझे आगे आना चाहिए और पूरी भागीदारी निभानी चाहिए. यह उनकी इच्छा थी.” प्रबोधानंद ने कहा कि 2017 में हिंदू युवा वाहिनी और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच कुछ तनाव हो गया. “उन्हें हिंदू युवा वाहिनी को भंग करना पड़ा, इसलिए एक और हिंदू संगठन की जरूरत थी. इसलिए मैंने हिंदू रक्षा सेना का काम शुरू किया.”

ऐसा लगता है कि राज्य के मुख्यमंत्री धामी तक भी उनकी आसान पहुंच थी. “मैं धामी जी के साथ इन्हीं चीजों के बारे में बात करता हूं कि उत्तराखंड को जिहादियों से मुक्त कराने के लिए.'' उन्होंने दावा किया कि धामी उनसे पूरी तरह सहमत हैं. “धामी ने मुझसे कहा कि वह उत्तराखंड को जिहाद से मुक्त कराएंगे. 'हम देवभूमि का चरित्र नष्ट नहीं होने देंगे.' उन्होंने कहा, 'मैं सीएम हूं और सीएम होने के नाते देवभूमि की अस्मिता की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है .'' प्रभोदानंद ने कहा कि उन्होंने इसका असर जमीन पर भी देखा है. उन्होंने हमें बताया, "धामी ने कुछ कार्रवाई की है, उन्होंने अवैध रूप से बनी मजारों को नष्ट कर दिया है और लव जिहाद पर काम किया है. वह कदम जो पुरोला ने लिया, वही पूरे उत्तराखंड और पूरे देश में दोहराया जाना चाहिए.” धामी और आदित्यनाथ को हमने सवाल भेजे लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया.

भारती अपने धर्मयुद्ध के अंतिम लक्ष्य के बारे में स्पष्ट थे. उन्होंने कहा, ''यह देवभूमि की लड़ाई की शुरुआत है. जिस तरह इस्लाम के पास एक पवित्र भूमि है, मैं चाहता हूं कि हिंदू इसे अपनी पवित्र भूमि के रूप में देखें. उत्तराखंड को सही मायने में देवभूमि बनाने के लिए हमारे धार्मिक स्थलों के पांच किलोमीटर के दायरे में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाएं. और किसी भी मुसलमान को हमारे धर्म की वस्तुएं बेचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. तभी हमारे धार्मिक स्थलों पर उनका अतिक्रमण रुकेगा.”

ये विचार संघ परिवार के अनुरूप थे. आरएसएस पदाधिकारियों ने इसे पहला कदम बताया. पुरोला में आरएसएस के जिला संगठन प्रमुख विक्रम रावत ने कहा, "अगर चार धामों और हरिद्वार, ऋषिकेश जैसे स्थानों पर चरणबद्ध तरीके से प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो स्वचालित रूप से अन्य स्थानों की भी रक्षा की जा सकेगी." आरएसएस नेता संजय ने कहा, "हमारे धार्मिक स्थलों की पवित्रता बनाए रखने के लिए दूसरे धर्म के लोगों को वहां कम अधिकार मिलना चाहिए." उन्होंने कहा कि संपूर्ण भारत हिंदुओं की "पवित्र भूमि" है. उन्होंने कहा, ''पूर्ण भारत हमारा मक्का या वेटिकन सिटी हो सकता है.'' उन्होंने आगे कहा कि उत्तराखंड एक विशेष साधना भूमि है. "तो, इस साधना भूमि को, इसे शुद्ध रखने की आवश्यकता है." भारती के लिए सच्ची देवभूमि बनाने का काम शुरू हो गया था. “मोदी जी ने बद्रीनाथ और केदारनाथ के लिए हमारे सपनों को पूरा किया है. मोदी हमारे लिए बद्रीनाथ से कम नहीं हैं.”

