दिल्ली हिंसा : कपिल मिश्रा और अन्य बीजेपी नेताओं के खिलाफ दर्ज शिकायतों को नजरअंदाज कर रही दिल्ली पुलिस

जनवरी 2019 में आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ एक रैली को संबोधित करते हुए कपिल मिश्रा. दिल्ली में इस साल फरवरी में हुई हिंसा के लिए लोगों ने कपिल मिश्रा को जिम्मेदार बताया है. सोनू मेहता / हिंदुस्तान टाइम्स / गैटी इमेजिस

बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नजदीक भाषण दिया. उस भाषण के महज कुछ घंटों के भीतर, मिश्रा ने हथियारबंद भीड़ के साथ दो किलोमीटर दूर कर्दमपुरी इलाके पर हमला कर दिया.

उपरोक्त बात दिल्ली पुलिस में दर्ज दो लोगों की शिकायत में कही गई है. जाफराबाद मेट्रो स्टेशन में कपिल मिश्रा ने नागरिकता संशोधन कानून (2019) का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को आंदोलन स्थल से हट जाने की धमकी दी थी. शिकायतकर्ता ने बताया है कि 23 फरवरी की दोपहर में मिश्रा ने कर्दमपुरी में भड़काऊ भाषण दिया था और मुस्लिम और दलित आंदोलनकारियों पर हमला करने के लिए भीड़ को उकसाया था. एक शिकायतकर्ता ने कपिल मिश्रा पर आरोप लगाया है कि वह भीड़ को उकसाते हुए हवा में बंदूक लहरा रहे थे. तीसरी शिकायत में कहा गया है कि मिश्रा के भाषण के बाद पुलिस वालों ने चांदबाग में आंदोलनकारियों पर हमला किया. शिकायतकर्ता ने लिखा है कि जैसे ही पुलिस ने हमला शुरू किया उन्होंने सहायक कमिश्नर को मिश्रा को फोन पर आश्वासन देते हुए सुना, “चिंता मत करिए, हम सड़कों पर इनकी लाशें बिछा देंगे. ये लोग पुस्तों तक इसे नहीं भूलेंगे.”

दिल्ली पुलिस के समक्ष कपिल मिश्रा सहित कई बीजेपी नेताओं के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई गई हैं. फरवरी और मार्च में उत्तर पूर्व दिल्ली के लोगों ने शिकायत की थी कि वे लोग बीजेपी के नेताओं और उनके समर्थकों द्वारा की गई हिंसा के गवाह है. कारवां के पास ऐसे कई लोगों की शिकायतें हैं. इन शिकायतकर्ताओं ने अपनी शिकायतें प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालय और कई पुलिस स्टेशनों को भी भेजी हैं. शिकायतों की पावतियों में शिकायत लेने वाले कार्यालयों या पुलिस स्टेशनों की मोहरें लगी हैं. कई शिकायतों में एक से ज्यादा मोहरें लगी हैं. जिन अन्य बीजेपी नेताओं के नाम शिकायतों में हैं, वे हैं, उत्तर प्रदेश के बागपत के बीजेपी सांसद और पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह, उत्तर प्रदेश के लोनी के विधायक नंदकिशोर गुर्जर, दिल्ली के करवाल नगर के विधायक मोहन सिंह बिष्ट और मुस्तफाबाद के पूर्व एमएलए जगदीश प्रधान. हिंसा से पहले संपन्न हुए दिल्ली चुनाव में जगदीश प्रधान हार गए थे.

एक शिकायत मिश्रा के भाषण के एक दिन बाद, यानी 24 फरवरी को ही दायर की गई थी. उस शिकायत में दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के कार्यालय, गृह मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय और दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालयों की मोहरें लगी हैं.

शिकायतकर्ता मोहम्मद जामी रिजवी, जो उत्तर पूर्व दिल्ली के यमुना विहार के रहने वाले हैं, ने लिखा है कि 23 फरवरी को दोपहर करीब 2 बजे 25 लोगों की भीड़ ने मिश्रा को कर्दमपुरी में अल्पसंख्यकों पर हमला करने के लिए उकसाया. इसके कुछ दिन पहले से कर्दमपुरी सहित कई इलाकों में राष्ट्रीय नागरिक पंजिका और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलन चल रहे थे. उस दिन प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में भारत बंद था इसलिए आंदोलन में बहुत से लोग शामिल हुए थे. रिजवी ने अपनी शिकायत में लिखा है कि मिश्रा के साथ खड़ी भीड़ ने भड़काऊ नारे लगाए :

कपिल मिश्रा तुम लठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.
लंबे-लंबे लठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.
खींच-खींच के लठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.
मुल्लों पर तुम लट बजाओ हम तुम्हारे साथ हैं.
चमारों पर तुम लठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.

