अफराजुल और रैगर : राजस्थान के चुनावी मुद्दों से गायब दो नाम

48 वर्षीय अफराजुल पश्चिम बंगाल के मालदा जिले का रहने वाला था जो निर्माण क्षेत्र में काम करने के लिए 10 साल पहले राजस्थान आया था. सौजन्य : अफराजुल परिवार
29 April, 2019

6 दिसंबर 2017 को राजस्थान के राजसमंद में, पश्चिम बंगाल के एक मजदूर मोहम्मद अफराजुल खान की शंभूलाल रैगर ने बेरहमी से कुल्हाड़ी मार कर हत्या कर दी. हत्या के बाद रैगर ने अफराजुल के शव को आग के हवाले कर दिया. रैगर के 15 वर्षीय भतीजे ने इस घटना का वीडियो बनाया जिसे बाद में रैगर ने सामाजिक संजाल में अपलोड किया. विडियो के अपलोड होते ही तूफान आ गया. कुछ ने इस कृत की निंदा की और कुछ ने इस हत्याकांड का जश्न मनाया. आज राजस्थान में लोकसभा चुनाव का पहला मतदान हो रहा है.

मैंने राजसमंद का भ्रमण किया और पाया की अफराजुल की हत्या के बारे में स्थानीय लोगों को कोई दिलचस्पी नहीं है. यहां यह भयावह हत्याकांड चुनाव का मुद्दा नहीं है. लेकिन यह अपराध चुनाव से परे, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्तर पर प्रकट होता है.

इस हत्याकांड और इसके राजनीतिक अर्थों को अपराध करने वाले और पीड़ित की पृष्ठभूमि में खोजा जाना चाहिए. शंभूलाल रैगर दलितों की एक उपजाति रैगर समुदाय से आता है. इस समुदाय के लोग पारंपरिक रूप से मरे हुए जानवरों की खाल उतारकर चमड़ा पकाने का काम करते हैं. वहीं, अफराजुल पश्चिम बंगाल के मालदा जिले का रहने वाला था जो निर्माण क्षेत्र में काम करने के लिए 10 साल पहले राजस्थान आया था. वह बंगाल के 400 प्रवासी मजदूरों में से एक था. मानव अधिकार संगठन “पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी अथवा पीयूसीएल” द्वारा की गई एक फैक्ट फाइंड जांच से पता चलता है कि अफराजुल ने बीते सालों में तरक्की की थी और मजदूर से ठेकेदार बन गया था.

दूसरी ओर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट बताती है कि रैगर एक संगमरमर व्यवसायी था और नोटबंदी के बाद बेरोजगार हो गया था. पीयूसीएल की रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगार रैगर अपने खाली समय का ज्यादातर हिस्सा इंटरनेट और सोशल मीडिया में हिंदुत्व कट्टरपंथी प्रोपोगेंडा वाले वीडियो देखने में बिताता था. इस अपराध के हफ्तों पहले वह इस बात से चिड़ा हुआ था कि उसके समुदाय की एक औरत बंगाली मुसलमान के साथ भाग गई है. राजस्थान पुलिस के आरोपपत्र के अनुसार रैगर ने दावा किया है कि अफराजुल को उसने इसलिए मारा क्योंकि उसने लव जिहाद किया था. लव जिहाद एक ऐसी कॉन्सपिरेसी थ्योरी है जिसे दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों ने फैलाया है. इसमें दावा किया जाती है कि मुस्लिम आदमी हिंदू औरतों को प्रेमजाल में फंसा कर मुसलमान बना रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी अक्सर अफराजुल जैसे बंगाली मुसलमान को “बांग्लादेशी घुसपैठिए” बता कर प्रचारित करती है. राजस्थान वह पहला राज्य है जहां भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने बांग्लादेशी शरणार्थियों को “दीमक” की संज्ञा दी थी और उन्हें निर्वाचन सूची से हटाने की कसम खाई थी. इस साल 26 अप्रैल को राजसमंद से बीजेपी उम्मीदवार दीया कुमारी के समर्थन में रैली का आयोजन किया गया. रैली में कमोबेश इसी तरह की बातें हुईं. राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अध्यक्षता में सुबह तकरीबन 10 बजे बैठक शुरू हुई जिसके बाद राजसमंद के बीजेपी नेताओं ने तकरीबन 1000 लोगों की भीड़ को संबोधित किया. लोकसभा चुनावों के लिए राजसमंद के बीजेपी इंचार्ज मदन राठौड़ ने बीजेपी नेताओं वाले चिर परिचित अंदाज में रैली की शुरुआत की : नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा, पाकिस्तान को गाली और उग्र राष्ट्रवादी नारे. मदन राठौड़ ने भीड़ से पूछा, “क्या आप जानते हैं पश्चिम बंगाल में क्या हो रहा है? वहां पर हिंदू सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ युद्ध चल रहा है. ममता बनर्जी वहां के हिंदुओं को खत्म कर देना चाहते चाहती हैं.” राजसमंद की विधायक किरण माहेश्वरी, दीया कुमारी और वसुंधरा राजे ने राठौर के बाद अपनी बात रखी लेकिन किसी ने भी अफराजुल और रैगर की बात नहीं की.

