सम्भल में सीएए विरोधी आंदोलन को बीजेपी और पुलिस ने कैसे बनाया सांप्रदायिक

सम्भल के चौधरी सराय इलाके में 19 दिसंबर 2019 को रायसत्ती पुलिस चौकी के बाहर का दृश्य. उस दिन, चौधरी सराय से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर सम्भल के पालिका मैदान में सीएए का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर हिंसक बल प्रयोग किया. अगले दिन कस्बे में सीएए विरोधी प्रदर्शन हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पथराव में बदल गया. प्रमोद अधिकारी

20 दिसंबर को दोपहर 3.30 बजे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सम्भल में रहने वाला 15 साल का एक लड़का एक घंटे के लिए ट्यूशन पढ़ने गया था. वह लड़का महबूब खान सराय की एक चॉल में अपने मां-बाप के साथ रहता था. लड़के को ट्यूशन लेने के लिए शंकर चौराहा जाना पड़ता था, जो लगभग एक किलोमीटर दूर है. उस दिन दोपहर में मुसलमानों ने नागरिकता संशोधन कानून (2019) के विरोध में शंकर चौराहा के नजदीक विरोध प्रदर्शन किया था. उत्तर प्रदेश पुलिस ने विरोध का बर्बर दमन किया और प्रदर्शनकारियों पर लाठियों और आंसू गैस से हमला किया. पुलिस ने लोगों पर गोलियां भी चलाई. उस दिन सम्भल में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हुई.

शाम 5 बजे तक जब वह लड़का घर नहीं लौटा, तो मां परेशान हो गई. लड़के की मां ने मुझे बताया, “मैं ट्यूशन वाली जगह में उसे देखने गई, तो टीचर ने बताया कि मेरा लड़का पढ़ कर घर के लिए निकल गया था. मुझे बताइए कि क्या मेरे लड़के को ट्यूशन भेजना मेरी गलती थी?”

उस वक्त तक सम्भल में जो दिन में हुआ था, उसकी खबर फैल चुकी थी. चॉल में डर और घबराहट का माहौल था. लग रहा था जैसे गली तक जाना भी खतरनाक है. फिर भी तकरीबन 9 बजे चार औरतों ने, जिनके बच्चे घर नहीं लौटे थे, हिम्मत दिखाई और नजदीकी कोतवाली पुलिस स्टेशन शिकायत करने पहुंची. पुलिसवालों ने इन औरतों को “पत्थरमार औरतें” कह कर पुलिस स्टेशन से भगा दिया.

बाद में इन औरतों को पता चला कि उनकी औलादें पुलिस हिरासत में हैं. अगले तीन दिनों तक पुलिस ने औरतों को नहीं बताया कि उनके बेटे किस जेल में बंद हैं. 15 साल के लड़के की मां ने मुझे बताया, “क्या वे देख नहीं सकते कि उसके पास कॉपी और एक-दो किताबें हैं? क्या पुलिस और प्रशासन के बच्चे नहीं हैं? अगर एक घंटे के लिए भी उनके बच्चे गुम हो जाएं, तब उनको पता चलेगा कि क्या बीतती है. अगर हम भी एसएचओ, नेता होते, तो हमारे बच्चे भी बाहर घूम रहे होते. बताओ, हमारी औलादें ही क्यों गिरफ्तार हुईं?”

पुलिस और प्रशासन की खामोशी के बीच चॉल समेत पूरे सम्भल में अफवाहें फैलने लगीं. कोई बताने लगा कि लड़कों को मुरादाबाद की जेल में रखा है, तो कोई कह रहा था कि सम्भल की ही धनारी या बहजोई जेल में लड़के कैद हैं.

25 दिसंबर को पुलिस एसपी यमुना प्रसाद ने मीडिया को बताया, “55 लोगों की पहचान कर ली गई है और संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन में शामिल अन्य 150 लोगों की पहचान के लिए पोस्टर जारी किए गए हैं. उस दिन प्रसाद ने बताया था कि “48 लोगों को गिरफ्तार किया है” लेकिन पांच दिन जब मैंने उनसे बात की, तो उन्होंने गिरफ्तार लोगों की संख्या 43 बताई.

