उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में मर्दवाद को किन्नर भवानी की चुनौती

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार भवानी नाथ सिंह वाल्मीकि, मेजा तहसील के बाजार में प्रचार करती हुईं. नेहा दीक्षित

सबको देखा बार-बार, भवानी मां को देखो एक बार. यह नारा उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आम आदमी पार्टी (आप पार्टी) की उम्मीदवार भवानी नाथ सिंह वाल्मीकि के लिए लगाया जा रहा है. 12 मई को प्रयागराज में मतदान होगा. भवानी मां किन्नर हैं. उनके चुनाव अभियान को समझने के लिए मैंने 11 अप्रैल को प्रयागराज से बारा तहसील तक उनके चुनाव प्रचार में भाग लिया. पथरीले रास्ते, मिट्टी के बने उजाड़ घर और इस आदिवासी बहुल इलाके से गुजरते हुए भवानी बोलीं, “बहुत काम करना होगा”. जैसे ही उनका काफिला तहसील के सदरमुकाम पर पहुंचा, आप पार्टी के दो पदाधिकारी, जो दूसरी कार में पीछे चल रहे थे, पास आ गए. प्रयागराज में आप पार्टी के संयोजक अंजनी मिश्रा ने भवानी मां को बताया, “इस बार भी पार्टी की स्थानीय इकाई से कोई नहीं आया”.

पिछले तीन दिनों में ऐसा पांचवी बार हुआ था जब स्थानीय इकाइयों ने भवानी मां के प्रचार में भाग नहीं लिया. अवहेलना से नाखुश भवानी मां ने अंजनी से कहा, “आप लोगों का बहुत हो गया. कहीं क्या आप लोगों को यह तो नहीं लग रहा है कि हम लोग आप पर निर्भर हैं. हम किन्नर आप जैसों से बहुत ज्यादा कर सकते हैं”. भारत में हिजड़ा समुदाय के लोगों को किन्नर भी कहा जाता है. यह शब्द हिंदू पुराणों से आता है जो संगीत और नृत्य में दक्ष लोगों के लिए इस्तेमाल होता है. इंदौर से भवानी मां की सहायता के लिए आए किन्नर रोशन ने मुझे बताया कि जो खुलापन बड़े शहरों में रहने वाले पार्टी नेतृत्व में होता है वह प्रयागराज जैसे शहर के पार्टी नेताओं में नहीं मिलता क्योंकि यहां बहुत सी बंदिशें हैं. रोशन दलित जाति वाल्मीकि समुदाय से आते हैं. रोशन कहते हैं, “जब पार्टी के अधिकांश नेता एक किन्नर को अपना नेता मान नहीं सकते तो उम्मीदवार के लिए क्या खाक प्रचार करेंगे”.

भवानी ने लोकसभा टिकट के लिए बीजेपी, कांग्रेस और आप पार्टी से संपर्क किया था. उनका दावा है, “जैसा व्यवहार उन पार्टियों ने हम जैसे लोगों के साथ किया वह हमारे बारे में उन पार्टियों के विचार को दिखाता है”. वह कहती हैं, केवल आप पार्टी ने टिकट देकर जोखिम उठाने का साहस दिखाया है”. किन्नरों को अपमानजनक भाषा में हिजड़ा भी कहा जाता है. ब्रिटिश औपनिवेशक शासन में इन्हें आपराधिक जाति कहा गया और उसी समय से किन्नरों को सामाजिक और आर्थिक भेदभाव झेलना पड़ रहा है. भवानी का विश्वास है कि उत्तर प्रदेश की सामंती और मर्दवादी संस्कृति को देखते हुए धर्म के जरिए लोगों को खामोश किया जा सकता है.

धर्म के कारण ही उनके लिए सम्मानित शब्द मां का प्रयोग किया जाता है और इसकी वजह से उन्हें सामाजिक मान्यता और पहचान प्राप्त है. भवानी किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर हैं. किन्नरों के पहले अखाड़े की शुरुआत प्रयागराज में इस साल हुए कुंभ मेला में हुई. अभी यह देखना बाकी है कि एक धार्मिक अखाड़े की प्रमुख होने के कारण क्या वह जाति, लैंगिक और वर्ग विभाजित समाज में मान्यता प्राप्त कर सकेंगी.

