अयोध्या फैसले से एक दिन पहले आरएसएस और मुस्लिम समूह की बैठक

आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल ने बैठक को संबोधित किया था. सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय का फैसला आने से एक दिन पहले 8 नवंबर को, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दिल्ली के नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय में मुस्लिम पेशेवरों के एक समूह के साथ मुलाकात की. आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल इस समारोह में मुख्य वक्ता थे. उन्होंने अयोध्या विवाद में लंबे समय से प्रतीक्षित निर्णय और भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संबंधों पर समूह को संबोधित किया. गोपाल ने आयोजन के महत्व पर जोर देते हुए कहा, "मैं आज आपसे मिलने आया हूं. आरएसएस को मुसलमानों की कोई आवश्यकता नहीं है, बिल्कुल भी नहीं है. लेकिन इस देश को मुसलमानों की जरूरत है. आरएसएस आगे आया है क्योंकि हम इसे समझते हैं.”

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य और भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की दिल्ली इकाई के पूर्व अध्यक्ष आतिफ रशीद ने मुझे बताया कि उन्होंने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था. उपस्थित लोगों में अलग-अलग पृष्ठभूमि के कम से कम पचास व्यक्ति शामिल थे. इनमें डॉक्टर, इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउंटेंट, छात्र, शिक्षाविद, वकील और पत्रकार थे. इनमें केवल तीन महिलाएं थीं. गोपाल और रशीद के अलावा, इस आयोजन के मुख्य वक्ताओं में संघ परिवार से संबद्ध इस्लामिक विद्वानों के राष्ट्रीय संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुहैब कासमी और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्वदेश सिंह तथा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर मोहम्मद नासिर भी शामिल थे.

बैठक के उद्देश्य को बताते हुए रशीद ने शुरुआती भाषण दिया. उन्होंने कहा, "आने वाले दिनों में, हम आशा और अपेक्षा करते हैं कि देश राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर आए फैसले को देखेगा. फैसला आने से पहले, आरएसएस यह सुनिश्चित करने के लिए विचार-विमर्श कर रहा है कि फैसला चाहे जो भी हो, जीत राष्ट्र की होनी चाहिए. देश में सांप्रदायिक संबंध और माहौल प्रेमपूर्ण होना चाहिए. आरएसएस ने बैठक में फैसला किया है कि वह यह सुनिश्चित करेगा.”

रशीद ने उल्लेख किया कि गोपाल ने लंबे समय से प्रतीक्षित निर्णय में इसी तरह की अन्य बैठकें आयोजित की थीं. वास्तव में, एनएमएमएल में कार्यक्रम से ठीक तीन दिन पहले, आरएसएस और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने मुस्लिम धर्मगुरुओं से मुलाकात की थी. गोपाल ने यह भी कहा कि आरएसएस ने पहले भी चार या पांच बैठकें की थीं और इनमें सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, पूर्व शीर्ष रक्षा कर्मियों, शैक्षणिक संस्थानों के संकाय और यहां तक कि समाचार पत्रों के संपादकों के साथ भी इसी तरह के सत्र आयोजित किए थे.

हालांकि बैठक का केंद्रीय बिंदु सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की प्रत्याशा और उसके विपरीत परिणाम आने की स्थिति में एकता की अपील करना था, वक्ताओं ने कई अन्य मुद्दों पर भी बात की. इनमें हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों के संगम, भारत की हिंदू आबादी पर मुस्लिम शासकों द्वारा कथित रूप से की गई ऐतिहासिक गलतियां और 2006 में आई सच्चर समिति की रिपोर्ट से मुस्लिम समुदाय को हुए नुकसान के बारे में चर्चा की गई थी. चर्चाओं और विशेष रूप से गोपाल के संबोधन से यह विश्वास पैदा हुआ कि यह फैसला राम जन्मभूमि आंदोलन के पक्ष में होगा. इसने एक ऐसा नजरिया भी स्थापित किया जिसके माध्यम से आरएसएस ने भारत में हिंदू-मुस्लिम संबंधों को माना और घोषित एकता की शर्तों को स्थापित किया.

