इस साल जुलाई में महाराष्ट्र में 84 वर्षीय पादरी और आदिवासी-अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टैन स्वामी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद एक ट्वीट करते हुए केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने लिखा था, "फादर स्टैन स्वामी की मौत से गहरा दुख हुआ. यह अनुचित है कि एक व्यक्ति जिसने हमारे समाज के सबसे दमितों के लिए जीवन भर संघर्ष किया, उसे हिरासत में ही मरना पड़ा. न्याय के इस उपहास की हमारे लोकतंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए." विजयन स्वामी के बारे में अपना दुख व्यक्त करते वक्त यह भूल रहे थे कि केरल की जेलों में स्वामी की तरह के आरोपों का सामना कर रहे ढेरों लोग बंद हैं.
पिछले पांच सालों में लगभग कोई बड़ा आतंकवादी या माओवादी हमला नहीं होने के बावजूद, केरल सरकार ने भारतीय दंड संहिता में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम और राजद्रोह और "राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने" से संबंधित अपराधों के तहत 145 मामले दर्ज किए. 27 अक्टूबर 2021 को अपने कार्यकाल के दौरान यूएपीए के तहत आरोपितों की संख्या और उनके खिलाफ आरोपों के विवरण के बारे में विधान सभा में पूछे गए एक सवाल का जवाब देने से विजयन ने इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में और विशेष अदालतों में विचाराधीन अभियुक्तों के विवरण का खुलासा नहीं किया जा सकता है." उन्होंने यूएपीए के विचाराधीन कैदियों की संख्या और उन्होंने जेल में कितना समय बिताया, इस बारे में पूछे गए सवालों के जवाब देने से भी इनकार कर दिया.
केरल की अदालतों ने 67 वर्षीय एक्टिविस्ट एनके इब्राहिम को जमानत याचिकाएं न जाने कितनी बार खारिज की हैं. वह दिल के मरीज हैं. इस साल जून में कन्नूर जेल में बंद एक अन्य एक्टिविस्ट सीके राजीवन की पत्नी थंकम्मा ने बताया कि उनके पति को कोविड-19 की जांच कराने के लिए भूख हड़ताल करनी पड़ी. 32 वर्षीय एक्टिविस्ट एस दानिश के वकील तुषार निर्मल सारथी ने कहा कि उनको कई मामलों में जमानत मिल चुकी है लेकिन केरल पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते ने उन्हें जेल में रखने के लिए यूएपीए के ताजा मामलों में फिर से उन पर आरोप लगाया है. जेल में दानिश को कोविड हो गया.
तीनों कैदियों के वकीलों और परिवारों ने मुझे बताया कि उन्होंने विजयन को इस बारे में दखल देने के लिए कई बार पत्र लिखा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. त्रिशूर जिले के वियूर उच्च सुरक्षा जेल और पुलिस के खिलाफ दुर्व्यवहार के कई आरोप भी सामने आए थे. केरल में एक्टिविस्टों के साथ दुर्व्यवहार पर चिंता जताने वाले एक्टिविस्टों को भी निशाना बनाया गया है, जिनका दावा है कि उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है.
13 जुलाई 2015 को इब्राहिम को केरल पुलिस ने कोझीकोड जिले के पय्योली गांव से गिरफ्तार किया था. उन पर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सदस्य होने और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था. उन पर आईपीसी की धारा 124 ए और यूएपीए की कई धाराओं के तहत देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था. उनके परिवार ने मुझे बताया कि वह उस समय पय्योली में एक सब्जी की दुकान पर सहायक के तौर पर काम कर रहे थे और इस क्षेत्र में ट्रेड-यूनियन की गतिविधियों में शामिल रहते थे.
वायनाड जिले के नेदुंबाला गांव के इब्राहिम के एक करीबी दोस्त रवि ने मुझे बताया, “1990 के दशक के दौरान हैरिसन मलयालम बागान मजदूरों की जबरन बेदखली के खिलाफ संघर्ष में इब्राहिम इक्का सबसे आगे थे. “जबकि मुख्यधारा के मजदूर संगठनों ने कंपनी का पक्ष लिया, इब्राहिम इक्का और कुछ अन्य लोग मजदूरों के साथ मजबूती से खड़े थे. उस जन आंदोलन में कम से कम 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया. लेकिन इब्राहिम के 28 साल बेटे, ऑटोरिक्शा चलाने वाले नौफल ने मुझे बताया कि राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने में किसी भी तरह की संलिप्तता के दावे बेतुके हैं. उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी से परिवार को गहरा धक्का लगा है. “मुझे नहीं पता कि उन्हें क्यों गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने मुझे बताया कि मेरे पिता माओवादी हैं.''
