दानिश आजाद अंसारी याद करते हैं कि जब वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य थे तब उनसे यह सवाल अक्सर पूछा जाता कि "तुम मुसलमान हो फिर भगवा ब्रिगेड में क्या कर रहे हो?" अंसारी जवाब देते कि वह इसलिए एबीवीपी में शामिल हुए क्योंकि यह एक राष्ट्रवादी संगठन है.
34 साल के अंसारी ने मुझे इसी तरह की प्रतिक्रिया इस साल अप्रैल में दी थी, जब मैंने उनसे उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार में एकमात्र मुस्लिम मंत्री बनने के बारे में पूछा था. उन्होंने कहा, "जो मैंने विद्यार्थी परिषद में सीखा था, वह बीजेपी ने मुझे सिखाया कि मुख्यधारा में कैसे लागू किया जाए."
मेरी उनके साथ उक्त बातचीत से कुछ हफ्ते पहले अंसारी को अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री बनाया गया था. यह बात हैरान करने वाली थी. हालांकि वह एबीवीपी और बीजेपी के साथ-साथ राज्य सरकार की उर्दू कमेटी में भी पदाधिकारी रहे थे लेकिन उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं मिला और जून में जाकर उन्हें विधान परिषद के लिए चुना गया. अंसारी उत्पीड़ित पसमांदा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जबकि ऐतिहासिक रूप से देंखे तो यूपी में बीजेपी शिया मौलवियों पर फोकस करती है.
बीजेपी से जुड़े लोग अंसारी को मंत्री बनाए जाने को को पार्टी के समतावाद और पसमांदा को लेकर चिंता के संकेत के रूप में चित्रित करते हैं. इस नजरिए को 3 जुलाई को हैदराबाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बढ़ावा भी दिया गया फिर भले ही उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के साथ बीजेपी के पिछले जुड़ाव पर एक सरसरी नजर इस दावे की कलई खोल कर रख देती हो. चूंकि राज्य में सभी राजनीतिक दलों द्वारा पसमांदा की ऐतिहासिक रूप से उपेक्षा की गई है इसलिए समुदाय के प्रति बीजेपी का हाथ बढ़ाना बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है. लेकिन किसी भी संकेत से ऐसा नहीं लगता कि पसमांदा को खुद बीजेपी की पहुंच से फायदा होगा. यहां तक कि बुनकरों के समुदाय अंसारी को भी नहीं, जिससे नए मंत्री दानिश अंसारी आते हैं.
जब मैंने उनसे पूछा कि अल्पसंख्यक समुदाय के मंत्री के रूप में उनकी क्या जिम्मेदारियां हैं, तो अंसारी ने कहा कि उनकी सोच "इस सब से परे" है क्योंकि वह अपने काम को एक मुस्लिम के बजाए "एक युवा के नजरिए से" करना पसंद करते हैं. उन्होंने कहा, "जब हम अल्पसंख्यक के बारे में सोचते हैं, तो हम खुद ब खुद मुसलमानों के बारे में ही सोचते हैं. लेकिन एक बड़ा वर्ग सिख, ईसाई, जैनियों का भी है और हमें उन सभी के बारे में सोचना होगा."
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