बैठक के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि आरएसएस के इस आयोजन का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के बीच सहानुभूतिपूर्ण आवाजों को अपने पक्ष में करना था. ये आवाजें सार्वजनिक बहस और टेलीविजन मीडिया में संगठन का प्रतिनिधित्व करने के लिए काम कर सकती हैं. वास्तव में, बैठक के तुरंत बाद यह जाहिर भी हो गया, क्योंकि वक्ताओं और उपस्थित लोगों ने टेलीविजन मीडिया को सत्तारूढ़ सरकार के प्रति सहानुभूतिपूर्ण बयान भी दिए.

गोपाल ने बैठक के दौरान कहा, "भारत में 14 प्रतिशत यानि 18 करोड़ मुसलमान हैं, उन्हें कौन नष्ट कर सकता है? ऐसा होने का कोई सवाल ही नहीं है. 18 करोड़ लोगों के हितों की अनदेखी कौन कर सकता है? सवाल यह है कि 18 करोड़ लोग कैसे सोचते हैं? वे क्यों डरे हुए हैं? डरने का कोई कारण नहीं है. उनके लिए कोई खतरा नहीं होगा. ”

उन्होंने आगे कहा, "आप इस देश के नागरिक हैं, आप इसके लिए जिम्मेदार हैं. हिंदुओं को आपकी आवश्यकताओं, आपकी जरूरतों, आपके दुख और आपकी कठिनाइयों को सुनना चाहिए, यही कारण है कि हम यह संवाद शुरू कर रहे हैं." गोपाल ने अपना भाषण इस खोखले सवाल से खत्म किया कि "क्या आप संतुष्ट हैं?" इसका स्वागत जोरदार तालियों से हुआ.

कारवां के लिए शाहित तांत्रे

लेकिन गोपाल यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने कहा कि भाजपा को बहुत कम मुस्लिम वोट देते हैं. "वे हमारे मतदाता नहीं हैं, हम यह जानते हैं." उन्होंने कहा. लेकिन इसके बावजूद, बीजेपी सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि गैस सिलेंडर या शौचालय के लिए कल्याणकारी योजनाएं मुस्लिम समुदाय तक भी पहुंचे. गोपाल ने कहा, "जिन्हें भी इसकी जरूरत है, उन्हें मिलनी चाहिए. लेकिन मुस्लिम नेता क्या चाहते हैं? मुस्लिम बच्चों को छात्रवृत्ति मिलनी चाहिए. इस दृष्टिकोण को भूल जाओ. जिसकी भी आमदनी 10000 रुपए से कम है उसे छात्रवृत्ति मिलनी चाहिए. अगर मुसलमान हैं, तो उन्हें भी मिले.”

गोपाल ने 2006 की सच्चर समिति की रिपोर्ट की आलोचना की, जिसे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के तहत गठित किया गया था और जिसमें अन्य समुदायों की तुलना में भारतीय मुसलमानों की शिक्षा, रोजगार और आय में भारी असमानता पाई गई थी. उन्होंने कहा कि सच्चर कमेटी ने मुस्लिम समुदाय को जितना नुकसान पहुंचाया है, उतना किसी और ने नहीं पहुंचाया. उन्होंने तर्क दिया कि मुसलमानों के लिए विशेष सहयोग देने के प्रस्ताव ने बहुत नुकसान पहुंचाया. "आपको यह समझने की कोशिश करनी चाहिए," गोपाल ने उपस्थित लोगों से आग्रह किया. "इस देश में, एक साथ प्रगति करना बेहतर है, या इसे टुकड़ों में तोड़ना सही है?"

अपने भाषण के दौरान, गोपाल ने यह भी कहा कि "बहिष्कार" शब्द भारतीय भाषाओं के लिए पराया शब्द है. गोपाल ने कहा, "हमारे यहां बहिष्कार की कोई अवधारणा नहीं है." “हां, स्पेनिश में बहिष्कार है. फ्रेंच में बहिष्कार है. आयरिश विशेष हैं. अंग्रेज विशेष हैं. वे यह कहते हुए गर्व महसूस करते हैं कि वे विशेष हैं. हम कहतें हैं कि हमें समावेशी कहे जाने पर गर्व महसूस होता है.” तालियों से इस बात का समर्थन किया गया.