राज्य की सीमित भूमि का नियंत्रण कौन करता है, ये सवाल दशकों से उठते रहे हैं. जब 2000 में राज्य का गठन हुआ था, तब उत्तराखंड ने उत्तर प्रदेश के पुराने भूमि कानून, उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 को जारी रखा था. हालांकि, राज्य सरकारों ने लगातार कानून में बदलाव किए और राज्य में जमीन खरीदने के इच्छुक बाहरी लोगों के लिए सीमा तय कर दी. पहला बदलाव एनडी तिवारी सरकार द्वारा लाया गया, जिसने गैर-निवासियों को 500 वर्ग मीटर से अधिक जमीन खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया. संशोधन ने भूमि के दुरुपयोग, या कृषि भूमि को गैर-कृषि भूमि में अवैध रूपांतरण को भी प्रतिबंधित कर दिया. बीजेपी के बीसी खंडूरी के नेतृत्व में अगली सरकार ने इस सीमा को और घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया. लेकिन 2018 में, त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने मौजूदा भूमि कानूनों को कमजोर कर दिया - इन प्रतिबंधों को हटा दिया, साथ ही गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए कृषि भूमि के उपयोग पर रोक लगा दी. रावत ने राज्य में निवेश लाने के लिए आवश्यक परिवर्तनों का बचाव करते हुए तर्क दिया कि उद्योगों के बिना, राज्य के पास कोई राजस्व नहीं है.

लेकिन राज्य में भूमि हमेशा एक भावनात्मक मुद्दा रही है, और कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने कृषि भूमि के कथित शोषण को सीमित करने के लिए एक कानून लाने का वादा करते हुए, त्रिवेन्द्र सिंह द्वारा किए गए परिवर्तनों को पूर्ववत करने की कसम खाई थी. जुलाई 2021 के आसपास, बड़े पैमाने पर विपक्षी बैनर के तहत, एक प्रमुख सोशल-मीडिया अभियान, जिसे "उत्तराखंड मांगे भू कानून" कहा जाता है, को व्यापक स्थानीय प्रेस कवरेज मिलना शुरू हुआ. कई कार्यकर्ताओं और राजनेताओं ने हमें बताया कि भूमि जिहाद अभियान इसके तुरंत बाद शुरू हुआ, कथित तौर पर भूमि कानून की मांग को कम करने और नया स्वरूप देने के साधन के रूप में. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा, "यह बीजेपी ही है जिसने राज्य की जमीन बेचने की प्रक्रिया को तेज किया और अब इससे निपटने के लिए वे भूमि जिहाद का मुद्दा उठा रहे हैं." जुलाई 2021 के अंत में दर्शन भारती ने धामी से मुलाकात की और आधिकारिक तौर पर भूमि जिहाद के खिलाफ कानून की मांग की.

बीजेपी नेता भी इसमें कूद पड़े. बीजेपी नेता अजेंद्र अजय ने धामी को पत्र लिखकर भूमि जिहाद की बढ़ती घटनाओं की शिकायत की. इसके बाद उत्तराखंड सरकार ने एक बयान जारी कर दावा किया कि कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या में "अभूतपूर्व वृद्धि" हुई है, जिससे एक "निश्चित समुदाय" के सदस्यों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जिसके चलते खासतौर पर "उन क्षेत्रों की जनसांख्यिकी प्रभावित हो रही है" और "संभावना है कि उन क्षेत्रों में सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ सकता है." इसमें कहा गया कि राज्य के बाहर से आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उन लोगों की सूची बनाई जाएगी जो उत्तराखंड में जमीन खरीद रहे हैं या रह रहे हैं. बयान में कहा गया है, "उनके रिकॉर्ड बनाने के लिए उनके पेशे और अधिवास स्थिति का सत्यापन किया जाना चाहिए." इसने जिला मजिस्ट्रेटों को "अवैध भूमि सौदों की निगरानी" करने और "यह जांचने" के लिए कहा कि क्या कोई डर या दबाव के कारण अपनी जमीन बेच रहा है. इसने ऐसे मामलों में "सख्त कार्रवाई" का आह्वान किया. भारती के "भूमि जिहाद" अभियान शुरू होने के एक महीने बाद, राज्य सरकार ने भूमि कानून के मुद्दे पर विचार करने के लिए अगस्त 2021 में एक समिति का गठन किया. अजय को इसका सदस्य बनाया गया.

