15 दिसंबर की शाम लगभग 30 लोग जामिया मिलिया इस्लामिया के पास बटला हाउस में मोमबत्ती जलाकर विरोध प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए. ये लोग एक साल पहले विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस की ज्यादती का विरोध करने के लिए इकट्ठे हुए थे. एक साल पहले जब नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलन हो रहे थे तब दिल्ली पुलिस इस यूनिवर्सिटी परिसर में घुस आई थी और उसने छात्रों पर बर्बर हिंसा की थी. पुलिस ने उन पर आंसू गैस के गोले दागे थे और लाइब्रेरी में घुसकर वहां मौजूद छात्रों के साथ मारपीट की थी.
कल ये प्रदर्शनकारी नजदीक की एक मस्जिद तक शांतिपूर्ण मार्च निकालना चाहते थे. वे लोग 15 दिसंबर को एक “काले दिवस” के रूप में याद करते हैं. वहां के लोगों ने मुझे बताया कि जैसे ही वे लोग इकट्ठा हुए, दिल्ली पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया और बिना कारण बताए उन्हें गिरफ्तार करने लगी. पुलिस ने उन्हें यह भी नहीं बताया कि वह उन्हें कहां ले जा रही है.
जामिया के ग्रेजुएट छात्र फारोघुल इस्लाम भी प्रदर्शन में मौजूद थे. उन्होंने बताया कि शुरू में गफूर नगर में जमा होने की बात थी, जो बटला हाउस लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर है और वहां से जामिया मिलिया इस्लामिया के गेट नंबर 13 तक मार्च करने पर विचार किया जा रहा था क्योंकि पुलिस ने इसी गेट से हमला किया था.
शाम 6 बजे लोग पहले गफूर नगर में जमा हुए. हमने जिन लोगों से बात की उन्होंने हमें बताया कि उस जगह पर भारी पुलिस बंदोबस्त था और पुलिस प्रदर्शनकारियों की तादाद से लगभग दोगुना थी. पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए लोगों को छुड़ाने की कोशिश कर रहीं अधिवक्ता स्नेहा मुखर्जी ने हमें बताया, “उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वहां इतनी तादाद में पुलिस क्यों मौजूद है, खासकर दंगारोधी पोशाक में.”
इस्लाम के अनुसार पुलिस वाले प्रदर्शनकारियों को डरा रहे थे, जिसके बाद जामिया मिलिया तक मार्च करने का विचार उन्होंने त्याग दिया. फिर इन लोगों ने बटला हाउस में इकट्ठा होकर पास की हरी मस्जिद तक मार्च करने की योजना बनाई. इस्लाम ने हमें बताया कि वे इलाके के सभी दुकानदारों और लोगों को धमका रहे थे और दुकानें बंद करने और इलाके से दूर चले जाने को कह रहे थे. एक प्रदर्शनकारी ने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया, “पुलिस वाले न जाने किन कारणों से इस मार्च से डर गए थे और यह समझना कठिन है कि वे लोग इतना असुरक्षित क्यों महसूस कर रहे थे.”
बटला हाउस के रहने वाले और प्रदर्शन में शामिल वसीम एहसान ने हमें बताया कि सीएए विरोधी आंदोलन शुरू होने के बाद से ही मुस्लिमों पर की गई ज्यादती के खिलाफ भी कल का प्रदर्शन था और उसमें खतरनाक गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून के तहत बंद किए लोगों के लिए इंसाफ की मांग भी थी. एहसान ने कहा कि “यह हमारा अधिकार है कि हम उस दिन को कैसे याद करते हैं जो ज्यादती मुस्लिम समुदाय के साथ एक साल पहले हुई थी. वे लोग हमारे अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं.”
हमें कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि आंदोलन में भाग ले रहे लोगों ने सीएए विरोधी और आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में नारे लगाए और साथ ही मुस्लिम विरोधी हिंसा के संबंध में गिरफ्तार राजनीतिक बंदियों के पक्ष में भी नारे लगाए. उन्होंने हमें कहा, “उन लोगों ने यूएपीए के तहत 50 से ज्यादा मुसलमानों को नोटिस भेजे हैं लेकिन दिल्ली दंगे के मुख्य आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. पुलिस कपिल मिश्रा जैसों का नाम नहीं ले रही है.” बता दें कि भारतीय जनता पार्टी के नेता मिश्रा ने दंगे शुरू होने से कुछ समय पहले ही भड़काऊ भाषण दिया था.
हिरासत में लिए गए जिन लोगों से हमारी बात हो पाई उन्होंने बताया कि पुलिस ने कम से कम 12 लोगों को गिरफ्तार किया था जिनमें से चार महिलाएं थी. गिरफ्तार हुए लोगों में शबीना खानम और उनकी 16 साल की बेटी थी जो सामाजिक कार्यकर्ता उमर खालिद खालिद की मां और बहन हैं.
दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा के संबंध में उमर खालिद को गिरफ्तार किया है. खानम ने हमें बताया, “हम वहां 6.30 बजे के आसपास पहुंचे थे और जैसे ही हमने लोगों से मोमबत्ती हाथों में ली, तो हमने देखा कि अचानक कई पुलिसवालों ने हमें घेर लिया है.” उन्होंने बताया कि जब उन्होंने देखा कि पुलिस वाले प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर रहे हैं तो वह चिंतित हो गईं कि उन्हें कहां ले जा रहे हैं. यह देखकर पुलिस ने उनको और उनकी बेटी को भी हिरासत में ले लिया. उन्होंने बताया, “उन्होंने मेरे साथ और मेरी बेटी के साथ धक्का-मुक्की की और मेरा दुपट्टा भी गिर गया. हमने उनसे कई बार पूछा कि वह हमें कहां ले जा रहे हैं लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बताया.” खानम ने बताया कि हिरासत में लिए गए लोगों को बटला हाउस स्थित नजदीकी कब्रिस्तान तक पैदल ले जाया गया और वहां पहुंचकर महिलाओं को पुलिस की एक जीप में और बाकियों को एक वैन में भर दिया गया.
उन्होंने यह भी बताया कि पुलिस ने उन्हें नहीं बताया कि उन्हें कहां ले जा रही है और लगातार गुमराह करती रही. खानम ने कहा, “हम लोग तो एक छोटा सा प्रतीकात्मक प्रदर्शन उस घटना की याद में कर रहे थे और मुझे समझ नहीं आता कि यह गैरकानूनी कैसे है? मेरी बेटी नाबालिक है, वे लोग उसकी गिरफ्तारी को सही कैसे मान सकते हैं. वे लोग सीएए-एनआरसी विरोधी सभी आवाजों को खामोश करा देना चाहते हैं.” उमर की गिरफ्तारी के बावजूद खानम वहां पहुंची थीं. उन्होंने कहा, “हम डरने और चुप हो जाने वाले लोग नहीं हैं. हम देख रहे हैं कि किसान और बहुत सारे अन्य लोग आवाज उठा रहे हैं और ऐसा करना बहुत जरूरी है.”
जामिया के एक छात्र ने, जिसे गिरफ्तार किया गया था, नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया, “जब वे लोग हमें गिरफ्तार कर रहे थे, उस वक्त उन्होंने मेरे पेट में दो मुक्के मारे.” उसने आगे कहा, “इसके बाद हम में से कुछ लोगों को उन्होंने एक वैन में भर दिया और हमें डांटने लगे. वे लोग हमें इलाके में प्रदर्शन न करने को कह रहे थे और इस बात के लिए डांट रहे थे कि हम लोग पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहे हैं.”
जामिया कॉलेज में बीटेक फाइनल ईयर के छात्र मोहम्मद तनसीर ने बताया कि हिरासत में लिए गए लोगों को लग रहा था कि पुलिस उन्हें हिरासत में रखेगी लेकिन पुलिस ने उन्हें आखिर तक वैन में ही रखा और शहर का चक्कर लगाती रही. गिरफ्तार हुए लोगों को पुलिस ने नहीं बताया गया कि वैन में डाल कर उन्हें कहां ले जाया जा रहा है. पुलिस का ऐसा करना सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान अपनाई गई रणनीति जैसा है जिसमें हिरासत में लिए लोगों के परिवारों और वकीलों को, जो उन्हें छुड़ाने की कोशिश कर रहे होते हैं, डराने की कोशिश की जाती है.
तनसीर ने हमसे कहा, “उन्होंने हम सभी के फोन ले लिए इसलिए हम लोग और फोटो नहीं भेज सके. उन लोगों ने हमारे फोन बंद कर दिए और हमें समझ नहीं आ रहा था कि उन लोगों का इरादा क्या है.” जामिया के एक छात्र ने बताया कि बाहर अंधेरा था और इसलिए उन्हें पता नहीं चल पा रहा था कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है. “हमें यह तो समझ आ रहा था कि हम लोग छतरपुर से आगे निकल आए हैं लेकिन यह नहीं समझ आ रहा था कि वे लोग इतनी दूर क्यों ले जा रहे हैं.”
इसके अतिरिक्त पुलिस ने हिरासत में लिए गए लोगों की पहचान भी नोट की. पुलिस ने उनके नाम, पते, उनके पिता के नाम नोट किए और फोटो भी ली. इस बीच वकील, पत्रकार और हिरासत में लिए गए लोगों के दोस्त जानकारी के लिए उन्हें फोन लगाते रहे.