इन मामलों में आरोपियों के वकील कमर हुसैन ने मुझे बताया कि 8 जनवरी को 55 लोगों को गिरफ्तार किया था जिनमें से 19 नाबालिग थे. एक की उम्र तो बस 11 साल है. हुसैन ने बताया कि नाबालिगों को बालगृह में न रख, सजायाफ्ता और मुजरिमों के साथ बरेली जेल में रखा गया है.

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सरकार ने सम्भल समेत राज्य के अन्य हिस्सों में घोर दमन किया है. सभी जगह स्थानीय मीडिया और पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को “बलवाई” बताया और पुलिस की ज्याद्तियों पर “आत्मरक्षा में किया गया कृत्य” कहकर पर्दा डाला. 

लेकिन एक महत्वपूर्ण मामले में सम्भल राज्य के अन्य हिस्सों से ज्यादा चिंताजनक बन गया है. वह यह कि यहां सीएए के खिलाफ प्रदर्शन हिंदू और मुसलमानों के बीच पथराव का कारण बना.

स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया कि 19 दिसंबर को सम्भल में दो सीएए विरोधी प्रदर्शन होने वाले थे. समाजवादी पार्टी की जिला समिति ने पालिका मैदान में विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था. यहां लोग राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापनपत्र जिला अधिकारियों को सौंपने वाले थे. समाजवादी पार्टी के सम्भल सांसद शफीकुर्रहमान बर्क और विधायक इकबाल महमूद ने अपने समर्थकों को प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की थी.  

सीएए विरोधी दूसरे प्रदर्शन का आयोजन सम्भल जिला संघर्ष समिति ने किया था. वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया कि प्रशासन ने समिति को अनुमति इस शर्त में दी थी कि विरोध का आयोजन एक बंद निजी भवन में होगा (समिति के प्रमुख मुशीर तारीन खान द्वारा संचालित अल तारीन आईटीआई कॉलेज में). इस प्रदर्शन को दोपहर 12.30 तक खत्म हो जाना था. वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया 18 दिसंबर की रात प्रशासन ने यह अनुमति वापस ले ली. दूसरे दिन सुबह-सुबह पुलिस ने खान को नजरबंद कर लिया. 16 दिसंबर को पुलिस ने ट्वीटर में पोस्ट डाली कि सम्भल में धारा 144 प्रवर्तन में है और किसी भी सार्वजनिक स्थान पर पांच या पांच से अधिक व्यक्ति एकत्र नहीं हो सकते. 

लेकिन पुलिस के इस कदम से भी सीएए विरोधियों की हिम्मत नहीं टूटी और 19 दिसंबर की जबर्दस्त ठंड का सामना करते हुई लोग प्रदर्शन के लिए जुटे. वरिष्ठ पत्रकार और सम्भल के अन्य स्थानीय लोगों ने बताया कि लोग खान की अपील पर बाहर निकले और तकरीबन सुबह 10 बजे भीड़ ने शेख सराय तारीन के लिए कूच किया. लेकिन बाद में अन्य विरोधों से एकजुटता दिखाने के लिए, प्रदर्शनकारी पालिका मैदान की ओर बढ़ने लगे. 

वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक, स्थानीय प्रशासन को अनुमान नहीं था कि इतनी बड़ी संख्या में लोग पालिका मैदान की ओर बढ़ेंगे इसलिए वह अनिश्चय की मुद्रा में था. पुलिस ने पहले कोशिश की कि भीड़ को पालिका मैदान से डेढ़ किलोमीटर पहले चौधरी सराय में रोक ले. लेकिन पुलिस ऐसा करने में नाकामयाब हो गई. आस-पास के इलाकों में घबराहट का महौल बन गया और लोगों ने दुकाने बंद कर लीं.

11.30 बजे प्रदर्शनकारी पालिका मैदान पहुंचे. वहां पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार की. भीड़ तितर-बितर हो गई लेकिन लोग बाद में वापस जमा हो गए. कुछ नेताओं ने सीएए के खिलाफ भाषण दिए और प्रदर्शन 1.30 बजे के करीब खत्म हो गया. पुलिस और प्रशासन ने बर्क और फिरोज खान से भीड़ को हटाने में मदद करने के लिए कहा. दोनों ही नेताओं ने उनकी बात मान ली. अधिकांश स्थानीय प्रदर्शनकारी अपने घर लौट गए और जो लोग शेख सराय से आए थे, वे अपने घरों की तरफ चल पड़े.

