अयोध्या फैसले से एक दिन पहले आरएसएस और मुस्लिम समूह की बैठक

09 नवंबर 2019
आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल ने बैठक को संबोधित किया था.
सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल ने बैठक को संबोधित किया था.
सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय का फैसला आने से एक दिन पहले 8 नवंबर को, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दिल्ली के नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय में मुस्लिम पेशेवरों के एक समूह के साथ मुलाकात की. आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल इस समारोह में मुख्य वक्ता थे. उन्होंने अयोध्या विवाद में लंबे समय से प्रतीक्षित निर्णय और भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संबंधों पर समूह को संबोधित किया. गोपाल ने आयोजन के महत्व पर जोर देते हुए कहा, "मैं आज आपसे मिलने आया हूं. आरएसएस को मुसलमानों की कोई आवश्यकता नहीं है, बिल्कुल भी नहीं है. लेकिन इस देश को मुसलमानों की जरूरत है. आरएसएस आगे आया है क्योंकि हम इसे समझते हैं.”

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य और भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की दिल्ली इकाई के पूर्व अध्यक्ष आतिफ रशीद ने मुझे बताया कि उन्होंने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था. उपस्थित लोगों में अलग-अलग पृष्ठभूमि के कम से कम पचास व्यक्ति शामिल थे. इनमें डॉक्टर, इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउंटेंट, छात्र, शिक्षाविद, वकील और पत्रकार थे. इनमें केवल तीन महिलाएं थीं. गोपाल और रशीद के अलावा, इस आयोजन के मुख्य वक्ताओं में संघ परिवार से संबद्ध इस्लामिक विद्वानों के राष्ट्रीय संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुहैब कासमी और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्वदेश सिंह तथा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर मोहम्मद नासिर भी शामिल थे.

बैठक के उद्देश्य को बताते हुए रशीद ने शुरुआती भाषण दिया. उन्होंने कहा, "आने वाले दिनों में, हम आशा और अपेक्षा करते हैं कि देश राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर आए फैसले को देखेगा. फैसला आने से पहले, आरएसएस यह सुनिश्चित करने के लिए विचार-विमर्श कर रहा है कि फैसला चाहे जो भी हो, जीत राष्ट्र की होनी चाहिए. देश में सांप्रदायिक संबंध और माहौल प्रेमपूर्ण होना चाहिए. आरएसएस ने बैठक में फैसला किया है कि वह यह सुनिश्चित करेगा.”

रशीद ने उल्लेख किया कि गोपाल ने लंबे समय से प्रतीक्षित निर्णय में इसी तरह की अन्य बैठकें आयोजित की थीं. वास्तव में, एनएमएमएल में कार्यक्रम से ठीक तीन दिन पहले, आरएसएस और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने मुस्लिम धर्मगुरुओं से मुलाकात की थी. गोपाल ने यह भी कहा कि आरएसएस ने पहले भी चार या पांच बैठकें की थीं और इनमें सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, पूर्व शीर्ष रक्षा कर्मियों, शैक्षणिक संस्थानों के संकाय और यहां तक कि समाचार पत्रों के संपादकों के साथ भी इसी तरह के सत्र आयोजित किए थे.

हालांकि बैठक का केंद्रीय बिंदु सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की प्रत्याशा और उसके विपरीत परिणाम आने की स्थिति में एकता की अपील करना था, वक्ताओं ने कई अन्य मुद्दों पर भी बात की. इनमें हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों के संगम, भारत की हिंदू आबादी पर मुस्लिम शासकों द्वारा कथित रूप से की गई ऐतिहासिक गलतियां और 2006 में आई सच्चर समिति की रिपोर्ट से मुस्लिम समुदाय को हुए नुकसान के बारे में चर्चा की गई थी. चर्चाओं और विशेष रूप से गोपाल के संबोधन से यह विश्वास पैदा हुआ कि यह फैसला राम जन्मभूमि आंदोलन के पक्ष में होगा. इसने एक ऐसा नजरिया भी स्थापित किया जिसके माध्यम से आरएसएस ने भारत में हिंदू-मुस्लिम संबंधों को माना और घोषित एकता की शर्तों को स्थापित किया.

शाहिद तांत्रे कारवां के मल्टी मीडिया रिपोर्टर हैं.

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