16 फरवरी को यानी जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर हमले के दो दिन बाद, कैलाश मीणा ने व्हाट्सएप ग्रुप पर एक संदेश भेजा. उस हमले में सीआरपीएफ के 49 जवानों की मौत हो गई थी. कैलाश मीणा के इस व्हाट्सएप ग्रुप का नाम "पाटन समाचार समूह" था और इससे राजस्थान के सीकर जिले के पाटन ब्लॉक और उसके आसपास के पत्रकार, स्थानीय सरकारी अधिकारी, वकील और कार्यकर्ता जुड़े थे. मीणा का संदेश कुछ इस प्रकार था, “बर्लिन में, हिटलर ने जर्मन संसद को जला दिया और कम्युनिस्टों पर इसका आरोप लगाया. कम्युनिस्टों का सफाया करने के बाद हिटलर ने चुनावों को रद्द कर दिया और तानाशाह बन गया.” संदेश के जाते ही ग्रुप में बवाल मच गया. एक सदस्य ने कहा कि "बुरे तत्वों" ने समूह में घुसपैठ कर ली है और उपरोक्त संदेश "राष्ट्र-विरोधी" है. सदस्य ने मीणा के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज करने पर विचार करने की बात की. मीणा को ग्रुप से हटा दिया गया और माफी मांगने के लिए कहा गया लेकिन मीणा ने ऐसा करने से इनकार कर दिया.
मीणा कहते हैं, “उनके लिए राष्ट्र का मतलब केवल बार्डर है जबकि मेरे लिए राष्ट्र का अर्थ सीमा के अंदर रहने वाले लोग और उनके संवैधानिक अधिकार हैं”. मीणा से मैं हाल ही में सीकर में मिला. वह “नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्स” के सदस्य हैं जो सिविल सोसाइटी आंदोलनों का नेटवर्क है. मीणा "चौकीदार" समुदाय से आते हैं. समुदाय का नाम पारंपरिक जाति के व्यवसाय से आता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थकों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "हम असली चौकीदार हैं, उन लोगों की तरह सोशल मीडिया के नकली चौकीदार नहीं”.
पुलवामा हमले के बाद भारतीय जनता पार्टी का चुनाव प्रचार नरेन्द्र मोदी और “मर्दाना राष्ट्रवाद” पर केंद्रित है. जारी चुनावों के बीच मैंने राजस्थान के झुंझुनू और सीकर की यात्रा की. झुंझुनू ऐसा जिला है जहां भारत के अन्य किसी भी जिले से सबसे अधिक लोग, सेना और अर्धसैनिक बलों में भर्ती होते हैं. सीकर में भी पर्याप्त संख्या में सेवारत और सेवानिवृत्त सैनिक हैं. दोनों जिले उत्तरी राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र का हिस्सा हैं जो औपनिवेशिक काल में किसान आंदोलन के लिए जाना जाता है. इस चुनाव में दोनों जिलों में कृषि संकट और मोदी की अति-राष्ट्रवादी चुनावी प्रचार का सूक्ष्म टकराव देखने को मिलता है.
मैं झुंझुनू शहर के यशवर्धन सिंह शेखावत से मिला जिन्होंने 2018 में इस जिले के उदयपुरवाटी से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा था. यशवर्धन, सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और राजपूत परिवार से हैं, जिसमें सेना में भर्ती होने की परंपरा है. यह परंपरा कम से कम चार पीढ़ियों तक जाती है. उन्होंने कहा कि उनके पर दादा दोनों विश्व युद्धों में लड़े थे और उनके छोटे परदादा ने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए दो युद्धों में भाग लिया था. उन्होंने मुझे बताया कि उनके जैसे समुदाय, जिनके परिवारों में सेना के सदस्य हैं, "युद्ध को समझते हैं और हाइपर-राष्ट्रवाद के हाल के माहौल से प्रभावित नहीं हैं." हालांकि, उन्होंने कहा, "शेखावाटी के दूसरे ओबीसी समुदाय पर इसका असर है”. उन्होंने मुझे बताया कि बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राज्य में इन जातियों के बीच काम कर रहे हैं, खासकर युवाओं के बीच. “इस विचारधारा का पहला हिस्सा मुस्लिम विरोध की भावना और दूसरे हिस्सा हिंदुत्ववादी भावना है. दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. सबसे ऊपर राष्ट्रवाद है.”
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