शिकायत में रिजवी ने लिखा है कि इसके बाद मिश्रा ने नारों के जैसा ही घृणा से भरा भाषण दिया. कपिल मिश्रा और उसके साथी, जिनके हाथों में बंदूकें, तलवारें, त्रिशूल, भाले, छड़ी पत्थर और कांच की बोतलें थीं, जातिवादी और सांप्रदायिक नारे लगा रहे थे और धरने की जगह में आ रहे थे. इसके बाद मिश्रा ने कहा, “जो लोग हमारे घरों के टॉयलेट साफ करते हैं, क्या उन्हें हम अपने सिर पर बैठाएंगे?” उनके समर्थकों ने जवाब दिया, “बिल्कुल नहीं.” इसके बाद कपिल मिश्रा ने कहा, “ये मुसलमान पहले सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और अब ये लोग आरक्षण के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. अब हमें इनको सबक सिखाना ही पड़ेगा.”

इसे सुनने के तुरंत बाद मिश्रा के समर्थकों ने कर्दमपुरी में प्रदर्शनकारियों पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए. इसके बाद पुलिस की उपस्थिति में लोग कारों को सड़कों पर रोकने लगे और मुस्लिम और दलितों की कारों की पहचान कर उनको गालियां देने लगे और उन्हें देशद्रोही, मुल्ला कहने लगे और दलितों के खिलाफ जातिवादी गालियां बकने लगे और उन्हें पीटने लगे और उनकी कारों को तोड़ दिया. कपिल मिश्रा अपनी बंदूक हवा में लहरा रहा था और हमलावरों को कह रहा था कि “हरामियों को छोड़ना मत. आज हम इनको ऐसा सबक सिखाएंगे कि ये लोग प्रदर्शन करना भूल जाएंगे.”

मिश्रा के खिलाफ आरोपों की गंभीरता के बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया गया. आपराधिक प्रक्रिया के सिद्धांत के तहत शिकायत प्राप्त करने के 7 दिनों के भीतर पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी होती है. कारवां ने जिन शिकायतों की जांच की है उनमें हिंसा भड़काने, नियोजित रूप से हत्या के चश्मदीदों के बयान और पुलिस अधिकारियों द्वारा एक मदरसे को लूटने और अपने कनिष्ठों को सांसद सत्यपाल सिंह को पैसे भेजने का निर्देश देने के आरोप हैं. इन शिकायतों में पुलिस आयुक्त के कार्यालय और दयालपुर और गोकुलपुरी पुलिस स्टेशनों की मोहरें लगी हैं. इसके बावजूद पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की.

ऐसा लगता है कि पुलिस ने इन शिकायतों को दबा दिया. अधिकांश शिकायतकर्ताओं ने मुझे बताया कि हिंसा के बाद पुलिस ने शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया. इन लोगों ने बताया कि उन लोगों ने मार्च के मध्य में, जब मुस्तफाबाद की ईदगाह मैदान में हिंसा से विस्थापित लोगों के लिए एक राहत शिविर में पुलिस सहायता डेस्क लगाई गई, तब जाकर अपनी शिकायतें दर्ज कराईं. इनमें से बहुत सी शिकायतों में हिंसा के दोषियों के नाम लिए गए हैं और उनकी पहचान बताई गई है. चांदबाग की रहने वाली रुबीना बानो ने मिश्रा सहित कई लोगों के नाम अपनी शिकायत में लिए हैं. उन्होंने मुझसे कहा, “अब पुलिस अक्सर मेरे घर आ जाती है और मुझे सीधे-सीधे धमकाती है.” इन शिकायतों में दिल्ली पुलिस के खिलाफ लगे आरोपों के संबंध में मेरे ईमेलों का दिल्ली पुलिस ने जवाब नहीं दिया. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

जिस तरह से मिश्रा के भाषणों को टीवी और समाचारों में दिखाया गया उससे मिश्रा को प्राप्त दिल्ली पुलिस का सहयोग स्पष्ट है. 23 फरवरी को मिश्रा जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नजदीक नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन स्थल के पास आए. मिश्रा के बगल में उत्तर पूर्व दिल्ली के पुलिस कमिश्नर वेद प्रकाश सूर्या खड़े थे. मिश्रा ने चेतावनी दी कि यदि तीन दिनों के अंदर जाफराबाद से प्रदर्शनकारी नहीं हटे तो वह इस मामले को दिल्ली पुलिस से अपने हाथों में ले लेंगे. लेकिन लगता है कि मिश्रा के ऐसा कहने के बावजूद पुलिस ने कुछ नहीं किया. दिल्ली पुलिस ने उन्हें नहीं रोका जबकि वह भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे और उनके भाषण के बाद हिंसा हुई. इसके अलावा पुलिस उनके खिलाफ शिकायतों पर कोई कार्रवाई भी नहीं की.

