भारतीय जनता पार्टी की हिंदुत्ववादी विचारधारा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लगातार विरोध करने वाला राज्य है तमिलनाडु . 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को राज्य में एक भी सीट नहीं मिली . पार्टी 2014 में जीती अपनी एकमात्र सीट भी नहीं बचा पाई. जब भी मोदी तमिलनाडु की यात्रा करते हैं तो यह राज्य उबल-सा पड़ता है. जब मोदी डिफेंस एक्सपो-2018 का उद्घाटन करने चैन्नई पहुंचे थे तो "मोदी गो बैक" के नारों से लोगों ने उनका स्वागत किया था. इस महीने की शुरुआत में भी जब मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ ममल्लापुरम में बैठक के लिए राज्य का दौरा किया तो फिर से यह नारा ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा. तमिलनाडु के कई राजनीतिक दल आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म किए जाने जैसे केंद्र सरकार के फैसलों के मुखर विरोधी रहे हैं.
तमिलनाडु में बीजेपी की चुनावी विफलता के बारे में, स्वतंत्र पत्रकार एजाज अशरफ ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में सहायक प्रोफेसर कलैयारासन ए से बातचीत की. कलैयारासन ने तमिलनाडु में ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म के विरोध के लंबे इतिहास को बीजेपी की विफलता का कारण बताया.
कलैयारासन ए ने तमिल पहचान का निर्माण करने में जाति-विरोधी आंदोलनों की अहम भूमिका और मोदी व उनकी टीम द्वारा हिंदुत्व विरोधी इस गढ़ को तोड़ने के लिए अपनाई गई रणनीति के बारे में चर्चा की. राज्य में मुस्लिम समुदाय के संदर्भ में कलैयारासन कहते हैं, "समानता का इस्लामी विचार उस घृणा के बिल्कुल उलट था, जो संस्कृत बोलने वाले कुलीन वर्ग निचली जातियों के प्रति रखते थे." उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में मुसलमानों को अगल-थलग करने की बीजेपी की “योजना असफल हो गई.”
एजाज अशरफ : जब मोदी ममल्लापुरम में शी से मुलाकात कर रहे थे, तब हैशटैग #GoBackModi को डेढ लाख से अधिक बार ट्वीट किया गया था. तमिलनाडु में मोदी का प्रभाव क्यों नहीं है?
कलैयारासन ए : तमिलनाडु में मोदी का बहुत कम असर है. काफी हद तक यह भारतीय जनता पार्टी के बारे में तमिलनाडु की इस सोच का नतीजा है कि बीजेपी हिंदी-हिंदू-ब्राह्मणवादी पहचान को उस पर लादने का औजार है. बीजेपी से पहले कांग्रेस इस वर्चस्व को कायम करने का साधन थी. हालांकि मोदी ने खुद को एक सबल्टर्न तमिल भाषा प्रेमी दिखाने की कोशिश की. हालांकि मोदी और उनकी पार्टी इस धारणा को बदलने में कामयाब नहीं हुए कि वे ब्राह्मणवाद और संस्कृतनिष्ठ तमिल के हितों के प्रतिनिधि हैं.
एजाज अशरफ : संस्कृतनिष्ठ तमिल से आपका क्या आशय है?
कलैयारासन ए : तमिल पहचान को बस एक भाषा के सवाल से जोड़ कर देखना गलत है. तमिल पहचान ऐतिहासिक रूप से संस्कृत के वर्चस्व और जातिगत ऊंच-नीच के विरोध में विकसित हुई है. तमिल भाषा में बोलने का अर्थ निचली जाति के दावे से है क्योंकि उच्च जाति के हिंदू संस्कृत में बात करते थे.
एजाज अशरफ : क्या इसलिए तमिलनाडु में भाषा और जाति एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई हैं?
कलैयारासन ए : हां. इस जुड़ाव ने तमिल को भी धर्मनिरपेक्ष बना दिया है. मुसलमानों को तमिल पहचान से बाहर नहीं, बल्कि तमिल पहचान के आंतरिक तत्व के रूप में देखा जाता है.
एजाज अशरफ : मुसलमान तमिल पहचान का तत्व कैसे बने? मुझे याद है कि दिवंगत स्कॉलर एम एस एस पांडियन भी एकदम यही बात कहा करते थे.
