28 मार्च 2023 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंजाब में नशीली दवाओं के व्यापार में पुलिस अधिकारियों की कथित संलिप्तता की जांच करने वाली एक विशेष जांच टीम द्वारा 2018 में अदालत को सौंपी गई चार में से तीन रिपोर्टों को जारी करते हुए कहा कि राज्य सरकार चाहे तो रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर कार्रवाई शुरू कर सकती है. 17 अप्रैल को पंजाब सरकार ने एसआईटी रिपोर्ट में नामित पुलिस अधिकारियों में से एक राज जीत सिंह हुंदल को बर्खास्त करते हुए सिफारिश की कि राज्य का निगरानी विभाग उनके वित्तीय लेनदेन की जांच शुरू करे. यह न्यायिक कार्यवाही एक हाई-प्रोफाइल मादक पदार्थों की तस्करी के मामले का हिस्सा है, जो 2013 में तब सामने आया था, जब पंजाब पुलिस ने पुरस्कार प्राप्त पहलवान जगदीश भोला और उसके सहयोगियों से 20 करोड़ रुपए की ड्रग्स बरामद करने के बाद गिरफ्तार किया था.
फैसले से एक महीने पहले 24 फरवरी को जस्टिस जीएस संधावालिया और हरप्रीत कौर जीवन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दो व्यक्तियों को उस वीडियो के लिए आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था, जिसमें उन्होंने मुख्य रूप से इस मामले के संबंध में ऐसा बयान दिया जिसे बेंच ने न्यायपालिका के लिए "दुर्भावनापूर्ण" और "अपमानजनक" माना था. नतीजतन, अदालत ने पंजाब पुलिस के एक पूर्व अधिकारी बलविंदर सिंह सेखों और लुधियाना के रहने वाले प्रदीप शर्मा को छह महीने के कारावास की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने दोनों पर दो-दो हजार रुपए जुर्माना भी लगाया है.
पंजाब पुलिस में पूर्व डिप्टी सुपरिंटेंडेंट सेखों 2019 में तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने एक रियल एस्टेट घोटाले की जांच की और कांग्रेस नेता और तत्कालीन खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशु की कथित भूमिका का खुलासा किया. सेखों ने बाद में आशु के खिलाफ यह आरोप लगाते हुए अदालत का रुख किया कि राजनेता ने उन्हें धमकी दी थी जबकि आशु ने दावा किया कि सेखों ने उन्हें अपमानजनक मैसेज भेजे थे. अगस्त 2021 में सेखों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था. द ट्रिब्यून के अनुसार उनकी बर्खास्तगी इस आधार पर थी कि "उन्होंने पुलिस जैसे अनुशासित बल में नौकरी करते हुए सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ गलत टिप्पणी की थी.” इसके बाद सेखों ने एक भ्रष्टाचार-विरोधी मोर्चा, "मुख्य पंजाबी मंच" की स्थापना की और 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में असफल रहे.
जिन वीडियो के कारण उनके खिलाफ अवमानना का मामला हुआ, उनमें सेखों और शर्मा ने कई पुलिस अधिकारियों और न्यायपालिका के सदस्यों के खिलाफ विभिन्न आरोप लगाए- जिनमें उच्चतम न्यायालय का एक जज भी शामिल हैं, जो 2013 के भोला ड्रग्स मामले से जुड़ा हुआ है. सेखों और शर्मा ने बार-बार एसआईटी रिपोर्टों का संदर्भ दिया, जो उस समय तक सीलबंद थीं और मांग की कि उन्हें सामने लाया जाए.
सरकार द्वारा नियुक्त एंटी-ड्रग्स स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा एक पुलिस इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी के बाद, दिसंबर 2017 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा बड़ी संख्या में इन रिपोर्टों को लिखने वाली तीन सदस्यीय टीम का गठन किया गया था. एसआईटी पूरे पंजाब में नशीले पदार्थों की आपूर्ति में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की कथित मिलीभगत की जांच करने के लिए बनाई गई थी. इस टीम का नेतृत्व तत्कालीन पुलिस महानिदेशक मानव संसाधन विकास, सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय कर रहे थे. 2018 की शुरुआत में अपने गठन के कुछ महीनों के भीतर एसआईटी ने क्रमशः 1 फरवरी, 15 मार्च और 8 मई को अदालत को सीलबंद लिफाफे में तीन स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की. 8 मई को चट्टोपाध्याय ने सीलबंद लिफाफे में चौथी रिपोर्ट भी सौंपी जिस पर केवल उन्होंने हस्ताक्षर किए थे.
