देशव्यापी लॉकडाउन की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अचानक आई घोषणा के बाद करोड़ों प्रवासी मजदूरों से उनका काम छूट गया और वे सड़कों पर आ गए. कई पैदल ही अपने गांवों के लिए निकल पड़े. आज लॉकडाउन एक मानवीय संकट बन चुका है और विभाजन के बाद यह अब तक सबसे बड़ा आंतरिक प्रवासन है. 29 मार्च को गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन के फैसले से जन्मे संकट के संबंध में राज्य और स्थानीय निकायों के लिए दिशानिर्देश जारी किए. इन दिशानिर्देशों को पढ़ कर साफ समझ आता है कि केंद्र सरकार अपनी गलतियों को राज्य और स्थानीय निकायों पर लादना चाहती है. केंद्र के दिशानिर्देश गुमराह करने वाले हैं और ये प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारवालों को परेशानी में डालने वाले हैं.
रविवार को कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों, राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों और राज्य पुलिस महानिदेशकों से वीडियो कॉन्फ्रेंस कर एक आदेश जारी किया कि राज्य सरकारें सीमाओं को कड़ाई से सील कर लॉकडाउन के आदेशों का उल्लंघन कर रहे लोगों पर सख्ती से कार्रवाई करें. लेकिन गौबा ने यह कुबूल करते हुए कि बहुत से लोगों ने राज्यों की सीमाएं पार कर ली हैं, राज्य सरकारों से मांग की कि वे सीमा पार करने वालों को 14 दिनों तक क्वारंटीन की अवस्था में रखें. 29 मार्च को जारी एक पत्र में मंत्रालय ने राज्य और केंद्र शासित सरकारों को आदेश दिया है कि वे बड़ी संख्या के प्रवासन से हो रही परेशानियों को कम करने के लिए पांच उपाय करने के संबंध में आवश्यक कदम उठाने और जरूरी आदेश देने के लिए जिला मजिस्ट्रेट, उपायुक्त और वरिष्ठ उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक और पुलिस उपायुक्त को निर्दिष्ट करें. उपरोक्त पांच उपायों में फंसे हुए लोगों को सहयोग देना, मकानों के किराए की वसूली पर एक महीने की रोक लगाना, लॉकडाउन की अवधि के लिए कर्मचारियों के वेतन का भुगतान सुनिश्चित करना और अपने राज्यों में पहुंचने वाले श्रमिकों को 14 दिन के लिए सरकारी अस्पतालों में क्वारंटीन करना शामिल हैं.
उस पत्र का पहला बिंदु कहता है कि राज्य और केंद्र सरकारों को “लॉकडाउन की स्थिति में संबंधित इलाकों में फंसे मजदूरों और अन्य जरूरतमंद और गरीब लोगों के लिए अस्थायी आवास और भोजन आदि का पर्याप्त प्रबंधन सुनिश्चित करना होगा.” इस उपाय का उद्देश्य प्रवासी लोगों को स्थान विशेष में ठहराए रखना है ताकि वे शहरों और अन्य स्थानों से भारी संख्या में पलायन न करें. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में फंसे प्रवासी मजदूरों से शहर में ही रुके रहने की अपील की है. अपने ट्वीट में केजरीवाल ने कहा है, “यूपी और दिल्ली- दोनों सरकारों ने बसों का इंतजाम तो कर दिया है लेकिन मेरी अभी भी सभी से अपील है कि वे जहां है, वहीं रहें. हमने दिल्ली में रहने, खाने, पीने, सबका इंतजाम किया है. कृपया अपने घर पर ही रहें. अपने गांव न जाएं. नहीं तो लॉकडाउन का मकसद ही खत्म हो जाएगा.”
इसके अलावा दिल्ली सरकार ने चार लाख गरीबों को 224 रैन बसेरों और 325 स्कूलों में भोजन उपलब्ध कराने का वादा भी किया है. लेकिन लगता नहीं कि ऐसे उपाय लोगों को शहर छोड़ने से रोकने के लिए काफी हैं क्योंकि शनिवार को ही उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार की 1000 बसों में स्थान पाने के लिए हजारों लोग दिल्ली के आनंद विहार में जमा हो गए थे.
