चर्च अन्याय के खिलाफ खड़ा है : गोवा के आर्चबिशप ने किया सीएए विरोधी रैलियों का आह्वान

गोवा में सीएए और एनआरसी के विरोध में आयोजित प्रदर्शन. 30 जनवरी को महात्मा गांधी पुण्यतिथि पर एक और जुलूस और सार्वजनिक बैठक का आयोजन किया जाएगा. साभार सगुन गावडे / हेराल्ड

24 जनवरी को गोवा के आर्चबिशप के नेतृत्व में मडगांव के दक्षिणी हिस्से में स्थिति प्रतिष्ठित लोहिया मैदान में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में रैली का आयोजन किया गया. यह राज्य में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में की गई पहली रैली थी जिसे चर्च का पूरा समर्थन प्राप्त था. विभिन्न धर्मों के हजारों लोगों ने इसमें भाग लिया. रैली में आए वक्ताओं ने भी सामाजिक बंधनो से हट कर अपना समर्थन दिया. इन वक्ताओं में जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता, पादरी, लेखक और डॉक्टर आदि शामिल थे जिन्होंने सीएए और एनआरसी का विरोध करते हुए इन दोनों को खतरा बताया.

गोवा की विपक्षी पार्टियों के कई प्रमुख नेताओं ने भी रैली में शामिल होकर वक्ताओं को सुना. जिसमें कांग्रेस की सरकार में गोवा के मुख्यमंत्री रहे दिगंबर कामत और लुईजिन्हो फलेरियो, चर्चिल एलिमाओ भी शामिल थे, जो पूर्व में कांग्रेस पार्टी के साथ थे और अभी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के नेता हैं, गोवा फारवर्ड पार्टी से गोवा के पूर्व उप मुख्यमंत्री रहे विजय सरदेसाई, कांग्रेस पार्टी के पूर्व विधायक एलेक्सियो रेजिनाल्डो और एनसीपी के पूर्व विधायक जोस फिलीप डी सूजा भी रैली में शामिल थे.

गोवा के आर्चबिशप के अधिकार क्षेत्र में कार्यक्रर सामाजिक कार्य इकाई, शांति और सामाजिक न्याय परिषद (सीएसजेपी) ने मानवाधिकार संगठनों का राष्ट्रीय संघ (एनसीएचआरओ) गोवा और कंसर्न सिटिजन आॅफ गोवा जैसे नागरिक अधिकार संगठनों के साथ मिलकर इस रैली का आह्वान किया था. सीएसजेपी की इस रैली से पहले राज्य के पादरियों ने अपने-अपने मंच से सामुहिक वार्ताओं में लोगों से इस रैली में अधिक से अधिक संख्या में शामिल होने के लिए कहा था. 12 जनवरी को दक्षिण गोवा के कुछ गांवों में रैली से जुड़े विज्ञापन लगाए गए थे जिसमें पादरी उपदेशात्मक प्रचार करते हुए ग्रामवासीयों से 24 जनवरी को अधिक से अधिक संख्या में रैली में पहुंचने और संविधान को बचाने का आग्रह कर रहे थे.

सीएसजेपी के कार्यकारी सचिव सावियो फर्नांडिस ने गोवा के दैनिक अखबार हैराल्ड को बताया, “सरकार की सीएए और एनआरसी को लागू करने की नीयत वास्तव में भारत के उस बहुलतावादी और बहु-विश्वासी सामाजिक अस्तित्व को कमजोर करने का काम कर रही है जहां कानून के समक्ष हर नागरिक समान है.” वह आगे कहते हैं, “संशोधित नागरिकता कानून भारतीय संविधान में मौजूद कानून के समक्ष समानता की प्रतिबद्धता को कमजोर करेगा.”

24 जनवरी तक गोवा का माहौल सीएए को लेकर गर्माया रहा. पणजी में दिसंबर 2019 में हुई सीएए विरोधी रैली के अलावा छात्रों का कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ. लेकिन चर्च के आह्वान पर हुई रैली ने खामोश बैठी आम जनता और राजनीतिक लोगों इस विरोध प्रदर्शन के प्रति उत्साह से भर दिया.

