बीजेपी की विज्ञापन एजेंसियों ने मारा अखबारों का पैसा?

2019 और फरवरी 2020 के बीच मैंने ऐसे तीन अखबारों के कर्मचारियों से बात की. इन कर्मचारियों ने मुझे बताया कि बीजेपी की एजेंसियों से उन्हें प्राप्त विज्ञापन जारी करने के आदेश यानी आरओ में भारी विसंगतियां थी. धीरज सिंह/ब्लूमबर्ग/गैटी इमेजिस

2019 में भारतीय जनता पार्टी ने लोक सभा चुनावों के दौरान मीडिया में स्पेस खरीदने के लिए कई विज्ञापन एजेंसियों को लगाया था. इन एजेंसियों का काम छोटे और मझौले समाचार पत्रों में बीजेपी के विज्ञापनों के लिए स्पेस खरीदना था. सितंबर 2019 और फरवरी 2020 के बीच मैंने ऐसे तीन अखबारों के कर्मचारियों से बात की. इन कर्मचारियों ने मुझे बताया कि बीजेपी की इन एजेंसियों से उन्हें विज्ञापन जारी करने के जो आदेश यानी आरओ प्राप्त हुए उनमें भारी विसंगतियां थी. कर्मचारियों ने बताया कि इन एजेंसियों का नाम मैडिसन कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड, डॉट कम्युनिकेशन और हिंदुस्तान समाचार फीचर सेवा लिमिटेड थे.

मध्य प्रदेश के एक समाचार पत्र के जूनियर कर्मचारी और राजस्थान स्थित समाचार पत्र के अन्य वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया कि उनके संस्थानों को जारी किए गए आरओ में देय राशि शून्य लिखी गई थी. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में प्रसारित होने वाले एक अन्य समाचार पत्र के वरिष्ठ कर्मचारी ने मुझे बताया कि उनके संस्थान को जारी किए गए आरओ में देय राशि के स्थान पर "सहमति अनुसार" दर्ज था. कर्मचारियों के अनुसार, एजेंसियों ने अखबारों को उपरोक्त राशि का भुगतान करने की अनौपचारिक सहमति व्यक्त की थी. लेकिन इन एजेंसियों ने अपनी तरफ से अनौपचारिक समझौतों का मान नहीं रखा.

मैंने समाचार पत्रों के संगठनों, वरिष्ठ और कनिष्ठ कर्मचारियों के साथ-साथ कुछ फ्रीलांस एजेंटों के कई विज्ञापन अधिकारियों से बात की, जो विज्ञापन के आधार पर समाचार प्रकाशनों की ओर से विज्ञापन एजेंसियों के साथ बातचीत करते हैं. उनमें से अधिकांश का अनुमान था कि विज्ञापन एजेंसियों ने सौ से अधिक समाचार पत्रों के साथ समान समझौता किया था. इन सभी ने मुझसे इनकी पहचान जाहिर न करने का आग्रह किया. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के समाचार पत्र के वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया, “आप बाजार की स्थिति जानते हैं. हम सरकार के साथ अपने रिश्ते को खराब करने की स्थिति में नहीं हैं.” उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने ''पार्टी में एक पुराने दोस्त से अनुरोध किया था और इससे काम बन गया.”

मध्य प्रदेश के समाचार पत्र को जारी किए गए मैडिसन कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड का एक आरओ कारवां को प्राप्त हुआ है. यह विज्ञापन की दर दिखाता है. इसमें मई 2019 के दूसरे सप्ताह में प्रकाशित होने वाले दो विज्ञापनों के लिए ''प्रति वर्ग कॉलम की दर” शून्य लिखी है. सकल राशि, शुद्ध राशि और प्रकाशन के लिए देय कुल राशि भी शून्य है.

आंकड़ों के नीचे आरओ में एक "महत्वपूर्ण" बिंदु का उल्लेख है कि "बीजेपी के किसी भी विज्ञापन को बीजेपी की अनुमति के बिना एक ही पृष्ठ पर प्रतिस्पर्धी पार्टियों के विज्ञापन के साथ प्रकाशित नहीं किया जाएगा." इसमें अन्य नियम और शर्तें भी हैं. "रिलीज ऑर्डर में उल्लिखित दरें, स्थिति या अन्य नियम और शर्तें स्वीकार्य नहीं होने पर, कृपया हमारी ओर से लिखित पुष्टि प्राप्त किए बिना विज्ञापन न चलाए." एक अन्य बिंदु में कहा गया है, "कृपया उपरोक्त दर की जांच करें और गलत होने पर तुरंत हमें सूचित करें.” इन स्थितियों के बावजूद, समाचार पत्रों ने आरओ को स्वीकार किया.

