अधिवक्ता सतीश उइके ने एक आपराधिक शिकायत दर्ज कर नागपुर के खापरखेड़ा गांव में दस एकड़ जमीन के भूराजस्व रिकॉर्ड से छेड़छाड़ का आरोप लगाया है. यह भूमि महाराष्ट्र के दिग्गज नेता बनवारीलाल पुरोहित से जुड़े एक ट्रस्ट को पट्टे पर दी गई है. महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (महागेंको) ने यह जमीन शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत ट्रस्ट, भारतीय विद्या भवन, को नवंबर 2015 में पट्टे पर दी थी. राज्य द्वारा संचालित कंपनी ने कोराडी थर्मल पावर स्टेशन विकसित करने के लिए मूल रूप से नागपुर के उत्तर में कोराडी गांव में स्थित खापरखेड़ा भूखंड का अधिग्रहण किया था. 9 जुलाई को उइके ने कोराडी पुलिस स्टेशन में एक शिकायत दर्ज की जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर खापरखेड़ा की जमीन को अवैध रूप से पुरोहित के शिक्षा ट्रस्ट को पट्टे पर देने का आरोप लगाया है.
एक वर्ष से अधिक समय तक असम के राज्यपाल रहे पुरोहित, अक्टूबर 2017 से तमिलनाडु के राज्यपाल हैं और 1980 और 1990 के दशक में नागपुर से तीन बार सांसद रह चुके हैं. दो बार कांग्रेस से और एक बार भारतीय जनता पार्टी से. अयोध्या कारसेवा में बाबरी मस्जिद स्थल पर मंदिर बनाने के आंदोलन में भाग लेने के कारण कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया था जिसके बाद 1991 में उन्होंने बीजेपी का दामन थामा. पुरोहित भारतीय विद्या भवन के राष्ट्रीय ट्रस्टी और उपाध्यक्ष हैं और संगठन की नागपुर इकाई नागपुर केंद्र के अध्यक्ष हैं.
उइके की शिकायत के अनुसार, फडणवीस ने भूमि हस्तांतरण को नियंत्रित करने वाली कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया और पुरोहित को भूखंड पट्टे पर देने के लिए अनियमितता की. शिकायत में जोर दिया गया है कि भूमि रिकॉर्ड में इस दस एकड़ भूखंड को झील के रूप में दर्शाया गया है. उइके ने कहा कि इसे महाराष्ट्र राज्य बिजली बोर्ड को आवंटित किया गया था, जिसे बाद में तीन संस्थाओं में विभाजित कर दिया गया और खापरखेड़ा भूखंड का स्वामित्व बिजली उत्पादन के उद्देश्य से महागेंको को प्राप्त हुआ. उइके ने आरोप लगाया कि फडणवीस, पुरोहित और तत्कालीन ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले झील को कब्जाने की साजिश में आपराधिक रूप से उत्तरदायी हैं, जो मूल रूप से बिजली संयंत्र की संबद्ध विकास योजनाओं के लिए थी.
भूखंड के भूराजस्व रिकॉर्ड से पता चलता है कि भूखंड को 3 नवंबर 2015 को 30 साल के पट्टे पर भारतीय विद्या भवन को स्थानांतरित कर दिया गया था. उइके की शिकायत के साथ संलग्न पट्टे के दस्तावेज बताते हैं कि महागेंको और भारतीय विद्या भवन कोराडी प्लॉट में एक स्कूल स्थापित करने पर सहमत हुए थे. पट्टे के दस्तावेज के अनुसार, स्कूल उन तीन कंपनियों में कार्यरत छात्रों के परिवारों को प्रवेश देने में वरीयता प्रदान करेगा, जिन्होंने पहले महाराष्ट्र राज्य विद्युत बोर्ड का गठन किया था. दस्तावेज में आगे कहा गया है कि "नागपुर केंद्र की केंद्र समिति भारतीय विद्या भवन के स्कूल के सभी मामलों का प्रबंधन करने के लिए पूर्ण नियंत्रण और शक्ति सम्पन्न होगी." दस्तावेज में यह भी उल्लेख है कि भवन महागेंको को भूमि के किराए के रूप में प्रति वर्ष 20 लाख रुपए का भुगतान करेगा और 30 वर्ष की पट्टे की अवधि को 60 वर्ष की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है.