रैली में हुए भाषण काफी सशक्त और सटीक थे. गोवा बचाओ आंदोलन के प्रमुख सदस्य आस्कर रिबैलो वक्ताओं में शामिल थे. उन्होंने कहा, “यह सिर्फ ईसाइयों की पसंद नहीं है कि आप धर्म निरपेक्ष बने या सांप्रदायिक. यह सिर्फ मुस्लिमों की पसंद नहीं है कि यह देश धर्म निरपेक्ष होना चाहिए या सांप्रदायिक. इस देश के हिंदुओं ने धर्म निरपेक्ष रहने का फैसला लिया है और यही फैसला बीजेपी को परेशान कर रहा है.” उन्होंने आगे कहा, “यह सिर्फ ईसाइयों, मुस्लिमों या हमारे जैसे उदारवादीयों का विरोध प्रदर्शन नहीं है. संविधान को इस तरह खत्म किए जाने के विरोध में हिंदू भी शामिल हैं.” अधिकतर भाषणों में बताया गया कि पूरे भारत में चल रहे सीएए विरोधी आंदोलन धार्मिक बंधनों से हटकर एक धर्मनिरपेक्ष आंदोलन हैं.

गोवा फारवर्ड पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और शिक्षाविद प्रभाकर टिंबल ने कहा कि सीएए का विरोध प्रदर्शन युवाओं और आम जनता द्वार स्वेच्छापूर्वक किया गया है. “राजनीतिक लोग मंच पर नहीं दिखते हैं,” उन्होंने कहा.

टिंबल ने बताया कि ऐसी ही एक रैली गोवा के उत्तरी नगर मपूसा में भी आयोजित की जानी थी लेकिन कलेक्टर ने आखरी समय में इसकी इजाजत देने से इनकार कर दिया. उन्होंने संकेत करते हुए कहा कि “सरकार विरोध प्रदर्शन से डर गई है. रैली की इजाजत न देना आंदोलनकारियों की नहीं बल्कि सरकार की हार है.”

गोवा के खनन क्षेत्र से आए आदिवासी-अधिकार कार्यकर्ता रामा कानकोनकर ने भी रैली में अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि एनआरसी हिंदुओं को भी प्रभावित करेगा. आदिवासी हिंदुओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “क्या आदिवासियों के पास जन्म प्रमाण पत्र है?”

सामाजिक कार्यकर्ता देवसुरभि यदुवंशी ने सीएए और एनआरसी के पीछे छिपे कारण बताए. गृह मंत्री की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “यह एक बड़ा खेल है. मत भूलिए कि अमित शाह एक जबरदस्त योजनाकार है. नजरबंदी शिविर सिर्फ दिखावे के लिए है इसका असली मकसद मुस्लिमों को नागरिकता और वोट के अधिकार से वंचित करना है क्योंकि मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं देते. यहां मौजूद कैथोलिक लोगों का अगला नंबर है.” उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी इरादा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को भी वोट देने के अधिकार से वंचित करने का है. इससे “बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ेगा और अपने इन कार्यो के कारण वह अगले पचास सालों तक जीतते रहेंगे.”

इस दौरान, मडगांव के प्रसिद्ध मुस्लिम नेता मुजफ्फर शेख ने रैली को संबोधित करते हुए कहा, “बहुत से विधायक आज हमें समर्थन देने यहां आए हैं. मडगांव से शुरू हुआ एक छोटा विरोध प्रदर्शन आज बड़ा बन गया है और जब तक इस कानून को निरस्त नहीं कर दिया जाता हम लोग सड़कों पर ही रहेंगे.”

वकील और पूर्व निर्दलीय विधायक रहे राधाराओ ग्रैशिआस का राय इससे कुछ अलग थी। उन्होंने मुझे बताया कि सीएए के मुद्दे पर सीधे विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेकर संबोधित किए जाने की जरूरत है, चर्च बीजेपी के ''हाथों की कठपुतली की तरह काम कर रहा है.'' उन्होंने आगे कहा, “सीएए का उद्देश्य धार्मिक मुद्दों का ध्रुवीकरण करना है. इस रैली के बाद, विरोधी पक्ष चर्च की समाज में ध्रुवीकरण करने के लिए आलोचना कर रहा है.”