पत्र का दूसरा बिंदु कहता है कि जो प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्यों की ओर निकल पड़े हैं उनको संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश, न्यूनतम 14 दिनों के लिए मानक स्वास्थ्य प्रॉटोकॉल के अनुसार सबसे नजदीकी शैल्टर में क्वारंटीन के लिए रखेंगे.” उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकारों ने सरकारी क्वारंटीन को अनिवार्य कर दिया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले चार दिनों में राज्य में प्रवेश करने वाले लगभग एक लाख लोगों का क्वारंटीन करने का आदेश दिया है. इसी प्रकार बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी स्थानीय अधिकारियों को क्वारंटीन करने के लिए अस्थायी कैंप बनाने को कहा है. उत्तर प्रदेश के बरेली के एक वीडियो में दिखाई पड़ता है कि प्रवासी मजदूरी को एक जगह बिठा कर उन पर क्लोरीन और पानी का छिड़काव किया जा रहा है.
गैर सरकारी थिंकटैंक सेंटर फॉर इक्विटी स्टडी के निदेशक हर्ष मंदर ने मुझे इस संबंध में बताया, “अगर सरकार बिना किसी आर्थिक पैकेज के इन निर्देशों को लागू करती है तो यह बर्बरता के ऊपर और बर्बरता करने जैसी बात होगी. मुझे नहीं पता कि क्वारंटीन के लिए करोड़ो लोगों को कहां रखा जाएगा. मुझे नहीं पता कि ऐसा करना कितना मुमकिन है. यह बर्बर होने के अलावा लागू न होने वाला विचार भी है.”
सरकार के उपरोक्त निर्देशों से भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है. मिसाल के लिए, कैबिनेट सचिव की वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के बाद हरियाणा के पुलिस महानिदेशक ने राज्य के पुलिस बल को पत्र लिख कर लोगों की आवाजाही रोकने की सख्त हिदायत दी. महानिदेशक ने अपने पत्र में निर्देश दिया है कि बॉर्डर पार करने वाले लोगों को “बिना अपवाद” वापस भेज दिया जाए और जो लोग जिलों की सड़कों और राजमार्गों पर पैदल चल रहे हैं, उन्हें बसों में रख कर जहां से आए हैं वहां लौटा दिया जाए.” पत्र में यह भी बताया गया है कि राज्य के गृह विभाग ने निर्देश जारी कर बड़े स्टेडियमों और ऐसे ही बड़े परिसरों को अस्थायी जेल बनाने को कहा है. पत्र में आगे लिखा है, “राज्य सरकार ने लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों के प्रति शून्य नर्मी बरतने का निर्देश दिया है.” यह साफ है कि कई मामलों में बॉर्डर पार करने का मतलब 14 दिनों का क्वारंटीन या सहायता न हो कर जेल जाना हो सकता है.
गृह मंत्रालय के पत्र के तीसरे बिंदु में कहा गया है कि सभी नियोक्ताओं को (फैक्ट्री, दुकान या कारोबारी प्रतिष्ठन) लॉकडाउन की अवधि का वेतन में किसी भी प्रकार की कटौती के बगैर देय तारीख को अपने कर्मचारियों को वेतन और मजदूरी देनी होगी. चौथे बिंदु में लिखा है कि जहां भी प्रवासी मजदूरों सहित अन्य श्रमिक किराए के घरों में रह रहे हैं, उन घरों के मकान मालिक उनसे एक महीने का किराया नहीं मांग सकते. और बिंदु नंबर पांच में कहा गया है कि यदि कोई मकान मालिक मजदूरों और छात्रों से घर खाली कराता है तो वह इस कानून के तहत सजा का हकदार होगा.
फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि इन महत्वकांक्षी नीतियों को लागू किया भी जा सकता है या नहीं. “यह एक ऐसा आदेश है जिसे लोगों पर अनिवार्य नहीं किया सकता”, ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की मालिनी आयसोला ने बताया. उन्होंने आगे कहा, “उस पत्र में मकान मालिकों से किराया न वसूलने और खास तरह के कारोबारियों से अपने कर्मचारियों को वेतन देते रहने की अपील की गई है. यह यथार्थवादी नहीं है. मुझे नहीं लगाता कि लोग इनका पालन करेंग.”
आयसोला ने कहा, “यह एकदम साफ हो गया है कि लॉकडाउन से पहले किसी भी तरह की योजना नहीं बनाई गई. कोई भी इसके लिए तैयार नहीं था. ये लोग लॉकडाउन के जरिए ठीक तरह की जन स्वास्थ्य रणनीति लागू करना चाहते थे लेकिन बुरी तरह पिट गए. जन स्वास्थ्य के नजरिए से भी यह बहुत खराब नीति है.”