14 मई 2015 को नागौर जिले के डांगावास गांव में दलित मेघवालों और जाटों के बीच पांच दशक पुराने जमीन के एक विवाद ने जातीय हिंसा का रूप ले लिया. उस दिन सुबह सैकड़ों की संख्या में जाटों ने 15 एकड़ की उस विवादित जमीन तक मार्च किया जहां डांगावास गांव के रतना राम परिवार के 16 मेघवाल पहरा दे रहे थे. इस जमीन पर इस परिवार का दावा है. झगड़े में गोली चल गई और वहां पर खड़ा एक आदमी मारा गया. पुलिस का दावा है कि गोली दलितों की ओर से चली थी. मेघवाल इस आरोप को खारिज करते हैं. भीड़ ने मेघवालों पर हिंसक हमला किया. उन लोगों को ट्रेक्टर से रौंध दिया. रतना राम मेघवाल और उनके भाई पांचा राम मेघवाल की उस दिन मौत हो गई और घायल पोकर राम, गणेश राम और गणपत राम ने बाद में दम तोड़ा.
इस घटना पर पुलिस ने दो एफआईआर दर्ज की. एक एफआईआर रतना राम के परिवार की ओर से दर्ज की गई जिसमें 70 लोगों को आरोपी बनाया गया है और दूसरी मेघवालों के ऊपर है जो वहां खड़े आदमी, रामपाल गोस्वामी की मौत के लिए है, जो न मेघवाल था और न ही जाट. जब मैंने डांगावास में रतना राम के भतीजे गोविंद राम मेघवाल से मुलाकात की तो उनका कहना था कि स्थानीय प्रशासन डांगावास के दलितों के प्रति संवेदनहीन है. उन्होंने यह भी कहा कि वसुंधरा राजे सरकार ने सहयोग नहीं किया और डांगावास से भारतीय जनता पार्टी के विधायक सुखाराम मेघवाल ने जाटों का साथ दिया.
डांगावास के बाहरी इलाके में स्थित मेघवाल बस्ती के अपने घर में गोविंद राम ने मुझे बताया, “हमने अनुसूचित जाति-जनजाति कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराई. जाटों के राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव के बावजूद पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पड़ी.” झगड़े को नियंत्रण करने के लिए घर के बाहर तने पुलिस के अस्थाई टेंट की ओर देखते हुए गोविंद ने कहा, “आने वाले चुनावों में हम लोग कांग्रेस को वोट दे सकते हैं लेकिन बीजेपी को कतई वोट नहीं देंगे.” राजस्थान में बीते दिनों दलित अत्याचार की घटनाएं लगातार हुईं हैं. ये घटनाएं आगामी विधान सभा चुनावों में दलितों का समर्थन प्राप्त करने के लिए बीजेपी के आगे चुनौती खड़ी करेंगी.
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