कलैयारासन ए : 1930 के दशक में, मुसलमानों के बीच एक नारा बहुत लोकप्रिय था, “इस्लाम हमारी राह है, मीठी तमिल हमारी भाषा है.”ज्यादातर प्रसिद्ध तमिल कवि मुस्लिम हैं. तमिलनाडु में कोई भी उन्हें सिर्फ इसलिए अस्वीकार नहीं करेगा क्योंकि वे मुस्लिम हैं. अब्दुल रहमान, जिनका जून 2017 में निधन हो गया था, को "कवियों की मां" के रूप में पहचाना जाता है, कम से कम इसलिए भी क्योंकि उन्होंने कई कवि तैयार किए.
एजाज अशरफ : क्या यह इसलिए भी था कि बीसवीं सदी की शुरुआत में सामाजिक कार्यकर्ता पेरियार ने जाति-विरोधी स्वाभिमान आंदोलन शुरू किया था, जिसने ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म पर तीखे सवाल उठाए और जानबूझकर मुसलमानों को अपने पाले में खींच लिया?
कलैयारासन ए : स्वाभिमान आंदोलन का निर्णायक पहलू जाति समानता का मुद्दा था. एक समझ थी कि इस्लाम समानता का धर्म है. उदाहरण के लिए, पेरियार ने कहा, “इस्लाम में… कोई ब्राह्मण या शूद्र या पंचम जाति (सबसे कम जाति) नहीं है. दूसरे शब्दों में, इस्लाम की स्थापना एक खुदा और एक जाति, यानी एक परिवार और एक देवता के सिद्धांत पर हुई है.” जातियों में विभाजित हिंदू धर्म की आलोचना करना और तमिल पहचान के भीतर इस्लाम को एकजुट करना साथ-साथ चलने वाली प्रक्रिया बन गई. ऐसा नहीं है कि द्रविड़ नेता इस्लाम के कुछ पहलुओं के आलोचक नहीं थे.
एजाज अशरफ : किन पहलुओं के?
कलैयारासन ए : वे पर्दा प्रथा और मौलवी वाली व्यवस्था के भी आलोचक थे, जो इस्लाम की कुप्रथा थी. इस्लाम धर्म इस वर्ग को मान्यता नहीं देता. पेरियार ने कहा था कि इस्लाम की समानता का विचार निचली जातियों के लिए फायदेमंद है. समानता का इस्लामी विचार उस घृणा के बिल्कुल विपरीत था जो संस्कृत बोलने वाले कुलीन वर्गों की निचली जातियों के लिए थी क्योंकि मुसलमान भी तमिल भाषा बोलते थे और उसे खुशी-खुशी स्वीकार करते थे इसलिए वे और गैर-ब्राह्मण जातियां भाषा के सवाल पर एक साथ आ गईं.
एजाज अशरफ : उत्तर भारत में ऐसा नहीं हुआ. वहां के मुसलमान और निचली जातियों को कोई आंदोलन एकजुट नहीं कर पाया. दोनों बस चुनाव में साथ आते हैं.
कलैयारासन ए : हां, यह काफी हद तक इसलिए है क्योंकि उत्तर भारत के कुलीन मुस्लिम, कुलीन हिंदुओं या उच्च जातियों के साथ 1980 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू होने तक बहुत सहज थे. इसके विपरीत, तमिल पहचान बनाने में मुसलमानों की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
एजाज अशरफ : तमिलनाडु के मुसलमानों ने उत्तर भारत के अपने भाइयों के प्रति एक अलग रवैया क्यों अपनाया है?
कलैयारासन ए : तमिलनाडु मुसलमानों की शैक्षिक स्थिति के मामले में सभी राज्यों से ऊपर और आर्थिक रूप से, केरल के बाद दूसरे स्थान पर है. तमिलनाडु में मुसलमानों की सामाजिक गतिशीलता राज्य के सामाजिक-न्याय के ढांचे के एक अनिवार्य तत्व के कारण है. वे लंबे समय से आरक्षण का लाभ प्राप्त करने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में थे. 2007 में उन्हें ओबीसी आरक्षण के भीतर तीन-प्रतिशत का अतिरिक्त आरक्षण भी दिया गया. इसने उन्हें शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाया है. 1919 से 1957 के बीच प्रकाशित होने वाली एक तमिल पत्रिका दारुल इस्लाम के संपादक पी दाउद शाह ने अपने धर्म को समझने के लिए मुसलमानों के बीच तमिल के उपयोग को प्रचारित किया. वह चाहते थे कि सभी मुसलमान तमिल में शिक्षित हों और राष्ट्रीय मुद्दों पर ब्राह्मणवादी अवस्थिति अपनाने से बचें.