उइके की शिकायत ने तीनों के खिलाफ प्राथमिक सूचना रिपोर्ट दर्ज करने की मांग की. उन्होंने दावा किया कि फडणवीस, पुरोहित और बावनकुले की, 2014 में राज्य में सत्ता में आने के बाद से ही इस भूखंड पर नजर थी. "झील को गायब कर दिया गया और बनवारीलाल पुरोहित के भरोसे एक महंगे निजी स्कूल के निर्माण की योजना तैयार की गई. एक आपराधिक साजिश के तहत इस योजना को अंजाम दिया गया,” उइके ने अपनी शिकायत में लिखा. "यह झील एक बिजली उत्पादन केंद्र के लिए थी."
यह पहली बार नहीं है जब स्कूल को भूखंड आवंटित करने के तरीके पर सवाल उठाए गए हैं. दिसंबर 2017 में सामाजिक कार्यकर्ता और नागपुर के पूर्व नगरसेवक जनार्दन मून ने 30 साल के पट्टे को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी. मून ने लिखा, "सवाल यह है कि सरकारी जमीन होने के कारण यह जमीन सार्वजनिक नीलामी के बिना किसी भी निजी संस्थान को नहीं दी जा सकती है."
इस मामले में मून का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ए. आर. इंगोले ने मुझे बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मिसाल पेश करते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि इस तरह के आवंटन को सार्वजनिक नीलामी के माध्यम से किया जाना चाहिए. 1997 में केरल राज्य बनाम एम. भास्करन पिल्लई के मामले में, अदालत ने कहा:
यह तय कानून है कि यदि सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जाता है तो सार्वजनिक उद्देश्य प्राप्त होने के बाद, बाकी जमीन का इस्तेमाल किसी अन्य सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किया जा सकता है. यदि कोई अन्य सार्वजनिक उद्देश्य नहीं है, जिसके लिए भूमि की आवश्यकता है, तो तत्कालीन मालिक को बिक्री के माध्यम से निपटान के बजाय, भूमि की सार्वजनिक नीलामी की जानी चाहिए और सार्वजनिक नीलामी में प्राप्त राशि का बेहतर उपयोग किया जा सकता है. सार्वजनिक उद्देश्य की परिकल्पना संविधान के निर्देशक सिद्धांतों में की गई है.
यह पूछे जाने पर कि क्या महाराष्ट्र भूमि राजस्व संहिता ने नीलामी को अनिवार्य कर दिया, इंगोले ने स्वीकार किया कि जिला कलेक्टरों को रियायती दरों पर शैक्षणिक संस्थानों को एक भूखंड सौंपने का अधिकार दिया गया था. लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की व्याख्या प्रावधान के साथ की जानी थी. "वे इस तरह एक विशेष संस्थान का पक्ष नहीं ले सकते," उन्होंने कहा. “अन्य समान संस्थानों के लिए सार्वजनिक नीलामी होनी चाहिए थी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला बाध्यकारी है.” उइके ने भी सहमति जताई कि कलेक्टर के पास विवेकाधीन शक्तियां हैं लेकिन "वह भूमि तो दे सकते हैं लेकिन झील नहीं दे सकते."
उइके और मून द्वारा उठाया गया एक अन्य मुद्दा यह था कि राज्य के भूराजस्व रिकॉर्ड में खापरखेड़ा भूखंड को झील के रूप में और इसके उपयोगकर्ता को महागेंको के रूप में दर्ज किया गया है. मून की याचिका के अनुसार, कोराडी पावर प्लांट के लिए झील बनाए रखने के उद्देश्य से महागेंको को भूमि आवंटित की गई थी और इसे राज्य की विकास योजना के रूप में पहचाना गया था. उन्होंने दावा किया कि भूमि को बाद में बावनकुले के दबाव में ''उपयोगकर्ता में बदलाव किए बिना'' शिक्षा ट्रस्ट ''द्वारा संचालित निजी सीबीएसई स्कूल के लिए'' भारतीय विद्या भवन को आवंटित किया गया. लेकिन स्कूल स्थापित करने के उद्देश्य से भूमि भारतीय विद्या भवन को पट्टे पर दिए जाने के बावजूद भूराजस्व रिकॉर्ड उपयोगकर्ता में परिवर्तन को नहीं दर्शाता है.
महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, 1966 और महाराष्ट्र भूमि राजस्व संहिता, 1966 इस तथ्य पर स्पष्ट हैं कि किसी भूमि के उपयोग या उपयोगकर्ता में कोई भी परिवर्तन केवल राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से हो सकता है. लेकिन उइके और मून ने कहा कि अगर राज्य सरकार को एक नई विकास योजना प्रस्तुत करके औपचारिक रूप से इस तरह की मंजूरी मांगी गई थी, तो भूराजस्व रिकॉर्ड में टाउन प्लानिंग एक्ट के अनुसार उपयोगकर्ता में परिवर्तन परिलक्षित होता.
बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील सरजेराव पाटिल ने भी दावा किया कि जिस तरह महागेंको ने भूखंड को पट्टे पर दिया है उससे भूमि राजस्व रिकॉर्ड में उसकी अनियमितताओं का पता चलता है. उन्होंने राज्य के भूराजस्व वेबसाइट पर उपलब्ध भूखंड के विवरण का उल्लेख करते हुए "7/12 एक्सट्रैक्ट" नामक एक दस्तावेज में इसका उल्लेख किया है. दस्तावेज उपलब्ध सार्वजनिक रिकॉर्ड के आधार पर भूमि के एक भूखंड का विवरण प्रस्तुत करता है. "7/12 एक्सट्रैक्ट में आपको पता चलता है कि जमीन का मालिक कौन है," पाटिल ने मुझे बताया. “अगर मैं कोई जमीन खरीदना चाहूं, तो मैं यह पता लगाऊंगा कि कोई अड़चन, गिरवी या इसी तरह की कोई अन्य बात तो नहीं हैं. मैं कैसे पता लगाऊंगा? भूमि रिकॉर्ड के माध्यम से.”
पाटिल ने भी यह देखा कि 7/12 एक्सट्रैक्ट में भूमि के उपयोग और उपयोगकर्ता में परिवर्तन परिलक्षित नहीं हुआ था. "रिकॉर्ड बताते हैं कि यह एक झील है." उइके ने भी 7/12 एक्सट्रैक्ट में एक और विसंगति की ओर इशारा किया. दस एकड़ के भूखंड के लिए लीज दस्तावेज ने भूराजस्व रिकॉर्ड, संख्या 77 और 78 में दो भूखंड आते हैं. उन्होंने बताया कि प्लॉट 78 के लिए 7/12 एक्सट्रैक्ट ने दर्ज किया कि भूमि भारतीय विद्या भवन को पट्टे पर दी गई थी. हालांकि उपयोगकर्ता के रूप में अभी भी महागेंको को ही दर्ज किया गया था लेकिन भूखंड 77 के लिए भूराजस्व रिकॉर्ड यह नहीं दर्शाता कि भूखंड शिक्षा ट्रस्ट को पट्टे पर दिया गया था.
उइके ने शिकायत में राज्य के ऊर्जा विभाग के एक पत्र का हवाला देते हुए कहा है कि बावनकुले ने आवंटन जल्द करवाने का दबाव दिया था. 1 अक्टूबर 2015 को मनोहर पोटे ने, जो उस वक्त ऊर्जा विभाग में स्पेशल ड्यूटी अधिकारी थे, कैम्पटी तालुक में भूमि अभिलेख कार्यालय को लिखा, “महागेंको ने नंदा कोराडी में भूमि भवन के स्कूल के निर्माण के लिए उपलब्ध कराई है." इस अधिकारी ने प्रक्रिया को तेज करने के लिए भूमि रिकॉर्ड कार्यालय से आग्रह करते हुए बताया कि बीते महीने भूमि की माप के लिए शुल्क का भुगतान किया जा चुका है. पत्र में बावनकुले के संदर्भ में कहा गया है,"माननीय मंत्री ने निर्देश दिए हैं.” उइके ने मुझे बताया कि इस दस्तावेज ने यह स्पष्ट कर दिया कि "मंत्री का निहित स्वार्थ था." पाटिल ने बताया कि इससे प्रक्रिया में तेजी आई. "इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम दो साल लगते हैं," उन्होंने कहा. "लेकिन वे जमीन की माप और अन्य अनुमतियों के लिए बहुत जल्दी में थे."