गिरफ्तारी के पंद्रह दिन बाद केरल पुलिस ने वायनाड जिले के वेल्लामुंडा पुलिस स्टेशन में दर्ज एक अन्य मामले में इब्राहिम पर मामला दर्ज किया था. नई प्राथमिकी में इब्राहिम और दो अन्य-राजेश और अनूप पर पांच माओवादी कैडरों को ठिकाना देने, खाना और हथियार उपलब्ध कराने का आरोप लगाया गया. प्राथमिकी में दावा किया गया कि 24 अप्रैल 2014 को एके-47 राइफलों से लैस पांच माओवादी एक वरिष्ठ नागरिक पुलिस अधिकारी एबी प्रमोद के घर में घुसे और उन्हें नौकरी से इस्तीफा नहीं देने और माओवाद विरोधी अभियानों में पुलिस की मदद करना बंद न करने पर जान से मारने की धमकी दी. पुलिस ने इब्राहिम और अन्य सभी पर कथित रूप से यूएपीए, आईपीसी और शस्त्र अधिनियम, 1959 की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था. ये सभी पिछले छह सालों से जेल में बंद हैं. दिसंबर 2015 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपने का आदेश दिया, जिसने 2 जनवरी 2016 को दोनों मामलों को फिर से दर्ज किया.
मामले में चार्जशीट के अनुसार, 6 जुलाई 2017 को, मामले के छठे आरोपी राजेश ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत कक्कनड न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष बयान दिया. इब्राहिम के खिलाफ सबूत मुख्य रूप से राजेश के बयान पर आधारित है, जिसमें दावा किया था कि उसने इब्राहिम को यह कहते हुए सुना था, “आज हमारी पार्टी ने हमें एक आदमी के खिलाफ एक मिशन सौंपा है. देखते हैं कि क्या वह सबक सीखेगा." चार्जशीट में दावा किया गया है कि जिस पार्टी का जिक्र किया जा रहा है वह भाकपा (माओवादी) है. सारथी, जो इब्राहिम के वकील भी हैं, केरल स्थित मानवाधिकार संगठन जनकेय मनुश्यवाकाशा प्रस्थानम- पीपुल्स ह्यूमन राइट्स फोरम के सदस्य हैं. उन्होंने मुझे बताया कि इब्राहिम के खिलाफ सबूत कम थे इसलिए एनआईए मामला बनाने के लिए सरकारी गवाहों पर भरोसा कर रही थी. सारथी ने कहा, "साजिश, हथियार और रसद आपूर्ति के मामले को साबित करने के लिए कोई गवाह नहीं है.'' राजेश ने कबूल किया कि वह एक बैग वायनाड ले गए थे. उन्होंने माना कि बैग के वजन और आकार को देखते हुए उसके अंदर हथियार था, लेकिन यह भी कमजोर सबूत है क्योंकि राजेश ने बैग के अंदर नहीं देखा. सारथी ने मुझे बताया कि हाल के कई मामलों में एनआईए ने यूएपीए के विचाराधीन कैदियों पर मुकदमा चलाने के लिए सरकारी गवाहों का इस्तेमाल किया है.
इब्राहिम मधुमेह के रोगी हैं और उनमें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के लक्षण हैं. 16 जुलाई 2021 को त्रिशूर के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एक मेडिकल बोर्ड ने उनकी जांच की और कहा कि उनकी हालत स्थिर होने के बावजूद, "भविष्य में दिल को लेकर खतरा हमेशा बना रहता है."
जब मैं 26 जुलाई को वायनाड के नेदुम्बाला इलाके में उनके घर गया, तो उनकी 26 वर्षीय बहू मुबाशिरा ने मुझे उनकी तबीयत के बारे में बताया. "उप्पा" - पिता - "हर दिन 22 गोलियां लेते हैं," उन्होंने कहा. “उनकी डायबटीज अभी भी काबू में नहीं है. उनका एक भी दांत नहीं है और कुछ दांत, दांत लगवाने के लिए निकाले हैं. डायबटीज के चलते उनके दांत निकलवाने पड़े थे, वह हल्के गुनगुने पानी और चाय में डूबी रोटियों पर जिंदा हैं.” मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इब्राहिम ने हाल ही में दांत निकालने के बाद चबाने में कठिनाई की शिकायत की थी. मुबाशिरा ने मुझे बताया, “जेल के अंदर उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा. वह सब्जियां और मांस नहीं खा सकते. जेल में परोसा जाने वाला केरल का लाल चावल ठीक से पच नहीं रहा है.''
2019 के अंत में इब्राहिम को एक छोटी पैरोल के दौरान अपने घर जाने की इजाजत दी गई थी. उनकी 77 साल की सास पाथुकुट्टी ने मुझे बताया कि जब वह घर आए, तो साफ दिख रहा था कि जेल में उनकी तबीयत कितनी खराब हो गई थी. "मुझे डर है कि अगर उन्हें एक और साल के लिए जेल में डाल दिया गया तो हम उन्हें हमेशा के लिए खो देंगे," उन्होंने कहा. “जेल जाने से पहले उनका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक था. वह एक मेहनती आदमी थे. थोड़े दिनों की मिली पैरोल के दौरान, वह कंकाल की तरह लग रहा था. उसे ठीक से इलाज की जरूरत है. उसके बच्चे और ससुराल वाले पैसे जमा कर देंगे. अगर वह रिहा हो जाता है तो हम उसे एक निजी अस्पताल ले जाएंगे.''