बारा तहसील में भवानी के दो अनुयायी रहते हैं. एक का नाम प्राचाल है जो 23 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर है. दूसरी अनुयायी 35 वर्षीय आशा नाथ है जो गायक हैं. दोनों किन्नर हैं. भवानी और उनके दोनों अनुयायी प्रशासनिक परिसर तक आए. भवानी ने पीला कुर्ता और रैप अराउंड पहना था और उनके माथे पर दुपट्टा बंधा हुआ था. उनका मस्तक चंदन और तिलक से सजा था. उनके पहुंचते ही परिसर में हलचल मच गई. आस-पास बैठे वकील कानाफूसी करने लगे. वकीलों के क्लाइंट झाड़ लगाने लगे, “मंडलेश्वर भवानी मां आईं हैं जा कर उनके पैर छुओ”.

भवानी ने दोनों हाथ जोड़कर प्रचार किया और प्राचाल ने उन भक्तों के फोन नंबर नोट किए जो अपने गांव में भवानी मां के लिए मीटिंग रखेंगे. इस बीच आशा चिल्लाती रही, “12 मई को झाड़ू का बटन दबा कर आप पार्टी की उम्मीदवार भवानी मां को विजय बनाएं”. वहां बैठे एक शख्स ने आशा से पूछा, “क्या यह कुंभ मेले में किन्नर अखाड़ा वाली भवानी मां है?”

20 मिनट बाद जैसे ही काफिला लौटने लगा एक बूढ़े आदमी ने भवानी के करीब आकर कहा, “आपके चुनाव लड़ने से हमें क्या लाभ होगा? आशा ने जवाब दिया, “ऐसा पहली बार हो रहा है एक किन्नर लोकसभा चुनाव लड़ रही है”. उस आदमी ने फिर कहा, “लेकिन इससे होगा क्या?” इस बार भवानी ने जवाब दिया, “मुझे नहीं पता कि आपको पता भी है कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी है. हमें हमारा संवैधानिक अधिकार पाने को संगठित हो कर संघर्ष करने में केवल 7 दिन लगे. यदि हम इतनी बड़ी लड़ाई इतने छोटे समय में कर सकते हैं तो जाहिर है कि हमारे पास कुछ राजनीतिक और प्रशासनिक क्षमता है जो आपकी लड़ाई में भी काम आएगी”. उस शख्स ने प्रशंसाभाव में सिर हिलाया. उसने कहा, “यही तो मैं आप से सुनना चाहता था. आप एक असली नेता की तरह बात कर रही हैं”.

2009 में पहली बार किन्नरों के लिए मतदान पत्र में “अन्य लिंग” का प्रवधान जोड़ा गया. फिर 5 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों की पहचान “तीसरे लिंग” के रूप में की. उत्तर प्रदेश में इस बार 8374 किन्नर मतदाता है. 2014 के फैसले के बाद पहली बार किन्नर अपनी पहचान के साथ चुनाव लड़ पा रहे हैं. इन चुनावों में 5 किन्नर उम्मीदवारों ने नामांकन भरा है जिनमें से चार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. ये उम्मीदवार हैं- महाराष्ट्र के उत्तरी मुंबई सीट से स्नेहा काले, आंध्र प्रदेश की मंगलागिरी से तमन्ना सिम्हाद्री, तमिलनाडु के चेन्नई दक्षिण सीट से एम. राधा, उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से गुड्डी किन्नर और प्रयागराज से भवानी.

भवानी का मुकाबला भारतीय जनता पार्टी की रीता बहुगुणा और कांग्रेस पार्टी के योगेश शुक्ला से है. दोनों उच्च जाति के उम्मीदवार हैं. बहुगुणा कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं और राजनीतिक परिवार से आती हैं, जबकि शुक्ला स्थापित व्यापारी हैं. भवानी के पास पारिवारिक इतिहास और संसाधन नहीं है. आप पार्टी के स्थानीय स्वयंसेवक और विद्यार्थी नेता सौरभ सिंह बताते हैं, “जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय चुनावों में ही 5000 राइफल के साथ राजनीतिक रैलियां होती हैं तो न जाने भवानी कैसे लड़ेंगी. उनके पास तो बस तीन मांगी हुई एसयूवी कारे हैं.

