तबाही का तमाशा

बुलडोजर : भारत में हिंदू राष्ट्रवादी शब्दावली का नया शब्द

13 मई 2022 को नई दिल्ली के श्याम नगर में इमारतों को ढहाता एक बुलडोजर. संचित खन्ना/हिंदुस्तान टाइम्स

12 जून 2022 की सुबह, प्रयागराज की एक सामाजिक कार्यकर्ता आफरीन फातिमा ने उस घर को बुलडोज़र से ढहते देखा, जिसमें वह बीस साल से भी ज्यादा समय से रह रही थी. "मैंने इसे यूट्यूब पर लाइव देखा," उन्होंने मुझसे कहा. उनकी मां ने पास ही एक चटाई पर नमाज अदा की.

उनके घर को बुलडोज किए जाने को स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया द्वारा पूरे देश में प्रसारित किया गया था. उत्तर प्रदेश प्रशासन ने दावा किया कि घर अवैध रूप से बनाया गया था, लेकिन फातिमा ने कहा कि विध्वंस राजनीति से प्रेरित था. "यह बदले की कार्रवाई थी," उन्होंने कहा. फातिमा और उनके पिता जावेद मोहम्मद दोनों नरेन्द्र मोदी सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं.

दो दिन पहले ही एक प्रसिद्ध नागरिक अधिकार कार्यकर्ता मोहम्मद को राज्य पुलिस ने गिरफ्तार किया था. पिछले कुछ हफ्तों से, प्रयागराज भारतीय जनता पार्टी की एक राष्ट्रीय प्रवक्ता सहित नेताओं द्वारा पैगंबर मुहम्मद के बारे में अपमानजनक टिप्पणी के बाद विरोध प्रदर्शनों की चपेट में आ गया था. कुछ विरोध हिंसक हो गए थे. पुलिस ने दावा किया कि जावेद दंगों में शामिल था और आंदोलन का "मास्टरमाइंड" था. अपनी गिरफ्तारी के एक दिन बाद, 11 जून की रात लगभग 10 बजे, फातिमा ने कहा कि पुलिस ने परिवार के दरवाजे पर एक पुरानी तारीख का नोटिस चिपका दिया, जिसमें कहा गया कि उनका घर अवैध है और उसे गिरा दिया जाएगा. अगली सुबह बुलडोजर आ गया.

फातिमा ने जोर देकर कहा कि परिवार पिछले 20 सालों से अपने सभी गृह करों का भुगतान कर रहा था और उन्हें किसी भी अवैधता की चेतावनी नहीं दी गई थी. "मेरे पिता को बलि का बकरा बनाया गया था," उन्होंने कहा. "वह विरोध प्रदर्शन का हिस्सा नहीं थे." फातिमा ने कहा, कई मायनों में, उनके घर को गिराने का मकसद शासन का विरोध करने वाले सभी लोगों को चेतावनी देना था. "यह साफ तौर से मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए था."

पिछले साल, विरोध या सांप्रदायिक हिंसा के बाद, भारत ने एक भयानक उपकरण, बुलडोजर तैनात किया है. इसका इस्तेमाल नागरिकों के घरों और संपत्ति को मटियामेट करने के लिए किया जाता है. ज्यादातर मुसलमानों, दंगों या हिंसक विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के आरोपियों के खिलाफ इसका इस्तेमाल होता है. हालांकि अदालत द्वारा उन्हें दोषी ठहराए जाने से पहले ही यह कार्रवाई हो चुकी होती है. यह पैटर्न उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली में देखा गया है. अक्सर, आधिकारिक स्पष्टीकरण यह होता है कि ढहाई गई इमारत राज्य की भूमि पर "अतिक्रमण" या "अवैध निर्माण" है. मानवाधिकार अधिवक्ताओं का कहना है कि यह केवल प्रदर्शनकारियों को डराने और पूरे समुदायों को दबाकर रखकर चुप कराने का एक बहाना है. कानूनी विशेषज्ञों ने इन विध्वंसों को दंडात्मक बताया है. जून में, 12 प्रतिष्ठित भारतीय न्यायविदों ने उस वक्त भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना को लिखते हुए उत्तर प्रदेश में विध्वंस को "सामूहिक अतिरिक्त-न्यायिक दंड" का एक रूप बताया, जो अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है.

