जैसे-जैसे सर्दियां दस्तक देने लगी थीं, वैसे-वैसे दिल्ली का अपना ही जहरीली हवा का मौसम शुरू होने लगा था. यह जहरीली हवा का मौसम दिवाली में पटाखों पर प्रतिबंध के खुले उल्लंघन के कारण और विषाक्त हो जाता है. प्रेस और दिल्ली के लिबरल शहरियों का आक्रोश और लाचारी का सालाना अनुष्ठान भी इसी मौसम के साथ आरंभ हो जाता है. पर्यावरणविद सरकार की यदा-कदा होने वाली और अप्रभावी कार्रवाई पर अफसोस जताते हैं, फेफड़ों के डॉक्टर सांस के मरीजों से भरते अस्पतालों की शिकायत करते हैं और वायु गुणवत्ता सूचकांक के खतरनाक स्तर तक पहुंचने से राष्ट्रीय राजधानी के नागरिकों की सांसें थम जाती हैं और दम घुटने लगता है.
दिल्ली और उत्तर भारत के बड़े हिस्से में वायु संकट मुख्य रूप से पर्यावरण और सार्वजनिक-स्वास्थ्य प्रबंधन की विफलता का परिणाम है. यह भारत के विफल हो रहे लोकतंत्र का एक और संकेत है.
मार्च 2021 में अमेरिकी थिंक टैंक फ्रीडम हाउस ने, जो दुनिया भर के लोकतंत्रों का मूल्यांकन करता है, अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भारत को "मुक्त" से "आंशिक रूप से मुक्त" देशों के साथ वर्गीकृत किया है. "2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से देश में राजनीतिक अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता की हालत खराब होती गई है. मानवाधिकार संगठनों पर बढ़ते दबाव, शिक्षाविदों और पत्रकारों को मिलने वाली धमकियों का बढ़ते जाना और मुसलमानों की लिंचिंग सहित बड़े हमलों की बाढ़ आई है." रिपोर्ट में लिखा है कि मोदी के नेतृत्व में भारत ने लोकतांत्रिक देशों की अगुवाई करने की अपनी स्वीकृति खो दी है और अब संकीर्ण हिंदू राष्ट्रवाद को समावेशी मूल्यों और सभी के लिए समान अधिकारों वाली भारत की स्थापना काल की मान्यताओं से ऊपर रखा जा रहा है. उसी महीने, स्वीडन के एक स्वतंत्र शोध संगठन वी-डेम इंस्टीट्यूट ने भी लिखा कि "दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र एक चुनावी निरंकुशता में बदल गया है." साथ ही कई अन्य वैश्विक मॉनिटर इसी तरह के निष्कर्ष पर पहुंचे हैं. दि इकोनॉमिस्ट की संस्था दि इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट, जिसने कभी एक मुक्त-बाजार सुधारक के रूप में मोदी से बहुत उम्मीदें लगाई थी- ने भारत को "त्रुटियों वाला लोकतंत्र" कहा है.
हालांकि इस तरह की रिपोर्टें लोकतांत्रिक संस्थानों, अल्पसंख्यक अधिकारों और स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर मोदी के हमले को सटीक रूप अभिव्यक्त करती हैं लेकिन आमतौर पर भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों के कमजोर होने के पीछे नियमित जवाबदेही की कमी पर कम ध्यान दिया जाता है. असफल लोकतंत्रों में वायु संकट जैसे विषय व्यापक चर्चा से दूर हैं और इसलिए इस संकट से निपटना मुश्किल होता है.
हिंदुत्व के तुच्छ सांस्कृतिक एजेंडे के हानिकारक परिणामों में एक है, जनजीवन से आम मसलों का गायब हो जाना. हिंदू दक्षिणपंथ के सांस्कृतिक युद्ध में एक तरह का सर्वखंडनवाद अथवा निहेलिज्म हावी है जो देश के सामने खड़ी जनसांख्यिकीय, पर्यावरण और आर्थिक चुनौतियों का सामना नहीं कर सकता. लोक अभिव्यक्ति एक राष्ट्रीय संसाधन की तरह है लेकिन हिंदुत्व जैसी सामाजिक विकृति न केवल इसे जहरीला करती बल्कि इसे अर्थहीन जुनून और कल्पनाओं में उलझा देती है. मसलन, पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का हवाई दावा.
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