मध्य प्रदेश के शिवपुरी में दो दलित बच्चों की हत्या के बाद खौफजदा पीड़ित परिवार

घटना के बाद जातीय हिंसा की आशंका के चलते गांव में दंगा-रोधी वैन और पुलिस की जीप तैनात की गई हैं. फोटो : अमन गुप्ता

दिन के दूसरे पहर जब मैं मध्य प्रदेश में शिवपुरी जिले के भावखेड़ी गांव पहुंचा तो सुबह हुई बरसात के बाद जमीन गीली थी. मगर लगता था कि मिट्टी से सौंधी नहीं, दहशत की बू आ रही है. दो दिन पहले इस मिट्टी में दो मासूम बच्चे, 10 साल का अविनाश और 12 साल की रोशनी, दफनाए गए थे. 25 सितंबर की सुबह इन बच्चों की सरे-आम हत्या के बाद से ही गांव में एक अजीब-सी खामोशी पसरी थी. कत्ल के आरोप में पुलिस ने रामेश्वर और हाकिम को गिरफ्तार तो किया लेकिन इन आरोपियों का परिवार गांव से फरार हो गया है. गांव वालों ने मुझे बताया कि आरोपी गांव के सरपंच के रिश्तेदार हैं.

इस दोहरे कत्ल के पीछे जातीय समीकरण बताए जाने से किसी टकराहट की आशंका के चलते गांव में दंगा-रोधी वैन और पुलिस की जीप तैनात की गई हैं. मेरे वहां रहते घर में नेता, समाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों का लगातार आना जाना लगा हुआ था. सभी परिवार को ढाढ़स बंधा रहे हैं. मृतक बच्चे की मां तब तक बेसुध थी और परिवार के दूसरे सदस्य गमजदा और खौफजदा. हालत यह थी बेटे अविनाश के पिता मनोज वाल्मीकि शायद ही शांत बैठकर अपने बेटे और बहन के मरने का गम मना सकते थे. जो भी आता है मनोज उनके सामने किसी मशीन की तरह घटना के बारे में बताना शुरू कर देते और सबसे कहते, “आप लोग साथ हैं तो आरोपियों को सजा होकर रहेगी.” उसी वक्त बसपा की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल वहां आए. पिप्पल ने सरकार और प्रशासन की लापरवाही पर तो सवाल उठाए लेकिन यह नहीं बताया कि उनकी पार्टी जो राज्य सरकार में शामिल है, किस तरह का दबाव बनाएगी ताकि आरोपियों को जल्द से जल्द सजा दिलाई जा सके. मध्य प्रदेश में बसपा कांग्रेस सरकार में जूनियर पार्टनर के रूप में शामिल है.

25 सितंबर की सुबह अविनाश और रोशनी की लाठियों से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. दोनों तकरीबन सुबह छह बजे शौच के लिए घर से बाहर गए थे. कत्ल कर दिए गए दोनों बच्चे रिश्ते में बुआ-भतीजे लगते थे. मनोज वाल्मीकि ने बताया कि अविनाश उनका सबसे छोटा बेटा और रोशनी उनकी सबसे छोटी बहन थी. मां के न होने के कारण वह मनोज के यहांआकर रहती थी. घटना वाली रात के बारे में मनोज का कहना है कि रात में उनके सभी बच्चों ने खाना खाया और वहीं घर के बाहर खेलते-खेलते सो गए. “घर में शौचालय न होने के कारण शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है इसलिए सब लोग सुबह जल्दी जागते हैं ताकि गांव वालों की नजर पड़ने से पहले शौच आदि से निवृत हो सकें.”