फिर भी, मोदी शासन के समर्थकों ने बुलडोजर के इस्तेमाल का स्वागत किया और व्यापक रूप से इसकी तारीफ की और इसे "बुलडोजर न्याय" कहा गया. बेकाबू राज्य शक्ति का प्रतीक प्रभावी शासन का पर्याय बन गया है. उत्तर प्रदेश में, बुलडोजर टैटू बनवाने के लिए लोगों की कतार लगी है, जिसे युवा पुरुषों में "सनक" की हद तक कहा जा सकता है. कहीं और, बुलडोजर ने चिप्स के पैकेट, होली त्योहार सामग्री और हिंदुत्व पॉप गीतों पर अपना रास्ता खोज लिया है. 

कई मायनों में, मोदी के नए भारत में, बुलडोजर एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में विकसित हो रहा है, जिसे भारत के राजनीतिक और हिंदू-राष्ट्रवादी शब्दावली के हिस्से बतौर आम बना दिया गया है. यह मोदी सरकार की करीने से तराशी गई कद्दावर पहचान, अल्पसंख्यकों के दमन और उनके नेतृत्व में एक दुर्जेय, पुनरुत्थानवादी हिंदू भारत के आख्यान की कहानी है.

बुलडोजर पहली बार 2022 की शुरुआत में एक सार्वजनिक प्रतीक के रूप में उभरा. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, अजय सिंह बिष्ट, जिन्हें आमतौर पर योगी आदित्यनाथ के नाम से जाना जाता है, एक बार फिर चुनाव अभियान में थे. आदित्यनाथ ने घोषणा की कि अगर वे सत्ता में वापस आते हैं, तो वे "अपराधियों," "माफियाओं" और "दंगाइयों" के खिलाफ बुलडोजर का इस्तेमाल एक धीमी कानूनी व्यवस्था के सामने कड़ी कार्रवाई और त्वरित न्याय के रूप में करेंगे. लेकिन बुलडोजर केवल एक शक्तिशाली राज्य का एक तटस्थ प्रतीक नहीं था जो महज निर्मम अपराधियों को जद में ले रहा था, बल्कि आपराधिकता को धार्मिक शर्तों पर परिभाषित किया गया था. उनके चुनावी भाषण मुस्लिम विरोधी बयानबाजी और धमकियों से भरे हुए थे, जिसमें "दंगाइयों" से जुड़े समुदाय और यहां तक कि उन्हें "तालिबान" समर्थक भी कहा जाता था. मायने साफ थे : जिन अपराधियों के पीछे आदित्यनाथ जाना चाहते थे, वे मुख्य रूप से मध्यवर्गीय हिंदू बहुमत के बाहर थे. बुलडोजर एक अनौपचारिक चुनाव शुभंकर बन गया और जनता के बीच इसे काफी सफलता मिली. आदित्यनाथ ने जल्दी ही "बुलडोजर बाबा" का उपनाम अर्जित कर लिया. मार्च 2022 में, जब आदित्यनाथ ने चुनाव जीता, तो उत्साहित समर्थकों ने बुलडोज़रों पर विजय मार्च निकाला.

भारत में बुलडोजर का सार्वजनिक उत्सव व्यापक राजनीतिक संदर्भ में हो रहा है. 2014 में मोदी के उदय के बाद से, भारतीय राज्य अल्पसंख्यकों को व्यवस्थित रूप से बदनाम करके एक हिंदू-बहुसंख्यकवादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है. यह भारत को एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य से एक हिंदू राष्ट्र में बदलने की एक बड़ी लड़ाई का हिस्सा है. एक जरूरी झूठा नेरेटिव इस परियोजना को रेखांकित करता है. सत्ताधारी बीजेपी और सरकार समर्थक मीडिया द्वारा निरंतर दुष्प्रचार के माध्यम से, भारतीयों को यह संदेश दिया गया है कि हिंदू - जो देश के बहुसंख्यक हैं और सत्ता के अधिकांश पदों पर काबिज हैं - किसी तरह मुसलमानों, अल्पसंख्यकों के हमले का शिकार हैं. इसे चतुराई से गढ़कर और धार्मिक दोषों को तेज करने, खयाली दुश्मन बनाने, हिंदुओं को कट्टरपंथी बनाने और उन्हें यह समझाने के लिए तैनात किया गया है कि उनके साथी मुस्लिम नागरिक उनके भविष्य के लिए खतरा हैं. राजनीतिक और आम बातचीत में मुसलमानों को इस तरह लगातार दोयम दर्जे का बताना और उनके शैतानीकरण ने ऐसी हालत पैदा की है जो उनके खिलाफ हिंसा को जायज ठहराने और यहां तक कि उसका जश्न मनाने को मुमकिन बनाती है.