हृदय रोग विशेषज्ञ फ्रांसिसको कोलाको इस राय से असहमत दिखे. उन्होंने मुझे बताया कि चर्च की भूमिका उपदेशकों द्वार धर्म का उपदेश देना नहीं बल्कि ईसाइयों को शांतिपूर्वक प्रदर्शन और अहिंसात्मक कार्य करने को प्रेरित करना है. उन्होंने कहा, “हमें प्रभावित लोगों के साथ एकजुटता से खड़ा होना चाहिए.”

मैंने तीन पा​दरियों, फर्नांडिस, विक्टर फेर्राओ और जोस रोड्रीग्स से बात की जिन्होंने चर्च के सीएए के विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि धार्मिक निकाय हमेशा से लोगों के साथ रहे हैं. फर्नांडिस ने मुझे बताया, “जीवन और समाज से जुड़े सभी मुद्दे चर्च से संबंधित हैं.” उन्होंने आगे कहा, ''इस समय हस्तक्षेप करने से चर्च असंवैधानिकता और अन्याय के खिलाफ खड़ा है. चर्च सभी के लिए समानता का समर्थन करता है.”

दक्षिण गोवा के रैकोल सैमिनरी में बतौर प्रोफेसर कार्यरत विक्टर फैर्राओ ने उनके विचारों का समर्थन किया. उन्होंने कहा, “कोई भी अराजनीतिक नहीं है. गोवा की आजादी के समय से ही राम्पोन्कर आंदोलन से लेकर कोंकाणी आंदोलन तक, चर्च सार्वजनिक आंदोलनों का भाग रहा है.” राम्पोन्कर आंदोलन छोटे मछुआरो के अधिकारों के संरक्षण के लिए और कोंकाणी आंदोलन, कोंकाणी भाषा को गोवा की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए किया गया था.

फेर्राओ आगे कहते हैं, “चर्च यह अपने खुद के लिए नहीं कर रहा है, चर्च अपने लोगों के साथ खड़ा है, चर्च संविधान को बचाने के आंदोलन के साथ जुड़ा है.” मडगांव में ग्रेस चर्च के पादरी जोस रोड्रीग्स ने मुझे बताया, “मडगांव के स्थानीय लोगों का मानना है कि चर्च का हस्तक्षेप उत्प्रेरक के तौर पर है जिसकी गोवा के लोगों को जरूरत थी.'' एक वरिष्ठ वकील क्लिओफातो कोटिन्हो ने मुझसे कहा, “मुझे रैली में हिंदू और साथ ही मुस्लिम वक्ताओं को देखकर खुशी हुई। लेकिन चर्च की भूमिका प्रमुख है और इसे मानना चाहिए। गोवा में, जब भी चर्च ने सीधे हस्तक्षेप किया है, तो मुद्दा व्यापक स्तर पर पहुंच जाता है।''

गोवा बीजेपी अध्यक्ष सदानंद शेट तानावाडे ने रैली को महत्त्वहीन बताते हुए खारिज कर दिया और इसे विपक्षी दलों द्वारा आयोजित की गई रैली बताया. उन्होंने कहा, “हम इस रैली के बारे में ज्यादा चिंता नहीं करते. मारगांव में की गई रैली को विपक्षियों द्वार आयोजित किया गया था.” उन्होंने कहा कि “बीजेपी ने पणजी में सीएए के समर्थन में रैली कराई थी जिसमें 20000 लोग शामिल हुए थे.” वह आगे कहते है कि “लोग बीजेपी के साथ हैं.”

इस दौरान, सीएसजेपी ने 30 जनवरी महात्मा गांधी की पुण्यतिथी पर एक और जुलूस व सार्वजनिक बैठक की योजना बनाई है. फर्नांडिस ने मुझे बताया कि जुलूस को फैटोदा जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम से मडगांव मुख्य बाजार तक निकाला जाएगा. जब मैंने पूछा कि यह जुलूस निकालने की योजना 24 जनवरी के तुरंत बाद क्यों बनाई गई, फर्नांडिस ने कहा कि लोग आंदोलन को जारी रखना चाहते हैं और यह आंदोलन सिर्फ चर्च या कैथोलिक धर्म के बारे में नहीं है.”

अनुवाद : अंकिता