समिति के निष्कर्ष आश्चर्यजनक नहीं थे. इसने विशेष रूप से राज्य में रहने वाले बाहरी लोगों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया और उन लोगों के खिलाफ "कड़ी सजा" देने का आह्वान किया जो वन क्षेत्रों और सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण करते हैं और "धार्मिक मजारों के निर्माण के माध्यम से अवैध कब्जे" में शामिल हैं. जब हमने अजय से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ''बड़ी संख्या में अवैध मजारों का निर्माण हो रहा है. कुछ बातें ऐसी होती हैं जो हम सीधे तौर पर कह सकते हैं और सरकार भी अपने आदेशों में नहीं कह सकती. वे 'भूमि जिहाद' जैसे शब्दों का उपयोग नहीं कर सकते. हमने इसे इस तरह से कहा कि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण से निपटने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई जानी चाहिए.”

मई 2023 में, धामी ने एक नया कानून लाने की कसम खाई जो संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले लोगों को राज्य में जमीन खरीदने से रोक देगा. जुलाई में, सरकार ने भूमि अतिक्रमण को दंडित करने के लिए एक अध्यादेश पेश किया. धामी ने ट्वीट किया, ''कैबिनेट बैठक के दौरान हमारी सरकार ने देवभूमि के मूल स्वरूप को बनाए रखने के उद्देश्य से सरकारी और निजी भूमि पर अतिक्रमण के खिलाफ अध्यादेश को मंजूरी दे दी है.  हमारी सरकार अतिक्रमण के खिलाफ तेजी से काम कर रही है और हम किसी भी हालत में राज्य में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं करेंगे.”

धामी के साथ-साथ, दंगाइयों से लेकर विधायकों तक, कई हिंदू कट्टरपंथियों से हमने बात की, जिन्होंने राज्य में मुसलमानों की उपस्थिति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताने की कोशिश की. संघ परिवार द्वारा हिंदुत्व को आक्रामक सैन्यीकृत राष्ट्रवाद से जोड़ने के अनुरूप, उत्तराखंड और केंद्र सरकार राज्य के तीर्थयात्रा सर्किट में एक सैन्य स्थल जोड़ने की प्रक्रिया में थे. दिसंबर 2021 में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चार धाम सर्किट में पांचवें धाम की आधारशिला रखी, जिसे सैन्य धाम कहा जाता है, जो सेना को समर्पित है. अपने अभियान में सरकार ने ध्वस्त बाबरी मस्जिद के ऊपर अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए लामबंदी को प्रतिबिंबित करते हुए एक अभियान चलाया. उन्होंने निर्माण के लिए 1,734 मृत सैनिकों के घरों से मिट्टी एकत्र की, ठीक उसी तरह जैसे वीएचपी ने अयोध्या में मंदिर के लिए ईंटों बटोरी थी

निर्माणाधीन सैन्य धाम. यह उत्तराखंड सरकार के हिंदू तीर्थयात्रा सर्किट का हिस्सा है. फोटो : तुशा मित्तल

सैन्य धाम देहरादून शहर से बारह किलोमीटर दूर, सेना छावनी के ठीक बगल में स्थित है. साइट पर तेजी से निर्माण कार्य चल रहा है. साइट पर मौजूद कर्मचारियों ने हमें बताया कि दो सैनिकों की मूर्तियों को रखने के लिए दो मंदिर बनाए जा रहे हैं. प्रवेश द्वार पर दो ऊंचे मंच हैं जहां उन्होंने कहा कि सैन्य टैंक तैनात किए जाएंगे. एक लड़ाकू हवाई जहाज प्लास्टिक की चादरों से ढका हुआ है और एक अन्य टैंक एक मंदिर के बाहर रखा हुआ है. निर्माण के लिए 58 करोड़ रुपए के प्रारंभिक आवंटन को बढ़ाकर 98 करोड़ रुपए कर दिया गया है. यह कथित तौर पर सेना कल्याण कोष से आया था, जिसका उद्देश्य युद्ध विधवाओं या ऑपरेशन के दौरान विकलांग हुए सैनिकों का पुनर्वास करना होता है. अब पांच धामों के सर्किट के साथ, उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री, सतपाल महाराज ने कहा कि वे पर्यटन के लिए एक "मोदी सर्किट" भी शुरू करेंगे, जिन क्षेत्रों में मोदी सर्वाइवल रियलिटी शो मैन वर्सेस वाइल्ड में अपनी बहुप्रचारित उपस्थिति के दौरान जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के अंदर गए थे. जैसे-जैसे देहरादून में मृतकों के लिए नए मंदिर बन रहे थे , जिम कॉर्बेट में मुस्लिम मृतकों की पवित्र कब्रों को तोड़ा जा रहा था.