भारत के मोदी वर्षों को एक स्पष्ट द्वंद्व के साथ चिह्नित किया गया है - हिंदू वर्चस्व के विचार के साथ-साथ हिंदू वर्चस्व का प्रवचन, मुस्लिमों द्वारा मुगलों के रूप में हिंदुओं पर एक ऐतिहासिक, सभ्यतागत अन्याय, जो आज भी जारी है. इस कल्पना में, हिंदू भारतीय भूमि के सच्चे, सही दावेदार हैं और साथ ही साथ मुसलमानों के हाथों हमले के शिकार भी हैं. बुलडोजर वह जगह है जहां ये दोनों विचार मूल रूप से मिलते हैं. यह प्रभुत्व के प्रतीक के रूप में अनुनाद है, जो फिर हासिल हो रहा है. संघर्ष को इस तरह से तैयार किया गया है जिसमें हिंदू दक्षिणपंथ को मुसलमानों पर जीत की कहानियों की जरूरत है. बुलडोजर उस राजनीतिक और सांस्कृतिक विजय का प्रतीक है.

बुलडोजर के बेधड़क इस्तेमाल पर फातिमा ने कहा कि उन्हें सरकार से दोतरफा संदेश मिलता है. "मुख्य रूप से, यह हिंदू आबादी के लिए है कि हम मुसलमानों को उनकी जगह दिखा रहे हैं," उन्होंने कहा, यह हिंदुओं के लिए सीधा संकेत था कि "अगर आप हमें वोट देते रहेंगे, तो हमारे शासन में मुसलमानों को नुकसान होगा." दूसरा संदेश, उन्होंने कहा, मुसलमानों के लिए था, कि उन्हें "लाइन में रहना चाहिए," और "अगर तकलीफ जाहिर करते दिखे, तो हम तुम्हारे घरों को ढहा देंगे."

मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं अब आधुनिक भारत में असामान्य नहीं हैं. इस तरह अब तक, इसका अधिकांश हिस्सा हिंदू सतर्कता समूहों द्वारा किया गया है, जो कभी-कभी सत्ताधारी दल द्वारा समर्थित या संबद्ध होते हैं. लेकिन बुलडोजर से राज्य खुद बेनकाब हो गया है. बुलडोजर को राज्य-स्वीकृत हिंसा के एक सख्त प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है, जो मुस्लिम समुदायों के जीवन में अंतर्निहित अन्य सभी सार्वजनिक हिंसाओं को लगभग वैध और सामान्य कर रहा है.

मानवविज्ञानी और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर, थॉमस ब्लॉम हैनसेन ने बुलडोजर विध्वंस को "हिंदू राष्ट्रवादी परियोजना में एक नया चरण" बताया. उन्होंने कहा कि यह "विरोधियों को डराने, अल्पसंख्यकों को अपमानित करने और इस तथ्य का जश्न मनाने के लिए चयनात्मक और बेशर्म पक्षपातपूर्ण तरीके से राज्य शक्तियों के शस्त्रीकरण की नुमाइश करता है कि बीजेपी कमोबेश पूरी ताकत से अपनी शक्ति का इस्तेमाल करती है, जो कानून की जवाबदेही से परे है."

उन्होंने कहा कि बुलडोजर की "शक्ति" इस तथ्य में है कि यह "व्यवस्था और 'कानून' के पालन का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि "शहरी विकास और गरीबों को अनुशासित करने के नाम" पर भारत के शहरों में झुग्गियों और दूसरी "अवैध संरचनाओं" को ढहाने के लिए बुलडोजर ऐतिहासिक रूप से इस्तेमाल होता रहा है. भारतीय शहरों में अवैध निर्माण की सीमा को देखते हुए बड़ी संख्या में इमारतों और बस्तियों को अवैध घोषित किया जा सकता है. हैनसेन ने कहा कि इसका मतलब है कि अगर अधिकारियों की इच्छा हुई तो "ज्यादातर इमारतों में कुछ औपचारिक दोष खोज निकालने से ज्यादा आसान कुछ नहीं." यह राज्य की विवेकाधीन शक्तियों को "दुरुपयोग के लिए व्यापक रूप से खुला" बनाना है.