एजाज अशरफ : क्या ऐसा हो सकता है कि बीजेपी तमिलनाडु में अपनी पकड़ बनाने में इसलिए नाकाम रही हो क्योंकि उसके लिए मुसलमानों को अलग-थलग करना इस राज्य में उतना आसान नहीं है जितना अन्य राज्यों में है?
कलैयारासन ए : बिल्कुल, लेकिन ऐसा नहीं है कि बीजेपी ने मुस्लिमों को अलग-थलग करने, या उनको खतरे के रूप में दिखाने की कोशिश नहीं की. उदाहरण के लिए, 1998 में जब कोयंबटूर में बम विस्फोट और हिंसा की घटनाएं हुईं, तब उन्होंने इसकी कोशिश की थी. उस वक्त भी बीजेपी न तो चुनावी लाभ ही हासिल कर पाई और न हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करने में सफल हो सकी. तमिलनाडु के मुसलमान अपनी तमिल पहचान के प्रति बेहद आश्वस्त हैं क्योंकि तमिल-पहचान और भाषा, समानता और धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है. इसलिए राज्य की राजनीति निम्न जातियों और मुसलमानों को एक साथ एक मंच पर आने को संभव बनाती है.
एजाज अशरफ : क्या आप यह कह रहे हैं कि तमिलनाडु में मुसलमानों को अलग-थलग कर पाना या उनको खतरे के रूप में दिखा पाना मुश्किल होगा?
कलैयारासन ए : सच कहूं तो, यह एक असफल परियोजना है.
एजाज अशरफ : बीजेपी अलग-अलग तरीकों से तमिलनाडु में घुसने की कोशिश कर रही है. उदाहरण के लिए, मोदी ने शी के साथ मुलाकात के दौरान धोती पहनी थी और ह्यूस्टन में हालिया एक कार्यक्रम में उन्होंने तमिल में एक लाइन बोली थी जो काफी चर्चा में रही. उन्होंने बार-बार तमिल भाषा के लिए अपने प्यार पर जोर दिया है.
कलैयारासन ए : यह बीजेपी की हिंदुत्व को तमिल हितैषी बनाने की रणनीति का एक हिस्सा है. 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही पूर्व राज्यसभा सांसद तरुण विजय (जो पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदी साप्ताहिक पांचजन्य के संपादक थे) ने तमिल भाषा और महान शास्त्रीय तमिल कवि तिरुवल्लुवर का समारोह आयोजित करने की कोशिश की. आरएसएस-बीजेपी ने हरिद्वार में उनकी प्रतिमा भी लगाई. उन्होंने 2018 में पुरातत्वविद् आर नागास्वामी को पद्म भूषण दिया क्योंकि नागास्वामी ने यह स्थापित करने का प्रयास किया था कि शास्त्रीय तमिल वैदिक संस्कृति का हिस्सा थी. यह अतीत को फिर से लिखने जैसा है.
एजाज अशरफ : शास्त्रीय संस्कृत या वैदिक साहित्य से शास्त्रीय तमिल कैसे अलग है?
कलैयारासन ए : शास्त्रीय तमिल जाति से नहीं जुड़ी है और न ही यह संगठित धार्मिक पूजा से जुड़ी है. यह शास्त्रीय तमिल को शास्त्रीय संस्कृत का बहुत ज्यादा विरोधी बनाती है. गौरतलब है कि शास्त्रीय तमिल वैदिक परंपरा से पहले से अस्तित्व में थी.
एजाज अशरफ : मदुरै के पास कीझड़ी में हुई खुदाई में 400 ईसा पूर्व से 200 ईसवीं के बीच की अवधि के संगम युग की कलाकृतियां मिली हैं. संगम युग को व्यापक रूप से तमिल कला और साहित्य शीर्ष काल माना जाता है. क्या इसीलिए उसने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है? आखिरकार, कीझड़ी की खुदाई शास्त्रीय तमिल संस्कृति की प्राचीनता और शहरी बस्तियों के अस्तित्व को स्थापित करती है.