23 वर्षीय संबित समलैंगिक हैं और भवानी की टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा है. वह कहते हैं, “भारतीय चुनावों में दो ही चीज चलती है- पैसा और ताकत. भवानी के पास ये दोनों नहीं हैं. उनके लिए काम करने वाले पार्टी सदस्यों को उनके जीतने से फायदा भी नहीं दिखाई देता”. पार्टी के दूसरे कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर मुझे बताया कि जो पैसा आप पार्टी ने चुनाव प्रचार के लिए उपलब्ध कराया है वह पर्याप्त नहीं हैं क्योंकि चुनाव अभियान में शामिल होने वाले कार्यकर्ता न्यूनतम 300 रुपए प्रतिदिन मांगते हैं. इसके अतिरिक्त 180 बूथों के लिए 1000 रुपए प्रति बूथ की दर से खर्चा होता है ताकि उन बूथों को क्रियाशील रखा जा सके. भवानी के चुनावी शपथपत्र के अनुसार उनकी कुल संपत्ति 27 लाख रुपए है. निर्वाचन आयोग के 70 लाख रुपए प्रति उम्मीदवार खर्च की सीमा का उल्लेख करते हुए संबित ने बताया कि भारतीय चुनाव गरीबों के बस की बात नहीं है. “तब तक बात नहीं बनती जब तक आपके चुनाव अभियान के लिए कोई चंदा नहीं देता और एक किन्नर को कौन चंदा देगा?”

संसाधन की कमी ने भवानी की आकांक्षाओं को कमजोर पड़ने नहीं दिया है. वह 46 साल की हैं और कहती हैं कि जीवन के अनुभवों से उन्हें शक्ति मिलती है. दिल्ली के वाल्मीकि परिवार में जन्मी भवानी के कई भाई-बहन हैं. 14 साल की उम्र में भवानी ने घर छोड़ दिया. वह कहती हैं, “जब मुझे अपनी सेक्सुअलिटी का पता चला तब मुझे घर में और स्कूल में अलग तरह से देखा जाने लगा”. उनके जहन में अपमानों की याद आज भी ताजा है. “मेरा साथ न देने के लिए मैं अपने मां-बाप को दोष नहीं देती. एक गरीब और शहरी दलित परिवार को कई लोगों का पेट भरना होता है और मेरे मां-बाप मेरी सेक्सुअलिटी और जेंडर की लड़ाई नहीं लड़ सकते थे”. घर से भाग जाने के बाद भवानी, गुरु-चेला परंपरा वाले हिजड़ा समुदाय में शामिल हो गईं. यहां गुरु अपने चेलों को समूह के नियम समझाते हैं, उन्हें सामाजिक सुरक्षा और संरक्षण देते हैं. एक बार हिजड़ा समुदाय में शामिल हो जाने के बाद अनुयायी को समुदाय के कम्यून में शामिल कर लिया जाता है और नया नाम दिया जाता है. भवानी के गुरु का नाम किन्नर हाजी नूरी था और उन्होंने उन्हें शबनम नाम दिया था. अपने गुरु के कदमों में चलते हुए भवानी ने इस्लाम कबूल कर लिया. उपमहाद्वीप के किन्नर हिंदू-मुस्लिम की मिली जुली संस्कृति का पालन करते हैं.

भवानी बताती हैं कि समुदाय के तौर तरीके सीखने में साल भर का वक्त लगा. आजीविका के वहां तीन विकल्प थे- बधाई, यौन कारोबार और भीख मांगना. “मैंने जिंदा रहने के लिए यह तीनों काम किए. क्या आपको लगता है कि हम जैसे लोगों को आसानी से काम मिल जाता है?”

2014 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने पुनः धर्मांतरण कर और अपनी धार्मिक पहचान हासिल करने का फैसला लिया. 2014 के फैसले ने हिजड़ों को अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत मिलने वाले लाभों को हासिल करने का अधिकार भी दिया. भवानी कहती हैं, “मैं एक आम नागरिक की तरह बिना अपना धर्म बदले जीना चाहती थी. धर्मांतरण के बाद भवानी ने लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के साथ काम किया जो एक हिजड़ा अधिकार कार्यकर्ता हैं. फिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में पहला किन्नर अखाड़ा खोला और उसके बाद प्रयागराज में आयोजित होने वाले कुंभ मेले में दूसरा. हिंदू संप्रदाय के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के चलते, भारतीय राजनीति में अखाड़ों का विशेष राजनीतिक महत्व है. दिसंबर 2018 में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने अखिल भारत अखाड़ा परिषद, जो 13 अखाड़ों का छाता संगठन है, का समर्थन मांगा था. किन्नर अखाड़ा को अखाड़ा परिषद से मान्यता नहीं है.