गोपाल के बाद, रशीद ने उपस्थित लोगों को एक बार फिर संबोधित किया. "मुसलमानों का मानना है कि हम किंगमेकर हैं," उन्होंने कहा. “लेकिन हम नहीं हैं. इस देश में सरकार बनाने के लिए किंगमेकर हिंदू हैं.” रशीद ने भारत के मुस्लिम और हिंदू समुदायों के बीच अंतर के बारे में बताया. उन्होंने कहा, "इस देश की जो आत्मा है, वो खीर की तरह है और खीर जो है, वो दूध और चावल से मिल कर बनती है. और दूध और चावल इस देश का हिंदू है. मुस्लिम ड्राई फ्रूट हैं.”

इसके बाद रशीद ने गोपाल को सीधे संबोधित किया. "मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं," उन्होंने कहा. “यहां बैठे सभी लोगों में से, उनमें से ज्यादातर वे हैं जिनके पूर्वज 200, 400, 500 साल पहले हिंदू थे. हिंदुस्तान में, अधिक से अधिक संख्या में लोग धर्मांतरित होते हैं.” जब मैंने बाद में रशीद से फोन पर इस बयान के बारे में बात की, तो राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के इस मौजूदा सदस्य ने दावा किया कि 95 प्रतिशत भारतीय मुसलमान बनने से पहले हिंदू थे जिन्होंने बाद में इस्लाम ले लिया था. उन्होंने इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया.

गोपाल ने भी भारत में हिंदुओं के धर्म परिवर्तन के बारे में इसी तरह के तर्क दिए. "हमारे इतिहास में एक चरण आया जब बाहरी लोगों ने इस देश के मंदिरों को नष्ट कर दिया. वह दौर चला गया, लेकिन यहां के लोग शोक से भरे थे. उस शोक से राम जन्मभूमि आंदोलन का जन्म हुआ. मैं आपसे बहुत प्यार और सम्मान के साथ पूछता हूं, करोड़ों लोगों के दुख के साथ सहानुभूति व्यक्त करता हूं.” एक ऐसे लहजे में जिससे उनके शब्दों की विडंबना को कोई पहचान नहीं मिली, उन्होंने कहा, “वे अपने मंदिरों को बचाने में सक्षम नहीं थे."

बाबरी मस्जिद के विध्वंस में बीजेपी और आरएसएस की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर राशीद ने भी कुछ इसी तरह की राय व्यक्त की. उन्होंने जवाब दिया, "यदि आप किसी मस्जिद के विध्वंस के बारे में बात करने जा रहे हैं, तो आपको उससे पहले मंदिर के विध्वंस के बारे में भी बात करनी होगी." उन्होंने कहा, "विध्वंस में कोई राजनीतिक दल या संगठन शामिल नहीं था. हिंदुओं ने इसका संचालन किया था.”

गोपाल की बाबरी मस्जिद के विध्वंस और हिंदू मंदिरों के कथित विनाश के बारे में विपरीत राय थी. राम मंदिर का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, "आज के मुसलमानों का कहना है कि औरंगजेब ने ऐसा किया, अलाउद्दीन ने किया, ग्यासुद्दीन तुगलक ने किया या सिकंदर लोधी ने किया." उन्होंने कहा, "मैं सहमत हूं, आपने ऐसा नहीं किया. लेकिन उन्होंने जो किया है, हम उसका निवारण कर सकते हैं.” विवादित बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर के निर्माण और आने वाली कानूनी लड़ाई के बारे में बात करते हुए, गोपाल ने कहा,“ एक पुरानी ऐतिहासिक गलती को सही किया जा सकता था, लेकिन इसकी अनुमति नहीं दी गई." उन्होंने कहा," अब जो फैसला आएगा, हम उसे स्वीकार करेंगे."

इस आयोजन में, जेयूएच के राष्ट्रीय अध्यक्ष, सुहैब कासमी ने मुझसे कहा कि अदालत का फैसला बिना शक अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में होगा. जब मैंने उससे पूछा कि वह फैसले के बारे में इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं तो उन्होंने मेरी बात को खारिज करते हुए कहा, "सुप्रीम कोर्ट की क्या औकात है यार सरकार के सामने?"