हिंसा कैसे शुरू हुई, इसके बारे में अलग-अलग मत हैं. कई लोगों का कहना है कि हिंसा तब शुरू हुई जब पुलिस ने शेख सराय तारीन की ओर जा रहे प्रदर्शनकारियों से बदसलूकी की. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया और जवाब में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया. वरिष्ठ पत्रकार ने बताया, “पुलिस ने भीड़ पर आंसू गैस से हमला किया और कई बार हवाई फायरिंग की. भीड़ तितर-बितर हो गई लेकिन करीब 2.00 बजे दो बसों में आग लगा दी गई.”

बाद में पुलिस ने बर्क और फिरोज खान समेत 15 लोगों को हिंसा के अपराध में गिरफ्तार कर लिया. गुरुवार को जिला प्रशासन ने सम्भल में इंटरनेट बंद कर दिया. उसके बावजूद सम्भल में अफवाहों का बाजार गर्म रहा.

वरिष्ठ पत्रकार का मानना है कि बर्क और महमूद ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए सीएसीए विरोधी प्रदर्शन का इस्तेमाल किया है. उन्होंने कहा, “पहले आप लोगों को भेजते हो,  फिर उन्हें शांत होने के लिए कहते हो. और जब निर्दोष लोग परेशानी में फंस जाते हैं, तो आप नदारद हो जाते हो. इसमें कौन सी ईमानदारी है?”

वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया कि लोग इस बात से नाराज थे कि जाने-माने मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम समाज के कार्यकर्ताओं को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने शांत प्रदर्शन का जिस प्रकार दमन किया, वह मुस्लिम समुदाय से उसके प्रदर्शन के अधिकार को छीन लेने जैसी बात थी.

अगले दिन किसी भी राजनीतिक या धार्मिक संगठन ने प्रदर्शन की आधिकारिक अपील जारी नहीं की. लेकिन शुक्रवार की नमाज के बाद प्रदर्शनकारी छोटे समूहों में सम्भल के चंदौसी  चौक इलाके की ओर बढ़ने लगे. वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि जुलूस कर रहे लोगों का कोई नेता नहीं था और इनमें नौजवानों की संख्या ज्यादा थी.

उन्होंने बताया कि जुलूस को रोकने की कोशिश हुई. पुलिस ने माइक से लोगों को कहा कि वे अपने घर लौट जाएं. लेकिन जब चौराहा सरकारी अस्पताल के सामने लोगों का हुजूम लग गया, तब जा कर पुलिस को पता चला कि प्रदर्शन बहुत बड़ा है.

चौराहा सरकारी अस्पताल में लोगों को रोकने के लिए बैरिकेड लगा दिए. बैरिकेड के दूसरी तरफ से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने लोगों से बातचीत करने की कोशिश की. अधिकारियों ने कहा कि अपनी मांगों का ज्ञापनपत्र उन्हें या स्थानीय प्रशासन को सौंप दें. चूंकि भीड़ का कोई नेता नहीं था, इसलिए लोगों ने पुलिस से बात नहीं की. जब भीड़ बढ़ने लगी तो पुलिस ने बैरिकेड हटा दी.

2 और 3 बजे के बीच भीड़ चंदौसी चौराहा पहुंची. इसके बाद पुलिस लोगों को चेतावनी देने लगी कि अगर वे लोग पीछे नहीं हटे तो पुलिस कार्रवाई करेगी. वरिष्ठ पत्रकार उस स्थान से बस 300 मीटर की दूरी पर थे. कुछ लोगों ने आकर बताया कि लोगों ने एक स्थानीय पत्रकार पीट दिया है. स्थानीय पत्रकार लोगों की फोटो खींच रहा था इसलिए लोगों को लगा कि वह पुलिस का आदमी है जो विरोध करने वालों की पहचान के लिए फोटो खींच रहा है. वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि इससे पुलिस को मौका मिल गया कि वह भीड़ पर लाठी चार्ज करे. पुलिस ने आंसू गैस का हमला किया और लोगों पर पानी की बौछार की. बाद में पुलिस ने स्वीकार किया कि उसने गोली भी चलाई थी. इसके बाद भगदड़ मच गई और पुलिस ने उन लोगों को गिरफ्तार कर लिया है जो घायल हो गए थे और वहां से भाग नहीं पाए.

उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों की तरह जिन मुसलमानों को यहां गिरफ्तार किया गया वे गरीब परिवारों से आते हैं. महबूब खान सराय में मेरी मुलाकात उन मुस्लिम महिलाओं से हुई जिनके बच्चों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

80 साल की नफीसा ने बताया कि उनका 19 साल का पोता सलमान, जो मजदूरी करता है, लापता है. वही घर का एकमात्र कमाने वाला है. परिवार में सलमान के माता-पिता, दादी और तीन बहने हैं. जब से सलमान लापता है, चॉल के लोग परिवार की मदद तो कर रहे हैं लेकिन इससे पूरा नहीं पड़ता.

20 दिसंबर को परिवार के लोग सलमान को फोन लगाते रहे. चॉल के लोग यह सोचकर कि कहीं सलमान मर न गया हो, उसे नाले में ढूंढने लगे. उन लोगों को नहीं पता चला कि चार दिन तक सलमान कहां था. फिर पुलिस ने बताया कि सलमान बरेली जेल में बंद है.

सलमान की मां अशकारा 29 दिसंबर को उससे जेल में मिलीं. उन्होंने मुझे बताया कि वह “रोए जा रहा था. बार-बार कह रहा था कि मुझे जेल से बाहर निकालो.” अशकारा ने बताया कि उसके हाथ-पैर में सूजन थी जिससे लग रहा था कि पुलिसवालों ने उसे पीटा था.

25 साल के मरगूफ अंडे की दुकान लगाते थे. वह भी घर के एकमात्र कमाने वाले थे. उनके घर में उनकी दादी, मां और एक विधवा बहन रहती हैं. वह आपनी 85 साल की दादी, जिनका नाम मिश्किन है, के लिए दवा लेने गए थे जब पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर लिया.

30 दिसंबर को जब मैं मिश्किन से मिला, तो वह बेहाल थीं. उन्होंने मुझे बताया, “उसका  बाप नहीं है और मैं विधवा हूं. वह अंडे बेचा करता था. सारे अंडे बर्बाद हो गए हैं. अब आप ही बताओ मैं अपने लिए खाना कहां से लाऊं, दवा कहां से लाऊं. आज के समय में कौन मेरा खर्च उठाएगा.”

मिश्किन बरेली जेल जाकर मरगूफ से नहीं मिल पाईं. महबूब खान सराय में रहने वाले उनके पड़ोसियों ने उन्हें बताया कि पुलिस में महबूब को बेरहमी से पीटा है.

प्रदर्शन के दौरान 31 साल के खेतिहर मजदूर मोहम्मद बिलाल की गोली लगने से मौत हो गई. बिलाल की शादी को 5 साल हुए थे. बिलाल की बीवी और चार, दो और 10 महीने की तीन बेटियां हैं. जब मैं शाहबाजपुर खेड़ा में बिलाल के घर गया तो उनकी बड़ी बेटी दो कमरे के घर में खेल रही थी. वहां जिस तरह का सन्नाटा था, उसे बेटी की खेलने की आवाज भंग रही थी.

परिवारवालों के अनुसार, 20 दिसंबर को दोपहर तकरीबन 3 बजे बिलाल हाल ही में खरीदी अपनी कार की किस्त चुकाने मुरादाबाद के लिए रवाना हुए थे.

बिलाल के चचेरे भाई हिलाल पाशा, जो सम्भल में ही रहते हैं, ने मुझे बताया कि दोपहर 3.30 और 4 बजे के बीच उनके एक दोस्त का फोन आया कि बिलाल को गोली लगी है. लेकिन उस दोस्त को यह नहीं पता था कि बिलाल कहां है. कुछ देर बाद पाशा के उस दोस्त ने फिर फोन किया और बताया कि हिंद इंटर कॉलेज के लड़के बिलाल को फजल एंड आनंद अस्पताल ले गए हैं. इसके बाद हिलाल ने परिवारवालों को बिलाल की मौत की सूचना दी.