पुलिस के अनुसार रैगर ने अफराजुल की हत्या को जम्मू कश्मीर में लागू संविधान की धारा 370 और क्षेत्रीय आतंकवाद से भी जोड़ा था. राजसमंद में जिन लोगों से मैंने बात की उन लोगों का कहना था कि हत्या की तारीख 6 दिसंबर कोई संयोग नहीं है. इस दिन 1992 में कारसेवकों की उग्र भीड़ ने बाबरी मस्जिद गिरा दी थी.

राजसमंद में लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहे नीलेश खत्री की बातों में मुसलमानों के खिलाफ गुस्सा दिखाई पड़ता है. खत्री ने मुझसे दावा किया, “जहां भी मुसलमानों की आबादी 30 प्रतिशत पार कर लेती है वहां वे लोग हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार करने लगते हैं. जैसा कि आज पश्चिम बंगाल में हो रहा है”. खत्री व्यापारी और दो दुकानों के मालिक हैं. खत्री की बातचीत में आपको वह सब सुनाई पड़ेगा जो हिंदू दक्षिणपंथियों के शब्दकोष का हिस्सा है- हवसी मुस्लिम, आतंकी मुसलमान और मुसलमानों की बढ़ती आबादी. खत्री ने मुझसे कहा कि वह रैगर के अपराध की निंदा करते हैं लेकिन यह भी जोड़ा कि “उस घटना के बाद राजस्थान में लव जिहाद के मामले रुक गए हैं”. जब मैंने खत्री से पूछा, क्या अफराजुल की हत्या चुनावी मुद्दा है तो उन्होंने कहा इस चुनाव में शंभूलाल रैगर या अफराजुल पर कोई चर्चा नहीं हो रही है. “आप जैसे बाहर से आए लोग ही यह मुद्दा उठाते हैं”.

कांग्रेस ने भी अफराजुल की हत्या पर चुप्पी साध रखी है. राजसमंद में कांग्रेस पार्टी के अल्पसंख्यक सेल के सदस्य अख्तर से जब मैंने पूछा कि क्या कांग्रेस लिंचिंग को चुनावी मुद्दा बना रही है तो उन्होंने कहा, “नहीं, हम इसे नहीं उठा रहे हैं. हम न्यूनतम आय गारंटी योजना “न्याय” जैसे पार्टी के मुख्य वादों को केंद्र में रखकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं”.

राजसमंद के कई मुसलमान भी अफराजुल की हत्या का राजनीतिकरण करने के पक्ष में नहीं हैं. मैंने राजसमंद के वकील फिरोज खान जो अफराजुल मामले से जुड़े हैं और उनके दोस्त इकबाल खान और मोहम्मद रफीक जो मुस्लिम समुदाय के नेता हैं, से मुलाकात की. यह लोग उन चंद लोगों में से हैं जो 6 दिसंबर के दिन घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचे थे. उन्होंने मृतक के आधे जले आधारकार्ड से उसकी पहचान कर उसके परिजनों को खबर की थी. रफीक ने मुझसे कहा कि अफराजुल का उस महिला या शंभूलाल से कोई संबंध नहीं था. शंभूलाल तथाकथित प्रेम संबंध से आक्रोशित होकर एक बंगाली को मारना चाहता था और अफराजुल इसका अनायास शिकार बन गया. इकबाल ने बताया कि रैगर समुदाय के बहुत से लोग, खासकर महिलाएं, निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करती हैं और वह निर्माण स्थलों में मुस्लिम बंगालियों के संपर्क में आती हैं. इसलिए रैगर पुरुषों को ऐसा लगता है कि बंगाली मुसलमान उनकी औरतों को बहका रहे हैं.

जब मैंने उन लोगों से जानना चाहा कि क्या अफराजुल का मामला चुनावी मुद्दा बनेगा तो तीनों ने जोरदार तरीके से इसे खारिज कर दिया. रफीक कहते हैं, “यहां रहने वाले सभी लोग धीरे-धीरे सामान्य होने की कोशिश कर रहे हैं और किसी भी पॉलीटिकल पार्टी ने इस मामले को नहीं उठाया है”. उन्होंने आगे कहा कि शंभूलाल चंद मामूली हिंदू संगठनों का हीरो बन गया जो दंगा करने राजसमंद में बाहर से आए थे. यहां के स्थानीय हिंदुओं ने इस घटना की निंदा की और अब सभी इससे आगे बढ़ना चाहते हैं. फिरोज ने बताया है कि यह अपराध जुनूनी था जिसे बाद में सांप्रदायिक रंग दे दिया गया. उन्होंने कहा, “इससे राजसमंद की बदनामी हुई है और भारत का नाम खराब हुआ है. जब शंभूलाल को सजा होगी तो यह न्याय होगा”.

इस मीटिंग के बाद मैं शंभूलाल के परिवार से मिलने रैगर बस्ती गया. शंभूलाल, जोधपुर जेल में बंद है. उसकी बीवी सीता दरवाजे से बाहर आई और यहां-वहां ताकने लगी. उसने मेरे सवालों का जवाब हां या न में दिया. मैंने उससे पूछा कि क्या उसे पता है शंभूलाल ने अफराजुल की हत्या क्यों की. उसने कहा उसे नहीं मालूम. सीता के 3 बच्चों में से एक बच्चा रोगी है. परिवार वाले पैसों से उनकी मदद करते हैं. यह साफ था कि सीता और उसके बच्चे तंगी में जी रहे हैं. उसने धीरे से कहा, “हम लोग अच्छे से रह रहे थे लेकिन...” इसके बाद वह खामोश हो गई.