सबको देखा बार-बार, भवानी मां को देखो एक बार. यह नारा उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आम आदमी पार्टी (आप पार्टी) की उम्मीदवार भवानी नाथ सिंह वाल्मीकि के लिए लगाया जा रहा है. 12 मई को प्रयागराज में मतदान होगा. भवानी मां किन्नर हैं. उनके चुनाव अभियान को समझने के लिए मैंने 11 अप्रैल को प्रयागराज से बारा तहसील तक उनके चुनाव प्रचार में भाग लिया. पथरीले रास्ते, मिट्टी के बने उजाड़ घर और इस आदिवासी बहुल इलाके से गुजरते हुए भवानी बोलीं, “बहुत काम करना होगा”. जैसे ही उनका काफिला तहसील के सदरमुकाम पर पहुंचा, आप पार्टी के दो पदाधिकारी, जो दूसरी कार में पीछे चल रहे थे, पास आ गए. प्रयागराज में आप पार्टी के संयोजक अंजनी मिश्रा ने भवानी मां को बताया, “इस बार भी पार्टी की स्थानीय इकाई से कोई नहीं आया”.
पिछले तीन दिनों में ऐसा पांचवी बार हुआ था जब स्थानीय इकाइयों ने भवानी मां के प्रचार में भाग नहीं लिया. अवहेलना से नाखुश भवानी मां ने अंजनी से कहा, “आप लोगों का बहुत हो गया. कहीं क्या आप लोगों को यह तो नहीं लग रहा है कि हम लोग आप पर निर्भर हैं. हम किन्नर आप जैसों से बहुत ज्यादा कर सकते हैं”. भारत में हिजड़ा समुदाय के लोगों को किन्नर भी कहा जाता है. यह शब्द हिंदू पुराणों से आता है जो संगीत और नृत्य में दक्ष लोगों के लिए इस्तेमाल होता है. इंदौर से भवानी मां की सहायता के लिए आए किन्नर रोशन ने मुझे बताया कि जो खुलापन बड़े शहरों में रहने वाले पार्टी नेतृत्व में होता है वह प्रयागराज जैसे शहर के पार्टी नेताओं में नहीं मिलता क्योंकि यहां बहुत सी बंदिशें हैं. रोशन दलित जाति वाल्मीकि समुदाय से आते हैं. रोशन कहते हैं, “जब पार्टी के अधिकांश नेता एक किन्नर को अपना नेता मान नहीं सकते तो उम्मीदवार के लिए क्या खाक प्रचार करेंगे”.
भवानी ने लोकसभा टिकट के लिए बीजेपी, कांग्रेस और आप पार्टी से संपर्क किया था. उनका दावा है, “जैसा व्यवहार उन पार्टियों ने हम जैसे लोगों के साथ किया वह हमारे बारे में उन पार्टियों के विचार को दिखाता है”. वह कहती हैं, केवल आप पार्टी ने टिकट देकर जोखिम उठाने का साहस दिखाया है”. किन्नरों को अपमानजनक भाषा में हिजड़ा भी कहा जाता है. ब्रिटिश औपनिवेशक शासन में इन्हें आपराधिक जाति कहा गया और उसी समय से किन्नरों को सामाजिक और आर्थिक भेदभाव झेलना पड़ रहा है. भवानी का विश्वास है कि उत्तर प्रदेश की सामंती और मर्दवादी संस्कृति को देखते हुए धर्म के जरिए लोगों को खामोश किया जा सकता है.
धर्म के कारण ही उनके लिए सम्मानित शब्द मां का प्रयोग किया जाता है और इसकी वजह से उन्हें सामाजिक मान्यता और पहचान प्राप्त है. भवानी किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर हैं. किन्नरों के पहले अखाड़े की शुरुआत प्रयागराज में इस साल हुए कुंभ मेला में हुई. अभी यह देखना बाकी है कि एक धार्मिक अखाड़े की प्रमुख होने के कारण क्या वह जाति, लैंगिक और वर्ग विभाजित समाज में मान्यता प्राप्त कर सकेंगी.
बारा तहसील में भवानी के दो अनुयायी रहते हैं. एक का नाम प्राचाल है जो 23 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर है. दूसरी अनुयायी 35 वर्षीय आशा नाथ है जो गायक हैं. दोनों किन्नर हैं. भवानी और उनके दोनों अनुयायी प्रशासनिक परिसर तक आए. भवानी ने पीला कुर्ता और रैप अराउंड पहना था और उनके माथे पर दुपट्टा बंधा हुआ था. उनका मस्तक चंदन और तिलक से सजा था. उनके पहुंचते ही परिसर में हलचल मच गई. आस-पास बैठे वकील कानाफूसी करने लगे. वकीलों के क्लाइंट झाड़ लगाने लगे, “मंडलेश्वर भवानी मां आईं हैं जा कर उनके पैर छुओ”.
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