7 अप्रैल को नैनीताल के पास एक सार्वजनिक बैठक में, धामी ने दावा किया कि कम से कम एक हजार स्थानों की पहचान की गई थी जहां राज्य की भूमि पर अवैध मजार और "अन्य संरचनाएं" बनाई गई थीं. उन्होंने कहा, ''हम भूमि जिहाद को पनपने नहीं देंगे.'' यह बताए बिना कि "अन्य संरचनाएं" क्या थीं, कुछ समय पहले उन्होंने ट्वीट किया था, "हम उत्तराखंड में अवैध मजारों को ध्वस्त कर देंगे. यह नया उत्तराखंड है. यहां जमीन पर अतिक्रमण करने के बारे में किसी को सोचना भी नहीं चाहिए, करना तो दूर की बात है.” बाद में मीडिया रिपोर्टों से पता चला कि इनमें से लगभग सभी अन्य संरचनाएं हिंदू मंदिर थीं, जो सरकारी भूमि पर बनी मजारों से कहीं ज्यादा थीं. हालांकि, अगले दिनों में 440 मज़ार ध्वस्त कर दिए गए और मंदिरों की संख्या 45 रही. दर्शन भारती के अनुयायी राकेश उत्तराखंडी ने अभियान का फोकस तय किया था, जो पुरोला मामले में एक प्रमुख व्यक्ति थे. उत्तराखंडी राज्य के जंगलों में मुस्लिम समुदायों को धमकियां दे रहे थे और मांग कर रहे थे कि वे 10 अप्रैल से पहले क्षेत्र छोड़ दें या परिणाम भुगतने को तैयार रहें.

सबसे प्रमुख मजार थापली बाबा की मजार है, जो जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के भीतर राजमार्ग से आधा किलोमीटर दूर है. अनुमान है कि यह एक सौ पचास वर्ष पुरानी थी, यह उस व्यक्ति से भी पुरानी है जिसके नाम पर इस रिज़र्व का नाम रखा गया है. मजार के देखभालकर्ता नवाब अली, जिनका परिवार तीन पीढ़ियों से वहां काम कर रहा है, ने हमें बताया, "हमें उचित नोटिस नहीं दिया गया और जब वे मजार को ध्वस्त करने आए, तो उन्होंने हमें अवशेष भी नहीं लेने दिए." मजार में नियमित रूप से आने वाले किशन शर्मा तीन दिवसीय उर्स कार्यक्रम के दौरान अक्सर मजार पर चाय की दुकान लगाते रहे हैं. उन्होंने हमें बताया, "मज़ार पर आने वाले ज़्यादातर लोग हिंदू थे. उत्तराखंड में एक समन्वयवादी संस्कृति थी. भरतपुर, पम्पापुर, लखनपुर के हिंदू इस मजार में आस्था रखते थे.”

किशन ने हमें बताया, "मेरा परिवार 1972 में इस गांव में आया था. 1991 में कॉर्बेट प्रशासन द्वारा प्रतिबंध लगाने से पहले, मैं अपनी भैंसों के लिए चारा इकट्ठा करने के लिए जंगल के अंदर जाता था. अब इन प्रतिबंधों के कारण हम कोई पशुधन नहीं रख सकते.” प्रतिबंधों का सबसे बुरा प्रभाव वन गुज्जर समुदाय पर पड़ा है, जो मुख्य रूप से मुस्लिम देहाती जनजातीय समूह है. जबकि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में वन गुज्जर समुदाय मौसमी रूप से अपने मवेशियों के साथ प्रवास करते हैं, उत्तराखंड में समुदाय सदियों से जंगल के अंदर रहते हैं.