अविनाश और रोशनी के परिवार वालों से मैंने हत्या के सम्भावित कारणों को जानने की कोशिश की. पिता मनोज ने बताया कि बच्चे वारदात से एक दिन पहले रामेश्वर और हाकिम के खेत में लगे उनके निजी ट्यूबवेल से पानी भरने गए थे. तभी हाकिम ने उनको पानी भरने से रोका था और धमकी देते हुए कहा था, "यहां से पानी भरा तो पटक-पटक कर मार डालूंगा." मनोज बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने अपने बच्चों को वहां पानी भरने से रोक दिया था और वहां से जाने के लिए डांटा भी था. उसके बाद भी हाकिम और रामेश्वर उसको धमकाने आए थे और कहा था, “अगर दुबारा वहां पानी भरने आए तो सबको गोली मार देंगे.” अगले दिन रामेश्वर और हाकिम ने उनके अविनाश और रोशनी की हत्या कर दी.

मनोज बताते हैं कि गांव में उनका किसी से कोई झगड़ा नहीं है. लेकिन वह दो साल पहले की एक घटना का जिक्र करते हैं, जिसमें उनके घर के सामने एक पेड़ टूट कर गिर गया था. जिसकी लकड़ी को लेकर हाकिम और रामेश्वर के साथ झगड़ा हुआ था. वह विवाद गाली गलौच के साथ खत्म हो गया था. वह कहते हैं, “उसके बाद सबकुछ सामान्य था और एक दूसरे के साथ बातचीत भी होती रही.”

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने कार्रवाई कर प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज कर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. एफआईआर में पुलिस ने आरोपियों पर हत्या का आरोप लगाते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 302, धारा 34 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 की धारा 3 (2) (5) के तहत मामला दर्ज कर जेल भेज दिया है.

मीडिया में प्रकाशित समाचारों के मुताबिक आरोपी हाकिम मानसिक रूप से विक्षिप्त है. इस सम्बंध में हाकिम द्वारा पुलिस को दिया बयान कि “भगवान का आदेश हुआ है राक्षसों का सर्वनाश कर दो” को आधार बनाया जा रहा है. लेकिन पुलिस अधिक्षक राजेश चंदेल का कहना है कि हाकिम के मानसिक रोगी होने की “कोई जानकारी सामने नहीं आई है. शुरुआती जांच में हमें हाकिम के मानसिक रोगी होने का कोई दस्तावेज नहीं मिला है.”

प्रशासन ने अविनाश और रोशनी के परिवारों को 4-4 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी है. इसके अलावा रेड क्रॉस ने पीड़ित परिवारों को 25- 25 हजार रुपए का चेक भी दिया है. परिवार की आर्थिक हालत खराब होने के कारण गांव पंचायत ने दोनों परिवारों को बच्चों के अंतिम संस्कार के लिए 5-5 हजार रुपए दिए हैं.

लेकिन मनोज को ऐसी सहायता नहीं चाहिए थी. वह कहते हैं, “मेरा बेटा और बहन तो मर गए हैं न? क्या आप उनको वापस ला सकते हो?” वह बताते हैं कि आरोपियों ने उनके बच्चों को मार डाला और “अब मुझे भी मारने की धमकी दी है. उनके पास बंदूक है वे मुझे भी मार सकते हैं.” मनोज ने प्रशासन से आरोपियों का लाइसेंस निरस्त करने की दरख्वास्त की थी लेकिन वह पूरी नहीं हुई. उनका कहना है कि वे लोग अब इस गांव में नहीं रहेंगे क्योंकि आरोपी के परिवार वाले वापस आने पर उनकी हत्या कर सकते हैं. एसपी राजेश चंदेल का कहना है कि परिवार को पूरी सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी. उन्होंने दावा किया, “गांव में पुलिस सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी गई है.”

अविनाश और रोशनी की हत्या उस वक्त की गई जब दोनों शौच के लिए बाहर गए थे लेकिन उनके गांव भावखेड़ी को 2018 में ही सरकार ने ओडीएफ विलेज यानी खुले में शौच मुक्त गांव घोषित कर दिया था. गांव के ओडीएफ होने की जानकारी पंचायत भवन पर लिखी है. खुले मैं शौच करते हुए पाए जाने पर सजा और जुर्माने के प्रावधान तक की जानकारी दी गई है. लेकिन गांव की हकीकत दिवार पर लिखी इबारत से जुदा है. गांव वालों के मुझे बताया कि गांव की आधी आबादी खुले में शौच करने जाती है क्योंकि सरकारी योजना के तहत जो शौचालय बनाए गए हैं वे प्रयोग के लायक नहीं हैं. पानी की कमी के साथ-साथ शौचालयों की क्वालिटी बेहद खराब है.