हिलाल ने बताया कि उसके कुछ घंटों बाद पड़ोस में रहने वाले लड़के बिलाल का शव घर ले आए. रास्ते में उन्हें बहुत सारे चैक पॉइंटों से होकर आना पड़ा, जिन्हें पुलिस ने लगाया था.  आधी रात को जब माहौल कुछ शांत हुआ, तो पुलिस बिलाल के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले गई. पुलिस ने 24 घंटे बाद शव परिवार को सौंप दिया. 7 जनवरी तक परिवार को पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं दी गई थी.

इस मामले में बिलाल के परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. शिकायत में कहा गया है कि बिलाल की मौत पुलिस द्वारा हिंद इंटर कॉलेज से गुजर रही भीड़ पर इरादतन गोली चलाने से हुई है. शिकायत में इस मामले छानबीन करने की मांग की गई है.

लेकिन जो एफआईआर पुलिस ने बिलाल की मौत के संबंध में दर्ज की है, उसमें शिकायत को बहुत ज्यादा हद तक कमजोर किया गया है. इसमें पुलिस अधिकारी की गोली से बिलाल की मौत होने का जिक्र नहीं है. एफआईआर के मुताबिक, दोपहर 3 बजे बिलाल अपने एक दोस्त के साथ चंदौसी चौक इलाके से जा रहा था जब उसके चेहरे पर चोट लगी जिसके परिणामस्वरूप बिलाल की मौत हो गई.

बिलाल के परिवारवाले इस एफआईआर की वजह से सकते में हैं. बिलाल के जीजा खुर्शीद आलम ने मुझे बताया कि पुलिस की एफआईआर झूठी है. “बिलाल की मौत पुलिस की गोली लगने से हुई है और अब वे लोग चोट लगने से उसकी मौत बता कर बचना चाहते हैं.”

उस दिन एक और मौत हुई थी. जब एक भीड़ चंदौसी चौराहा की ओर बढ़ रही थी तब दूसरी भीड़ शंकर चौराहा जा रही थी. वरिष्ठ पत्रकार, स्वायत्त शोध संस्था से जुड़े एक नौजवान, दो वकीलों और महबूब नगर के निवासियों और अन्य लोगों ने याद किया कि शंकर चौराहा में हिंदू और मुसलमानों ने एक-दूसरे पर पथराव किया.

शंकर चौराहा के एक ओर दलितों की बस्ती है और दूसरी तरफ मुस्लिम बहुल इलाका है. लगता है कि दलितों को आकर्षित करने में बीजेपी कुछ हद तक कामयाब रही है.

दलित बहुल कॉलोनियों- दुर्गा कॉलोनी, मालियों वाला आलम सराय, हल्लू सराय, वाल्मीकि आलम सराय- के पुरुष, जो अधिकांश वाल्मीकि हैं, सड़कों पर आ गए और मुस्लिम प्रदर्शनकारियों पर पथराव करने लगे. हालांकि किस ने किस पर पहले पथराव किया, यह कोई यकीन से नहीं बता पाया.

सम्भल के वरिष्ठ बीजेपी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि “60-70” हिंदू पुरुषों ने मुसलमानों के पथराव के जवाब में रोड़ेबाजी की थी. नेता ने बताया कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के हिंदू सदस्य अपनी पार्टियों द्वारा सताया जाना महसूस करते हैं और इसलिए “हिंदुत्व की मुख्य लाइन” में शामिल हो गए हैं.

लेकिन एक अवधारणा आम थी कि जब दलित कॉलोनियों के लोग पथराव कर रहे थे तो पुलिस ने उसे नजरअंदाज किया. उस वरिष्ठ बीजेपी नेता ने यह बात मानी कि हिंदू पक्ष को पुलिस का “समर्थन” था. सम्भल के लोगों ने मुझे ऐसे वीडियो दिखाए जिसमें दिखाई पड़ता है कि जब पथराव हो रहा था तो पुलिस बेफिक्र होकर घूम रही थी.