इब्राहिम के परिवार ने मुझे बताया कि पैरोल के दौरे भी कम थे और उन पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी. इब्राहिम के बेटे नौफल ने कहा, "पहली पैरोल पर, वह कड़ी पुलिस सुरक्षा के साथ सुबह करीब 10 बजे घर पहुंचे और उसी दिन शाम करीब 5 बजे चले गए. दूसरी बार जनवरी 2020 में मुश्किल से तीन घंटे के लिए वह पैरोल पर रिहा हुए. वह सुबह करीब 11 बजे घर पहुंचे और दोपहर दो बजे तक पुलिस उन्हें वापस भी ले गई. दोनों ही मामलों में इब्राहिम को अपने चार पोते-पोतियों से मिलने के लिए पैरोल दी गई थी - ये सभी उनकी गिरफ्तारी के बाद पैदा हुए थे. "उन्हें मुश्किल से उनके साथ समय मिला," नौफल ने मुझे बताया. इब्राहिम की बहू मुबाशिरा ने मुझे बताया कि फोन पर उन्होंने अभी भी इस बारे में बात की थी कि वह अपने पोते-पोतियों को फिर से कैसे देख पाएंगे.
जेएमपी के राज्य सचिव सीपी रशीद ने मुझे बताया कि जेल में इब्राहिम की तबीयत लगातार खराब होती जा रही है. रशीद ने कहा, "मधुमेह की गंभीर स्थिति के कारण दांत निकाले जाने के बाद इब्राहिम का दस दिनों में सात किलो वजन कम हो गया. 16 जुलाई को, जेल अस्पताल के अधिकारियों ने नकली दांत लगाने के लिए माप ली. उन्होंने अभी तक उनके दांत नहीं लगाए हैं. उन्हें खाना खाने के लिए जूझना पड़ता है. उन्हें सुबह उठना मुश्किल हो रहा है. वह कमजोर हो गए हैं और थक जाते हैं. ऑनलाइन ट्रायल के दौरान वह कांप गए. उनके सह-आरोपी रूपेश के अनुरोध के बाद, अदालत ने सुनवाई रोक दी और उन्हें खाना खाने की इजाजत दी और बाद में सुनवाई फिर से शुरू की.
16 मार्च 2021 को कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर जेलों में मची भीड़ कम करने के इरादे से सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का गठन करें ताकि कैदियों और विचाराधीन कैदियों को रिहा करने पर विचार किया जा सके. निर्देश के बाद केरल सरकार ने हजारों कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. हालांकि, सरकार ने यूएपीए, आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम, और बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न और मानव तस्करी के तहत आरोपी कैदियों को इससे बाहर करने का फैसला किया. जबकि सिस्टर अभया हत्याकांड और टीपी चंद्रशेखरन हत्याकांड जैसे कई अन्य गंभीर अपराधों के आरोपियों को पैरोल मिली, यूएपीए कैदियों को जमानत और पैरोल से वंचित कर दिया गया.
सारथी ने मुझे बताया, ''यूएपीए के कैदी सभी मौलिक अधिकारों से वंचित हैं. न्याय का सिद्धांत कि 'जमानत नियम है और जेल अपवाद,' यूएपीए कैदियों पर लागू नहीं होता है. उन्हें उच्च सुरक्षा वाली जेलों में रखा जा रहा है. राज्य का इरादा उनकी देह और उनके विचारों को पूरी तरह से कब्जे में रखने का है. महामारी कैदियों के बीच भेदभाव नहीं करती है. महामारी के दौरान उनकी जान को भी खतरा है.” इब्राहिम की गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों और कोविड-19 को लेकर उनकी हालत का हवाला देते हुए, एक अन्य वकील, पीए शायना ने केरल उच्च न्यायालय में उनकी जमानत के लिए एक आवेदन दिया.
यह पहली बार नहीं था जब इब्राहिम के बिगड़ते स्वास्थ्य के संबंध में जमानत याचिका दायर की गई थी. सारथी ने अब तक एर्नाकुलम में एनआईए की विशेष अदालत में चार जमानत याचिकाएं दायर की थीं और शायना सहित अन्य वकीलों ने केरल उच्च न्यायालय में दो आवेदन दायर किए थे. उन सभी को ठुकरा दिया गया. चौथी जमानत अर्जी ने एनआईए की विशेष अदालत द्वारा इब्राहिम की जमानत याचिकाओं को बार-बार खारिज करने को "अवैध, अनियमित और न्याय के खिलाफ" करार दिया. यह तथ्य कि इब्राहिम को न्यूनतम साक्ष्य के आधार पर गिरफ्तार किया गया था, जमानत अर्जी में भी दोहराया गया था. इब्राहिम की जमानत याचिका पर अभी केरल हाई कोर्ट में सुनवाई होनी है.