मैंने मनोज से पूछा कि उनके घर में शौचालच क्यों नहीं है? मनोज ने बताया कि घर में शौचालय इसलिए नहीं है क्योंकि छह साल पहले वह अपने पिता से अलग हो गए थे और पास में ही अपनी झोपड़ी बना ली थी. मनोज के पिता कल्ला के घर में शौचालय है लेकिन पानी की कमी और घटिया क्वालिटी के कारण उसको उपयोग करना मुश्किल होता है.

मैंने मनोज को शौचालय न मिलने के बारे में शिवपुरी जिला पंचायत के सीईओ एच.पी. वर्मा से पूछा. उनका कहना था कि सरकार की योजनाओं में प्रत्येक परिवार को एक इकाई माना जाता है. उन्होंने बताया, “लाभार्थियों का चयन भी इसी आधार पर किया जाता है. मनोज के साथ भी यही हुआ, पहले वह अपने पिता के साथ रहता था लेकिन अब अलग हो गया इस कारण उसे कोई लाभ नहीं मिला.” वर्मा ने आगे बताया कि परिवार की इकाई का चयन 2011 की जनगणना के आधार पर किया गया है. इस कारण मनोज अयोग्य है. ओडीएफ गांव होने के बाद भी गांव के लोग शौचालय के लिए बाहर जाते हैं. इस पर अनभिज्ञता जताते हुए एचपी वर्मा ने कहा कि यह उनके संज्ञान में नहीं है “लेकिन इसकी पड़ताल कर कार्रवाई की जाएगी.”

शौचालय क्यों नहीं मिला इस पर मनोज का कहना है कि सरपंच ने जानबूझकर जातिगत भेदभाव के चलते उनको शौचालय आवांटित नहीं किया. मनोज ने बताया कि सरपंच ने एक बार उनसे कहा था कि उनके नाम पर शौचालय आया है, कागज जमा कर देना. इसके बाद मनोज ने आधार कार्ड और राशनकार्ड जैसे जरूरी कागजात सरपंच को दे दिए थे. लेकिन कुछ दिनों बाद सरपंच ने कहा कि लिस्ट में उनका नाम नहीं है. मनोज पूछते हैं, “बताइए जब लिस्ट में मेरा नाम आ गया तो उसके बाद किसने और कैसे मेरा नाम लिस्ट से हटा दिया?”

मनोज के भाई बंटी ने बताया कि गांव में वाल्मीकि समाज का इकलौता परिवार उन्हीं का है. गांव की बाकि आबादी में यादव और जाटव सबसे ज्यादा संख्या में हैं. इस कारण उनको और अधिक दबाने की कोशिश की जाती है. बंटी बताते हैं कि उनके परिवार को किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है. वह कहते हैं कि सरकारी योजनाओं का अधिकांश लाभ यादवों को मिलता है क्योंकि सरपंच उसी जाति का है. इसके अलावा थोड़ा बहुत लाभ जाटवों को मिल जाता है क्योंकि उनका सरपंच के साथ उठना बैठना होता है.

पंचायत भवन में लाभार्थियों की सूची लगी है जिसमें मुख्य रूप से प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों के नाम हैं. दीवार में पेंट कर बनाई गई सूची में 12 जाटव लाभार्थियों के नाम दर्ज हैं. बाकि चार नामों में से तीन दलित जाति से सम्बंधित हैं, जिनको प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला है. नजदीक जाकर गौर से देखने पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि दीवार पर किया गया पेंट ताजा है और इसकी महक अभी तक बनी हुई है. लाभार्थियों की सूची में से किसका चयन किस वर्ष हुआ इसकी एंट्री भी केवल एक नाम के आगे दर्ज है इससे अंदाजा लगाना मुश्किल है कि किसको किस वर्ष आवास आवांटित किए गए.