चांदबाग के एक निवासी ने नाम का उल्लेख ना करने की शर्त पर बताया कि उन्होंने शिकायत में मिश्रा का नाम लिया है. उन्होंने 19 मार्च को ईदगाह मैदान में पुलिस सहायता डेस्क में अपनी शिकायत दर्ज कराई थी और उस शिकायत की पावती में गोकुलपुरी पुलिस स्टेशन की मोहर है. शिकायत में उस महिला ने लिखा है कि 23 फरवरी को चांदबाग के सीएए विरोधी प्रदर्शन स्थल पर वह मौजूद थीं. 4 बजे कपिल मिश्रा और उसके गुंडे हवा में हथियार लहराते हुए और नारेबाजी करते हुए आए थे. इसके तुरंत बाद पुलिस अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया जिसके बाद प्रदर्शनकारी तितर-बितर हो गए. इसके बाद कपिल मिश्रा और उनके गुंडे सी ब्लॉक डायमंड स्कूल के पास आ गए और अपने हथियारों को लहराते हुए नारे लगाते रहे.

रहमत और चांदबाग के अन्य निवासियों ने उसी दिन अपनी शिकायत दर्ज कराई थी. रहमत ने लिखा है, “मैं पिछले 2 महीनों से सीएए-एनआरसी के खिलाफ चल रहे प्रोटेस्ट में जाया करती थी. कड़ाके की ठंड में कई बार मैं बीमार भी हुई मगर क्योंकि देश को बचाने का मामला था इसलिए मैं प्रोटेस्ट में जाती रही.” इसके बाद रहमत ने उन बातों का उल्लेख किया है जो 23 फरवरी को उनके सामने घटीं.

“23 फरवरी को शाम करीब 4 बजे कपिल मिश्रा और पुलिस वाले भी उनके साथ साथ चल रहे थे. क्योंकि उस दिन आरक्षण के चक्कर में भारत बंद था इसलिए ज्यादा लोग होने के कारण कुछ लोग रोड पर भी थे. कपिल मिश्रा ने आते ही जोर-जोर से नारे लगवाए देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को जय श्री राम कटु मुर्दाबाद और उनके साथ आए पुलिसवालों ने वहां खड़े लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया जिससे भगदड़ मच गई और फिर कपिल मिश्रा वगैरह धर्म कांटे पर इकट्ठा हो गए और फिर रात में मोहन नर्सिंग होम के मालिक उसके नौकरों व कपिल मिश्रा और उसके साथियों ने वहां मौजूद लोगों पर गोलियों लाठी-डंडों तलवारों से हमला कर दिया. जिसमें कई लोग जख्मी हो गए जिसके बाद 12 बजे मैं घर चली गई.“ रहमत की शिकायत पर दयालपुर पुलिस स्टेशन की मोहर है.

यमुना विहार के रहने वाले मोहम्मद इलियास ने भी अपनी शिकायत में मिश्रा का नाम लिया है. इलियास ने कर्दमपुरी में हिंसा के लिए बीजेपी के नेता पर आरोप लगाया है. इलियास ने ईद का राहत शिविर में 17 मार्च को अपनी शिकायत दर्ज कराई थी उनकी शिकायत में दयालपुर पुलिस स्टेशन की मोहर है. इलियास ने लिखा है, “23 फरवरी को दोपहर में कर्दमपुरी पर कपिल मिश्रा और उसके साथियों ने रोड पर रोक रोक कर मुस्लिम और दलितों की गाड़ियां तोड़नी शुरू कर दी और पुलिस वाले अधिकारी यह सब साथ में खड़े होकर करवा रहे थे. जिसके बाद इलाके में बहुत माहौल खराब होना शुरू हो गया उसके बाद रात में डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या ने गलियों में घूम-घूम कर कहना शुरू कर दिया कि अगर तुमने ये प्रोटेस्ट खत्म नहीं कराए तो यहां ऐसे दंगें होंगे कि तुम सब मारे जाओगे.”

अगले दिन जब उत्तर पूर्वी दिल्ली के मुस्लिम इलाकों और सीएए विरोधी प्रदर्शन स्थलों में हिंसा शुरू हुई तो ऐसा लगता है कि पुलिस एक दिन पहले की सूर्या की धमकी को लागू कर रही है. अन्य स्थानों की तरह चांदबाग में भी प्रदर्शन का नेतृत्व औरतें कर रही थी. वे औरतें एक टेंट के अंदर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही थीं, जिसमें भाषण दिए जाते थे और भेदभाव पूर्ण कानून के खिलाफ नारे लगाए जाते थे. बानो ने बताया, “मैं 3 महीने से प्रेग्नेंट हूं, फिर भी देश का संविधान बचाने और अपने बच्चों के भविष्य के लिए काले कानून के खिलाफ चांदबाग में चल रहे प्रोटेस्ट में जाया करती थी.”