कलैयारासन ए : बिल्कुल, इससे यह भी साबित होता है कि शास्त्रीय तमिल वैदिक परंपरा से अलग थी. जिस तरह मुसलमानों को अलग-थलग करने से बात नहीं बनी, उसी तरह से भाषा के जरिए तमिलनाडु में घुसने की बीजेपी की कोशिशें नाकाम रही हैं. तमिलनाडु में भाषा का मुद्दा जातिगत समानता और धर्मनिरपेक्षता से जुड़ा है. तमिलनाडु में हिंदी को संस्कृत आधारित कुलीनों या ब्राह्मणों की घुसपैठ के एत जरिए के रूप में देखा जाता है. दिल्ली आज भी हिंदी का पर्याय बनी हुई है.
एजाज अशरफ : लेकिन बीजेपी ने वर्चस्वशाली समूहों के खिलाफ जातियों को एकजुट करने में जबरदस्त हुनर दिखाया है. क्या वह तमिलनाडु में भी अपनी जातीय राजनीति नहीं चमका सकती?
कलैयारासन ए : वह पहले से ही तमिलनाडु में जाति समूहों के बीच असमान विकास का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है. राजनीतिक वैज्ञानिक क्रिस्तोफ जैफ्रलो और मैंने इस बारे में लिखा है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने किस तरह जातियों के बीच असमान विकास का लाभ वर्चस्वशाली यादवों के खिलाफ उठाया है. तमिलनाडु में भी जातियों के बीच टकराव है.
एजाज अशरफ : जातीय टकरावों का फायदा उठाने की बीजेपी की रणनीति क्या होती है?
कलैयारासन ए : बीजेपी तमिलनाडु में राजनीति को प्रभावित करने के लिए जाति संघों, जिनमें से कुछ मंदिरों और शैक्षणिक संस्थानों के मालिक भी हैं, का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है. पुथिया तमिकागम पार्टी के माध्यम से दक्षिण तमिलनाडु में दलितों के एक हिस्से को अपने पक्ष में करने कोशिश की जा रही है. इसके नेता के कृष्णासामी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की. कृष्णास्वामी की मांग है कि उनकी जाति, देवेंद्र कुला वेल्लार को ओबीसी में अपग्रेड किया जाए. पिछड़ी जातियों में, बीजेपी उन नादारों को लुभाने की कोशिश कर रही है, जिन्हें आर्थिक-विकास की प्रक्रिया में शामिल किया गया था. लेकिन हिंदू नादरों को ईसाई नादरों से समस्या है. कन्याकुमारी क्षेत्र में बीजेपी इसे भुनाने की कोशिश कर रही है. बीजेपी तिरुप्पुर-कोयंबटूर बेल्ट में गौंडरों को भी निशाना बना रही है और वनलियार बेल्ट में घुसने के लिए पट्टली मक्कल काची के साथ गठबंधन का प्रयोग कर रही है.
एजाज अशरफ : बीजेपी को जाति की राजनीति में सफलता मिलने की कितनी संभावना है?
कलैयारासन ए : इसकी बहुत कम संभावना है. ऐसा इसलिए है क्योंकि तमिल-द्रविड़ राजनीति ने जातियों के बीच असमानता के मुद्दे को दूर करने की कोशिश की है. उदाहरण के लिए, जब संख्यात्मक रूप से महत्वपूर्ण वन्नियार को छोड़ दिया गया, तो उन्हें 1989 में अति पिछड़ी जाति की श्रेणी में शामिल किया गया, जिसे ओबीसी आरक्षण के कुल 50 प्रतिशत में से 20 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था. 2008 में आरक्षण के लिए दलितों का उप-वर्गीकरण किया गया. इन दोनों उपायों को द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के नेता एम करुणानिधि ने लागू किया था. तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण है, जिसके भीतर विभिन्न जाति समूहों के हितों को समायोजित किया गया है. इसलिए बीजेपी के लिए बड़ी संख्या में जातियों को यह विश्वास दिलाना मुश्किल हो जाता है कि द्रविड़ पार्टियों ने उन्हें धोखा दिया है. लेकिन द्रविड़ दलों को तमिल से अलग करने के तमिल राष्ट्रवादियों के एजेंडे से बीजेपी का तमिलनाडु में घुसने के लिए एक रास्ता खुला है.
एजाज अशरफ : तमिल राष्ट्रवादी कौन हैं?