जिनेवा स्थित मानवाधिकार समूह इंटरनेशनल कमिशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स की एक वरिष्ठ कानूनी सलाहकार मंदिरा शर्मा ने भी कहा कि विध्वंस "धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों के एक पैटर्न" पर चलते हैं और यह "मुस्लिम समुदाय को चुप कराने का एक और तरीका है." उन्होंने इसका साफ मकसद मुसलमानों के बीच "डर पैदा करना" बताया. अन्य अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों ने भी इसी तरह की चिंताएं जाहिर की हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल के इंडिया बोर्ड के अध्यक्ष आकार पटेल ने कहा कि ये ढहाने की कार्रवाई "अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए समुदाय को सजा देने" के लिए थे.

प्रयागराज में ऐसा लग रहा था कि बुलडोजर ने अपना मकसद हासिल कर लिया है. फातिमा ने कहा कि विध्वंस के बाद से, मुस्लिम समुदाय अपनी "आवाज" उठाने से "पीछे हटने" और चुप रहने की कोशिश कर रहा था. "अब, यह कुछ ऐसा है कि चलो आज तो बच गए." कई मायनों में, यह फातिमा के परिवार और व्यापक मुस्लिम समुदाय पर एक मनोवैज्ञानिक हमला भी था, उन्हें उस नींव से उखाड़ फेंकना जिसे वे कभी स्थायी मानते थे, और देश के भीतर अपने किसी घर और अपनेपन की भावना को मिटा देना.

फातिमा ने कहा कि उनके घर पर बुलडोजर चलने के बाद कई संपत्ति मालिकों ने परिवार को किराए पर जगह देने से इनकार कर दिया. "हम जानते थे कि डर के चलते ऐसा हो रहा है," उन्होंने कहा. अदालत के फैसले से पहले ही विध्वंस के सार्वजनिक तमाशे ने उन्हें दोषी ठहराया था. "हमारे पूरे परिवार को इस हद तक अपराधी बना दिया गया था कि लोग हमसे फोन पर बात करने से डरते थे."

फातिमा ने कहा कि जिस तरह खुलेआम हिंसा हो रही है उसने लोगों की सोच में मुसलमानों पर हमलों को रोजमर्रे की आम घटना बना दिया है. उन्होंने मुझसे कहा, "मुस्लिम घरों को तोड़े जाने को टीवी पर देखते युवा लोग नहीं समझेंगे कि यह गलत है." फातिमा ने आगे कहा कि बुलडोजर के इस्तेमाल में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने, "बड़ी हिंदू आबादी के लिए घृणा और कट्टरता परोसने का एक तरीका सिद्ध किया था." बुलडोजर "एक उपभोक्ता वस्तु की तरह एक नया उत्पाद है जिसे उन्होंने लॉन्च किया है." इसके जरिए नफरत को "दर्शकों और उपभोक्ताओं को संतुष्ट करने लायक आक​र्षक उत्पाद में" और "मुसलमानों के लिए पूरी तरह से मानवता को मिटाने" के लिए तैयार किया गया था. उन्होंने विध्वंस को "हिंदू बहुमत के लिए एक प्रकार की अफीम" के रूप में वर्णित किया.