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में प्रसारित होने वाले समाचार पत्र के वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया कि समाचार और विज्ञापन एजेंसी हिंदुस्तान समाचार फीचर सेवा लिमिटेड ने उन्हें जो आरओ जारी किया था उसमें कहा गया था कि देय राशि "सहमति अनुसार" होगी. कारवां के पास हिंदुस्तान समाचार फीचर सेवा लिमिटेड द्वारा जारी किए गए आरओ की प्रति है. “चुनाव के बाद, एजेंसी ने हमें केवल 10 प्रतिशत राशि लेने के लिए कहा था, एजेंसी ने इतना ही भुगतान करने पर सहमति जताई. फिर मैंने कुछ बीजेपी नेताओं से अनुरोध किया, जिसके बाद एजेंसी ने कुल बिल का 60 प्रतिशत भुगतान किया." उन्होंने आगे कहा, "यह एक बुरा अनुभव है." मैंने इस बारे में हिंदुस्तान समाचार फीचर सेवा लिमिटेड की स्थिति जानने के लिए एजेंसी को ईमेल किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

राजस्थान स्थित समाचार पत्र के वरिष्ठ कर्मचारी ने कहा कि उन्होंने बीजेपी के विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए एक विज्ञापन एजेंसी डॉट कम्युनिकेशन के साथ डील की थी. वरिष्ठ कर्मचारी के अनुसार, उन्हें जारी किए गए आरओ में देय राशि "शून्य" थी. वरिष्ठ कर्मचारी ने कहा, "हमें अपना भुगतान प्राप्त करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. चुनाव के बाद एजेंसी ने कहा कि वह वास्तविक बिल का केवल 50 प्रतिशत भुगतान करेगी. हमने इस प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया. मैंने एजेंसी के खिलाफ आईएनएस (इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी) में एक आधिकारिक शिकायत दर्ज की." वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया, "इसके बाद एजेंसी बकाया भुगतान करने के लिए सहमत हो गई लेकिन हमें पैसा मिलने में सात महीने लग गए." मैंने आईएनएस से इस शिकायत की सत्यता जानने की कोशिश की लेकिन इसके उप सचिव, योगेश पावस्कर ने मुझे बताया कि सोसाइटी संबंधित पक्षों के अलावा किसी को भी शिकायतों का विवरण नहीं दे सकती है.

मैंने मैडिसन कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड के मीडिया निदेशक सुरेश कुमार से बात की. उन्होंने सभी आरोपों से इनकार किया. "कम से कम मैडिसन की ओर से, जो भी आरओ गया उसमें दर दर्ज थी और बैंकों के माध्यम से भुगतान किया गया," उन्होंने दावा किया. डॉट कम्युनिकेशंस के प्रोपराइटर नागेंद्र तिवारी ने भी कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया दी. "हमने किसी के साथ अन्याय नहीं किया है. हमने आरओ में उल्लिखित राशि जारी की और हमारे क्लाइंट की इस पर सहमति थी. तिवारी ने कहा कि बिना दर के आरओ जारी करने की बात सच नहीं है.

मैंने बीजेपी के नेता ऋतुराज सिन्हा से आरओ और अखबारों को दी जाने वाली दरों के बारे में पूछा. सिन्हा लोक सभा चुनावों के दौरान पार्टी की ओर से विज्ञापनों के वितरण का कार्य संभाल रहे थे. उन्होंने मुझे एक टेक्स्ट मेसेज भेजा जिसमें लिखा था, "मैं पुष्टि कर सकता हूं कि सभी प्रिंट विज्ञापन डीएवीपी (विज्ञापन निदेशालय और दृश्य प्रचार) दरों के आधार पर जारी किए गए थे."

विशेष रूप से, राष्ट्रीय समाचार पत्रों को भुगतान करने में विज्ञापन एजेंसियों का दृष्टिकोण भिन्न था. देश में सबसे अधिक प्रसारित समाचार पत्रों में से एक के विज्ञापन कार्यकारी ने बताया, "वे राष्ट्रीय अखबारों के साथ इस तरह का बर्ताव नहीं कर सकते ... कर, जीएसटी जैसे कई मुद्दे हैं. उनके अनुसार, अखबार ने संबंधित विज्ञापन एजेंसी से अपने निर्धारित मूल्य से बहुत कम शुल्क वसूल किया.” उन्होंने कहा, ''बीजेपी के लोग जिस दर में चाहते थे हम उस पर सहमत नहीं हो सके लेकिन वे लोग फिर भी किसी तरह कामयाब रहे. आप इन लोगों को जानते ही हैं.”

कुछ अखबारों ने अपनी विज्ञापन दरों पर समझौता करने से इनकार कर दिया. एक विज्ञापन एजेंसी ने तमिलनाडु के एक प्रमुख दैनिक थांथी से सस्ती दर पर विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए कहा था. लेकिन अखबार ने इससे इनकार कर दिया.

दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने जून 2019 में आम चुनावों और विधान सभा चुनावों के खर्चों पर एक रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में इन चुनावों में 55000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च होने का अनुमान है. इन थिंक टैंक के अनुसार, इस राशि में से सिर्फ बीजेपी ने अनुमानित खर्च का 45 से 55 प्रतिशत खर्च किया.