भवानी ने बताया कि कुंभ मेला में किन्नर अखाड़ा की लोकप्रियता को देखते हुए उन्होंने चुनाव में भाग लेने का निर्णय किया था. हम अपने अधिकारों की लड़ाई खाली पेट नहीं लड़ सकते. मैंने पेट की लड़ाई जीत ली है”.

हिंदू धर्म में किन्नरों को स्वीकृति मिलने के बाद हिजड़ा समुदाय के भीतर आंतरिक विवाद शुरु हो गया. जन आंदोलनों के राष्ट्रीय गठबंधन की किन्नर कार्यकर्ता मीरा संघमित्रा ने बताया कि किन्नर समुदाय में बहुत से लोगों को लगता है कि वे लोग दक्षिणपंथी राजनीति की ओर जा रहे हैं. किन्नर अखाड़ा की स्थापना और हिंदू धर्म में पुनः वापसी, घर वापसी और संघ परिवार के शुद्धिकरण के नैरेटिव में बिलकुल फिट बैठता है. गैर हिंदुओं को हिंदू धर्म में प्रवेश कराने के लिए हिंदू दक्षिणपंथी राजनीतिक समूह घर वापसी अभियान चलाते हैं. संघमित्रा कहती हैं, “यह हिंदुत्व के उस नैरेटिव को मदद करता है जिसके तहत सभी धर्मों को मानने वाले हिजड़ा समुदाय को अब केवल हिंदू धर्म मानना होगा”.

किन्नर कार्तिक गुप्ता भी ऐसा ही मानते हैं. वे अशोका विश्वविद्यालय में जैव विज्ञान और फिजियोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर हैं. उनका कहना है, “अन्य समुदायों की तरह ही लैंगिक और सेक्सुअल अल्पसंख्यकों में भी धार्मिक और दक्षिणपंथी राजनीति के बीच संघर्ष होता है”. वह कहते हैं कि हिंदू धर्म में स्वीकार किए जाने का तात्कालिक असर यह हुआ है कि किन्नर अखाड़े में भी जाति घुस गई है. कुंभ में शाही स्नान के दिन, ब्राह्मण जाति के लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने सुबह गंगा स्नान किया. यह समय पवित्र माना जाता है. वहीं दलित जाति की भवानी ने शाम को गंगा में स्नान किया.

लेकिन भवानी हिंदू धर्म में पुनः वापसी का बचाव करती हैं. वह कहती हैं, “वे आदमी जो मुझे अपने घरों के गेट के सामने खड़े होना नहीं देते थे आज मेरे पैर पकड़ते हैं. वे अपनी औरतों और परिवार के साथ मेरा आशीर्वाद लेने भागे-भागे आते हैं. धार्मिक मान्यता इन आदमियों को चुप कराने में मदद करती है”. जब मैंने भवानी से जाति की ऊंच-नीच और जाति सरनेम लगाने पर बात की तो उनका कहना था, “जब प्रज्ञा ठाकुर, लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी अपने सरनेम का इस्तेमाल कर सकते हैं तब भला दलित अपना सरनेम लगाने में शर्म क्यों करें”.

संघर्ष, स्वीकृति और विवादों का खेल उनके चुनाव प्रचार अभियान में भी जारी था. अपने प्रति पूर्वाग्रहों का भवानी अपने ही अंदाज में जवाब देती हैं. प्रयागराज रेलवे स्टेशन के पास के ऐतिहासिक मुगल गार्डन, खुसरो बाग, में सुबह की सैर के वक्त किन्नरों के खिलाफ मर्दवादी पूर्वाग्रह देखा जा सकता था. एक बार आप पार्टी के सिटी संयोजक मिश्रा ने जब एक अधेड़ उम्र के आदमी को पर्चा थमाया तो वह कहने लगा, “यह मुझे क्यों दे रहे हो? जिसकी उम्मीदवार बनने की हैसियत हो उसकी बात करो”. किनारे खड़ी भवानी मुस्कुरा दीं.