बानो ने अपनी शिकायत में आगे लिखा है कि 24 फरवरी को सुबह लगभग 11 बजे वह धरनास्थल पर पहुंचीं तो देखा कि वहां बहुत सारे पुलिस वाले, एसीपी अनुज शर्मा, दयालपुर थाना एसएचओ तारकेश्वर सिंह, मौजूद थे और औरतों से बहस कर रहे थे और अपशब्द कह रहे थे. वे लोग कह रहे थे कि अगर प्रदर्शन बंद नहीं किया तो "जिंदगी से ही आजाद कर देंगे." बानो ने बताया है कि पुलिस के अलावा वहां अन्य लोग भी थे जिन्होंने गले में गमछे डाल रखे थे और “लाठी-डंडे, तलवारे, पत्थर, बंदूकें, बम वगैरा लिए हुए थे”. बानो ने लिखा है, " मैंने एसीपी अनुज कुमार से पूछा कि हम तो चुपचाप शांतिपूर्ण तरीके से पंडाल के अंदर बैठकर प्रोटेस्ट कर रहे हैं तो आप क्यों हमें उल्टा सीधा बोल रहे हैं तो वह गाली देकर बोला कि कपिल मिश्रा और उसके लोग आज तुम्हें यही तुम्हारी जिंदगी से आजाद कर देंगे. बानो आगे लिखती हैं, “फिर इतने में दयालपुर थाना के एसएचओ तारकेश्वर तेजी से आए और आकर फोन एसीपी साहब को देते हुए बोले कि ‘साहब कपिल मिश्रा जी का फोन है.’ उनसे बात करते हुए एसीपी साहब ‘जी’, ‘जी’ बोल रहे थे. फिर फोन रखते हुए बोले फिक्र मत करो लाशें बिछा देंगे इनकी पुश्तें याद रखेंगी. बानो ने आगे लिखा है फोन रखते ही एसीपी ने एसएचओ वगैरह सब से कहा कि मारो सालों को और फिर पुलिस वालों ने औरतों पर हमला शुरू कर दिया और पंडाल में घुसकर गालियां देते हुए बोले कि ‘तुम्हें आजादी चाहिए, अभी तुम्हारा जय भीम निकालते हैं.’ बानो के अनुसार उन लोगों ने आंबेडकर, गांधी, सावित्रीबाई फुले और अन्य लोगों के पोस्टर भी फाड़ दिए.

इसके साथ ही मोहन नर्सिंग होम की छत से लोग उन पर पत्थर, बम और प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने लगे. बानो ने शिकायत में दर्ज कराया है, “जैसे ही महिलाएं अपनी जान बचाने के लिए भागने लगीं, हमलावर जबरदस्ती जवान लड़कियों के साथ बदतमीजी करने लगे, जिसे देखकर कुछ आदमी औरतों को बचाने के लिए आगे आए, तो उन पर लाठी-डंडों, तलवारों से हमला किया गया और पुलिस द्वारा भी गोलियां चलाकर लोगों को मारा गया.” बानो ने लिखा है कि इस बीच एक पेट्रोल बम से पंडाल में आग लगा दी गई.

एक अन्य शिकायतकर्ता ने बानो की बातों की पुष्टि की. न्यू मुस्तफाबाद के निवासी शिकायतकर्ता ने पहचान जाहिर करने से इनकार करते हुए कहा कि उसने 11 मार्च को ईदगाह पुलिस सहायता डेस्क पर अपनी शिकायत दर्ज कराई थी. चार दिन बाद इसे विधिवत रूप से दयालपुर पुलिस स्टेशन की दैनिक स्टेशन डायरी में क्रम संख्या 53 में दर्ज किया गया. शिकायत पर पुलिस आयुक्त और लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालयों की मोहरें भी हैं. शिकायतकर्ता ने बताया कि वह भी 24फरवरी की सुबह चांदबाग विरोध स्थल पर मौजूद थीं. "हमले में हमारे पंडाल में आग लग गई और 40-50 औरतें सीमेंट गोदाम में अपनी जान बचाने के लिए भागीं. तब मैंने देखा कि एसीपी दिनेश शर्मा भीड़ पर चिल्ला रहे थे, 'सतपाल सांसद जी ने जो कहा था आज वह करके दिखाना है". शिकायतकर्ता ने कहा कि शर्मा ने कहा, "आगे बढ़ो, डरो मत, पुलिस तुम्हारे साथ है, एक-एक को चुनकर जिंदगी से आजादी देनी है."

बानो ने अपनी शिकायत में करावल नगर निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी के विधायक बिष्ट का नाम भी लिया है. उन्होंने कहा कि भीड़ में वे लोग थे जो उस महीने हुए विधानसभा चुनाव में बिष्ट के लिए प्रचार कर रहे थे. इलियास ने भी अपनी शिकायत में बिष्ट का नाम लिया है. उन्होंने लिखा है कि उन्हें पता चला था कि 25 फरवरी की शाम को जब मुस्तफाबाद के बृजपुरी इलाके के लोग मगरिब की नमाज की तैयारी कर रहे थे तो पुलिस, स्थानीय भीड़, बिष्ट और जगदीश प्रधान ने आसपड़ोस में हमला कर दिया. बृजपुरी की फारूकिया मस्जिद का जिक्र करते हुए इलियास ने शिकायत में लिखा है कि उन्हें पता चला कि “बहुत से लोगों को मार डाला है और मस्जिद में आग लगा दी है और इमाम साहब वगैरह की भी हालत बहुत खराब है. इस सब को सुनकर पूरे मुस्लिम समाज में खौफ का माहौल फैल गया और सब लोग रात भर दुआएं करते रहे.”