भारत ने बुलडोजर का जिस तरह इस्तेमाल किया उसने संयुक्त राष्ट्र का ध्यान खींचने और "गंभीर चिंता" जाहिर करने के लिए पर्याप्त महत्व हासिल किया. 9 जून 2022 को संयुक्त राष्ट्र के तीन विशेष दूतों ने मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली में विध्वंस का जिक्र करते हुए भारत सरकार को पत्र लिखा. सरकार पर कड़ा हमला करते हुए, पत्र में कहा गया है कि भारत में घरेलू विध्वंस "अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सामूहिक दंड के रूप में किए गए लगते हैं." इसने विध्वंस को "अलग 'दंडात्मक' प्रकृति के रूप में वर्णित किया. विशिष्ट उदाहरणों को सूचीबद्ध करते हुए, संयुक्त राष्ट्र के पत्र में दिल्ली के मानसरोवर पार्क में विध्वंस का उल्लेख किया गया है. "कम से कम तीन बस्तियां हैं जहां विभिन्न समुदायों और धार्मिक समूहों के लोग रहते हैं. हालांकि, 2 मई 2022 को विध्वंस अभियान के दौरान मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी वाली बस्ती को ही निशाना बनाया गया था." पत्र में कहा गया है कि इस तरह के विध्वंस "अतिक्रमण विरोधी" और "अतिक्रमण हटाने की आड़ में" किए जा रहे थे. भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के पत्र का जवाब नहीं दिया है. इसके बाद से इसने बुलडोजर का इस्तेमाल भी जारी रखा है.

जबकि बुलडोजर ने मुस्लिम और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को असमान रूप से निशाना बनाया है, इसका दायरा गैंगस्टरों, अपराधियों, बलात्कार के आरोपियों और किसी को भी दुश्मन के रूप में विस्तारित किया गया है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने अपनी सरकार द्वारा बुलडोजर के उपयोग को पूरी तरह से कानूनी और स्वीकार्य तंत्र बताकर बचाव किया. उन्होंने मुझे बताया कि बुलडोजर का इस्तेमाल "माफियाओं" और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ राज्य के कानूनों के अनुरूप किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह जनता के बीच "विश्वास का प्रतीक" बन गया है कि सरकार अपराधियों पर सख्त हो रही है.

त्रिपाठी ने कहा कि बुलडोजर केवल "एक उपकरण" था और सरकार कुछ "समुदायों और धर्मों" के भीतर कानून तोड़ने वालों के​ खिलाफ थी, जिन्हें विपक्ष अब तक आश्रय देता था और वोट के लिए प्रोत्साहित करता था. लेकिन, विरोधाभासी प्रतीत होने पर, उन्होंने इनकार किया कि बुलडोजर का इस्तेमाल मुख्य रूप से अल्पसंख्यकों को लक्षित करने के लिए किया जा रहा था.

इसे लेकर बहुत से लोग चिंतित हैं. इनमें दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और भारत के विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष एपी शाह भी शामिल हैं. शाह ने विध्वंस को कानून के शासन का "पूर्ण निषेध" बताते हुए मुझसे कहा, "केवल आपराधिक गतिविधि में कथित संलिप्तता कभी भी संपत्ति को गिराने का आधार नहीं हो सकती है." उन्होंने कहा कि बुलडोजर "गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के दमन का प्रतीक बन गया है," और "अव्वल तो ऐसा किया ही नहीं जाना चाहिए."

शाह ने सुझाव दिया कि न्यायपालिका को और ज्यादा काम करना चाहिए. "हम, और निश्चित रूप से अदालतें, बैठकर ऐसा होते हुए नहीं देख सकती हैं," उन्होंने कहा. उन्होंने जोर देकर कहा कि अदालतों को "सिद्धांत निर्धारित करना चाहिए" कि केवल अपराध का आरोप लगाने से घरों को ध्वस्त नहीं किया जा सकता है, "इस हद तक बिना मुकदमे के सजा दी जा रही है."

पिछले साल के दौरान, भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने बुलडोजर के इस्तेमाल पर विभिन्न आदेश पारित किए हैं. जून 2022 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विध्वंस "कानून के अनुसार होना चाहिए, वे प्रतिशोधात्मक नहीं हो सकता," लेकिन उन्हें रोकने के आदेश जारी नहीं किए. अपनी प्रतिक्रियाओं में, अधिकारियों ने लगातार दावा किया कि अवैध निर्माण और अतिक्रमण को हटाने के लिए नागरिक निकायों द्वारा विध्वंस केवल नियमित उपाय थे.