एक बार एक बूढ़े आदमी ने भवानी मां का यह कहकर अपमान किया कि “अगर तुम चुनावों को लेकर गंभीर हो तो घाघरा नहीं साड़ी पहन कर घूमो. तभी तो बात करने लायक बनोगी”. मुस्कुराते हुए भवानी ने जवाब दिया, “साध्वी बनने के बाद मुझे ऐसे कपड़े पहनने के लिए आप जैसे आदमियों ने कहा है और अब तुम मुझे दूसरी तरह के कपड़े पहनने की सलाह दे रहे हो”.

एक बार एक आदमी ने कहा कि वह पार्क में एक पेड़ के नीचे उनका इंतजार कर रहा है. जब वह उस जगह पहुंची तो वहां बहुत से बुजुर्ग लोग उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. रिटायर्ड पोस्टमास्टर सैयद अमीर ने उनसे पूछा, “आप एक हिंदू साध्वी हो. हम मुसलमानों की सुरक्षा कैसे करोगी जिन्हें जारी शासन के दौरान मारा या हाशिए पर रखा जाता है”. भवानी ने जवाब दिया, “मैं हाजी भी हूं और मैं साध्वी भी हूं. जब किसी हिंदू, मुसलमान, ईसाई परिवार में हिजड़ा बच्चा पैदा होता है तो लोग उसे लावारिस कर देते हैं. हम लोग उन बच्चों की उनके धर्म की फिक्र किए बिना परवरिश करते हैं. आप कैसे मान सकते हैं कि हिजड़ा समुदाय धार्मिक सीमाओं पर विश्वास करता है”.

वहीं खड़े दूसरे आदमी ने पूछा, “केजरीवाल ने कहा था कि वह भ्रष्टाचार से लड़ेंगे और अब वे उसी भ्रष्टाचारी कांग्रेस से गठबंधन बनाना चाहते हैं. आप लोग अलग कैसे हुए?” भवानी ने जवाब दिया, “भ्रष्टाचार मुक्त भारत का वादा तो नरेन्द्र मोदी ने भी किया था. उन्होंने क्या ही कर लिया. नोटबंदी की जिसमें सौ से अधिक लोग मर गए”. भवानी ने उस आदमी से कहा कि हिजड़ा होने के नाते उन्होंने देखा है कि कैसे नोटबंदी के बाद गरीब पिता अपनी बेटियों की शादी नहीं करा पाए थे लेकिन उसी दौरान उद्योगपति मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी की शादी शानो शौकत से हुई.

मैंने ऐसे बहुत से मौके देखे जब लोग उनके पास अपनी समस्याओं का धार्मिक समाधान खोजने आते थे. वे उनसे कहते, “मेरी बेटी की शादी नहीं हो रही है”, “मेरा धंधा मंदा चल रहा है”. भवानी ने दोनों को कहा कि वे अपने घरों में नीम का पेड़ लगाएं. उन्होंने मुझे समझाया कि लोगों को मनोवैज्ञानिक इलाज की जरूरत होती है और उनको लगता है कि धर्म में उनकी समस्या का समाधान है. जब वे पेड़ लगाते हैं तो उनका ध्यान परेशानी से हट जाता है और वे ठंडे दिमाग से विचार कर पाते हैं.

कई बार भवानी के प्रचार के दौरान मुठभेड़ जैसी स्थिति भी देखने को मिली. 10 अप्रैल की एक घटना मेजा तहसील के प्रशासनिक परिसर की है जो प्रयागराज की सबसे बड़ी तहसील है. 60 साल के राम प्रताप सिंह ने भवानी से कहा, “तुम हमारे शहर में आईं और अखाड़ा बना लिया. हमने अखाड़ा खोलने दिया लेकिन अब हमारी राजनीति से दूर रहो. यही अच्छा होगा”. राम प्रताप सिंह के आस पास बैठे लड़कों ने उनकी धमकी से सहमति जताई. भवानी का जवाब था, “तो योगी आदित्यनाथ क्यों मुख्यमंत्री बना है. वह भी तो एक मठ का महंत है”. सिंह ने ललकारते हुए कहा, “तो तू क्या अपने हिजड़ों की फौज से योगी का मुकाबला करेगी”. भवानी ने इसका हंसते हुए जवाब दिया, “तुझे बता दूं कि हम हिजड़े लोगों को आशीर्वाद देकर कमाई करते हैं, हम मृत्युभोज नहीं करते”.