कलैयारासन ए : तमिल राष्ट्रवादी वे हैं जो दावा करते हैं कि किसी व्यक्ति के तमिल होने के लिए उसका ऐतिहासिक तमिल राज्य में पैदा होना जरूरी है और तमिल राज्य में उसकी ऐतिहासिक जड़ें होनी चाहिए. तमिल राष्ट्रवादी कैसे पहचानते हैं कि तमिल कौन है? वे इसे जातीय वंशावली और घर पर बोली जाने वाली भाषा के जरिए पहचानते हैं. राष्ट्रवादियों द्वारा तमिल के रूप में समझा जाने वाला व्यक्ति उनकी नजर में एक शुद्ध तमिल है. , सिर्फ इसलिए कि उनमें से कुछ का तेलुगु या मलयालम मूल था, वे द्रविड़ पार्टियों को दूषित तमिलों के रूप में देखते हैं. तमिल राष्ट्रवादियों का तर्क संदिग्ध है, लेकिन यह दूसरा मामला है.
तमिल राष्ट्रवादियों के दृष्टिकोण को एक सिख के उदाहरण से सबसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है, जिससे 2017 में पूछा गया था कि वह जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध के विरोध में क्यों भाग ले रहा है. सिख ने कहा, "तुम कौन होते हो यह कहने वाले कि मैं तमिल नहीं हूं?” उसके लिए, तमिल पहचान उसकी सिख पहचान की विरोधी नहीं है. हालांकि, तमिल राष्ट्रवादियों के लिए सिख लोग तमिल नहीं हो सकते हैं और न ही उर्दू बोलने वाले मुस्लिम ही तमिल हो सकते हैं. तमिल राष्ट्रवादियों की परियोजना पिछले सौ वर्षों में द्रविड़ आंदोलन द्वारा तैयार की गई तमिल पहचान के विपरीत एक अलग तमिल पहचान का निर्माण करना है.
एजाज अशरफ : राष्ट्रवादी तमिल पहचान और द्रविड़ पहचान के बीच अंतर कर रहे हैं.
कलैयारासन ए : द्रविड़ पहचान एक राजनीतिक पहचान है. यह जातीयता पर आधारित पहचान नहीं है. द्रविड़ पहचान भविष्य की यानी आधुनिकता की पहचान है. इसके कई स्रोत थे : तमिल इतिहास से, जाति-विरोधी आंदोलन से और विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यक से. दूसरी ओर तमिल राष्ट्रवादियों की पहचान जातीयता पर आधारित है और समावेशी नहीं है. कोई भी व्यक्ति द्रविड़ पहचान को तब तक अपना सकता है जब तक कि वह तमिल भाषा को अपनी लोक भाषा, जाति समानता और धर्मनिरपेक्षता के रूप में मानने के अपने आदर्शों का पालन करता है. लेकिन हर कोई तमिल पहचान को नहीं अपना सकता क्योंकि यह वंश पर आधारित है. उदाहरण के लिए, धार्मिक अल्पसंख्यक तमिल नहीं हो सकते.
एजाज अशरफ : तमिल राष्ट्रवाद के बारे में तमिल राष्ट्रवादियों का तर्क बीजेपी की ब्राह्मणवादी शुद्धता और श्रेष्ठता से मेल खाता है. उनकी संख्या कितनी होगी?
कलैयारासन ए : वास्तव में तमिल राष्ट्रवादियों और बीजेपी के बीच एक स्पष्ट समानता है. अब तक तमिल राष्ट्रवादियों की संख्या कम है. उनकी पार्टी- नाम तमिलर काची (जिसका अर्थ है "हम तमिल पार्टी") - अभी बस उभर रही है. उसे 2016 के विधानसभा चुनावों में लगभग एक प्रतिशत और 2019 के लोकसभा चुनावों में चार प्रतिशत वोट मिले थे.
लगभग दस-पंद्रह साल पहले एनटीके की भूमिका हिंदू मुन्नानी या हिंदू मोर्चे से कुछ हद तक मिलती-जुलती रही है. हिंदू-मुन्नानी उस समय अस्तित्व में आया, जब आरएसएस-बीजेपी राज्य में खुद को स्थापित करना चाहती थी. मुन्नानी ने निम्न-जाति समूहों के सदस्यों को शामिल किया क्योंकि बड़े पैमाने पर ब्राह्मणों से जुड़ी किसी भी चीज से तमिलनाडु में बहुत अधिक लाभ हासिल नहीं होता. हिंदू मुन्नानी की भूमिका अब तमिल राष्ट्रवादियों द्वारा निभाई जा रही है, जो बीजेपी के लिए रास्ता बना सकते हैं.