पट्टे के पंजीकृत होने के पांच दिन बाद 8 नवंबर को मुख्यमंत्री कार्यालय ने अपने ट्विटर पेज पर बावनकुले और पुरोहित की उपस्थिति में फडणवीस द्वारा स्कूल के भूमिपूजन की तस्वीरें साझा की. इस समारोह में फडणवीस ने मीडिया को बताया कि उनकी सरकार ने महागेंको कर्मचारियों के बच्चों के लिए राज्य के बिजली संयंत्रों के पास सात स्कूल खोलने की योजना बनाई है.
जुलाई 2016 में भारतीय विद्या भवन की नागपुर इकाई ने आंशिक कक्षाओं के लिए खापरखेड़ा में भूखंड पर भगवानदास पुरोहित विद्या मंदिर खोला. जबकि निर्माण कार्य स्थल पर जारी ही रहा. मई 2018 तक 42 करोड़ रुपए की लागत से निर्माण पूरा हो चुका था. अगले साल दिसंबर में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने मून की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि परियोजना शुरू होने के बहुत लंबे समय बाद याचिका दायर की गई है. अदालत ने कहा कि स्कूल में 1781 छात्र और 105 लोगों का स्टाफ है. “यदि इस स्तर पर अदालत दखल देती है, तो यह समय के चक्र को पीछे घुमाने के समान होगा और परिणाम स्वरूप इतने सारे विद्यार्थियों और स्टाफ की जिनकी कोई गलती नहीं है उनके प्रति पूर्वाग्रह के समान होगा.” अदालत ने यह भी कहा गया कि मून नवंबर 2015 से इन परिस्थितियों के बारे में जानते थे क्योंकि उन्होंने उस समय के एक अखबार की कतरन को भी रिकॉर्ड में रखा था और जानबूझकर मुकदमा दायर करने में देरी की थी. यह स्पष्ट नहीं है कि अदालत ने समाचार आर्काइव की बात पर गौर क्यों नहीं किया या यह निष्कर्ष कैसे निकला कि मून के पास 2015 से ही वह कतरन थी जिसे उन्होंने संलग्न किया था. अदालत ने मामले को खारिज कर दिया और मून पर 10000 रुपए का जुर्माना लगाया.
जनवरी 2020 में मून ने इसी अदालत के समक्ष बर्खास्तगी के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर की. इंगोले ने मुझे बताया कि समीक्षा अभी लंबित है. इस बीच 19 जुलाई को राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने "जांच और आवश्यक कार्रवाई के लिए'' नागपुर के एक पुलिस उपायुक्त से शिकायत की.
मैंने भूमि आवंटन में सरकारी प्रक्रियाओं की अवहेलना के आरोपों पर फडणवीस, बावनकुले, पुरोहित, महागेंनो और भारतीय विद्या भवन से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए उन्हें फोन किया और प्रश्न ईमेल किए. बावनकुले ने व्हाट्सएप पर मुझे जवाब दिया, जिसमें जोर दिया गया था कि "आवंटन प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और सार्वजनिक हित में थी." उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा मून की याचिका को खारिज करने का जिक्र किया और कहा कि इस मामले के दस्तावेजों ने यह स्पष्ट कर दिया कि "स्कूल के लिए आवंटित भूमि बंजर भूमि थी और झील के लिए आरक्षित नहीं थी जैसा कि गलत तरीके से उल्लेख किया गया है." बावनकुले ने कहा, "दस्तावेजों में बैठकों की श्रृंखला का विवरण, उच्चतम स्तर पर विचार-विमर्श और पारदर्शिता का भी पता चलता है, जिसके साथ पूरे मामले को महागेंको और यहां तक कि भारतीय विद्या भवन द्वारा भी निपटाया गया, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित संगठन है."