इलियास ने लिखा है कि अगली सुबह वह आग के बाद की स्थिति का जायजा लेने फारूकिया मस्जिद गए थे तो उन्होंने देखा कि कुछ पुलिस वालों के साथ दयालपुर के एसएचओ तारकेश्वर और "चावला" जो स्थानीय जनरल स्टोर का मालिक और इलाके का एक रसूखदार आदमी है, घटनास्थल पर पहले से ही मौजूद हैं. इलियास की शिकायत के अनुसार, पुलिस अधिकारियों और चावला के सहयोगियों ने इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों को तोड़ना करना शुरू कर दिया और मस्जिद और उससे सटे एक मदरसे में तोड़फोड़ की. इलियास ने लिखा कि उन्होंने तारकेश्वर से हस्तक्षेप करने की विनती की थी लेकिन एसएचओ ने बीच-बचाव करने से मना कर दिया और जवाब दिया, "तुम्हें कितना समझाया था कि प्रोटेस्ट बंद कर दो तब तो तुम्हें अक्ल नहीं आई."

इलियास ने बताया है कि तभी चावला ने तारकेश्वर से फोन पर संपर्क किया और उन्हें बताया कि सांसद सत्यपाल सिंह की ओर से उनके लिए फोन आया है. (सिंह 2014 में अपने पद से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हुए थे.) थोड़ी देर तक फोन पर बात करने के बाद, तारकेश्वर ने फोन नीचे रख दिया और चावला को निर्देश दिया कि मस्जिद और मदरसे से जो कुछ भी पैसा उन्होंने इकट्ठा किया है उसे सत्यपाल के घर ले जाएं. “चावला जी ने अलमारी से सारे पैसे एक बैग में भर लिए. बैग में ऊपर से ही रुपए भरे हुए दिखाई दे रहे थे.” इलियास ने बताया कि इसके बाद पुलिस ने मदरसे को आग लगा दी.

पुलिस में दर्ज एक सबसे खौफनाक शिकायत मुस्तफाबाद के पूर्व विधायक प्रधान और लोनी के मौजूदा विधायक गुर्जर के खिलाफ है. उक्त शिकायत न्यू सीलमपुर के निवासी इकरार ने 8 मार्च को भजनपुरा पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई थी. इकरार ने अपनी शिकायत में लिखा कि 25 फरवरी को कई अन्य बहुत से लोगों की तरह वह भी मरने से बाल-बाल बचे थे.

उस शाम जब इकरार अपने स्कूटर पर दिल्ली के गोंडा चौक को पार कर रहे थे तो उन्हें आठ-दस लोगों ने रोका लिया. उन लोगों के साथ लगभग 15-20 पुलिस वाले भी थे. शिकायत के अनुसार, उन लोग और पुलिस वालों के हाथों में तलवार, लाठी और बंदूकें थीं. इकरार ने लिखा है कि जान बचाने के लिए उन्होंने अपना नाम राजू बताया और“जय श्री राम” के नारे भी लगाए लेकिन उनके मुस्लिम होने का पता चल गया. उन्होंने बताया कि भीड़ ने जबरदस्ती उनकी जेब से उनका पर्स निकाल लिया और जैसे ही उनका नाम देखा, उन्हें लाठी और तलवारों से मारना शुरू कर दिया. इकरार ने लिखा है, “जब वे मुझे पीट रहे थे तो पुलिस कह रही थी, 'इसे इसकी पूरी आजादी दे दो.’” 

इकरार ने कहा कि फिर अचानक उनमें से एक ने, जो उनका नेता लग रहा था, लोगों को रुकने को कहा और इस तरह उस पल उनकी जान बच गई. शिकायत के अनुसार, ''उस नेता जैसे शख्स ने कहा कि नंद किशोर गुर्जर जी ने कहा है कि इनमें से दो-चार लोगों के जलने के वीडियो बनाने हैं. तब उनमें से एक ने खून में सनी चार-पांच लाशों की ओर इशारा करते हुए कहा, 'इसे भी उन चारों की तरह काट देते हैं." इकरार ने कहा कि लेकिन नेता सहमत नहीं हुआ और बोला, "यह हट्टा कट्टा आदमी है, इसके जलने का वीडियो लंबा बनेगा.” इकरार ने अपनी शिकायत में लिखा है कि उस नेता ने दो आदमियों को पेट्रोल लेने भेज दिया.