पथराव वाले एक वीडियो में एक आदमी, जिसका चहरा साफ नहीं है, मुसलिम लोगों की ओर गोली चला रहा है. सम्भल के लोगों ने उसकी पहचान संतोष कुमार के रूप में की है और बताया कि उसकी गोली ट्रक चालक मोहम्मद शहरोज को लगी और उसकी मौत हो गई. उस दिन मोहम्मद शहरोज का 22 जन्मदिन था.

मैंने रिपोर्टिंग के दौरान जिन लोगों से बात की उनका मानना था कि मिठाई की दुकान चलाने वाले कुमार ने शहरोज की हत्या की है. स्थानीय लोगों ने बताया कि कुमार स्थानीय राजनीति में सक्रिय है और बीजेपी से जुड़ा है. शोध संस्था में कार्यरत नौजवान ने बताया कि फिलहाल कुमार “भूमिगत” है. बहुत सारे लोगों ने बताया कि बीजेपी नेता राजेश सिंघल ने हिंदू कॉलोनी के लोगों को पथराव करने के लिए उकसाया था. जब मैंने इस बारे में सिंघल से बात की तो उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

मैं सम्भल में शहरोज के घर भी गया. शहरोज के पिता मोहम्मद यामीन के मुताबिक 20 दिसंबर को शहरोज शुक्रवार की नमाज के बाद काम पर जाने वाला था. उसने पड़ोस में किसी जगह दिन का भोजन किया और उसके बाद अपने काम पर चला गया. शहरोज के मालिक सम्भल के नाजुक हालात के मद्देनजर उसे दूसरे दिन घर जाने को कहा था. यामीन के अनुसार जब वह घर आ रहा था तब उसे गोली मार दी गई.

20 दिसंबर की शाम 4 बजे के आस-पास किसी व्यक्ति ने परिवार को शहरोज के मोबाइल से फोन किया. “फोन करने वाले व्यक्ति ने हमें बताया कि शहरोज को सेवा अस्पताल ले जाया गया है. यामीन ने कहा, “सेवा अस्पताल शंकर चौराहा से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर है. हम नहीं जानते उसे कौन सेवा अस्पताल लेकर गया. शहरोज की मां और मेरा भतीजा मोहल्ले के कुछ लोगों के साथ जल्दी से सेवा अस्पताल पहुंचे, जहां अस्पताल के प्राधिकारी ने बताया कि शहरोज को बचाना उनकी क्षमता से बाहर था.” उन्होंने आगे कहा कि अस्पताल के कर्मचारियों ने परिवार को सलाह दी कि वह उसे एशियन हसीना बेगम अस्पताल ले जाएं, जो वहां से 50 किलोमीटर से भी अधिक दूरी पर है. “वहां उन्होंने हमें बताया कि शहरोज का बहुत खून बह चुका है और उसे मुरादाबाद स्थित टीएमयू अस्पताल ले जाने को कहा. यामीन ने बताया कि टीएमयू अस्पताल, एशियन हसीना बेगम अस्पताल से लगभग एक घंटे की दूरी पर है. वहां उन्होंने उसे आपातकलिन वार्ड में दाखिल किया और कुछ समय बाद मृत घोषित कर दिया.”

वहां से, परिवार उसे वापस सम्भल के सरकारी अस्पताल ले आया. कुछ पुलिस कर्मी अस्पताल पहुंचे और रात 9 बजे तक कागजी काम पूरा करने का बाद शहरोज के शव को पोस्टमार्टम के लिए अपने साथ ले गए. ठीक बिलाल के मामले की तरह, पुलिस ने शव वापस करने में 24 घंटे से अधिक समय लिया. परिवार ने रात डेढ़ बजे तक शहरोज का शव पास के एक कब्रिस्तान में दफना दिया.

“पुलिस ने मेरे बेटे को गोली नहीं मारी. वह कोई और ही व्यक्ति है जिसने गोली चलाई”, यामीन ने कहा. मैंने पूछा, क्या उनको लगता है कि कुमार ने गोली चलाई. “नहीं, यहां तक कि मैंने ऐसा एफआईआर में भी नहीं कहा. मैं नहीं जानता कि क्या केस है, न ही मैं उस स्थान पर मौजूद था,” उन्होंने जवाब दिया. यामीन इस सवाल का जवाब देने में अनिच्छुक दिखे कि उनके विचार में शहरोज को किसने मारा है. उन्होंने कहा, “मेरे बच्चे को गोली मारी गई थी और मुझे नहीं मालूम कि गोली पुलिस ने चलाई थी या किसी अन्य व्यक्ति ने.”