उन्होंने यह भी दावा किया कि नागपुर मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने उस भूखंड को श्रेणीबद्ध किया था जिस पर स्कूल "सार्वजनिक उपयोगिता" के रूप में दर्ज है. हालांकि, एनएमआरडीए की वेबसाइट पर उपलब्ध विकास योजना औद्योगिक और कृषि के रूप में भूखंडों 77 और 78 की पहचान करती है. एनएमआरडीए की वेबसाइट पर उपलब्ध विकास योजना के संशोधनों पर अगस्त 2016 का एक दस्तावेज अनुमति योग्य सार्वजनिक उपयोगिताओं को सूचीबद्ध करता है और इसमें स्कूल या शैक्षणिक सुविधाएं शामिल नहीं हैं. यह सूची सार्वजनिक सेवाओं जैसे कि पानी और बिजली उत्पादन, अपशिष्ट प्रबंधन और संचार जैसी गतिविधियों से जुड़ी हुई है.
बावनकुले ने स्कूल की लोकप्रियता का बखान भी किया. उन्होंने कहा कि स्कूल "पवित्र शहर कोराडी को आगंतुकों के आकर्षण का केंद्र बनाने के लिए कन्याकुमारी के विवेकानंद रॉक स्मारक की तर्ज पर 40 करोड़ की लागत से रामायण को समर्पित एक सांस्कृतिक केंद्र बनाने की'' प्रक्रिया में है. बावनकुले ने उइके की आबंटन की शिकायतों को "खोखला, निंदनीय, दुर्भावनापूर्ण, शरारती, किसी योग्यता से रहित और इस राष्ट्रीय प्रतिष्ठित संस्थान और इसकी स्थापना में शामिल लोगों की छवि को खराब करने के उद्देश्य'' से प्रेरित बताया. उन्होंने कहा, “पूरा आरोप फडणवीस शासन के दौरान पुरोहित द्वारा चलाए जा रहे स्कूल के प्रति कथित पक्षपात के बारे में है और इस गंभीर आरोप को साबित करने के लिए सबूत की एक कतरन पेश नहीं की है और यह नागरिकों और पार्टी लाइन से इतर जाकर राजनीतिक वर्ग की अभीष्ट परियोजना पर पत्थर फेंकने का प्रयास है.”
फडणवीस ने बावनकुले की प्रतिक्रिया से सहमति जताई. उन्होंने लिखा, "मुझे लगता है कि पूर्व बिजली मंत्री श्री चंद्रशेखर बावनकुले ने माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की प्रति के साथ आपको बहुत विस्तृत उत्तर दिया है." उइके की शिकायत को "एक प्रचार स्टंट" के रूप में खारिज करते हुए, फडणवीस ने यह कहते हुए अपना संदेश समाप्त किया कि वह "शिकायतकर्ता द्वारा इस तरह के दुर्भावनापूर्ण और पूरी तरह से झूठे अभियान के खिलाफ आपराधिक मानहानि दर्ज करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं."
जब मैंने नीलामी आयोजित करने में सरकार की विफलता के बारे में बावनकुले से जोर देखर पूछा तो उन्होंने दावा किया कि सरकार ने भूमि के भूखंड के लिए आवेदन आमंत्रित करते हुए एक एक्सप्रेशन-ऑफ-इंट्रेस्ट नोटिस जारी किया था. उन्होंने कहा कि वह मुझे नोटिस भेजेंगे, लेकिन रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक बार-बार याद दिलाने के बावजूद उन्होंने ऐसा नहीं किया. पुरोहित, भारतीय विद्या भवन और महागेंको ने मेरे ईमेल और संदेशों का जवाब नहीं दिया. अगर वे जवाब देते हैं तो रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा. पट्टे के दस्तावेज निष्पादन के वक्त महागेंको में एक मुख्य अभियंता रहे उमाकांत निखारे, जिन्होंने कंपनी की ओर से समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, ने मुझसे कहा, “मैं सेवानिवृत्त हो गया हूं, मैं महागेंको के बारे में सबकुछ भूल गया हूं.''