अयोध्या में राम की सबसे ऊंची मूर्ति के नाम पर दलित और पिछड़ों की जमीन से बेदखली

जनवरी 2020 में अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट अनुज कुमार झा के कार्यालय ने अधिसूचना जारी कर गांव वालों को माझा बरहटा की 85.977 हेक्टेयर भूमि राम मूर्ति निर्माण के लिए अधिग्रहण किए जाने की जानकारी थी. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

नवंबर 2019 में विवादित बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर बनाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले से उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले के माझा बरहटा गांव के निवासियों में खुशी थी. लेकिन उनकी यह खुशी जनवरी 2020 में निराशा में बदल गई जब अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट अनुज कुमार झा के कार्यालय ने अधिसूचना जारी कर राम मूर्ति के लिए माझा बरहटा की 85.977 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण किए जाने की जानकारी गांव वालों को दी. क्षेत्र के निवासियों ने यह भी बताया है कि पिछले साल अगस्त में सात से आठ प्रशासनिक अधिकारियों ने ग्राम पंचायत का दौरा किया था और राम प्रतिमा के निर्माण के लिए पहले जारी अधिसूचना में घोषित भूमि से अधिक जमीन माझा बरहटा से ली जाने की बात कही थी. निवासियों ने कहा कि अधिकारियों ने उन्हें जो बताया है उसके अनुसार, यह साफ होता है कि यह प्रतिमा प्रभावी रूप से पंचायत में चार क्षेत्रों के लोगों को विस्थापित करेगी जो हैं न्यूर का पुरवा, न्यूर का पुरवा दलित बस्ती, धरमू का पुरवा और छोटा मुझनिया.

अयोध्या मामले में फैसला के आने से लगभग एक साल पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट ने राम की एक भव्य मूर्ति स्थापित करने की अपनी योजना की घोषणा की थी. शुरुआत में राज्य सरकार ने इस कार्य के लिए अयोध्या के एक अन्य गांव मीरपुर माझा को चुना था लेकिन इस योजना को अमल में नहीं लाया जा सका. स्थानीय लोगों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और अयोध्या प्रशासन की एक तकनीकी ऑडिट टीम ने रिपोर्ट में प्रतिमा बनाने के लिए इस स्थान के चयन को गलत बताया. जुलाई 2019 में मीडिया में खबर आई कि प्रस्तावित राम प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची राम प्रतिमा होगी और उसकी लंबाई 251 मीटर होगी. बिष्ट या आदित्यनाथ ने प्रतिमा परिसर को एक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बताई जिसमें भगवान श्रीराम पर आधारित "डिजिटल संग्रहालय, विवेचन केंद्र, पुस्तकालय, पार्किंग, केंटीन होगी."

जनवरी 2020 की अधिसूचना में कहा गया है कि चयनित भूमि माझा बरहटा का एक हिस्सा राष्ट्रीय राजमार्ग और सिंचाई विभाग के बीच स्थित है. इसमें आगे कहा गया कि यह भूमि आपसी सहमति से खरीदी जाएगी. लेकिन माझा बरहटा के निवासियों ने कहा कि कोई आपसी सहमति नहीं थी केवल मामले को लेकर एक भ्रम था. उन्होंने हमें बताया कि अगस्त में उनसे मिलने आए प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा था कि अधिसूचना में उल्लेखित 86 हेक्टेयर से अधिक भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा लेकिन उन्होंने इस संबंध में कोई दस्तावेज नहीं दिखाए. निवासियों ने कहा कि वे अधिकारियों को पहचान तो नहीं सकते लेकिन यह जानते थे कि वे सर्वेक्षण विभाग से आए थे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिग्रहण के खिलाफ मामला दायर करने वाले वहां के निवासी अरविंद कुमार यादव के अनुसार, इस फैसले का असर एक हजार परिवारों पर पड़ेगा. उनमें से अधिकांश बेहद गरीब हैं जो पिछड़े और दलित समूहों से हैं और कृषि क्षेत्र में काम करते हैं. उन्होंने कहा, “अब जब राम का एक भव्य मंदिर बनाया जा रहा है, तो इस प्रतिमा की क्या आवश्यकता है? क्या किसानों को उनके काम से हटाना ठीक है? हम राम की तरह जल समाधि करेंगे लेकिन अपनी जमीन नहीं देंगे."