हालांकि, विध्वंस के पीछे दंडात्मक प्रेरणा को स्वयं सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है. फातिमा के घर को गिराए जाने से एक दिन पहले आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने एक बुलडोजर की तस्वीर ट्वीट की थी. कैप्शन में लिखा था : "कानून तोड़ने वालों को याद है, हर शुक्रवार के बाद शनिवार आता है." इसने मुसलमानों को कानून तोड़ने वालों के रूप में चित्रित किया. फातिमा ने कहा कि यह "मुसलमानों के लिए एक परोक्ष संदेश" था, विरोध करने से परहेज करने के लिए, नहीं उनके घरों को ध्वस्त कर दिया जाएगा.

अप्रैल 2022 के दूसरे हफ्ते में मध्य प्रदेश के खरगोन शहर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे. झगड़े के एक दिन बाद, ज्यादातर मुसलमानों के घरों और संपत्तियों पर बुलडोज़र चला दिया गया. अधिकारियों ने कहा कि कम से कम 45 इमारतें ढह गईं. खरगोन के जिला कलेक्टर अनुग्रह पी ने कहा, "एक-एक करके दोषियों का पता लगाना लंबी प्रक्रिया है, इसलिए हमने उन सभी क्षेत्रों को देखा जहां दंगे हुए थे और दंगाइयों को सबक सिखाने के लिए सभी अवैध निर्माणों को ध्वस्त कर दिया."

बुलडोजर के लिए जनता के समर्थन के चलते अन्य बीजेपी नेताओं को भी इसके प्रतीकवाद को हथियाने की एक साफ दौड़ दिखती है. इसे चुनावी अभियान उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की प्रेरणा भी बढ़ी है. तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष बंदी संजय कुमार ने मार्च 2023 में कहा, "उत्तर प्रदेश में, अगर कोई हत्या या बलात्कार होता है, तो वे अपराधी के घर को बुलडोजर से नष्ट कर देते हैं. अगर बीजेपी की सरकार आती है तो हम भी यहां ऐसा ही करेंगे."

दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सहयोगी अंगशुमान चौधरी ने इसे कंगारू अदालतों के समान एक क्लासिक "लोकलुभावन" रणनीति और "न्याय वितरण का प्रारंभिक रूप" बताया. उन्होंने कहा, "बहुसंख्यकों को वह दें जो वह चाहते हैं," और बहुसंख्यक त्वरित न्याय चाहते हैं, भले ही इसका मतलब कानून द्वारा निर्धारित सीमाओं से परे जाना हो.

कई कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि विध्वंस कानून के दुरुपयोग को दर्शाता है, भले ही अतिक्रमण या अवैध निर्माण का सबूत हो तो भी. शाह ने कहा कि "कोई उचित प्रक्रिया नहीं" का पालन किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि विध्वंस से पहले लोगों को विस्थापित किया जाता है, कानूनों के लिए अधिकारियों को पर्याप्त पूर्व सूचना, निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार और वैकल्पिक पुनर्वास विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता होती है.

आकांक्षा बडकुर, वकील हैं जो दिल्ली में उन कम आय वाले परिवारों का प्रतिनिधित्व करती हैं जिन्हें उनके घरों से बेदखल कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि इन पूर्व शर्तों का नियमित रूप से उल्लंघन किया जाता है. दिल्ली में हालिया विध्वंस शहरी गरीबों को लक्षित कर रहे हैं, जो अनौपचारिक आवास में रह रहे हैं, जिनमें प्रवासी श्रमिक और बहुजन समुदाय शामिल हैं. बडकुर ने कहा कि जी-20 से संबंधित गतिविधियों के लिए जनवरी से दिल्ली में कम से कम बीस स्थानों पर विध्वंस अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि "शहर को खाली और सुंदर बनाया जा सके". सितंबर में शिखर सम्मेलन के लिए दुनिया के नेताओं का दिल्ली पहुंचने का कार्यक्रम है. बडकुर ने कहा कि इन बेदखली अभियानों ने "हजारों नागरिकों को बेघर कर दिया है." यह भारत के गरीब और पहले से ही हाशिए पर पड़े समुदायों को सार्वजनिक दृष्टि से मिटाने की कोशिश लगती है.

