पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का राजनीतिक लाभ लेने की बीजेपी और टीएमसी में होड़

7 अक्टूबर को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता में एक दुर्गा पूजा की झांकी का उद्घाटन करती हुईं. कोविड-19 महामारी के बीच 22 अक्टूबर को शुरू हुआ आयोजन विवादों में घिरा रहा.
सोनाली पाल चौधरी / नूरफोटो / गैटी इमेजिस
7 अक्टूबर को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता में एक दुर्गा पूजा की झांकी का उद्घाटन करती हुईं. कोविड-19 महामारी के बीच 22 अक्टूबर को शुरू हुआ आयोजन विवादों में घिरा रहा.
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सितंबर की शुरुआत में दक्षिण कोलकाता के टॉलीगंज इलाके में एक निजी स्कूल की 62 वर्षीय शिक्षिका सुकन्या दासगुप्ता को पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े सालाना त्योहार दुर्गा पूजा के उत्सव से संबंधित एक व्हाट्सएप संदेश मिला. इस साल यह त्योहार 22 अक्टूबर को शुरू हुआ था. संदेश में उत्सव के दौरान राज्य सरकार द्वारा रात में कर्फ्यू सहित कड़े प्रतिबंधों की एक पूरी सूची जारी की गई थी. उन्होंने सोचा कि सरकार ने कोविड-19 महामारी को देखते हुए सही काम किया है. उसी दिन उनके 64 साल के पति बप्पा दासगुप्ता को भी यही संदेश मिला लेकिन एक अलग स्रोत से. बप्पा ने मुझे बताया कि इसे पूरा पढ़ने के बाद उन्होंने महसूस किया कि संदेश तृणमूल कांग्रेस सरकार का नहीं है.

उन्होंने बताया कि वह राजनीतिक घटनाक्रमों को बहुत करीब से देखते हैं और "उन्हें तुरंत पता चल गया कि संदेश का मकसद हिंदू त्योहार पर रोक के लिए मुख्यमंत्री को दोषी बताना है." पता लगा कि संदेश में बताए गए ज्यादातर प्रतिबंध त्रिपुरा की सरकार द्वारा घोषित किए गए थे. वहां भारतीय जनता पार्टी का शासन है. कुछ दिनों बाद 9 सितंबर को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन संदेशों को "फर्जी" बताया और कहा कि ये संदेश "एक पार्टी के आईटी सेल" से भेजे गए थे.

सितंबर के अंतिम सप्ताह में बंगाल में सोशल मीडिया इस तरह की खबरों से भर गया कि कैसे दो अन्य बीजेपी शासित राज्यों, उत्तर प्रदेश और असम ने दुर्गा पूजा उत्सव पर इसी तरह के प्रतिबंध लगाए हैं. इससे इतना हंगामा हुआ कि बीजेपी के राज्यसभा सदस्य स्वप्न दासगुप्ता ने अपनी ही पार्टी की आलोचना की और आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार की निंदा की. इसके साथ ही 24 सितंबर को बनर्जी ने उत्सवों के लिए अपनी सरकार के दिशानिर्देशों को जारी किया. सूचीबद्ध प्रतिबंध व्हाट्सएप संदेशों में वर्णित प्रतिबंधों की तुलना में कहीं अधिक उदार थे और उन अनुष्ठानों की इजाजत देते ​थे जो अन्य बीजेपी राज्यों में निषिद्ध थे.

इसके बाद बनर्जी ने एक कदम आगे बढ़कर पूजा का आयोजन करने वाले राज्य के 37000 क्लबों में से प्रत्येक को 50000 रुपए की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की. उन्होंने पंचायत और नगरपालिका करों, विज्ञापन राजस्व पर कर को रद्द कर दिया और बिजली के खर्च को आधा कर दिया. सुकन्या ने मुझे बताया कि उन्हें जल्द ही पता चला कि अगर टीएमसी ने प्रतिबंध लगाने की कोशिश की होती तो बनर्जी के राजनीतिक विरोधियों ने उनके खिलाफ इस मुद्दे को भुनाया होता. "दुर्भाग्य से 2016 के बाद से दुर्गा पूजा राजनीतिक हो गई है."

बनर्जी और टीएमसी ने खुद को दुर्गा पूजा के उत्सवों में गहराई से झोंक दिया है. लेकिन यह प्रक्रिया 2011 में उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले से चल रही है. बीजेपी हाल ही में पश्चिम बंगाल में टीएमसी की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरी है. पार्टी राज्य में कभी सत्ता में नहीं रही है जबकि बनर्जी लगातार दूसरी बार सत्ता में हैं. टीएमसी ने राज्य में 34 साल शासन करने वाले वाम मोर्चे को सत्ता से बेदखल कर दिया. राज्य में छह महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं और राजनीतिक विश्लेषक तथा निवासी कोरोनोवायरस महामारी की पृष्ठभूमि में पूजा समारोह पर टीएमसी के फैसलों को 2016 के बाद से दुर्गा पूजा पर बीजेपी के साथ हुए राजनीतिक झगड़े की परिणति के रूप में देखते हैं. बीजेपी और उसके अभिभावक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सबसे पहले बनर्जी सरकार के मुहर्रम के जुलूसों को सुविधाजनक बनाने के लिए पूजा के विसर्जन जलूस पर रोक लगाने के फैसले को "हिंदू विरोधी" बताया था. तब से हर साल दुर्गा पूजा टीएमसी और बीजेपी के बीच जोर आजमाइश की चीज बन हुई है.

स्निगधेंदु भट्टाचार्या कोलकाता के पत्रकार और लेखक हैं. वे राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक विषयों पर लिखते हैं.

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