2 जून 2021 को, इब्राहिम की पत्नी जमीला ने विजयन को एक पत्र लिखकर अपने पति को मानवीय आधार पर अंतरिम जमानत देने के लिए कहा. इसका उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. फिल्म निर्माता राजीव रवि, नारीवादी इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता जे देविका, कवि के सच्चिदानंदन, कवि अनवर अली, वामपंथी बुद्धिजीवी सुनील पी एलायडोम, कवि रफीक अहमद, दलित कार्यकर्ता सनी एम कपिकड, लेखक कल्पट्टा नारायणन और कवि मीना कंदासामी सहित प्रमुख सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं और लेखकों ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इब्राहिम की रिहाई की मांग की. "सरकार की ओर से किसी ने हमें जवाब नहीं दिया," मुबाशिरा ने मुझे बताया. “हमारे सीएम दूसरे राज्यों के कैदियों के बारे में बहुत खुल कर बोलते हैं. 26 जून को इन सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप के बाद ही अप्पा का मुकदमा शुरू हुआ.'' शायना ने मुझे बताया कि इब्राहिम "एक और स्टेन स्वामी बनने वाले हैं."
21 अक्टूबर 2020 को कोझीकोड सत्र अदालत ने इब्राहिम को एक मामले में तकनीकी आधार पर बरी कर दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष की तरफ से प्रक्रियात्मक खामियां हुईं थी. लेकिन 2014 के मामले की सुनवाई अभी चल रही है.
सारथी ने मुझे बताया कि इब्राहिम को वियूर जेल के उच्च-सुरक्षा खंड, जहां वह शुरू में बंद थे, में कई मानवाधिकार उल्लंघनों का सामना करना पड़ा था. उन्होंने कहा कि यह खास कर तब शुरू हुआ जब इब्राहिम और दस अन्य लोगों ने कोविड-19 प्रोटोकॉल के उल्लंघन का हवाला देते हुए जेल में स्वतंत्रता दिवस समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया. सारथी ने बताया, "प्रतिशोध की कार्रवाई के रूप में, जेल अधीक्षक ने स्वतंत्रता दिवस समारोह का बहिष्कार करने वाले सभी कैदियों के बिस्तर हटाने का आदेश दिया. वे सभी 14 दिनों से भी ज्यादा तक अपने सेल में बंद रहे. उन्हें दो हफ्ते से भी ज्यादा समय तक दूसरे कैदियों और उनके परिवार से फोन पर बात करने की इजाजत नहीं थी.'' यूएपीए के तहत दर्ज एक अन्य कैदी एलन शुएब, जो बाद में जमानत पर रिहा हो गए, ने सारथी की बात की पुष्टि की.
सितंबर 2020 में, एनआईए ट्रायल कोर्ट ने मानवाधिकार उल्लंघन के लिए वियूर जेल प्रशासन की खिंचाई की. जेल अधीक्षक ने अदालत को बताया कि तिरंगा फहराने के समय या तो कोठरी या गलियारे से शोर मचाकर कैदियों ने उत्सव का अनादर किया. जेल से सीसीटीवी फुटेज की जांच के बाद, अदालत ने कहा, "उपलब्ध वीडियो फुटेज में से कोई भी किसी भी कैदी द्वारा चिल्लाने, आपस में भिड़ने या यहां तक कि बकबक करने की स्थिति को नहीं दर्शाता है ... वीडियो में याचिकाकर्ता या किसी और की समारोह में गड़बड़ी मचाने की कोई संभावना नहीं दिखती है." अदालत ने कैदियों द्वारा लगाए गए आरोप को सही और गंभीर पाया और मामले को उच्च न्यायालय में भेज दिया. वियूर हाई सिक्योरिटी जेल के जेल अधीक्षक बी सुनीलकुमार ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. सारथी ने कहा कि घटना के बाद इब्राहिम को भी एकांत कारावास में डाल दिया गया था, जहां से उन्हें अब छोड़ दिया गया है.
वियूर में यूएपीए कैदियों के अनुभवों से, जिनके मामलों में शायना ने मदद की, उन्होंने अनुमान लगाया कि जेल का उद्देश्य "राजनीतिक कैदियों को अलग-थलग करने और उनके मजबूत इरादों को तोड़ने के लिए सालों तक सेलुलर जेल में रखना" है. उन्होंने कहा, “जेल जुलाई 2019 में खोली गई, और यह एक तीन मंजिला इमारत है जिसमें कम से कम 60 एकान्त कारावास कक्षों के साथ लगभग 530 कैदी रह सकते हैं. वर्तमान में, जेल में कम से कम 160 कैदी बंद हैं. जेल उच्च जोखिम वाले कैदियों, मुख्य रूप से यूएपीए के आरोपियों को बंद करने के लिए बनाया गया है. सरकार ने न तो उच्च सुरक्षा वाले जेल की संरचना, निर्माण, गुणवत्ता और परोसे जाने वाले भोजन की मात्रा या संचालन के संबंध में कोई अधिसूचना जारी की थी और न ही इसके लिए विशेष रूप से किसी नियम को संशोधित किया था.