ऐसा लगता है कि आगामी जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली में चार सौ वर्षों से खड़े एक धर्मस्थल को हटाना भी आवश्यक हो गया है. 1 अप्रैल 2023 को, पुलिस दल के संरक्षण में तीन बुलडोज़रों ने निज़ामुद्दीन में एक मुस्लिम धर्मस्थल को ध्वस्त कर दिया. दो हफ्ते पहले, 15 मार्च को मस्जिद के देखभाल करने वाले यूसुफ बेग को दिल्ली लोक निर्माण विभाग से एक पत्र मिला था जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद फुटपाथ पर अतिक्रमण कर रही है. उसने अपने हाथों से कुछ निर्माण हटा दिए, लेकिन यह काफी नहीं था. बेग ने कहा, कि पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने कहा "हम चाहते हैं कि पूरा फुटपाथ साफ हो जाए." कुछ ही देर में बुलडोजर आ गया.

पीडब्ल्यूडी के पत्र में विशेष रूप से आगामी जी -20 शिखर सम्मेलन को ध्यान में रखते हुए "अतिक्रमण" को "जल्द से जल्द" हटाने का उल्लेख किया गया है. "मुझे बताओ," बेग ने कहा, "क्या फुटपाथ पहले बना था या यह 400 साल पुरानी मजार?"

इस साल जनवरी और फरवरी में, "राज्य की भूमि पर अतिक्रमण" को हटाने के लिए कश्मीर में बुलडोज़र भी तैनात किए गए थे, जैसा कि प्रशासन ने दावा किया था. अभूतपूर्व विध्वंस अभियान ने मुख्य रूप से मुस्लिम निवासियों के बीच घबराहट और डर पैदा कर दिया और 11 फरवरी को लगभग पचास हजार एकड़ जमीन जब्त कर ली गई थी.

मर्दाना हिंदू राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में बुलडोजर सार्वजनिक मानस में इस कदर जड़ जमा चुका है कि इसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना रास्ता बना लिया है, खुद न्यू इंडिया का चेहरा बन गया है. पिछले साल 14 अगस्त को, यह इंडियन बिजनेस एसोसिएशन द्वारा आयोजित एडिसन, न्यू जर्सी में एक भारतीय स्वतंत्रता दिवस परेड में दिखाई दिया. अन्य परेड झांकियों के बीच बुलडोजर जैसा दिखने वाला एक पीला वाहन, भारतीय पहचान के एक मार्कर और उत्सव के रूप में, मोदी और आदित्यनाथ की तस्वीरों के साथ सड़क पर चल पड़ा. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा विशिष्ट अतिथि थे.

अमेरिकी सड़कों पर बुलडोजर की मौजूदगी ने मुस्लिम और प्रगतिशील भारतीय-अमेरिकी समूहों द्वारा तत्काल विरोध और वकालत को प्रेरित किया. एडिसन मेयर, न्यू जर्सी के गवर्नर के कार्यालय, न्याय विभाग, गृहभूमि सुरक्षा विभाग और अमेरिकी सीनेटरों और अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों के कार्यालयों के साथ बैठकें आयोजित की गईं. आखिरकार, इंडियन बिजनेस एसोसिएशन को माफी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसने स्वीकार किया कि परेड में कभी भी "इन स्पष्ट विभाजनकारी प्रतीकों" को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था और इसके बजाय भारत की विविध "संस्कृतियों और धर्मों" का "उत्सव" होना चाहिए था. 2 सितंबर को, न्यू जर्सी के अमेरिकी सीनेटर, कोरी बुकर और बॉब मेनेंडेज़ ने एडिसन में "बुलडोजर के इस्तेमाल की निंदा करते हुए" एक संयुक्त बयान जारी किया. बयान में कहा गया है, "बुलडोजर भारत में मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ डराने का प्रतीक बन गया है और इसे इस कार्यक्रम में शामिल करना गलत था." गौरतलब है कि मेनेंडेज अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष भी हैं.

मोदी के सार्वजनिक संदेश की एक प्रमुख विशेषता यह है कि उनके नेतृत्व में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा तेजी से बढ़ी है. अमेरिका में हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स की नीति निदेशक रिया चक्रवर्ती ने इस पर सवाल उठाया. "अगर अमेरिका में सबसे शक्तिशाली विदेश नीति आवाजों में से एक द्वारा बुलडोजर की निंदा की जा रही है," उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि यह प्रतिष्ठित है या नहीं."