तकरीबन 7.30 बजे हम लोग लाजपत नगर पुलिस स्टेशन पहुंचे क्योंकि सोशल मीडिया में संदेश शेयर हो रहे थे कि उन्हें लाजपत नगर पुलिस स्टेशन ले जाया जा रहा है. लेकिन हमें वहां जाकर पता चला कि किसी को भी वहां नहीं लाया गया है. लाजपत नगर पुलिस स्टेशन के एक हेड कांस्टेबल ने हमारा फोन नंबर मांगा ताकि वह अपने घर जा सके और अगर कोई अपडेट हो तो हमसे पूछ सके. उसने कहा कि “इंटेलिजेंस के लोग हमारा इस्तेमाल एक प्यादे की तरह कर रहे हैं. अगर कुछ हुआ तो हम पर दोष डाला जाएगा. हमें उनकी कोई जानकारी नहीं है, लेकिन कृपया हमें अपडेट करना ताकि हम अपने वरिष्ठ अधिकारियों को जवाब देने के लिए तैयार रहें.”
व्हाट्सएप और ट्विटर में बहुत सी विरोधाभासी जानकारियां शेयर हो रही थीं जिनके कारण हिरासत में लिए गए लोगों के बारे में भ्रम की स्थिति बनी रही. वकील मुखर्जी ने मुझसे कहा, “पुलिस भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रही थी और यह इस बात से साफ होता है कि उसने जानकारी सार्वजनिक नहीं की. यहां तक कि कई पुलिसवालों तक को नहीं पता था कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है. तो ऐसा लगता है कि पुलिस द्वारा भ्रम की स्थिति पैदा करने का जानबूझकर प्रयास किया गया.”
जब हम यह स्टोरी कर रहे थे तो हम तीन अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में गए. फिर 9.30 बजे पता चला कि हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों को तीन घंटे तक गाड़ी में रखने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया लाकर छोड़ दिया गया है. कई प्रदर्शनकारियों ने बताया कि बटला हाउस में एक रिक्शे वाले को भी गिरफ्तार कर लिया गया था जो प्रदर्शन का हिस्सा नहीं था और उसे दौरा पड़ गया लेकिन पुलिस ने ध्यान नहीं दिया. हमसे एक शख्स ने कहा, “हमें उसकी स्थिति देखकर बहुत बुरा लगा. वह विरोध नहीं कर रहा था. कुछ नहीं कर रहा था लेकिन फिर भी उसे बिना कारण के पुलिस ने हिरासत में ले लिया.” फिर तनसीर ने मुझसे कहा कि रिक्शेवाले को देखकर साफ समझ आ रहा था कि वह बहुत डर गया है. मिनटों के अंदर वह बेहोश हो गया. हमें नहीं पता कि उसे क्या हो रहा था. वह जोर-जोर से छींकने और कांपने लगा और फिर बेहोश हो गया. उसे डर लग रहा था कि उसका रिक्शा गुम जाएगा.”
एक दूसरे व्यक्ति ने बताया कि उस रिक्शेवाले को इलाज की जरूरत थी और हॉस्पिटल ले जाया जाना था लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि पुलिस वालों ने ऐसा क्यों नहीं करने दिया. उन लोगों ने बस इतना कहा, “सब ठीक हो जाएगा.” लेकिन साफ था कि ऐसी नहीं है.”
दक्षिण पूर्वी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त राजेंद्र प्रसाद मीणा ने हमसे कहा कि वह हमारे सवालों का लिखित जवाब भेजेंगे लेकिन यह स्टोरी लिखे जाने तक उन्होंने जवाब नहीं भेजा था. यदि उनका कोई जवाब आता है तो स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.
एहसान ने बताया कि पुलिस ने जिस तरह एक शांतिपूर्ण मार्च नहीं होने दिया उससे किसी भी तरह के राजनीतिक आंदोलन के खिलाफ पुलिस के अंदर मौजूद गहरे डर का पता चलता है. इससे साफ पता चलता है कि वे लोग जामिया से बहुत डरे हुए हैं. सारे इलाके में बहुत ज्यादा पुलिस बंदोबस्त था और हमें पता है कि उन्हें कौन निर्देश दे रहा है.”
एहसान ने हमसे कहा कि साफ था कि पुलिस मुस्लिम विरोधी है और अब वह किसान विरोधी भी हो गई है. इस्लाम ने एहसान की ही चिंताओं को दोहराते हुए कहा, “जामिया मिलिया इस्लामिया छात्रों की संस्था है और इस पर जिस तरह का सैन्य कब्जा हो रहा है वह बहुत डरावनी बात है. शिक्षकों और छात्रों के स्थान पर कब्जा करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है. वे लोग विश्वविद्यालय को इस तरह क्यों दिखा रहे हैं. रोज-रोज इस तरह की चीजें होते देखना तनावपूर्ण होता है. इन लोगों को सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ आंदोलन का डर है और इसलिए राज्य इस तरह का बर्ताव कर रहा है.”