धामी सरकार ने हाल ही में जिन मजारों को ध्वस्त किया है उनमें से ज्यादातर वन गुज्जरों की कब्रें हैं. एक स्थानीय कार्यकर्ता मुनीश कुमार ने हमें बताया, "जब उनके प्रियजन मर जाते हैं, तो वे उन्हें जंगलों में दफना देते हैं, जिन्हें वे अपना घर कहते हैं. स्थायी स्मृति बनाने के लिए, वे कब्रों को ज़मीन से कुछ फीट ऊपर बनाते हैं. हालांकि, सरकार इन कब्रों को नष्ट कर रही है. इसे ही वे भूमि जिहाद के ख़िलाफ़ एक सफल अभियान कहते हैं.”

आगे जंगल में एक और मजार थी जिसे धामी के नवीनतम अभियान में ध्वस्त कर दिया गया था. आसपास की कई कब्रों पर भी बुलडोज़र चला दिया गया. जहां नत्थेवाल कथा के वन गुज्जर बस्ती के दफ्न ​थे. जब हम वहां पहुंचे, तो मूसलाधार बारिश से जंगल का रास्ता कीचड़मय हो गया, हमें मलबे की कतारें और ध्वस्त कब्रें मिलीं. गांव में बिजली कनेक्शन या स्थानीय पंचायत नहीं थी और किसी के पास राशन कार्ड तक पहुंच नहीं थी.

नत्थेवाल कथा की वन गुज्जर बस्ती के पास एक ध्वस्त मजार. फोटो : अलीशान जाफरी

गांव के 63 वर्षीय गुलाम रसूल ने हमें मजार की जगह घुमाया और हमें बताया, “मेरे सभी रिश्तेदारों और बुजुर्गों को इस जंगल में दफनाया गया है. 1950 में, मेरे दादाजी को यहीं दफनाया गया था, मेरी दादी को यहीं दफनाया गया था और मेरी मां, पिता, भाई और एक बेटे को भी यहीं दफनाया गया था. उन्होंने कहा कि उनके मृतकों के शवों को शहर के कब्रिस्तान तक ले जाना बेहद महंगा पड़ता था. उन्हें वहां शत्रुता का सामना करना पड़ा, कहा गया कि "जंगल के लोगों" को वहां दफनाया नहीं जा सकता. शहर में दफनाना अब और भी कठिन हो गया. उन पर दबाव बनाने के अभियान के तहत, कथित तौर पर वन विभाग के आदेश पर, एक बुलडोजर ने उनके गांव के एकमात्र रास्ते पर एक खाई खोद दी थी. (वन विभाग ने सवालों का जवाब नहीं दिया.)

मजार के आसपास लगने वाला तीन दिवसीय मेला समुदाय की आर्थिक जीवनरेखा रहा है. उनकी आजीविका का एकमात्र साधन उनके मवेशी थे, जिन्हें वे अब जंगलों में नहीं चरा सकते. मानसून इतना कठोर था कि अधिकांश समुदाय अपनी झोपड़ियों से कहीं जा नहीं सकता था. पुरखों की कब्रें, जो सदियों से अपनी जगह पर थीं, अब खंडहर हो चुकी हैं. और अब, रसूल ने कहा, "हम, जिन्हें वे सालों से आदिवासी और वन गुज्जर कहते थे, अब मुस्लिम कहलाते हैं, भूमि जिहाद के आरोपी हैं." स्वदेशीता की रक्षा के लिए बनाए गए राज्य में, इसके सबसे कमजोर नागरिकों को भी बाहर धकेला जा रहा था. सरकार उन्हें जंगल छोड़ने के लिए प्रतिबद्ध लग रही थी. और स्थिति को देखते हुए, रसूल ने हमें बताया कि समुदाय मजबूर ऐसा करने को तैयार है, अगर उन्हें उचित पुनर्वास दिया जाए. उनके पास रुकने का कोई कारण नहीं था. लेकिन अगर उन्होंने जंगल छोड़ दिया, तो उन्हें बाहर केवल देवभूमि ही मिलेगी, जिसमें उनके लिए कोई जगह नहीं है.

यह रिपोर्टिंग कोडा-कारवां फेलोशिप का हिस्सा है.


Tusha Mittal is the Coda-Caravan fellow. She has written on politics, development, gender and social justice. Her work has appeared in Tehelka, Al Jazeera and the Washington Post among other publications.
Alishan Jafri is an independent journalist based in New Delhi, and contributes to various national and international journalistic platforms. He writes on human rights,  media, misinformation and the rise of extreme politics in India.