उनके जवाबों से थोड़ा उलझकर मैं उनके घर से बाहर निकला. मेरे घर से बाहर निकलते ही मैं शहरोज के चचेरे भाई आदिल से मिला, जिसने अधिक खुलकर अपनी बात रखी. आदिल ने मुझे बताया की पुलिस के पास पोस्टमार्टम की रिपोर्ट थी लेकिन रिपोर्ट को बाहर आने से रोके रखा गया क्योंकि वह सांप्रदायिक समरसता को भंग कर सकती थी. उसने कहा कि आंदोलन की विडियो में हिंदुओं की तरफ खड़े लोगों के चेहरे साफ दिखाई दे रहे थे और पुलिस जानती थी कि वे लोग कौन थे.

“हम इस मामले को लेकर जिला अधिकारी और एसपी से भी मिले,” आदिल ने मुझे अविनाश कृष्ण और एसपी यमुना प्रसाद का हवाला देते हुए बताया. परिवार ने पुलिस कर्मियों को व्हाट्सएप का वह विडियो दिखाया जिसमें संतोष कुमार लोगों की भीड़ पर फाइरिंग करता दिख रहा है. “हमने उनको विडियो दिखाई और कहा कि यह केस ऐसा नहीं है जैसा हमने समझा था. हमें लगा था कि वह पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया. ऐसा कुछ भी उस विडियो में नहीं दिखा. आप देख सकतें हैं कि जो व्यक्ति विडियो में दिख रहा है उसने शहरोज को सीधे गोली मारी और उस ही जगह पर जहां गोली चलाने वाला व्यक्ति खड़ा है शहरोज का शब मिला था. वह सामने से 20-25 मीटर की दूरी से गोली चलाता दिख रहा था,” आदिल ने मुझे बताया.

“हमनें पुलिस को कहा कि उन्हें इस मामले में जांच-पड़ताल करनी चाहिए. हम नहीं जानते कि ये लोग कौन है,” आदिल ने कहा. वह आगे बताते हैं कि वह शहरोज की हत्या के बाद वहां के लोगों से बात करने शंकर चौराहा भी गए थे. “लोगों ने हमें बताया कि पत्थरबाजी और आगजनी एक ही मोहल्ले से की गई थी, जो शंकर कॉलेज और सर्थल चौकी के पीछे है,” उसने कहा. सर्थल चौकी एक हिंदू बहुल इलाका है. स्थानीय लोगों ने बताया कि हिंदुओं की तरफ से पत्थर फेंके जा रहे थे “जिसमें आरएसएस की एक टीम भी शमिल थी.” आदिल ने बताया कि “उनमें से किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया. जब हमनें पुलिस को इस बारे में बताया तब पुलिस ने सम्भल में परिस्थितियों के सुधरने पर दोषियों के खिलाफ कदम उठाने का आश्वासन दिया.”

पुलिस शहरोज की हत्या के मामले को लेकर उचित कार्रवाई में अनिच्छुक दिखाई पड़ी. सम्भल पुलिस थाने में हुई इस की एफआईआर में लिखा गया है कि शहरोज की मौत चंदोसी चौराहा पर हुई हिंसा के कारण हुई है. एफआईआर में किसी व्यक्ति की तरफ से गोली चलाने की बात कहीं नहीं है. इसके साथ ही एफआईआर भारतीय दंड सहिता की धारा 304 के अंतरगत दर्ज की गई थी जो गैर इरादतन हत्या की धारा है.

“हमारा भाई अब नहीं रहा लेकिन जिन लोगों ने उसे मारा उन्हें सजा मिलनी चाहिए,” आदिल ने कहा. “आज उन्होंने मेरे भाई को मारा है कल उनकी हिम्मत और बढ़ सकती है.