28 जनवरी 2021 को सारथी ने इब्राहिम की ओर से एक याचिका दायर कर वियूर हाई सिक्योरिटी जेल से 1.7 किलोमीटर दूर स्थित वियूर सेंट्रल जेल में स्थानांतरण की मांग की. याचिका में कहा गया है, "याचिकाकर्ता के लिए एक दिन में अधिकतर घंटों तक बंद रहने की स्थिति असहनीय हो गई है और वह मानसिक रूप से टूटने के कगार पर है. याचिकाकर्ता विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित है और उच्च सुरक्षा वाली जेल की स्थिति उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को कमजोर कर रही है." याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने इब्राहिम को वियूर सेंट्रल जेल में ट्रांसफर करने का आदेश दिया.
एक्टिविस्टों और वकीलों ने मुझे वियूर उच्च सुरक्षा जेल में मानवाधिकारों के अन्य गंभीर उल्लंघनों के बारे में भी बताया. शायना के पति रूपेश ने हफ्फपोस्ट पर छपे एक लेख में कहा था कि जेल में विचाराधीन कैदियों की अवैध ढंग से गुप्तांगों की तलाशी ली जाती और अन्य ज्यादतियां की जाती हैं. जब मैंने शायना से कपड़े उतराकर तलाशी के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा, "उनके स्थानांतरण के समय से, विचाराधीन कैदियों को कई तरह के उत्पीड़न और हिरासत में यातना का सामना करना पड़ा है. लगातार सेलुलर कारावास, तलाशी के नाम पर हर बार कपड़े उतरवाकर गुप्तांगों की तलाशी लेना, 24×7 निगरानी के लिए सेल के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगवावा, बाहरी बरामदे की ग्रिल को ढक कर बाहर के नजारे को रोकना और कैदियों के शरीर की तलाशी लेने के लिए माओवाद का मुकाबला करने के लिए बने सशस्त्र विशेष कमांडो बिच्छू का इस्तेमाल करना शामिल है." शुएब ने मुझे बताया कि वियूर में रहते हुए उन्हें भी नंगा होकर तलाशी देने का सामना करना पड़ा था, और शायना ने मुझे बताया कि रूपेश ने भी बताया था कि उसके साथ ऐसा हुआ है.
केरल जेल और सुधार सेवा (प्रबंधन) अधिनियम 2010 का नियम 30 कैदियों के शरीर की तलाशी की इजाजत देता है, लेकिन नियम में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि "तलाशी इस तरह से की जाएगी कि कैदी या व्यक्ति का अनावश्यक उत्पीड़न या अपमान नहीं किया जा सकता है." रूपेश और शुएब दोनों ने कहा कि शरीर की तलाशी इस नियम का खुला उल्लंघन है. कैदियों का ज्यादातर दिनों के लिए सेल्युलर कारावास केरल जेल और सुधार सेवा (प्रबंधन) नियम 2014 के नियम 225 का उल्लंघन है .
30 जून 2020 के अदालत के एक आदेश में एनआईए की विशेष अदालत ने पाया था कि "जेल में लाते वक्त कपड़े उतार कर की गई शरीर बेतरतीब जांच का नियमित रूप से होना, पूरे—पूरे दिन सेलुलर जेल में रखना और शौचालय और बाथरूम तक में सीसीटीवी कैमरे लगाना, गैरकानूनी है.” हालांकि, शुएब, रूपेश और दानिश की गवाही से इस तरफ इशारा मिलता है कि उच्च सुरक्षा वाले जेल में यह सब अभी भी अंधाधुंध रूप से जारी है.
फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु के एक दिन बाद, इब्राहिम और रूपेश के मामलों में से एक पर एर्नाकुलम में एनआईए की विशेष अदालत में सुनवाई शुरू होने वाली थी. उस सुबह रूपेश ने विशेष अदालत को एक पत्र लिखकर स्वामी के लिए अदालत और वियूर सेंट्रल जेल में एक मिनट का मौन रखने का अनुरोध किया. रूपेश ने लिखा कि स्वामी ने और उनकी मृत्यु ने उन्हें बहुत प्रेरित किया. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. शायना ने मुझे बताया कि रूपेश ने स्वामी की मौत के मौके पर भूख हड़ताल की थी. उन्होंने कहा कि इब्राहिम भी भूख हड़ताल में शामिल होना चाहता था, लेकिन रूपेश ने उसे मना कर दिया क्योंकि उसकी डायबटीज और दिल की बीमारियां बढ़ गईं थीं. न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने वियूर जेल के अधीक्षक एजी सुरेश के हवाले से कहा है कि कोई भूख हड़ताल नहीं हुई.