रिपोर्टों ने पंजाब में नशीली दवाओं के व्यापार को लेकर कानून प्रवर्तन अधिकारियों और राजनेताओं के बीच सांठगांठ के गंभीर आरोप लगाए. जांच में कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नाम सामने आए हैं. इनमें पंजाब पुलिस के पूर्व प्रमुख सुरेश अरोड़ा और दिनकर गुप्ता शामिल थे. (अरोड़ा अब पंजाब के मुख्य सूचना आयुक्त हैं और गुप्ता राष्ट्रीय जांच एजेंसी के महानिदेशक हैं.)
एसआईटी की सभी रिपोर्टें सौंपे जाने के तुरंत बाद उस समय मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश सूर्यकांत और शेखर धवन ने मई 2018 में एक आदेश पारित किया जिसमें कहा गया था कि रिपोर्टों का विस्तार से अध्ययन करेंगे. और "न्यायिक रजिस्ट्रार सीलबंद रिपोर्ट/रिकॉर्ड हमारे समक्ष उस दिन और उस समय पर प्रस्तुत करेगा जब उसे ऐसा करने के लिए अलग से सूचित किया जाएगा, ताकि हम इन रिपोर्टों पर गहराई से विचार कर सकें." हालांकि पांच वर्षों से अधिक समय यानी हाल के फैसले तक, इस मामले पर कोई ठोस आदेश पारित नहीं किया गया था और रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में रही. जैसा कि कारवां ने सितंबर 2021 में अपनी कवर स्टोरी में विस्तार से बताया था, राज्य सरकार और न्यायपालिका की इन और अन्य रिपोर्टों पर कार्रवाई करने में देरी के परिणामस्वरूप पंजाब में प्रचलित नशीली दवाओं के खतरे प्रभावी रूप से बढ़े हैं.
15 फरवरी 2023 को ड्रग व्यापार मामले से संबंधित कार्यवाही समाप्त हो जाने के बाद संधवालिया और जीवन की पीठ ने सबसे पहले सेखों को एक आपराधिक अवमानना नोटिस जारी किया. अदालत ने एक वीडियो से यह मुद्दा उठाया जिसे सेखों ने इसी मामले पर एक और सुनवाई से एक दिन पहले 26 जनवरी को अपनी सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था. वीडियो में सेखों ने पीठ को सुझाव दिए थे कि 2013 के भोला ड्रग मामले से संबंधित सुनवाई में कैसे आगे बढ़ना है, इसके अलावा "इसी न्यायालय के 10 से अधिक न्यायाधीशों और सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के खिलाफ निंदनीय आरोप लगाए.”
खंडपीठ के अनुसार सेखों के यूट्यूब चैनल पर वीडियो पोस्ट करने का उद्देश्य "इस न्यायालय के अधिकार को बदनाम करना, साख कम करना और न्यायिक कार्यवाही के दौरान हस्तक्षेप करना था. अन्य उदाहरणों को सूचीबद्ध करते हुए जिनमें सेखों ने अपनी बात रखी थी. जिसमें सुनवाई के कुछ दिनों पहले आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी शामिल थी, अदालत ने तर्क दिया कि वीडियो एक अकेली घटना नहीं थी. सेखों के खिलाफ अवमानना नोटिस से संबंधित मामला 28 मार्च 2023 के लिए सूचीबद्ध किया गया था.
इस सुनवाई के दौरान सेखों और शर्मा दोनों कोर्ट रूम में मौजूद थे. पीठ द्वारा सेखों को नोटिस जारी किए जाने के बाद शर्मा ने जजों के सामने सेखों का बचाव करने का प्रयास किया. पीठ ने उन्हें सूचित किया कि चूंकि उनका इस मामले से कोई सीधा संबंध नहीं है, इसलिए वे चाहें तो एक हस्तक्षेप आवेदन दायर कर सकते हैं. जब शर्मा ने जोर देकर कहा कि अदालत में उनकी बात सुनी जाए, तब संधावालिया और जीवन ने कहा कि उन्हें "ऐसा महसूस हुआ कि यह जरूरी नहीं था." और वहां मौजूद पुलिस अधिकारियों ने शर्मा को मार्शल कर अदालत कक्ष से बाहर कर दिया.