माझा बरहटा बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि स्थल से लगभग दस किलोमीटर दूर है. जितने लोगों से हमने बात की उन सभी ने कहा कि वे बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर बनने के पक्षधर थे. अरविंद ने कहा कि वह 1991 में 12 साल के थे जब कारसेवक बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए अयोध्या पहुंचे थे. “उस तनाव में हमारा स्कूल एक महीने तक बंद रहा था. अरविंद ने कहा, "हम नारे लगाने के लिए अयोध्या जाते थे. उस समय हमारे गांव में हजारों कारसेवा रहे थे. वे यहां रुकते थे और हम लोग उनके लिए जलपान की व्यवस्था करते थे. कोई कारसेवक यहां भूखा नहीं सोता था." अरविंद ने बताया कि जब पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तब "ड्रम और ढोल बजाए गए थे. हमने गुलाल लगा कर जश्न मनाया था. लेकिन अब जब मंदिर बनाया जा रहा है, तो हम बर्बाद हो रहे हैं. यदि हम अपने घर की भूमि इस प्रतिमा के लिए दे देते हैं, तो हमारे बच्चे क्या करेंगे, वे कैसे जिएंगे?"

अरविंद अब मूर्ति के खिलाफ चल रही लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं. अधिसूचना जारी होने के कुछ समय बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. 28 जनवरी 2020 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक साल पहले इसी तरह के मामले में पारित आदेश का उदारहण देते हुए, राज्य सरकार को 2013 के भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम के अनुसार कार्य करने का निर्देश दिया. जुलाई 2019 के आदेश में कहा गया था, "यदि कोई सहमति नहीं बनती है, तो प्रत्यार्थी भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा और पारदर्शिता, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम (2013) का सहारा लेंगे." 2013 के अधिनियम में कहा गया है कि भूमि के मुआवजे का फैसला कई कारकों को ध्यान में रख कर किया जाएगा जिनमें बाजार मूल्य भी शामिल है और यह भी देखा जाएगा कि अधिग्रहण भूमि के असली मालिक की कमाई को कैसे प्रभावित करेगा. इसके आधार पर अरविंद ने कहा, “हमें घर के बदले घर और जमीन के बदले जमीन दी जानी चाहिए और जो निवासी भूमिहीन हैं, उन्हें नौकरी मिलनी चाहिए."

गांव में अपने खेतों पर काम कर रहा किसान. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

अरविंद ने कहा कि उनके और गांव के अन्य 14 लोगों के खिलाफ 14 फरवरी को इस मामले को लेकर धरने पर बैठने का मामला दर्ज किया गया था. मामले में पहली सूचना रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत लागू नियमों का उल्लंघन करते हुए 200 लोग मौजूद थे.

सितंबर में अरविंद और एक अन्य निवासी अवधेश कुमार सिंह के खिलाफ दूसरी प्राथमिकी दर्ज की गई थी. दोनों पर भारतीय दंड संहिता की चार धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. ये धाराएं शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना, लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल प्रयोग करना, लोक सेवक को अपने कर्तव्य का निर्वहन न करने देने से जुड़ी हैं.

अरविंद ने बताया कि पुलिस ने उनसे कहा, "हम आपको गिरफ्तार करने के लिए पूरा प्रशासन लगा देंगे, हम आपको एक मुठभेड़ में मार देंगे." निवासियों ने कहा कि वे दशकों से इस भूमि पर रह रहे हैं. अरविंद ने हमें बताया कि उनके पूर्वजों ने यह जमीन ब्रिटिश राज में ली थी. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने आज तक उन अन्य मुद्दों को हल नहीं किया है जिनका निवासियों को अपनी भूमि को लेकर सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, ''1984 से हमारा भूमि-रिकॉर्ड का काम लंबित है. हमारे बगल में बस्ती जिले का सीता रामपुर गांव है और हमारी सीमा का सीमांकन नहीं हुआ है. तो फिर वे जमीन लेने का प्रबंधन कैसे करेंगे?”