25 जून को, वामपंथी झुकाव वाले संगठनों पोरट्टम और आदिवासी समारा संघम ने वायनाड जिले के कलपेट्टा शहर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया, जहां उन्होंने दावा किया कि केरल सरकार जेलों के भीतर मानवाधिकारों का हनन करने के लिए महामारी का इस्तेमाल कर रही है. एएसएस की सचिव एम थंकम्मा ने अपने पति सीके राजीवन के खिलाफ कथित रूप से झूठे मामले और कन्नूर जेल में उनके साथ हुए व्यवहार के बारे में बात की. नवंबर 2020 में केरल पुलिस ने राजीवन को चार अलग-अलग मामलों में गिरफ्तार किया था. एक प्राथमिकी में, उन्होंने दावा किया कि कई अज्ञात लोगों ने उस विला में घुसकर तोड़फोड़ की थी जहां आदिवासी महिलाओं का कथित रूप से यौन शोषण किया गया था. प्राथमिकी में कहा गया है कि अज्ञात लोगों ने कथित तौर पर विला में एक पोस्टर चिपकाकर लोगों को आदिवासी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के खिलाफ चेतावनी दी. राजीवन को इस मामले के लिए गिरफ्तार किया गया था और यूएपीए और आईपीसी के तहत आरोपित किया गया था. यह मामला केरल के आतंकवाद निरोधी दस्ते को सौंप दिया गया था. जब वह जेल में थे तो केरल एटीएस ने उन्हें तीन अन्य मामलों में भी आरोपित किया, जिसमें दावा किया गया था कि उन्होंने पहले चाय बागान मजदूरों को मजदूरी बढ़ाने की मांग करने उकसाया और एक बैंक के खिलाफ हमले में माओवादी प्रयासों में भाग लिया था, जहां उन्होंने कथित तौर पर बैंक रिकॉर्ड जला दिए थे.
राजीवन के वकील लाईजू वीजी ने मुझे बताया कि उनके खिलाफ सभी मामले कमजोर आरोपों पर आधारित थे. उन्होंने कहा, 'दूसरे मामले में मुख्य आरोप यह है कि राजीवन और अन्य ने पर्चे बांटे. “एफआईआर में लूट, धमकी या किसी भी तरह की चीजों का जिक्र नहीं था. बैंक मामले में केवल राजीवन ही मुकदमे का सामना कर रहे हैं. बाकी सभी जमानत पर बाहर थे. पुलिस ने कभी भी कोई हथियार बरामद नहीं किया और न ही राजीवन की माओवादी पार्टी के साथ सदस्यता साबित करने में कामयाब रही है. और अगर राजीवन ने किसी निजी विला की खिड़की के शीशे तोड़ दिए, तो यह देश विरोधी अपराध कैसे हो सकता है?”
थंकम्मा ने मुझे बताया कि राजीवन शुरू में एक मानसिक रूप से अस्थिर कैदी के साथ कन्नूर जेल में बंद थे, उसके साथ रहना मुश्किल था. "राजीवन ने मुझे बताया कि वह सो नहीं पा रहे थे क्योंकि उनकी सेल में शोर मचा रहा. अधीक्षक से शिकायत करने के बाद, राजीवन को एक अन्य राजनीतिक कैदी, चैतन्य के कमरे में भेजा गया. चैतन्य को उस वक्त बुखार था वह बहुत कमजोर हो गए थे. राजीवन ने जेल अधिकारियों से उन्हें अस्पताल ले जाने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
थंकम्मा ने मुझे बताया कि राजीवन और चैतन्य ने अधिकारियों को अस्पताल ले जाने और कोविड-19 जांच करवाने की मांग के लिए भूख हड़ताल की. थंकम्मा ने कहा, "चूंकि जांच के दो दिन बाद भी जांच की रिपोर्ट में देरी हुई, राजीवन फिर से भूख हड़ताल पर चले गए. जेल अधिकारियों ने आखिरकार जांच रिपोर्ट जारी की. इससे पता चला कि चैतन्य को कोविड है. चैतन्य को जेल के अंदर क्वारंटाइन में ले जाया गया. थंकम्मा ने मुझे बताया कि महामारी के चरम पर भी, कन्नूर में कैदियों को साबुन नहीं दिया जा रहा था और उनके पति के विरोध के बाद और ऋषिराज सिंह से बात करने के बाद, जो उस समय केरल के जेलों के महानिदेशक थे, आखिरकार साबुन दिया गया.
थंकम्मा ने कहा कि इसके अगले दिन डीजीपी से बात करने के बाद जेल अधिकारी राजीवन के कक्ष में गए. उसके बाद उन्हें राजीवन का फोन आया कि उन्हें डर है कि कहीं उन्हें दूसरी जेल में न भेज दिया जाए. जेल की कैंटीन से सामान खरीदने के लिए कैदियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली उनकी जेल पासबुक उस सुबह खत्म हो गई थी. "कॉल के बीच में, मैंने अधिकारियों द्वारा राजीवन को वियूर की तैयारी के लिए कहने की आवाज़ सुनी," थंकम्मा ने याद किया. कन्नूर जेल अधीक्षक रोमियो जॉन ने मुझे बताया कि उस दिन जेल के डीजीपी ने राजीवन को वियूर उच्च सुरक्षा जेल में भेजने का आदेश दिया था. थंकम्मा ने मुझे बताया कि उनकी जेल बदली इसलिए की गई थी क्योंकि उन्होंने साबुन की मांग की थी. सिंह के कार्यालय और व्यक्तिगत नंबर पर किए गए कॉलों को कोई जवाब नहीं मिला.