इसके तुरंत बाद सेखों और शर्मा एक अन्य वीडियो में दिखाई दिए, जिसे अदालत के प्रवेश द्वार पर रिकॉर्ड किया गया था. 20 फरवरी को पारित एक आदेश में अदालत ने कहा कि इस वीडियो में शर्मा ने कहा कि वर्ष 2017 में कुछ सीलबंद रिपोर्ट प्राप्त हुई थीं, लेकिन कई पीठों के बदलने के बावजूद उन्हें खोला नहीं गया और किसी भी न्यायाधीश ने उक्त रिपोर्ट को खोलने की हिम्मत नहीं दिखाई. शर्मा ने सुझाव दिया कि उन्हें नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए ताकि वे इन सीलबंद रिपोर्टों के खुलने की निगरानी कर सकें. उन्होंने संधावालिया और जीवन की अदालत के कामकाज की भी आलोचना की, जहां मादक पदार्थों के व्यापार के मामलों की सुनवाई की जा रही थी, विशेष रूप से उन दो न्यायाधीशों में से एक की खासतौर पर आलोचना की जिनके पिता पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश थे. सेखों ने तब दो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का नाम लिया, जिसके कारण रिपोर्ट नहीं खोली गई और दावा किया कि "यदि लिफाफे खोले जाते हैं तो पीठ अपनी पैंट गीली कर लेगी" अदालत ने बताया, "आगे टिप्पणी की गई थी कि न्यायाधीशों को कुछ लोगों के एक निश्चित समूह ने अपने इशारों पर नचाया था.”
एक दिन बाद 16 फरवरी को सेखों और शर्मा का समाचार पोर्टल स्क्रॉल पंजाब के एक रिपोर्टर बलजीत मारवाहा ने एक साक्षात्कार लिया. बातचीत के दौरान, पीठ ने कहा, "इस बारे में अपमानजनक टिप्पणी की गई है कि कैसे सौदेबाजी करने के उद्देश्य से दो महीने के बाद निर्णय लिखे जा रहे हैं और सुरक्षित रखे जा रहे हैं." बातचीत को एक “न्यायालय पर गालियों की बौछार करने वाली वर्चूअल पंचायत," बताते हुए संधावालिया और जीवन ने कहा कि सेखों, शर्मा और मरवाहा "इस तथ्य से बेखबर दिखाई देते हैं कि यह न्याय का मंदिर संवैधानिक अधिकारियों द्वारा चलता है. जो बिना किसी के भय और पक्षपात के केवल संविधान के तहत उन्हें दी गई शपथ के अनुसार काम कर रहे हैं.” सेखों के पहले के वीडियो का उल्लेख करते हुए, पीठ ने कहा कि उन्होंने "राजनीतिक दबाव का सामना कर रहे न्यायाधीशों के अलावा वित्तीय दुर्व्यवहार के निराधार आरोप लगाए."
20 फरवरी के आदेश में पीठ ने कहा कि वह इस नतीजे तक पहुंच गए थे कि सेखों और शर्मा न्यायालय की अवमानना के दोषी थे. उन्होंने लुधियाना में पुलिस आयुक्त को दोनों को गिरफ्तार करने और 24 फरवरी को अदालत में पेश करने का निर्देश दिया ताकि उनके खिलाफ आरोप निर्धारित किए जा सकें. यह भी आदेश दिया कि मरवाहा को अदालत में भी उपस्थित रहने के लिए जमानती वारंट के साथ तामील किया जाए.
इसके अतिरिक्त अदालत ने कहा कि "इस तरह के वीडियो का सोशल मीडिया के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने पर संवैधानिक संस्था का अपमान होता है और यह वास्तव में कानून के शासन के खिलाफ जनता को उकसाने जैसा है." खंडपीठ के अनुसार इसका मतलब यह था कि "उन्हें एक चुनौती दी जा रही है ... और हम इसका सामना करने के लिए वह अपने संवैधानिक कर्तव्यों से पीछे नहीं हटेंगे." इसके लिए अदालत ने इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय, चंडीगढ़ प्रशासन और उसके वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे सेखों और शर्मा द्वारा "सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो को जनता तक पहुंचने से रोकने के लिए उचित कदम उठाएं.” अदालत ने रजिस्ट्रार कोसअदालत की कार्यवाही से संबंधित सभी अपमानजनक वीडियो की एक सूची तैयार करने का भी आदेश दिया, जिसे सेखों और शर्मा द्वारा प्रसारित किया गया था, जिसे रजिस्ट्रार को इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय के साथ-साथ चंडीगढ़ प्रशासन के अधिकारियों को भी सोंपना था .
