आदित्यनाथ के पूर्व सहयोगी का दावा, मुख्यमंत्री के दबाव में रद्द किया चुनाव नामांकन

सुनील सिंह “हिंदुस्तान निर्माण दल” के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले थे. इस दल की स्थापना इस साल फरवरी में विश्व हिंदू परिषद के पूर्व नेता प्रवीण तोगड़िया ने की थी. सौजन्य : कमलेश कश्यप

29 अप्रैल की सुबह सुनील सिंह ने जारी लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की गोरखपुर सीट से अपना नामांकन भरने की कोशिश की. सुनील सिंह “हिंदुस्तान निर्माण दल” के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले थे. इस दल की स्थापना इस साल फरवरी में विश्व हिंदू परिषद के पूर्व नेता प्रवीण तोगड़िया ने की थी. अगले दिन जिला मजिस्ट्रेट और गोरखपुर के निर्वाचन अधिकारी (रिटर्निंग ऑफिसर) के. विजेंद्र पांडियन ने सिंह के नामांकन को तकनीकी कारणों से खारिज कर दिया. सिंह का कहना है कि उनका नामांकन भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इशारों पर खारिज किया गया हैं.

सिंह पहले आदित्यनाथ के सबसे विश्वसनीय सहयोगी माने जाते थे और वह हिंदू युवा वाहिनी के राज्य अध्यक्ष रह चुके हैं. हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना आदित्यनाथ ने 2002 में की थी. सिंह 1998 से 2017 तक आदित्यनाथ से जुड़े रहे लेकिन जब आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों को 2017 के राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी का टिकट देने से इनकार कर दिया तो वह आदित्यनाथ से अलग हो गए. सिंह ने मुझे बताया, “मुख्यमंत्री को डर था कि मैं उनके हिंदू वोट बैंक पर सेंध लगा दूंगा इसलिए उन्होंने निर्वाचन अधिकारी से कहकर मेरा नामांकन रद्द करवा दिया.”

तोगड़िया और सिंह संघ परिवार की करीबी थे लेकिन पिछले कुछ सालों में दोनों आरएसएस के नेतृत्व से खफा चल रहे हैं. तोगड़िया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर “हिंदुत्व के लिए कुछ न करने” और “मुसलमानों का तुष्टीकरण करने” का आरोप लगाया है. वहीं सिंह आदित्यनाथ के खिलाफ एक आपराधिक मामले में गवाह बन गए हैं. यदि सिंह चुनाव लड़ते तो उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के गठबंधन उम्मीदवार राम बाउल निषाद और लोकप्रिय भोजपुरी अभिनेता और गायक एवं बीजेपी के उम्मीदवार रवि किशन शुक्ला से होता. सिंह का मानना है कि उनका नामांकन इसलिए रद्द किया गया क्योंकि आदित्यनाथ उन से “डर” गए थे क्योंकि वह “उन तरकीबों को जानते हैं जिनकी मदद से आदित्यनाथ ने चुनाव जीता था और मैं उन तरकीबों को उनको हराने के लिए इस्तेमाल कर सकता था.”

सिंह के अनुसार हिंदू युवा वाहिनी के बढ़ते प्रभाव के कारण ही आदित्यनाथ यहां तक पहुंच सके. 1998 में आदित्यनाथ ने गोरखपुर से बीजेपी के टिकट पर 20 हजार के आसपास मतों से चुनाव जीता था. लेकिन 1999 के लोकसभा चुनाव में जीत का अंतर घटकर लगभग 7000 हो गया था. सिंह ने बताया कि इसी चुनाव के बाद आदित्यनाथ को संघ परिवार से स्वतंत्र ताकत का निर्माण करने का विचार आया, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि “आरएसएस के सदस्य उनका पूरी तरह से समर्थन नहीं कर रहे हैं”.

