वीवीपैट मामले में निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से बोला झूठ

इस साल मार्च में, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हलफनामा दायर किया, जिसमें सच्चाई को अस्पष्ट कर अदालत को गुमराह किया गया था.
अदनान अबीदी/रॉयटर्स
इस साल मार्च में, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हलफनामा दायर किया, जिसमें सच्चाई को अस्पष्ट कर अदालत को गुमराह किया गया था.
अदनान अबीदी/रॉयटर्स

कारवां के पास मौजूद दस्तावेजों से पता चलता है कि इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में निर्वाचन आयोग ने झूठे दावे किए थे. निर्वाचन आयोग ने यह हलफनामा, विपक्ष की 21 पार्टियों की उस याचिका के जवाब में दायर किया था जिसमें निर्वाचन आयोग से मांग की गई थी कि वह 50 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के परिणामों का मिलान वोटर वेरिफायड पेपर ऑडिट ट्रायल अथवा मतदाता सत्यापन पर्ची (वीवीपैट) से कराए. 8 अप्रैल को निर्वाचन उपायुक्त सुदीप जैन द्वारा दायर उपरोक्त हलफनामे को सही मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी दलों की याचिका को खारिज कर दिया. हलफनामे में निर्वाचन आयोग ने दावा किया था कि पिछले दो सालों में वीवीपैट और ईवीएम के मिलान में कोई गड़बड़ी नहीं मिली है और 2013 से निर्वाचन आयोग को वीवीपैट के गलत होने की केवल एक शिकायत मिली है.

निर्वाचन आयोग ने उस हलफनामे में दावा किया है, “मई 2017 से विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव और लोकसभा उपचुनावों में 1500 मतदान केंद्रों में वीवीपैट का मिलान ईवीएम के वोटों से किए गए थे, जो बराबर पाए गए यानी किसी तरह की गड़बड़ी नहीं मिली.” इस दावे के बावजूद न्यूज18 में छपी पीटीआई की रिपोर्ट में गुजरात के तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी बीबी स्वाइन ने माना था कि 30 दिसंबर 2017 को हुए विधानसभा चुनावों में 4 सीटों में- वागरा, द्वारका, अंकलेश्वर और भावनगर ग्रामीण- के एक-एक मतदान केंद्र में वीवीपैट और ईवीएम के परिणामों में अंतर पाया गया था.

स्वाइन ने बताया था, “इन सीटों के एक मतदान केंद्र में अंतर पाया गया था”. उन्होंने कहा था, “यह इसलिए हुआ होगा क्योंकि निर्वाचन अधिकारी ने कोई गलती की होगी जो पहले पकड़ में नहीं आई. हमने मतदान केंद्रों में वीवीपैट की गणना कर मामले को हल कर लिया है.” इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 7 निर्वाचन क्षेत्रों के 10 मतदान केंद्रों में वीवीपैट पर्चियों की गणना की गई थी क्योंकि पीठासीन अधिकारी ने 9 और 14 दिसंबर को मतदान से पहले कराए गए मॉक मतदान के बाद इन मशीनों को रिसेट नहीं किया था. दिलचस्प बात है कि इन जानकारियों को बताने के बावजूद न्यूज18 की रिपोर्ट का शीर्षक था, “निर्वाचन अधिकारी का दावा, रेंडम मतगणना में ईवीएम और वीवीपैट का मिलान शत प्रतिशत”.

निर्वाचन आयोग के हलफनामे में ऐसी बातें भी हैं जो सच्चाई को छुपाती और अदालत को गुमराह करती हैं. उदाहरण के लिए हलफनामे में उन मतदाताओं की महत्वपूर्ण जानकारी को छुपाया गया है जिन्होंने इस बात की शिकायत की थी कि उन्होंने जिस उम्मीदवार को वोट दिया है वह वीवीपैट पर्ची से मेल नहीं खाता.

ऐसी ही एक घटना मई 2018 में, कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनावों में भी देखी गई. एएनआई में प्रकाशित एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि मॉक मतदान के बाद ईवीएम को रिसेट न करने के चलते हुबली धारवाड़ निर्वाचन क्षेत्र के एक मतदान केंद्र में एवीएम और वीवीपैट की अंतिम गणना में 54 मतों का अंतर पाया गया. विज्ञप्ति में कहा गया था कि निर्वाचित उम्मीदवार ने 20000 से अधिक मत हासिल किए थे जबकि वीवीपैट में मात्र 459 मत रिकॉर्ड हुए थे और इसका अंतिम परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ा.

श्रीराग पीएस स्वतंत्र पत्रकार हैं.

Keywords: Election Commission Elections 2019 VVPAT Supreme Court of India
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