तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ दो महीने से भी अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं में आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन तथा आंदोलन की रिपोर्ट कर रहे पत्रकारों और भाग ले रहे छात्रों को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ लोगों ने 3 फरवरी को दिल्ली के मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक सिटिजन मार्च का आयोजन किया. हालांकि, पुलिस और सुरक्षा बलों की भारी मौजूदगी में, कोविड दिशनिर्देशों और धारा 144 का हवाला देकर, मार्च को मंडी हाउस से आगे नहीं बढ़ने दिया गया. इस पर नागरिकों और सुरक्षा बलों के बीच हल्की झड़प भी हुई जिसके बाद बैरिकेटिंग और वाटर कैनन के घेरे के अंदर नागरिकों ने अपना विरोध कार्यक्रम किया. इस दौरान कई कलाकारों ने सड़क पर कलाकृतियां बनाने से लेकर नाच-गा कर किसान आंदोलन को अपना समर्थन दिया.
बिहार के रोहतास जिले के सासाराम के रहने वाले लगभग 55 साल के राधेश्याम चंद्रवंशी भी रैली में शामिल थे. चंद्रवंशी अखिल भारतीय खेत मजदूर किसान संगठन के सदस्य हैं और खुद खेत मजदूर हैं, वह पिछले लगभग 20 दिनों से किसान आंदोलन में शिरकत कर रहे हैं. मुझे उन्होंने कहा ‘‘हम लोगों के पास क्या है? अपना शरीर ही है, बस वही लेकर किसान भाइयों के साथ आएं हैं. किसानों पर लादे गए तीनों काले कानून जब तक रद्द नहीं कर दिए जाते, हम साथ रहेंगे.’’
चंद्रवंशी के साथ आए अशोक बैटा ने उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह आंदोलन महज किसानों का नहीं आम लोगों का है क्योंकि महंगाई की मार तो सब पर पड़ेगी. इससे पूरा देश प्रभावित होगा.’’
किसान आंदोलन को समर्थन और सहायता देने के लिए ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (एआईएलएजे) भी रैली में शामिल हुआ. एआईएलएज के सदस्य मुकेश ने हमें बताया कि उनका संगठन शुरू से आंदोलन के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन 26 जनवरी की घटना के बाद अब संगठन का काम बढ़ गया है. ‘‘पुलिस जिस दमनात्मक तरीके से प्राथमिकी दर्ज कर रही है, हम उसके खिलाफ कानूनी सहायता दे रहे हैं.’’ उन्होंने आगे कहा कि सीमा पर बैठे आंदोलनकारियों को बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित किया जा रहा है. पानी, बिजली, रसद आपूर्ति को रोका जा रहा है. इसके लिए वकीलों की एक फैक्ट फाइंडिग टीम बनाई गई है जो जांच कर जल्द ही अपनी रिपोर्ट जारी करेगी. ‘‘वैसे तो यु़द्ध की स्थिती में भी आप भोजन, दवाओं को रोक नहीं सकते, यह बुनियादी मानवाधिकार का मामला है. इस पर एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी कि पुलिस सामने से क्या कर रही है और पीठ पीछे क्या कर रही है, बताया जाएगा.’’
मुकेश ने बताया कि संगठन के ज्यादातर सदस्य दिल्ली हाइकोर्ट के हैं और मजदूर तथा मानवाधिकार मामलों पर काम करते हैं. सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन शुरू होने के कुछ समय बाद लगभग 200 लोगों की टीम लेकर वे बस से वहां गए थे. उन्होंने आंदोलनकारी किसानों को कानूनी मसलों पर परेशान न होने का भरोसा जताया और वहां संयुक्त मोर्चा से मुलाकात कर अपना समर्थन दिया था.
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