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झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम आने में कुछ ही समय बाकी है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन इन चुनावों में चर्चा का विषय रहे. चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थामने वाले राज्य के बड़े नेताओं में चंपई सोरेन भी हैं. चंपई सोरेन को कोल्हान का शेर कहा जाता है. वह झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी से पहले ऐसे मुख्यमंत्री रहे जो सोरेन परिवार के बाहर से हैं. उन्होंने यह पद झारखंड के तत्कालीन मुख्मंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद संभाला था.
मैं चंपई सोरेन से उस समय मिली जब वह चुनाव प्रचार के लिए संथाल परगना जा रहे थे. उनके बीजेपी में शामिल होने को कोल्हान क्षेत्र, जिसमें पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां और पश्चिमी सिंहभूम जिले शामिल हैं, में पार्टी की बड़ी बढ़त के रूप में देखा जा रहा है. 2019 के चुनावों में बीजेपी यहां से एक भी सीट नहीं जीत पाई थी, लेकिन चंपई सोरेन राज्य के गठन से पहले जब यह बिहार का हिस्सा हुआ करता था, तब से सरायकेला सीट से चुनाव जीत रहे हैं. वह क्षेत्र के प्रभुत्वशाली नेता हैं. इन चुनावों में उनका मुक़ाबला बीजेपी से झामुमो में गए गणेश महाली से है. मैंने उनसे जानना चाहा कि लोग पार्टी को देखकर वोट देंगे या व्यक्ति को, तो चंपई सोरेन ने कहा, "परिणाम पार्टी को ही मिलता है. क्या कभी व्यक्ति विशेष के लिए चुनाव अभियान चलाया गया है?”
चंपई सोरेन को झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) को बीजेपी में विलय करने वाले बाबुलाल मरांडी और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा से कहीं अधिक प्रभावशाली नेता माना जाता है. झारखंड बीजेपी के प्रवक्ता प्रतुल शाह देव कहते हैं, “वह एकमात्र आदिवासी नेता है जिनका पूरे राज्य में प्रभाव है.”
जब हेमंत सोरेन ने परिवार से अलग किसी व्यक्ति को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में चुना, तो इस कदम को एक बड़े फैसले के रूप में देखा गया. चंपई फरवरी 2024 से जुलाई 2024 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे और लोकसभा चुनावों में पार्टी का नेतृत्व किया जिसमें एनडीए को नौ, झामुमो को तीन और कांग्रेस को दो सीटें हासिल हुईं.
चंपई सोरेन के एक करीबी ने मुझे बाताया, “वह शिक्षकों को नियुक्ति पत्र देने जा रहे थे जब उन्हें फ़ोन आया और तुरंत काम छोड़कर विधायकों को बैठक में आने के लिए कहा गया, जो उनसे पूछे बिना बुलाई गई थी. अगर मुख्यमंत्री को बताए बिना ऐसी बैठकें बुलाई जाएंगी, तो उन्हें कैसा महसूस होगा. अपमानीत लगेगा, है कि नहीं?”
चंपई सोरेन के बीजेपी में जाने के बाद हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने मीडिया में उनके ख़िलाफ़ कोई भी विपरीत बयान नहीं दिया है, बल्कि उन्हें चाचा कहकर बात कर रहे हैं. देव ने बताया कि चंपई का झामुमो छोड़ना आदिवासी समुदाय के झामुमो और सोरेन परिवार से मोह-भंग को दर्शाता है.
चंपई सोरेन के बेटे बाबुलाल सोरेन को भी पूर्वी सिंहभूमि जिले के घाटशिला क्षेत्र से बीजेपी ने टिकट दिया है. इसी तरह अन्य प्रमुख नेताओं के परिवार के सदस्यों को भी बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है, जिनमें अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा और पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास की बहू पूर्णिमा दास शामिल हैं. इन चयनों से पार्टी में कुछ असंतोष फैला है और बीजेपी के कुछ सदस्यों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. देव ने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि केवल बाबूलाल के बेटे को टिकट मिला लेकिन अन्य लोगों को परिवार के कारण टिकट नहीं मिला हैं.
