नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ देश भर और यहां तक कि विदेशों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश , कर्नाटक और असम में कई प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया में पुलिस ने क्रूरता से लोगों का दमन किया. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी दावा कर रही है कि पुलिस की कार्रवाई हिंसक विरोध के जवाब में थी. इस बीच 15 दिसंबर को झारखंड में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी दावा किया, "जो लोग हिंसा कर रहे हैं उन्हें उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है." उनका यह बयान निश्चित रूप से मुस्लिम समुदाय पर लक्षित था.
लेकिन विरोध में लोगों की भागीदारी ने मोदी के झूठ को उजागर किया है. कारवां ने बेंगलुरु, मुंबई, न्यू यॉर्क और दिल्ली में दस प्रदर्शनकारियों से बात की और जानना चाहा कि वे लोग विरोध में क्यों शामिल हो रहे हैं.
रोहन सेठ
सेठ गैर सरकारी संस्था उम्मीद में संचार प्रबंधक और जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व छात्र हैं. उन्होंने 19 दिसंबर को मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान में हुए विरोध प्रदर्शन में भाग लिया.
जामिया से हिंसा की खतरनाक खबर आई. ये एक सच्चाई है कि मेरे बहुत सारे दोस्त हिंसा वाली रात और उसके बाद कई रातों तक सो नहीं सके. जामिया ऐसा संस्थान है जहां हमने वक्त गुजारा है. हमने कभी नहीं सोचा था कि वह रातोंरात युद्ध क्षेत्र में बदल दिया जाएगा. कभी नहीं सोचा था कि जामिया में ऐसा हो सकता है.
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