नवंबर 2012 के एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी कैदी को एक जेल से अन्य जेल में भेजने से पहले अधिकारियों को अदालत की पूर्व अनुमति लेनी चाहिए. यह स्पष्ट नहीं है कि डीजीपी ने अदालत की अनुमति मांगी थी या नहीं. लैजू ने मुझे बताया कि स्थानांतरण के लिए ऐसी किसी अनुमति के बारे में उन्हें सूचित नहीं किया गया था.
लैजू ने मुझे बताया, "जब वह कन्नूर सेंट्रल जेल में थे, तो वह सप्ताह में एक बार मुझे केस से जुड़े मामलों पर चर्चा करने के लिए बुलाते थे. वियूर जेल में स्थानांतरित होने के बाद, मैं उनसे फोन के माध्यम से संपर्क करने में असमर्थ था." थंकम्मा ने कहा कि इस कदम से उनके लिए अपने पति से मिलने जाना मुश्किल हो गया. "त्रिशूर जाने पर हमें वायनाड की तुलना में बहुत पैसा खर्च करना होगा," उन्होंने कहा. "उनसे मिलने और घर लौटने में कम से कम दो दिन लगेंगे."
पोरट्टम के संयोजक शांतोलाल ने मुझे बताया कि उन्हें वियूर हाई सिक्योरिटी जेल के अंदर राजीवन की सुरक्षा का डर है. "यह जेलों के अंदर एक सामान्य रिवाज है," उन्होंने मुझे बताया. "जो कोई भी जेल के भीतर मानवाधिकारों के उल्लंघन पर सवाल उठाता है, उस पर या तो अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है या किसी अन्य जेल में स्थानांतरित कर दिया जाता है." उन्होंने याद किया कि जब उन्हें 2016 में गिरफ्तार किया गया था, तो एक वार्डन ने उनसे कहा था कि "जेल में किसी नए कैदी का स्वागत करने के लिए, पुलिस वाले उन्हें इतनी बुरी तरह से पीटेंगे कि उन्हें आज्ञाकारी बना दें," शांतोलाल ने कहा, "यातना देने का एक आदिम तरीका है नादयादी या फ़ुटबॉल बनाना. पुलिस वाले किसी कैदी के चारों ओर एक घेरा बनाकर उसे बेरहमी से पीटते हैं. उसे बीच में खड़े होने के लिए मजबूर किया जाता है और वे उसे घेर कर फुटबॉल की तरह मारते हैं.”
रशीद ने मुझे बताया कि जब वकील अदालत में एक्टिविस्टों की बेगुनाही साबित करने में सफल हो गए, या उन्हें सफलतापूर्वक जमानत मिल गई, तब केरल पुलिस ने एक्टिविस्टों को जेल में बंद रखने के लिए उनके खिलाफ नए झूठे मामले दर्ज करने शुरू कर दिए. उन्होंने मुझे बताया कि 8 सितंबर 2020 को वह कोयंबटूर के मूल निवासी एस दानिश के जमानत आदेश के साथ वियूर उच्च सुरक्षा जेल के दरवाजे पर इंतजार कर रहे थे, जो 2018 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से केरल में कैद थे. कम से कम ग्यारह मामलों में दानिश के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. दो साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दानिश को सभी ग्यारह मामलों में जमानत मिल गई थी. वह जेल से बाहर निकलने ही वाले थे कि दानिश को फिर से केरल एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड ने 29 अगस्त 2020 को दर्ज किए गए एक ताजा मामले में जेल परिसर से ही गिरफ्तार कर लिया. इसके बारे में सारथी को सूचित नहीं किया गया था.
दानिश की मां, 52 वर्षीय अनंतजोठी ने मुझे बताया कि उनके बेटे ने बीसीए किया था और उसका राजनीतिक जीवन कोयंबटूर में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया में शुरू हुआ था. रशीद ने कहा कि बाद में दानिश अम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्कल से जुड़ गए और श्रीलंकाई सेना द्वारा तमिल नरसंहार के विरोध में सक्रिय रूप से शामिल रहे. उन्होंने कहा कि अक्टूबर 2018 में केरल के पलक्कड़ जिले में अपनी गिरफ्तार समय तक दानिश वामपंथी राजनीति के प्रति अधिक आकर्षित हो चुके थे और उन्होंने एक्टिविस्ट बनने का फैसला लिया था.