दलित समुदाय के कई लोगों ने हमें बताया कि उन्हें 1950 के भूदान आंदोलन में जमीन मिली थी. उस आंदोलन में बड़े समुदायों और व्यक्तियों से कुछ भूमि भूमिहीन लोगों को देने का आग्रह किया गया था. उसके बाद शुरू किया गया भूमि वितरण आगामी वर्षो तक चला. चमार समाज के सदस्य रामजीत गौतम इस जमीन को पाने वाले लोगों में से थे. रामजीत ने कहा, "1976 में इंदिरा गांधी के समय हमें इस जमीन का पट्टा दिया गया था. मोदी और योगी सरकार इसे खारिज करना चाहती है. प्रशासन को यह लग रहा है कि ये दलित कुछ नहीं कर पाएंगे."

विमला देवी के नाम जमीन का पट्टा. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

उन्होंने हमें बताया कि उनका विचार है कि सरकार ने पर्याप्त मुआवजे के बिना उन्हें यहां से बेदखल करने का इरादा कर लिया है और यह हो भी सकता है क्योंकि उन्होंने जमीन खरीदी नहीं है बल्कि उन्हें भूदान आंदोलन में दान की गई है.

उन्होंने कहा, "वे (सरकार) इस पर मुफ्त में कब्जा करना चाहते हैं. यह सवर्ण सरकार है. वे हमारे बारे में नहीं सोच रहे हैं. वे चमारों और यादवों को भगा देना चाहते हैं."

निवासियों ने हमें बताया कि गरीबों को विस्थापित कर माझा बरहटा में मूर्ति लगाना अनावश्यक है. गन्ना किसान संजय कुमार यादव भी ऐसी सोच रखते हैं.

संजय ने बताया, “अब जब मंदिर बनाया जा रहा है, तो मूर्ति स्थापित करने का भी कोई औचित्य नहीं है. इसकी पूजा भी नहीं होगी. उसका चेहरा इतना ऊंचा होगा कि वह ठीक से दिखाई नहीं देगी." उन्होंने आगे कहा, "हम पहले से ही उत्पीड़ित हैं, वैसे भी कितने मुद्दे हैं जिनका सामना पिछड़ी जातियों के लोग और किसान करते हैं. किसानों को गन्ने का भुगतान वर्षों बाद जाकर मिलता है."

ग्रामीणों ने कहा कि प्रशासन ने कई अन्य स्थानों को नजरअंदाज कर दिया, जो मूर्ति लगाने के लिए उचित प्रतीत होते थे. अरविंद ने संतों और उनके अनुयायियों के संदर्भ में कहा, "यदि प्रशासन भूमि चाहता है, तो उसे पहले हजारों एकड़ गैर कृषि भूमि को संतों और भक्तों से लेनी चाहिए." मठों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "अगर आप जमीन चाहते हैं, तो कई मठों के पास हमसे ज्यादा जमीन है." उनके अनुसार, अयोध्या में अखाड़ों के पास भी बहुत सारी भूमि का स्वामित्व है. अरविंद ने कहा, "अगर वह भी कम पड़ती है, तो हम अपनी जमीन दे देंगे." एक अन्य निवासी अनारा देवी यादव ने कहा, “पास में एक नदी तटबंध है. वहां जमीन का एक खाली टुकड़ा है. वे प्रतिमा को वहां स्थापित कर सकते हैं."