वाकपटुता के बावजूद भवानी के पास चुनाव प्रचार के लिए गंभीर मुद्दे नहीं हैं. वह नैनी औद्योगिक क्षेत्र में बंद फैक्ट्रियों को दोबारा चालू कराने की बात करती हैं. 2009 में गलत नीतियों, पर्यावरण चिंताओं और 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण क्षेत्र की अधिकांश इकाइयां बंद हो गई थीं. 2016 में पुलिस ने बेरोजगार युवाओं को हिजड़ों का भेष धर रेलगाड़ी में भीख मांगते हुए पकड़ा था. भवानी कहती हैं, “आपको बेरोजगार युवाओं की शिकायतों पर विचार करना होगा. यदि मैं चुनाव जीती तो मैं नैनी उद्योगिक क्षेत्र का जिर्णोधार करूंगी”.

वह दूसरा बदलाव जो भवानी लाना चाहती हैं वह नीतिगत स्तर पर है. वह ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2018 जो पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में पारित हुआ था उसे संशोधित करना चाहती हैं. उस बिल में किसी हिजड़े व्यक्ति को भीख मांगने के लिए मजबूर करने पर 2 साल तक की सजा का प्रावधान है. भवानी इस प्रावधान को हटाना चाहती हैं. वह कहती हैं, “जब हिजड़ों को काम ही नहीं मिलेगा तो आप हमें भीख मांगने के लिए गिरफ्तार कैसे कर सकते हैं”. वह हिजड़ो के खिलाफ यौन अपराध और सजा में असमानता को भी खत्म करना चाहते हैं. इसके अलावा वह हिजड़ों के लिए जेल और अस्पतालों में अलग बोर्ड का वादा भी कर रहीं हैं.

हालांकि किन्नर मतदाताओं की संख्या कम है लेकिन भवानी जानती हैं कि कानूनी अधिकारों के बावजूद हिजड़ा समुदाय बराबरी के बर्ताव से वंचित है. महिलाओं की ओर इशारा करते हुए भवानी कहती हैं, “आपके जैसी महिला समझती हैं कि उनके साथ भेदभाव होता है. आप लोग हिजड़ा महिला के साथ संवेदना तो दिखा सकती हैं लेकिन उन पर क्या गुजरती है उसे कभी नहीं समझ पाएंगी”. वह कहती है कि हिजड़ा औरतों की वास्तविकता महिलाओं की वास्तविकता से अलग है. भवानी कहती है, “मैं प्राचाल से हमेशा कहती हूं कि अपने आप को सामान्य औरत की तरह न समझे. वह मेकेनिकल इंजीनियर है लेकिन हिजड़ा होने के कारण उसे कभी कोई स्थाई नौकरी नहीं मिलेगी. भवानी का मानना है कि हिजड़ा महिलाओं को किन्नर समाज की परंपरा को पूरी तरह से नहीं छोड़ना चाहिए. कम से कम वह उनको भूखे मरने नहीं देगी.

बावजूद इसके कि भवानी ने धर्म बदल लिया है हिजड़ा समुदाय के बहुत से लोग उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करते हैं. एनपीएम कार्यकर्ता संघमित्रा ने मुझे बताया कि भवानी को अपने राजनीतिक प्रचार में जिस तरह का संघर्ष करना पड़ रहा है उससे यह साबित होता है एक संप्रदाय का मुखिया बन जाने और आप पार्टी का टिकट मिलने के बावजूद उनकी कोई हैसियत नहीं है. भेदभाव बहुत गहरे तक समाया हुआ है. प्रोफेसर बिट्टू का कहना है, “मैं चुनाव प्रक्रिया पर भरोसा नहीं करता लेकिन मैं चुनावी राजनीति में हिंदुत्व की राजनीति से दूर रहने वाले हिजड़ों का नेतृत्व में आने का स्वागत करता हूं”.

भवानी कहती हैं कि इस तरह की जटिल बातचीत में उनका विश्वास नहीं है. “महिलाएं आरक्षण के लिए 70 साल से इंतजार कर रही हैं. हमने सिर्फ 7 सालों में अपना अधिकार हासिल कर लिया. आपको एक बात बताऊं, हमारे समुदाय के सदस्य जिंदा रहने के रस्म बहुत जल्दी सीख लेते हैं. हमारे लिए यही रणनीति कारगार है”.