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार आनंद कुमार के अनुसार नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देने का निर्णय उन्हें उनकी सीटों तक सीमित रखने और राज्य इकाई के भीतर गुटबाजी को ख़त्म करने का एक तरीका था. “बीजेपी यह बताना चाहती है कि झामुमो सिर्फ़ एक परिवार की पार्टी है और वह आदिवासियों का सम्मान नहीं करती. चंपई इस छवि को सच साबित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. हो सकता है कि इस चुनाव में उनका उतना प्रभाव न हो, हालांकि कोल्हान में उनकी मौजूदगी से बीजेपी की सीटें बढ़ सकती हैं."
चंपई ने ख़ुद के बीजेपी में शामिल होने के कारण पार्टी में पनपे असंतोष की अटकलों को खारिज कर दिया. उन्होंने मुझे बताया, ''हम सभी एक पार्टी में हैं. मैं 40 साल से राजनीति में हूं, मैं कोई नया चेहरा नहीं हूं. यदि अन्य नेताओं को कोई समस्या है, तो आपको उनसे इसके बारे में पूछना चाहिए.” उन्होंने कहा, "मैं अब बीजेपी का कार्यकर्ता हूं और पिछले अपमानों को भुला चुका हूं.
बीजेपी में शामिल होने के बाद से वह जल, जंगल, जमीन के बजाए घुसपैठिए, मां, बेटी की बातें कर रहे हैं. चुनाव से पहले मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, "झारखंड के सामने सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बांग्लादेशी घुसपैठियों का है." बीजेपी में शामिल होने से पहले उन्होंने कभी भी घुसपैठ का मुद्दा नहीं उठाया था.
जब मैंने उनसे पूछा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों का यह विचार उनके लिए कब से महत्वपूर्ण हो गया, तो उन्होंने जवाब दिया, “यह हमेशा से था. जब मैंने संथाल का दौरा शुरू किया, मुझे शिकायतें मिलीं.” उन्होंने कहा कि झारखंड राज्य आंदोलन के समय ऐसा नहीं था.
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री रहने के समय उन्हें घुसपैठियों के बारे में कई जानकारी मिली. मैंने पूछा कि क्या उन्होंने रघुबर दास द्वारा लाए गए भूमि बैंक और अधिग्रहण कानूनों को रद्द करने के बारे में विचार किया है, जिसका इस्तेमाल आदिवासियों से जमीन हड़पने के लिए किया गया है. उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं होगा. सीएनटी (छोटा नागपुर टेनेंसी) एक्ट भी है. भूमि बैंक सरकारी जमीन पर हैं, आदिवासी जमीन पर नहीं. यह झूठी कहानी विपक्ष द्वारा फैलाई जा रही है.”
अगस्त 2024 में असम के मुख्यमंत्री और बीजेपी के झारखंड चुनाव के सह-प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि वह छह महीने से चंपई के संपर्क में थे और चाहते थे कि वह बीजेपी में शामिल हों. उन्होंने यह भी कहा कि चंपई पर उनकी ही सरकार नज़र रख रही थी.
स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि दोनों के बीच बातचीत की जानकारी झामुमो को थी और चंपई को बाहर करने के पीछे यही एक कारण था. बीजेपी ने अभी तक मुख्यमंत्री पद के लिए किसी का नाम आगे नहीं किया है. बीजेपी के एक सदस्य ने मुझे बताया कि जहां एक तरफ़ बाबूलाल मरांडी और रघुबर दास के ऊपर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का हाथ है, वहीं हिमंत चंपई का समर्थन करते हैं. उन्होंने कहा कि हिमंत अमर कुमार बाउरी का भी समर्थन कर रहे हैं. बाउरी, जो राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं, एससी आरक्षित सीट चंदनकियारी से चुनाव लड़ रहे हैं और अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
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