वे पेट्रोल का इंतजार करते रहे थे. फिर नेता ने एक आदमी को गुर्जर को फोन करने को कहा और अन्य लोग इकरार को थप्पड़ और लात-घूसों से मार रहे थे. विधायक को फोन करने वाले व्यक्ति ने नेता को बताया कि कॉल नहीं लग रहा है. अपनी शिकायत में इकरार ने लिखा है कि उस आदमी ने बताया, "मैं दूसरे नंबर पर कॉल कर रहा हूं जो साहब ने दिया था लेकिन यह कनेक्ट नहीं हो रहा है." नेता ने इसके बाद एक दूसरे आदमी को प्रधान को कॉल करने के लिए कहा. इकरार ने कहा कि कॉल कनेक्ट हो गई और नेता ने उनसे बात की, “जगदीश भाई, हमने एक अच्छा कटुआ पकड़ा है. हमने कमीने को काट दिया लेकिन उसमें अभी भी बहुत जान बची है. मैंने पेट्रोल मंगवाया है, कैमरा तैयार है, मैं आपके दूसरे नंबर पर पूरा वीडियो भेज दूंगा."

इकरार ने आगे बताया कि इसी समय इन लोगों ने एक बाइक पर सवार दो लोगों को देखा जिनकी दाढ़ी थी और वे अपनी तलवारें उठाए हुए उनकी ओर दौड़े. उन्होंने लिखा कि इस मौके का फायदा उठाकर वह किसी तरह अपनी जान बचाकर भागने में सफल रहे. इकरार ने अपनी शिकायत में कहा कि 7 मार्च तक वह बोल सकने की हालत में नहीं थे. उन्हें शिकायत की टाइप प्रति मिली और फिर हस्ताक्षर किए और अपना अंगूठा भी लगाया. उन्होंने कहा, "मेरे भाई ने मुझे बताया है कि मेरे मामले को लेकर भजनपुरा पुलिस स्टेशन में 97/2020 को एफआईआर दर्ज की गई है. उन्होंने इसे मुझे पढ़ कर सुनाया. इसमें कहा गया था कि मेरा बयान दर्ज ना होने से जांच लंबित है इसलिए कृपया इस बयान को एफआईआर में जोड़ें और अपराधियों के खिलाफ एक आपराधिक जांच करें." जहां तक इकरार को जानकारी है तब से जांच आगे नहीं बढ़ी है.

प्रधान और गुर्जर का नाम अन्य शिकायतों में भी आया है. चांदबाग के निवासी साबिर अली ने 24 फरवरी की सुबह इलाके में प्रदर्शनकारियों पर हमलों का वर्णन करते हुए लिखा, “पुलिस अधिकारियों के साथ भीड़ में वे लोग भी थे जिन्हें मैंने चुनावों के दौरान अक्सर जगदीश प्रधान के साथ देखा था." एक अन्य शिकायत में, प्रेम विहार निवासी सलीम कासार ने लिखा है कि 25 फरवरी को "लोहे की छड़, पेट्रोल बम, तलवार और अन्य हथियारों" से लैस उपद्रवियों ने उनकी दुकान पर हमला किया. उन्होंने कहा, "ये लोग कह रहे थे कि नंद किशोर गुर्जर ने उन्हें बताया है कि पुलिस उनके साथ है और डरने की कोई जरूरत नहीं है."

दिल्ली पुलिस और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की मदद से बीजेपी नेता न्यायिक जांच से बच रहे हैं. 26 फरवरी को दिल्ली उच्च न्यायालय की एस मुरलीधर और तलवंत सिंह की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और फराह नकवी की उस याचिका पर सुनवाई की जिसमें हिंसा भड़काने के लिए मिश्रा और अन्य बीजेपी नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग थी. मामला मूल रूप से मुख्य न्यायाधीश की अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था लेकिन उस दिन मुख्य न्यायधीश छुट्टी पर थे इसलिए मुरलीधर की अदालत में त्वरित सुनवाई हुई. मंदर के वकील कॉलिन गोंसालविस सुनवाई में मौजूद थे. सुनवाई के दौरान बेंच और सॉलिसिटर जनरल के बीच गहमा-गहमी हो गई.

भाषणों के वीडियो ना देखने के लिए मुरलीधर ने मेहता और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को अदालत में जमकर लताड़ा. मुरलीधर ने कहा, "मैं दिल्ली पुलिस के काम करने के तरीके को देखकर चकित हूं" पीठ ने भरी अदालत में मेहता और दिल्ली पुलिस के लिए बीजेपी के चार नेताओं के भाषण चलाए. इनमें कपिल मिश्रा, पश्चिम दिल्ली के सांसद परवेश वर्मा, पश्चिम दिल्ली के विधायक अभय वर्मा और केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के भाषण थे. परवेश ने सार्वजनिक भाषणों के दौरान और समाचार एजेंसी एशियन न्यूज इंटरनेशनल को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि दिल्ली के शाहीन बाग स्थल पर बैठै प्रदर्शनकारी “बलात्कारी और हत्यारे” हैं. अभय और ठाकुर दोनों ने हिंसा भड़काने वाले भड़काऊ नारे लगाए थे : "देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को". लेकिन दिल्ली पुलिस ने उनमें से किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की.

