“अम्मी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं,” 15 अक्टूबर 2019 की दोपहर दिल्ली की जंतर-मंतर रोड़ इस नारे से गूंज रही थी जब नीले रंग की सलवार-कमीज में फातिमा नफीस ने बोलने के लिए माइक अपने हाथों में लिया. वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यायल से 15 अक्टूबर 2016 से गायब छात्र नजीब अहमद की मां है. अपनी कड़क आवाज में फातिमा ने सरकार और पुलिस को ललकारा तो लंबे वक्त से जारी उस प्रदर्शन में मौजूद लोग, जो कुछ देर पहले तक थक कर जमीन और कुर्सियों पर जगह तलाश रहे थे, जोश से भर गए. फातिमा ने अपने भाषण का आगाज “सीबीआई मुर्दाबाद” कहकर किया क्योंकि साल 2018 में आज ही के दिन, नजीब के मामले में जांच को जारी रखने की फातिमा नफीस की ढेरों अपीलों के बावजूद सीबीआई ने मामले की क्लोजर रिपोर्ट दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में दाखिल कर दी थी.
फातिमा उसी दिन सुबह-सुबह अपने बेटे की गुमशुदगी की तीसरी बरसी पर आयोजित धरने में शामिल होने बदायूं से आईं थीं.
इस प्रदर्शन में पहली बार फातिमा से मेरी सीधी मुलाकात हुई थी. इससे पहले मैंने उन्हें सिर्फ टीवी और अखबारों में देखा था. नजीब के लापता होने के 9 दिन बाद हुए एक प्रदर्शन की तस्वीर में फातिमा के हाथों में नजीब का एक पोस्टर था, उनका मुंह रुआसा था और वह किसी का हाथ थाम कर बड़ी मुश्किल से चलती लग रहीं थीं. 23 दिन बाद इंडिया गेट पर हुए एक अन्य प्रदर्शन की फोटो में दो महिला पुलिसकर्मी रोती फातिमा को घसीट रहीं थीं. फिर 2017 में नजीब पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म “अम्मी” में जब मैंने उन्हें देखा था तो मेरे सामने उनकी तस्वीर एक ऐसी मां की बनी थी जो अपने लापता बेटे के लिए बेचैन है और उसे ढूंढने की परेशानियों जूझ रही है.
लेकिन 15 अक्टूबर 2019 के रोज, जिस तरह से वह मंच से सरकार को ललकार रही थीं, पुलिस और प्रशासन को कायर बोल रही थीं, प्रदर्शन की अगुवाई कर रही थीं और साथ ही अपने साथियों के प्रति स्नेह एवं सम्मान दिखा रही थीं, वह बदायूं जैसे पिछड़े इलाके की औरत के बारे में मेरे स्टीरियोटाइप से बिल्कुल उलट था. बाद में इस बारे में उन्होंने मुझसे कहा, “जब किसी की कोई अनमोल चीज गुम हो जाती है तो वह उसे ढूंढने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, नजीब मेरी वही अनमोल चीज है”.
जंतर-मंतर पर हुए उस प्रदर्शन में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, लेखिका अरुंधति रॉय, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश, जिनकी हत्या 5 सितंबर 2017 को हिंदुत्ववादियों ने गोली मार कर की थी, की बहन कविता लंकेश, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद, बसपा सांसद दानिश अली और हिंदुओं की भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार दिए गए तबरेज अंसारी की बीवी शाइस्ता परवीन भी शामिल थीं. दिल्ली विश्वविद्याल, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़ विश्वविद्यालय से वहां आए ढेरों युवा “एबीवीपी हाय-हाय “सीबीआई होश में आओ”, “दिल्ली पुलिस नजीब को ढूंढ कर लाओ”, “गोदी मीडिया हाय-हाय” जैसे नारे लगा रहे थे.
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