एजाज अशरफ : क्या तमिल राष्ट्रवादी आंतरिक रूप से मुसलमानों का भी विरोध कर रहे हैं?
कलैयारासन ए : जातीय शुद्धता का उनका सिद्धांत मुसलमानों और अन्य धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को खुद ब खुद बाहर कर देता है.
एजाज अशरफ : तमिल राष्ट्रवादी बीजेपी के लिए किस तरह से रास्ता बना सकते थे?
कलैयारासन ए : तमिल राष्ट्रवादी जितना द्रविड़ दलों पर हमला करते हैं, बीजेपी के लिए उतना ही अच्छा है. वे कहते हैं कि द्रविड़ दलों ने तमिल हितों के लिए बहुत नहीं किया. वे द्रविड़ पार्टियों की आलोचना करते हुए उन्हें मूल रूप से विश्वासघाती बताते हैं.
एजाज अशरफ : क्या आपको लगता है कि विश्वासघाती बताने से उनका समर्थन बढ़ेगा?
कलैयारासन ए : द्रविड़ पहचान के भीतर समस्याएं हैं : दलितों ने बहुत हासिल नहीं किया है फिर भी उनकी सापेक्षिक गतिशीलता कुछ मध्य जातियों की चिंता का कारण बनी है. फिर भ्रष्टाचार और द्रविड़ दलों पर जाति के आधार पर राजनीतिक गोलबंदी करने का ठप्पा भी उन पर लगा है. दूसरी तरफ, आप तीन कट्टरपंथियों को एक साथ आते हुए देखते हैं : राष्ट्रवादियों की भाषा का कट्टरवाद, कुछ ऐसे ओबीसी समूहों का जातीय कट्टरवाद जो दलित गतिशीलता के विरोधी हैं और तीसरे, बीजेपी का धार्मिक कट्टरवाद. सवाल यह है कि क्या द्रविड़ पार्टियां इन तीन प्रकार के कट्टरवाद द्वारा पेश की गई चुनौती का सामना कर सकती हैं.
एजाज अशरफ : ये तीन तरह के कट्टरवाद किन कमजोरियों का फायदा उठा सकते हैं?
कलैयारासन ए : मोदी ने अपने विकास के दावे के जरिए उत्तर भारत में बीजेपी की लामबंदी में मदद की. विकास के इन दावों में शौचालय बनाने और गैस सिलेंडर और बिजली प्रदान करने जैसे सामाजिक-सुधार के उपाय शामिल थे. बीजेपी इन नीतियों से बहुत ज्यादा फायदा नहीं ले सकती क्योंकि तमिलनाडु ने कल्याणकारी उपायों के मामलों में गुजरात सहित अधिकांश राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया है. तमिलनाडु का मॉडल गुजरात की तुलना में अधिक समावेशी है.
हालांकि, द्रविड़ दलों के लिए समस्या यह है कि उन्होंने वह मुकाम हासिल करने की उम्मीद जगा दी है जिसे हासिल कर पाना मुश्किल है. तमिलनाडु के 18 से 23 वर्ष के 48 प्रतिशत युवा शैक्षणिक संस्थानों में नामांकित हैं. जो 24 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से दुगना है. इन शिक्षित युवाओं को श्रम बाजार में अपनी जगह बनानी पड़ती है. इस 48 प्रतिशत में बड़ी संख्या में पहली पीढ़ी के पढ़े-लिखे हैं. अगर उन्हें अपनी शैक्षिक योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिलता तो उनका द्रविड़ दलों से मोहभंग हो सकता है.
एजाज अशरफ : क्या आपको इस तरह के असंतोष के लक्षण दिखाई दे रहे हैं?
कलैयारासन ए : लोगों में नाराजगी है कि चेन्नई में रेस्तरां और निर्माण क्षेत्र में अधिकांश श्रमिक बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से हैं.
एजाज अशरफ : लेकिन शिक्षित युवा इस तरह की नौकरी करने के लिए तैयार नहीं होगा.