मेहता का कहना था कि बीजेपी नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की कोई जरूरत नहीं है. मजे की बात यह है कि मंदर और नकवी दोनों के ही मामले में केंद्र सरकार पार्टी नहीं थी, लेकिन मेहता मामले में पेश हुए और उन्होंने कहा कि उन्हें दिल्ली के पुलिस आयुक्त की पैरवी करने के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा अधिकृत किया गया है. शुरू में मेहता ने मामले को अगले दिन सूचीबद्ध करने की मांग की और तर्क दिया कि यह तत्काल सुनवाई का मामला नहीं है. मेहता ने अदालत में कहा, "एफआईआर उचित समय पर दर्ज की जाएगी."

“उचित समय क्या होगा, मिस्टर मेहता? शहर जल रहा है. ” मुरलीधर ने जवाब दिया. “अभी कितनी और जाने जाना अभी बाकी हैं? अभी कितनी और संपत्तियों को नष्ट करना है?”

अदालत से यह कहते हुए कि वह ''गुस्सा'' ना करे, मेहता ने जवाब दिया कि "स्थिति अनुकूल होने पर एफआईआक दर्ज की जाएगी."

"यह गुस्सा नहीं, यह पीड़ा है," मुरलीधर ने पलटवार करते हुए कहा. उन्होंने बाद में सुनवाई में इस बात को दोहराया, “यह एक संवैधानिक अदालत की पीड़ा है. जब इन मामलों में एफआईआर दर्ज करने की बात हो रही है तो आप क्यों तत्परता नहीं दिखा रहे हैं? "

मुरलीधर ने कहा, “इस शहर ने पर्याप्त हिंसा देख ली है. हम 1984 का दोहराव ना होने दें.” मुरलीधर उस साल राष्ट्रीय राजधानी में हुए सिख विरोधी नरसंहार का जिक्र कर रहे थे. लेकिन जैसे 1984 में, दिल्ली पुलिस और वरिष्ठ कांग्रेस नेता, जो हिंसा फैलाने के लिए दोषी थे, वे बच निकले, उसी तरह दिल्ली हिंसा के आरोपी बीजेपी नेता भी अपनी भूमिका की किसी भी जांच से बच गए.

पीठ ने अंततः दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के बारे में "सचेत निर्णय लेने" और अगले दिन अदालत को सूचित करने का आदेश दिया. देर रात केंद्र सरकार ने मुरलीधर का पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में ट्रांसफर कर दिया. अगले दिन, यह मामला एक बार फिर मुख्य न्यायाधीश की अदालत के सामने सूचीबद्ध किया गया. दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने बगैर तात्कालिकता के मामले का निपटान किया. मेहता इसी की मांग कर रहे थे. पटेल ने पहले आनन-फानन में केंद्र सरकार को एक पक्ष बनाया और फिर केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दे दिया. मामले की अगली सुनवाई 13 अप्रैल तय की गई.

मार्च की शुरुआत में, गोंसालविस ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अन्य याचिकाकर्ता शेख मुजतबा फारूक की पैरवी की, जिन्होंने एक अन्य याचिका में हत्या सहित विभिन्न अपराधों के तहत इन चार बीजेपी नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को उच्च न्यायालय भेज दिया और इसे मंदर और नकवी की याचिका के साथ नत्थी कर दिया गया. हाईकोर्ट को एफआईआर दर्ज करने के मुद्दे पर एक और सुनवाई करनी बाकी है. गोंसालविस ने मुझे बताया, "यह मामला अभी लटका हुआ है, शायद लॉकडाउन की वजह से सुनवाई की कोई तारीख तय नहीं है".

दिल्ली हिंसा के संबंध में दर्ज प्राथमिकी में दिल्ली पुलिस ने जून के पहले सप्ताह में चार आरोपपत्र दायर किए हैं. इनमें से एक दयालपुर पुलिस स्टेशन में 26 फरवरी को हिंसा में मारे गए इंटेलिजेंस ब्यूरो के कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या के सिलसिले में है. इस मामले के आरोपपत्र के भाग का शीर्षक है, "उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों के भड़ने का घटनाक्रम", जिसमें मिश्रा या उच्च न्यायालय के समक्ष मामलों में पहचाने गए तीन अन्य नेताओं के भाषण शामिल नहीं हैं. साफ इशारा है कि दिल्ली पुलिस उत्तर पूर्वी-दिल्ली में हुए नरसंहार में कपिल मिश्रा की भूमिका को छिपाने की पुरजोर कोशिश कर रही है.

