24 मार्च को जब केंद्र सरकार ने नोवेल कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की तो सरकार के प्रतिनिधियों और मंत्रियों ने अपनी राजनीति को सही ठहराने और आलोचना से पल्ला छुड़ाने के लिए जनता के बीच लगातार आधी-अधूरी और झूठी बातें प्रचारित की.
अधिकारियों ने जो दावे किए उनमें से कई जमीनी रिपोर्टों से मेल नहीं खाते. देश के कई हिस्सों में भूख और भुखमरी की हालत देखी जा सकती है और विशेषकर प्रवासी मजदूरों के बीच. अच्छी खासी मात्रा में इन झूठों को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और प्रवासी मजदूरों को वापिस भेजने में हुए कुप्रबंधन को जायज ठहराने के लिए बोला जा रहा था. भारत के सबसे गरीब लोगों के जीवन को हुई अथाह क्षति और तकलीफों को नजरंदाज किया जाता रहा है.
महामारी के जोखिम में पड़ी आबादी को नजरंदाज कर अधिकारियों ने वायरस के प्रसार पर अंकुश लगाने में सफलता का दावा भी किया. नीचे पिछले तीन महीनों में सरकारी अधिकारियों द्वारा किए गए सबसे गंभीर झूठों की सूची है.
16 मई के बाद कोविड-19 का कोई नया मामला नहीं होगा
24 अप्रैल को एक प्रेस वार्ता में नीति आयोग के सदस्य और कोविड-19 के लिए राष्ट्रीय टास्क फोर्स के चेयरपर्सन विनोद पॉल ने एक स्लाइड प्रस्तुत की जिसमें महत्वाकांक्षी ढंग से दावा किया गया कि 10 मई तक कोरोनावायरस के नए मामलों की संख्या घटकर 1000 से कम रह जाएगी और 16 मई के बाद से भारत में कोई नया मामला नहीं देखेने को मिलेगा. कोविड-19 पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स, जिसमें देश भर के 21 प्रमुख वैज्ञानिक शामिल हैं, को महामारी को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया पर नरेन्द्र मोदी सरकार को सलाह देने के लिए बनाई गई थी. प्रेस ब्रीफिंग के तुरंत बाद, प्रेस सूचना ब्यूरो ने पॉल के हवाले से यह कहते हुए गणितीय मॉडल को ट्वीट किया कि, "#COVID मामलों में छिपे हुए स्पाइक से डरने की कोई जरूरत नहीं है, बीमारी नियंत्रण में है." पॉल के मॉडलों ने भविष्यवाणी की कि संक्रमण के मामले एक दिन में अधिकतम सिर्फ 1500 मामलों तक पहुंच पाएंगे. न केवल इस दावे को कोविड-19 प्रतिक्रिया की सलाह देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए एक अन्य सशक्त समूह के कई सदस्यों द्वारा बकवास बताया था और मामलों में निरंतर वृद्धि ने इसे गलत साबित कर दिया है. 16 मई को, भारत में मामले प्रति दिन 5000 की दर से बढ़ने लगे थे और 12 जून तक 10,000 तक पहुंच गए थे.
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