30 दिसंबर को सम्भल पुलिस थाने में मैं सिंह और प्रसाद से मिला. मैंने पुलिस थाने के बाहर एशियन न्यूज इंटरनेशनल, रिपब्लिक भारत और कुछ अन्य पत्रकारों के साथ इंतजार किया. जब हम लोग अंदर पहंचे तब सभी रिपोर्टर सिंह की सीधे बाइट लेने के लिए लाइन में लग गए. सिंह उस वक्त उन नोटिसों के बारे में बात कर रहे थे जो सम्भल पुलिस ने आंदोलन के दौरान हुई सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई को लेकर जारी किए थे. इस नोटिस में 59 बलवाइयों से 15.35 लाख रुपए की भरपाई करने को कहा गया था.

सिंह और वहां मौजूद मीडिया कर्मियों के बीच एक तरह का सौम्य संबंध नजर आ रहा था. सिंह ने कहा कि पुलिस सीसीटीवी और मीडिया से प्राप्त विडियों से उन लोगों को पहचानने में समर्थ थी जो हिंसा में शामिल थे. प्रसाद ने कहा कि उन्हें ये विडियो धर्मेंद्र से प्राप्त हुई हैं, धर्मेंद्र एएनआई के लिए काम करने वाले पत्रकार हैं जो उस वक्त पुलिस थाने में मौजूद थे.   

पुलिस कर्मियों ने थाने में मौजूद मीडिया के प्रति प्रशंसा का भाव दिखाया. सिंह ने कहा, “यह पहली बार है जब भारतीय मीडिया ने सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति उत्तरदायित्व का भाव दिखाया है. जब से उत्तर प्रदेश में सीएए का विरोध करने वाले आंदोलनकारियों पर पुलिस ने कार्रवाई की है, तब से ही.”

मैंने सिंह और प्रसाद से कुमार का कथित रूप से शहरोज की हत्या में हाथ होने और जांच-पड़ताल की स्थिति के बारे में पूछा. प्रसाद ने कहा, “इस केस में अभी जांच-पड़ताल की जा रही है.”

बरेली जेल में नाबालिगों को आपराधियों के साथ रखे जाने पर मैंने उनसे सवाल किया. “यदि कोई 15 साल को बच्चा आप पर बंदूक तान दे या पत्थर मारे, इस पर आप क्या कहेंगे? आप क्या करेंगे? उसे छोड़ देंगे?”, प्रसाद ने कहा. सिंह ने कहा कि गिरफ्तार लोगों में से कोई भी नाबालिग नहीं है. “वे सभी घटना स्थल से गिरफ्तार हुए हैं और जेल में उम्र का निर्धारण किया जाएगा. वे घटना स्थल से गिरफ्तार किए गए बलवाई हैं. यदि वे नाबालिग हैं तो उनको जुवेनाइल कोर्ट भेजा जाएगा- मत सोचिए कि उनको छोड़ दिया जाएगा.”

मैंने सिंह को बताया कि स्थानीय लोगों के साथ मेरी बातचीत से लगता है कि पुलिस मुस्लिमों को ही निशाना बना रही थी. सिंह ने कहा, “वास्तविकता यह है कि कुछ देशद्रोही तत्वों ने शांति और सद्भाव को बिगाड़ने का लिए आंदोलन का सहारा लिया. इसके साथ ही इन देशद्रोही तत्वों ने अन्य राज्यों में इसे फैलाने के लिए साथ काम किया है.” उन्होंने आगे कहा, “आपको यह तथ्य जानना चाहिए. वास्तव में आपको इसके बारे में हमसे बेहतर होना चाहिए.”

जब मैंने उनसे वापस सवाल करने की कोशिश की, सिंह ने कहा, “उन 50 पुलिसवालों के बारे में बात करो जो घायल हुए हैं. उनके बारे में भी बात करो. क्या तुम उन्हें नहीं देख सकते? बातचीत के बीच एक समय प्रसाद ने सिंह की तरफ देखा और कहा, “यह दिल्ली के जामिया से आए हैं, इनके अखबार ही इसके बारे में बतांएगे.” प्रसाद दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के बारे में बात कर रहे थे जहां दिल्ली पुलिस ने जामिया के आंदोलनकारी छात्रों के खिलाफ बर्बर बल प्रयोग किया था. बाद में सिंह ने मुझसे कहा, “आप उपद्रव करने वालों का परचम लेकर चल रहे हैं क्या?”

अनुवाद : अंकिता