मनोज और उसके परिवार को किसी भी सरकारी योजना का लाभ न मिलने का कारण जानने के लिए जब मैं सरपंच के घर पहुंचा तो उनके घर पर ताला लगा हुआ था. गांव वालों से पूछने पर पता चला कि ये लोग तो घटना वाले दिन से ही फरार हैं. सरसोद पुलिस स्टेशन ऑफिसर आर.एस. धाकड़ के अनुसार मुख्य आरोपियों को पकड़ लिया गया है और परिवार के किसी सदस्य के बारे में कोई जानकारी नहीं है कि वे कहां हैं. भावखेड़ी के लोगों के लिए एक रहस्य का विषय है कि सरपंच और उसका परिवार कहां है? और पुलिस उनको ढूंढ़ क्यों नहीं रही है?

मनोज बताते हैं कि उनके पास आजीविका के लिए खेती या रोजगार का कोई अन्य साधन नहीं है. पंचायत में मनरेगा का काम होता है भी तो उनको और उनके परिवार को उनकी जाति की वजह से काम नहीं दिया जाता. वह कहते हैं कि बेलदारी जैसा काम भी उनको शिवपुरी जाकर मिलती है जिसमें कई-कई दिन काम नहीं मिलता.

छुआ-छूत का व्यवहार केवल उनके साथ ही नहीं बल्कि छोटे बच्चों के साथ भी किया जाता है. मनोज की बेटी और अविनाश की बड़ी बहन पूनम बताती है कि गांव के सभी लोग उनके साथ छुआ-छूत वाला व्यवहार करते हैं. गांव के बच्चे उनके साथ खेलने से मना कर देते हैं, स्कूल में उनको अलग कौने में उनके ही द्वारा लाए गए टाट-पट्टी पर बैठने को कहा जाता है. स्कूल में मिलने वाला मिड डे मील खाने के लिए उन्हें घर से बर्तन लाने को कहा जाता है जबकि बाकि बच्चों को स्कूल के बर्तनों में खाना परोसा जाता है. जब मैंने पूनम से पूछा कि मास्टर साहब ऐसा करने से रोकते नहीं हैं? तो उसने कहा कि “मास्टर साहब खुद कहते हैं कि अलग बैठो.” पूनम की बात को जानने जब मैं स्कूल गया तब तक स्कूल बंद हो चुका था. बच्चे, टीचर सब घर जा चुके थे लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र खुला हुआ था और उसकी कार्यकर्ता तथा उनकी सहायक वहां पर बैठी हुई थीं. जब मैंने उनसे एक जाति विशेष के बच्चों को अलग बिठाने और खाना खिलाने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने इस बात को नकार दिया.

भावखेड़ी की घटना को लेकर दलित समुदाय में गुस्सा व्याप्त है. उनकी मांग है कि सरकार आरोपियों का मुकदमा फास्ट ट्रेक कोर्ट में लाकर जल्दी सुनवाई पूरी करे ताकि पीड़ित परिवार को जल्द से जल्द न्याय मिल सके. गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी के दलित अधिकार मंच के मध्य प्रदेश संयोजक सुधीर खोडे का कहना है कि सरकार पीड़ितों को 50 लाख रुपए का मुआवजा, सरकारी नौकरी और पीड़ित परिवार के लिए एक शस्त्र लाइसेंस दे.

सुधीर ने बताया कि 30 सितंबर को दलित संगठनों ने इस घटना के विरोध में शिवपुरी में रैली निकाली थी और एसडीएम कार्यालय जा कर ज्ञापन सौंपा था जिसमें घटना की न्यायिक जांच और पीड़ित परिवार को 10-10 बीघा जमीन देने की मांग की गई थी. रैली में दलित अधिकार मंच, भीम आर्मी, मध्य प्रदेश सफाई कर्मचारी संघ और राष्ट्रीय वाल्मीकि समाज के लोगों ने भाग लिया था.