भारतीय जनता पार्टी की हिंदुत्ववादी विचारधारा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लगातार विरोध करने वाला राज्य है तमिलनाडु . 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को राज्य में एक भी सीट नहीं मिली . पार्टी 2014 में जीती अपनी एकमात्र सीट भी नहीं बचा पाई. जब भी मोदी तमिलनाडु की यात्रा करते हैं तो यह राज्य उबल-सा पड़ता है. जब मोदी डिफेंस एक्सपो-2018 का उद्घाटन करने चैन्नई पहुंचे थे तो "मोदी गो बैक" के नारों से लोगों ने उनका स्वागत किया था. इस महीने की शुरुआत में भी जब मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ ममल्लापुरम में बैठक के लिए राज्य का दौरा किया तो फिर से यह नारा ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा. तमिलनाडु के कई राजनीतिक दल आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म किए जाने जैसे केंद्र सरकार के फैसलों के मुखर विरोधी रहे हैं.
तमिलनाडु में बीजेपी की चुनावी विफलता के बारे में, स्वतंत्र पत्रकार एजाज अशरफ ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में सहायक प्रोफेसर कलैयारासन ए से बातचीत की. कलैयारासन ने तमिलनाडु में ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म के विरोध के लंबे इतिहास को बीजेपी की विफलता का कारण बताया.
कलैयारासन ए ने तमिल पहचान का निर्माण करने में जाति-विरोधी आंदोलनों की अहम भूमिका और मोदी व उनकी टीम द्वारा हिंदुत्व विरोधी इस गढ़ को तोड़ने के लिए अपनाई गई रणनीति के बारे में चर्चा की. राज्य में मुस्लिम समुदाय के संदर्भ में कलैयारासन कहते हैं, "समानता का इस्लामी विचार उस घृणा के बिल्कुल उलट था, जो संस्कृत बोलने वाले कुलीन वर्ग निचली जातियों के प्रति रखते थे." उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में मुसलमानों को अगल-थलग करने की बीजेपी की “योजना असफल हो गई.”
एजाज अशरफ : जब मोदी ममल्लापुरम में शी से मुलाकात कर रहे थे, तब हैशटैग #GoBackModi को डेढ लाख से अधिक बार ट्वीट किया गया था. तमिलनाडु में मोदी का प्रभाव क्यों नहीं है?
कलैयारासन ए : तमिलनाडु में मोदी का बहुत कम असर है. काफी हद तक यह भारतीय जनता पार्टी के बारे में तमिलनाडु की इस सोच का नतीजा है कि बीजेपी हिंदी-हिंदू-ब्राह्मणवादी पहचान को उस पर लादने का औजार है. बीजेपी से पहले कांग्रेस इस वर्चस्व को कायम करने का साधन थी. हालांकि मोदी ने खुद को एक सबल्टर्न तमिल भाषा प्रेमी दिखाने की कोशिश की. हालांकि मोदी और उनकी पार्टी इस धारणा को बदलने में कामयाब नहीं हुए कि वे ब्राह्मणवाद और संस्कृतनिष्ठ तमिल के हितों के प्रतिनिधि हैं.
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