यहां तक कि जब बुलडोजर विदेशी तटों पर एक नए हिंदू भारत के प्रतीक के रूप में उभरा, तो टिप्पणीकार भी इजरायल में इसके उपयोग के समानांतर एक समानता देखते हैं, जहां इसे फिलिस्तीनी घरों को ध्वस्त करने के लिए तैनात किया गया है. ऐसी भाषा में जो आश्चर्यजनक रूप से याद दिलाती है, संयुक्त राष्ट्र ने भी इन्हें "दंडात्मक विध्वंस" के रूप में वर्णित किया है और संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष दूत ने कहा कि वे "सामूहिक दंड का एक कार्य है जो अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करता है." चौधरी ने कहा कि भारत और इस्राइल द्वारा बुलडोजर के इस्तेमाल में एक ''अलौकिक समानता'' है. उन्होंने अलग-अलग राजनीतिक संदर्भ, और "क्षेत्रीय विस्तार" के हिस्से के रूप में इजरायल द्वारा विध्वंस के उपयोग पर ध्यान दिया. फिर भी, उन्होंने तर्क दिया, जिस तरह इज़राइल ने व्यक्तिगत फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ प्रतिशोध के रूप में बुलडोजर का भी इस्तेमाल किया है, भारत उनका उपयोग "चिंताजनक प्रभाव पैदा करने और विरोध करने की हिम्मत करने वाले मुसलमानों को दंडित करने" के लिए करता है.

कई विद्वानों ने उल्लेख किया है कि एक यहूदी राज्य उस तरह के हिंदू राज्य के लिए एक मॉडल है जिसकी कई मोदी समर्थक आकांक्षा करते हैं. हैनसेन ने कहा कि हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन "लंबे समय से इजरायल और यहूदी आंदोलन की प्रशंसा करता रहा है जो दुनिया में सभी यहूदियों के लिए इजरायल को एक विशेषाधिकार प्राप्त घर बनाता है." उन्होंने कहा कि आरएसएस के कई सदस्यों ने "मुझसे प्रशंसा की भावना व्यक्त की है और मुझे बताया है कि उन्हें लगता है कि भारत केवल हिंदुओं का घर होना चाहिए." चौधरी ने कहा कि बुलडोजर के भारतीय और इजरायल के उपयोग में समानताएं "रणनीतिक स्तर पर" भी दिखाई दे रही थीं, यहां तक कि "असल में विध्वंस" कैसे किया जाता है. उदाहरण के लिए, सिर्फ 24 या 48 घंटे पहले विध्वंस नोटिस देने की विधि, जहां लोगों के पास "कानूनी सहारा लेने का समय नहीं होगा." नोटिसों ने केवल वैधता का एक लिबास प्रदान किया.

फातिमा के घर को ढहाए जाने और पिता की गिरफ्तारी के नौ महीने से अधिक समय हो गया है, फातिमा का परिवार न्याय के लिए अदालतों में याचिका दायर कर रहा है. विध्वंस से पहले, अधिकारियों ने फर्नीचर के बड़े टुकड़े-अलमारी, बिस्तर हटा दिए और उन्हें पास की एक खाली जमीन पर फेंक दिया. उनका बाकी सामान अभी भी पत्थर के ढेर के नीचे, उनके घर के मलबे में, उस जगह पर पड़ा हुआ है जहां उसे तोड़ा गया था. मलबे में पासपोर्ट, मार्कशीट, स्कूल की पुरानी तस्वीरें, कार्ड और हाथ से लिखे पत्र हैं.

जिस दिन उनका घर ढहा, सरकार समर्थक पत्रकार सबूतों की तलाश में लाइव कैमरे के सामने मलबे से गुज़रे. एक ने परिवार के अपराधों के सबूत के तौर पर मलबे में मिला एक पोस्टर थाम रखा था. इसमें लिखा था: "जब अन्याय कानून बन जाता है, तो प्रतिरोध कर्तव्य बन जाता है."

 यह रिपोर्टिंग कोडा-कारवां फेलोशिप का हिस्सा है.


तुशा मित्तल कोडा-कारवां फेलो हैं. आपने राजनीति, विकास, महिला और सामाजिक न्याय पर लिखा है. आब का काम तहलका, अल जज़ीरा और वॉशिंगटन पोस्ट सहित अन्य प्रकाशनों में प्रकाशित है.