इसके बाद चंडीगढ़ पुलिस अधीक्षक (साइबर सेल) द्वारा एक हलफनामे के माध्यम से दायर एक अनुपालन रिपोर्ट के अनुसार, साइबर सेल ने सेखों के सोशल मीडिया अकाउंट, चैनल के विवरण के साथ मेटा और यूट्यूब को ईमेल भेजे और इसे हटाने/ब्लॉक/प्रतिबंधित करने का निर्देश दिया." ईमेल में उल्लेख किया गया है कि अदालत के आदेशानुसार मेटा और यूट्यूब को इस तरह के अन्य फेसबुक अकाउंट, विडियो को लोगों तक पहुंचने से रोकने के लिए उचित कदम उठाने के लिए कहा गया था. इसके अलावा ट्विटर को लिखे एक ईमेल में साइबर सेल ने संधावालिया और जीवन के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि वे जल्द से जल्द अदालत और भारतीय न्यायपालिका के खिलाफ लिखकर भड़काने वाले ट्विटर अकाउंट को पूरी तरह से हटाएं/ब्लॉक/प्रतिबंधित करें. गिरफ्तारी के चार दिन बाद 24 फरवरी को सेखों और शर्मा अदालत में पेश हुए.
और पीठ ने उन्हें दोषी मानते हुए सजा सुनाई. न्यायिक मिसालों का हवाला देते हुए फैसला सुनाया गया कि ऐसे मामलों में त्वरित न्याय करना होगा ताकि अदालत का संदेश घर-घर तक पहुंच सके. अदालत ने यह भी कहा कि सुनवाई के लिए कार्यवाही को स्थगित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि खुले तौर से कीचड़ उछालना और इस तरह की प्रसारित की जाने वाली दुर्भावनापूर्ण सामग्री न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर बड़े पैमाने पर लोगों को कानून के शासन के खिलाफ और भारत के संविधान के तहत विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से मिलकर बने लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ उकसाती हैं.
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सेखों और शर्मा ने पुलिस हिरासत में रहते हुए अदालत परिसर में मीडिया को बाइट दी थी. नतीजतन, लुधियाना में सराभा नगर पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस अधिकारी के खिलाफ एक विभागीय जांच शुरू की गई और इस चूक के संबंध में पुलिस के दो सहायक आयुक्तों से स्पष्टीकरण मांगा गया.
अदालत ने पंजाब राज्य को इन कार्यवाहियों के संबंध में एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. इसने यह भी स्पष्टीकरण मांगा कि क्या ऐसे आपत्तिजनक वीडियो, जो पिछले छह महीनों से लगातार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किए जा रहे हैं, जिसमें नियमित तौर पर संवैधानिक संस्थानों, उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश और इस न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की जा रही है. भारतीय दंड संहिता 1860, सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, और अन्य विशेष अधिनियमों के प्रावधानों के तहत अपराध था. अदालत ने निर्देश दिया कि हलफनामा से इस बात का स्पष्टीकरण मांगता है कि राज्य ने इस तरह के वीडियो लगातार पोस्ट करने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही क्यों शुरू नहीं की थी और क्या राज्य के पास कुछ प्रावधानों के तहत ऐसे लोगों को हिरासत में लेने का अधिकार था. उन्हें यह चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सौंपनी थी.
सेखों के यूट्यूब चैनल, "बलविंदर सेखों स्पीक्स" के 37,000 सब्सक्राइबर को देखते हुए पीठ ने मेटा, यूट्यूब और ट्विटर को उन वित्तीय लाभों पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जो इतने बड़ी संख्या में फॉलोअर्स वाले उपयोगकर्ता अर्जित कर सकते हैं और विवरण मांगा कि क्या सेखों ने चैनल के माध्यम से कोई आय अर्जित की थी. साथ ही सेखों के चैनल और अकाउंट के खिलाफ दायर की गई किसी भी शिकायत के बारे में जानकारी मांगी और ऐसी शिकायतों के लिए संगठनों द्वारा शुरू किए गए निवारण तंत्र के विवरण के बारे में भी जानकारी मांगी है.
जब पीठ ने अपनी सजा की घोषणा की तो सेखों ने अदालत के भीतर "न्यायिक गुंडागर्दी मुर्दाबाद" का नारा लगाया. इसके साथ ही अदालत ने कहा, उन्होंने अवमानना को और बढ़ा दिया और इसके लिए हम इससे कम सजा नहीं दे सकते हैं. सेखों के वकील हरिंदर सिंह बैदवान के अनुसार, अदालत द्वारा सुनवाई के दौरान उन्हें सेखों का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति नहीं दी गई थी. बैदवान ने कारवां को बताया कि वह जल्द ही सेखों की ओर से आरोप निर्धारित करने वाले इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. 22 मार्च को लुधियाना पुलिस के अधिकारियों ने सेखों और शर्मा के खिलाफ कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जिनमें धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास या भाषा जैसे विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने से संबंधित 153-ए और आपराधिक धमकी से संबंधित धारा 506 शामिल है.