अनंतजोठी ने मुझे बताया कि उनके बेटे की गिरफ्तारी के बाद से ही केरल पुलिस ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया. “दिसंबर 2018 में, सादी वार्दी में चार और दो वर्दीधारी पुलिस वाले केरल के नंबर की गाड़ी में हमारे घर आए,” उन्होंने कहा. “वे मेरे घर में घुस गए और एक अधिकारी ने घर के हर कोने की तलाशी ली. एक अन्य अधिकारी ने धमकाते हुए हमसे राशन कार्ड मंगवाया और कार्ड की फोटो खींच ली. उन्होंने हमें एक छपे हुए कागज पर दस्तखत करने के लिए भी कहा. उन्होंने हमें धमकी दी कि अगर हमने दस्तखत करने से इनकार किया तो वे हमें जेल भेज देंगे.
जनवरी 2019 में, दानिश के 57 वर्षीय पिता सेल्वाकुमार ने विजयन को एक पत्र लिखकर पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और उनसे सुरक्षा का अनुरोध किया था. सेल्वाकुमार को पहले भी कई बार स्ट्रोक का सामना करना पड़ा है और वह 10 साल से काम नहीं कर पा रहे हैं. उनकी पत्नी एक कैंटीन में काम करती हैं. परिवार में सिर्फ वही कमाने वाली हैं.
वियूर हाई सिक्योरिटी जेल के बाहर गिरफ्तारी के बाद दानिश को कोझीकोड सत्र अदालत ले जाया गया. अदालत ने उन्हें पुलिस हिरासत में भेज दिया और पूछताछ के बाद दानिश को वापस वियूर उच्च सुरक्षा जेल भेज दिया गया. कुछ दिनों बाद, दानिश की जांच रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि उन्हें कोविड है.
रशीद ने मुझे बताया, “नई गिरफ्तारी कुछ साल पहले थमारसेरी पुलिस स्टेशन में दर्ज एक मामले से संबंधित थी. आरोप यह है कि हथियारों से लैस संदिग्ध माओवादियों का एक समूह कथित तौर पर दो घरों में गया, पर्चे बांटे और निवासियों से भोजन और पैसे की मांग की. पुलिस ने किसी को आरोपी नहीं बनाया था. माओवाद का प्रचार करने के लिए आदिवासी कॉलोनी का दौरा करने वाले किसी की भी पुलिस पहचान नहीं कर पाई. एटीएस ने मामले को अपने हाथ में लेने के तुरंत बाद दानिश का नाम आरोपी के रूप में जोड़ दिया. रशीद ने आरोप लगाया कि दानिश को जेल से रिहा न किया जाए यह तय करने के लिए यूएपीए का मामला दर्ज किया गया था.
सारथी ने मुझे बताया कि एटीएस को यह दावा करते हुए प्रथम सूचना बयान और गवाह के बारे में पूरा ब्योरा नहीं दिया गया कि मामला गोपनीय है. "कानून के हिसाब से केवल अदालत के पास गवाह को संरक्षित घोषित करने की शक्ति है," उन्होंने कहा. “लेकिन यहां इस मामले में केरल पुलिस ने पहलकदमी की ताकि यह तय हो जाए कि दानिश हमेशा के लिए जेल में रहेगा. मामले में केवल छह स्वतंत्र नागरिक गवाह हैं, परिवार से तीन गवाह और तीन पड़ोस से हैं, और लगभग 45 पुलिस गवाह हैं. नागरिक गवाहों की पहचान छिपी हुई है.”
विजयन; सुनीलकुमार; रोमियो जॉन; केरल के पुलिस महानिदेशक अनिल कांत; जेलों के महानिदेशक शेख दरवेश साहब; वियूर सेंट्रल जेल के जेल अधीक्षक आर साजन; एमके विनोदकुमार, उप महानिरीक्षक जेल (उत्तरी क्षेत्र) और एनआईए की कोच्चि शाखा को केरल की जेलों पर अवैध रूप से नंगा कर तलाशी लेने, शारीरिक यातना और निगरानी तंत्र के आरोपों पर विस्तृत प्रश्न ईमेल किए गए. किसी ने जवाब नहीं दिया.
थंकम्मा ने मुझे बताया कि स्वामी का समर्थन करने का दिखावा विजयन का पाखंड है. "उनकी सरकार यहां आदिवासियों के साथ काम करने वाले एक्टिविस्टों के साथ ठीक वैसा ही कर रही है. समाज में हो रहे अन्याय के खिलाफ प्रतिक्रिया करना कोई अपराध नहीं है. इतिहास पर नजर डालें तो बार-बार संघर्ष और प्रतिरोध आंदोलनों से ही आदिवासियों और अन्य दमितों ने तरक्की हासिल की. मुथंगा, बस्तर और नंदीग्राम में बेगुनाहों पर गोलियां सरकार ने चलाई हैं. वह असली अपराधी हैं. उन्हें यूएपीए और अन्य आतंकवाद विरोधी कानूनों में बंद करना चाहिए.''