प्रशासन ने सीधे बातचीत न कर निवासियों की चिंता बढ़ा दी है. अनारा ने कहा कि प्रशासन इस बारे में कोई स्पष्ट जवाब देने को तैयार नहीं है कि क्या अधिसूचना में जिस 86 हेक्टेयर भूमि का उल्लेख किया गया है, उसे अधिग्रहित किया जा रहा है या नहीं. अनार ने कहा, "प्रशासन की तरफ से कोई भी हमसे बात नहीं कर रहा है, या हमें कुछ भी ठीक से बता रहा है की वे हमारे घर लेंगे या जमीन या कुछ और. वे हमसे बात नहीं करते. यहां तक कि अगर बूढ़े लोग उनसे कुछ पूछते हैं, तो वे उन्हें डांटकर भगा देते हैं." संजय ने भी इसी बात को दोहराते हुए कहा कि प्रशासन की योजना को लेकर यहां बहुत भ्रम है. उन्होंने कहा, "कभी वे कहते हैं कि हमारे खेत लिए जाएंगे, कभी वे कहते हैं कि हमारी जमीन और घर दोनों लिए जाएंगे. उन्हें एक नई अधिसूचना जारी करते हुए कहना चाहिए कि न तो हमारे घर और न ही हमारी जमीन ली जाएगी."

गांव के एक घर में आंबेडकर की तस्वीर. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

अनारा ने इस बात को जोर देकर कहा कि अपनी भूमि पर क्या हो रहा है इस पर निवासियों का कोई बस नहीं है. उन्होंने हमें बताया कि जब अधिकारी गांव की जमीन नापने के लिए यहां आए थे तब, "सैकड़ों परिवार हाथ जोड़कर कह रहे थे, 'हमारे घरों को मत नापो.'" पिछले साल माझा बरहटा को अयोध्या नगर निगम का हिस्सा बनाया गया था. अनारा ने कहा, “कोई सुनवाई नहीं हुई. हमारे गांव को बल जबरदस्ती नगर निगम का एक हिस्सा बनाया गया था." हमने अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट झा और उप महानिरीक्षक/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार को ग्रामीणों के आरोपों के बारे में एक प्रश्नावली ईमेल की, लेकिन उसका कोई जवाब नहीं मिला.

अनारा ने कहा कि उनके परिवार के लिए माझा बरहटा में रहना एक संघर्ष जैसा हो गया है. उन्होंने कहा, “हमारे गांव में कोई नाली नहीं बनाई गई है, आज तक कोई बल्ब नहीं लगाया गया है. इस सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया है. चाहे विदेशी लोग यहां घूमने आएं या मंदिर बनाया जाए या मस्जिद बनाई जाए, उससे हमें क्या लाभ मिलेगा? हमारे परिवारों के साथ डूब जाना इससे बेहतर होगा. उसके बाद वे भव्य मूर्ति को बना सकते हैं." उनकी निराशा माझा बरहटा में बने रहने के उनके संकल्प को डगमगा नहीं सकी. अनारा ने कहा, ''मेरी शादी इसी गांव में हुई थी और मैं यहीं मरूंगी.

एक अन्य निवासी शिवनाथ यादव ने कहा कि उनके परिवार की तीन पीढ़ियां माझा बरहटा में एक फूस की झोपड़ी में रहती थीं. उन्हीने आगे कहा, "अगर हम उसे भी छोड़ देंगे तो हमारे पास क्या बचेगा? प्रतिमा हमारे किसी काम की नहीं है. अगर उन्होंने किसी बंजर भूमि पर इसकी योजना बनाई होती, तो शायद हमारे बच्चे इसके आस-पास कोई नौकरी पा लेते और जीविका कमा लेते." उन्होंने आगे कहा, “हमें मोदी और योगी का कोई समर्थन नहीं मिल रहा है. वे हमें बेघर देखना चाहते हैं. चारों क्षेत्रों की पूरी आबादी को हटाकर आप कितना विकास कर पाएंगे?”

चमार समुदाय से ताल्लुक रखने वाली विमला देवी ने कहा कि सरकार निवासियों की चिंताओं की अनदेखी कर रही है. यह सरकार सिर्फ उच्च जातियों के लिए है." आदित्यनाथ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "उनके पास बच्चे नहीं हैं और यही वजह है कि वह इन पट्टों के मूल्य को नहीं समझते. क्या हम अयोध्यावासी नहीं हैं?” विमल ने आगे कहा, "क्या हम राम की पूजा नहीं करते? हम मर जाएंगे लेकिन हम अपना घर नहीं छोड़ेंगे."