कलैयारासन ए : आपकी बात सही है लेकिन उनकी बहुत ज्यादा उपस्थिति और उनका दिखाई देना एक खास तरह की प्रतिक्रिया पैदा करता है. हालांकि यह अनुचित और अतार्किक है. यह बाहरी लोगों के खिलाफ तमिल राष्ट्रवादियों की भावनाओं को भड़काने में मदद कर सकता है. ठीक उसी तरह जैसे शिवसेना ने दशकों पहले महाराष्ट्र में किया था. तमिल राष्ट्रवादियों के इस दावे को सही ठहराने के लिए एक सामाजिक माहौल तो मौजूद है ही कि द्रविड़ वाले तमिलों की उपेक्षा करते हैं.
एजाज अशरफ : क्या तमिल राष्ट्रवादियों और बीजेपी का कोई गठबंधन है?
कलैयारासन ए : नहीं, लेकिन वे एक दूसरे की बहुत आलोचना नहीं करते. दोनों का मकसद द्रविड़ दलों को कमजोर बनाना है.
एजाज अशरफ : क्या ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआइएडीएमके) का भविष्य बीजेपी से जुड़ा हुआ है?
कलैयारासन ए : एआइएडीएमके नेताओं की पार्टी है. उसके पास डीएमके की तरह का पार्टी ढांचा नहीं है. एआईएडीएमके का क्या होगा वह इस बात से तय होगा कि उसकी कितनी जगह बीजेपी ले सकती है. एआईएडीएमके की राजनीति बीजेपी के करीब रही है. एआईएडीएमके तेजी से बीजेपी के स्थानीय विकल्प के रूप में दिखाई दे रही है. एक मजबूत नेता की गैर-मौजूदगी में, पार्टी बीजेपी के लिए अनुकूल हो गई है. जबकि एआईएडीएमके ने जे जयललिता के नेतृत्व में भी ब्राह्मणवाद या संस्कृत के बारे में ज्यादा बात नहीं की थी, उनके निधन के बाद आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण और अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने सहित, केंद्र के प्रभुत्व और नीतियों को भी स्वीकार किया है.
एजाज अशरफ : इसके विपरीत, धारा 370 को खत्म किए जाने की आलोचना करने में डीएमके बहुत मुखर रही है.
कलैयारासन ए : डीएमके इसलिए मुखर रही है क्योंकि कश्मीर संघवाद और राज्य की स्वायत्तता के विचारों से जुड़ा हुआ है. लेकिन यह भी सच है कि कश्मीर पर द्रमुक की स्थिति चुनावी लाभ-हानि को देखते हुए है. डीएमके कश्मीर पर उस दिन मौन हो जाएगी जिस दिन उसे लगेगा कि इससे उसको वोट नहीं मिलेगा. आज के तमिलनाडु में, दिल्ली की कश्मीर नीति बीजेपी के एकीकरण और केंद्रीकरण की प्रवृत्ति तथा ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म के सिद्धांत के सांचे में जकड़ी हुई है.
एजाज अशरफ : डीएमके ने दस प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध क्यों किया?
कलैयारासन ए : 1979 में तमिलनाडु में एमजी रामचंद्रन के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक ने आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण दिया था. हालांकि, उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में जल्द ही हार गई और ईडब्ल्यूएस आरक्षण के सरकारी आदेश को वापस ले लिया गया. इसके बजाय उसने ओबीसी आरक्षण को 31 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया. इससे आपको तमिलनाडु की राजनीति के बारे में बहुत कुछ पता चलेगा.
एजाज अशरफ : आप बीजेपी की तमिलनाडु में जीतने की संभावनाओं को कैसे आंकेंगे?
कलैयारासन ए : बीजेपी तब तक तमिलनाडु में जड़ नहीं जमा सकती जब तक कि वह तमिल भाषा को गले नहीं लगा लेती और जाति के ऊंच-नीच वाले विचार को छोड़ नहीं देती. साथ ही उसे अपनी ब्राह्मणवादी छवि मिटनी होगी और समावेशी तमिल पहचान को स्वीकार करना होगा. तमिलनाडु में पैर जमाने के लिए बीजेपी को अपना डीएनए बदलना होगा.
एजाज अशरफ : मान लीजिए बीजेपी तमिलनाडु में जीत जाती है तो इसकी जीत क्या संकेत देगी?
कलैयारासन ए : यह मुझे राजनीतिक गोलबंदी के संकट, अकूत पैसा बहाना, पार्टियों के साथ जोड़-तोड़ और असंतुष्ट नेताओं को अपने पाले में करने का संकेत देगी. तमिलनाडु में बीजेपी की जीत राज्य के गौरवशाली इतिहास की हार होगी.