मैंने इस रिपोर्ट में नामित सभी बीजेपी नेताओं से यह पूछने के लिए संपर्क किया कि क्या पुलिस कभी इन शिकायतों की जांच के क्रम में उनके पास आई थी. प्रधान ने कहा कि पुलिस ने किसी भी जांच के लिए उनसे संपर्क नहीं किया है और कहा कि "पुलिस ने शांति कायम करने में सकारात्मक भूमिका निभाई है." बिष्ट ने मुझे बताया कि उन्हें पुलिस से कोई सूचना नहीं मिली है. उन्होंने कहा, " इसमें बीजेपी की कोई भूमिका नहीं है."

मिश्रा ने इस रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने जवाब में लिखा, "आपके व्हाट्सएप संदेश मिलने के बाद, मैंने बस आपकी वेबसाइट देखी कि आप कौन हैं और कारवां पत्रिका क्या है. मैंने देखा कि आपकी पत्रिका की वेबसाइट में पत्रकारिता के प्रमाण के रूप में अरुंधति रॉय का एक उद्धरण दिया गया है. मुझे लगता है कि यह आपकी पत्रिका और उसके इरादे को जानने और समझने के लिए जरूरत से ज्यादा. यह भारत विरोधी, हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह से ग्रस्त है. मेरी कारवां पत्रिका से बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.''

हालांकि जहां बीजेपी नेता पुलिस कार्रवाई से बेखौफ हैं, वहीं शिकायतकर्ताओं ने कहा कि शिकायतों के चलते उन्हें और परिजनों को जान का खतरा बना हुआ है. वकील महमूद प्राचा, जिन्होंने शिकायत दर्ज कराने में इन लोगों की मदद की, ने कहा कि उनकी मुख्य चिंता शिकायतकर्ताओं की सुरक्षा को लेकर है. उन्होंने कहा, "पुलिस खुलेआम उनके घरों में आ धमक रही है, उन्हें धमका रही है कि वे शिकायत पर आगे बढ़ें."

मैं कारवां के फोटो पत्रकार शाहिद तांत्रे के साथ इन शिकायतकर्ताओं से मिला और उनके वीडियो बयान दर्ज किए. शिकायतकर्ताओं में से किसी ने भी अपनी शिकायत में लगाए आरोपों का खंडन नहीं किया, हालांकि उनमें से कइयों ने अपनी सुरक्षा की चिंता जरूर व्यक्त की.  रिजवी ने शुरुआत में फोटो खिंचवाने से मना कर दिया था लेकिन बाद में इसके लिए राजी हो गए. रिजवी ने बताया कि उन्होंने शिकायत की प्रतियां शीर्ष सरकारी कार्यालयों में भेज दी हैं.

उन्होंने कहा, "यह एक खुली शिकायत है जो पुलिस आयुक्त के कार्यालय, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जैसे उच्च कार्यालयों द्वारा प्राप्त की गई है." बावजूद इसके उन्हें अपनी और अपने परिवार की जान की चिंता है. "मैंने अपने परिवार को यूपी भेज दिया है और अब यहां अकेले रह रहा हूं," उन्होंने हर वाक्य से पहले गंभीरतापूर्वक सोचते हुए रुक-रुक कर बात की. उन्होंने कहा, "मुझे 1984 की बात याद है और दिल्ली की हिंसा के दौरान भी यही स्थिति थी. हम सभी डरे हुए थे, खासकर जब रात के वक्त सड़कों में भड़काऊ नारे लग रहे थे, 'कपिल मिश्रा जिंदाबाद' और 'हम मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देंगे."

बानो ने मुझे बताया कि 21 मई से चांदबाग की सड़कों पर पुलिस ने फिर से गश्त देनी शुरू कर दी है. "डर के मारे लोगों ने अपने घरों से निकलना बंद कर दिया है.". बानो ने आगे बताया कि पुलिस ने स्थानीय लोगों को धमकी दी है कि "जरा लॉकडाउन खुल जाने दो, उसके बाद हम तुम लोगों को दिखाएंगे कि लड़कों और औरतों को कैसे उठाया जाता है." फिर बानो ने मुझसे कहा, "मुझे पुलिस से डर नहीं लगता. पुलिस की पीटाई के बाद मेरा सारा डर दूर हो गया."

बानो ने कहा कि पुलिस उसे शिकायत वापस लेने के लिए डराती है. "वे यह करते रहेंगे लेकिन मैं पीछे नहीं हटूंगी," उन्होंने मुझसे कहा.“अगर मैं आज पीछे हट गई तो मुझे बहुत पीछे धकेल दिया जाएगा. यह सिर्फ मेरे लिए नहीं है बल्कि मेरे बच्चों और जनता के लिए है, मेरे मुस्लिम भाइयों और बहनों के लिए है. मेरे जैसे औरत और मर्द ही उन्हें इंसाफ दिला सकते हैं.”

अपडेट : बीजेपी में 2014 में शामिल होने से पहले सांसद सत्यपाल सिंह मुंबई पुलिस कमिश्नर थे. यह जानकारी रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद जोड़ी गई है.