सिंह ने मुझसे बताया कि हिंदू युवा वाहिनी निर्माण के बाद गोरखपुर में आदित्यनाथ की ताकत बढ़ गई है. 1999 में आदित्यनाथ को एहसास हुआ कि सिर्फ राजनीति करना ही काफी नहीं है बल्कि उन्हें ध्रुवीकरण भी करना चाहिए. सिंह बताते हैं कि इसके बाद आदित्यनाथ ने हिंदुत्व और विकास के बारे में बोलना शुरू किया और बताने लगे कि “कैसे एक की अनुपस्थिति में दूसरा मुमकिन नहीं है”. इसके बाद के प्रत्येक चुनाव में आदित्यनाथ की जीत का अंतर बढ़ता चला गया. यहां तक कि 2004 और 2009 में बीजेपी की हार के बावजूद आदित्यनाथ ने एक लाख 40 हजार और 2 लाख 20 हजार मतों से चुनाव जीता था. 2014 में, जिस साल बीजेपी सत्ता में आई, आदित्यनाथ की जीत का अंतर 3 लाख से अधिक था.

हिंदू युवा वाहिनी ने आदित्यनाथ को हिंदुत्व की वह ताकत दी जो पूर्वी उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण के काम आई. राज्य में संगठन के अध्यक्ष के रूप में सिंह ने इस काम में सहयोग किया. जनवरी 2007 में आदित्यनाथ ने भड़काऊ भाषण दिया जिसके बाद शहर में दंगे हुए. इसके बाद आदित्यनाथ और सिंह को गिरफ्तार कर हिंदू युवा वाहिनी के एक दर्जन से अधिक सदस्यों को भी हिरासत में ले गए. पिछले साल राज्य सरकार ने इस मामले में मुख्यमंत्री पर कार्यवाही करने की अनुमति नहीं दी. राज्य सरकार के इस कदम के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में मामला चल रहा है.

सिंह का कहना है कि हिंदू युवा वाहिनी ने मुख्यमंत्री को राजनीतिक फायदा दिया लेकिन उन्होंने युवा वाहिनी के सदस्यों की चुनावी महत्वाकांक्षा को पूरा नहीं होने दिया. 2017 के विधानसभा चुनावों में सिंह समेत हिंदू युवा वाहिनी के कुछ सदस्यों ने आदित्यनाथ से मांग की थी कि वह उन्हें बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने दें. सिंह बताते हैं कि, “आदित्यनाथ के इनकार करने के बाद हम लोगों ने विद्रोह कर दिया और उनसे अलग हो गए. सिंह का कहना है कि आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिए जाने के बाद से ही हिंदू युवा वाहिनी का काम ठप हो गया.

इसके बाद के सालों में आदित्यनाथ और सिंह के बीच की दूरी बढ़ती चली गई. सिंह कहते हैं, “महाराज को मुझसे डर लगता है और पिछले एक साल से वह मेरे खिलाफ प्रशासन का इस्तेमाल कर रहे हैं”. इस साल मई में आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी के विद्रोही सदस्यों के साथ मिलकर सिंह ने हिंदू युवा वाहिनी (भारत) का गठन कर लिया. दो महीने बाद सिंह और हिंदू युवा वाहिनी के विद्रोही सदस्यों को एक मामूली झगड़े के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और सिंह पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा दिया गया. सिंह दावा करते हैं कि जेल में उन्हें यातना दी गई. सितंबर 2018 में सिंह ने जेल से कारवां को बताया था कि 2007 में गोरखपुर में हुए दंगों की वजह आदित्यनाथ का भड़काऊ भाषण था.

सिंह का दावा है कि यदि उन्हें गोरखपुर से चुनाव लड़ने दिया जाता तो बीजेपी को घाटा होता. जब सिंह ने पांडियान के सामने पहली बार नामांकन भरना चाहा तो उन्हें बताया गया कि उन्होंने कुछ कॉलम रिक्त छोड़े हैं. सुनील के भाई और वकील संजीव सिंह का कहना है कि पांडियान ने उन्हें 4 घंटे के भीतर दोबारा नामांकन पत्र जमा करने को कहा था. संजीव के अनुसार, दूसरे दिन पांडियान ने उनसे कहा कि सिंह ने दस्तावेजों में उल्लेखित स्थानों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं इसलिए उनका नामांकन खारिज कर दिया गया है.

जब मैंने पांडियान से बात की तो उन्होंने मुझे बताया, “नियम स्पष्ट कहता है कि कोई भी कॉलम रिक्त नहीं रह सकता.” जब मैंने पांडियान से जानना चाहा कि वह सिंह के उस आरोप को कैसे देखते हैं जिसमें सिंह ने दावा किया है कि उनका नामांकन राजनीतिक दबाव के चलते रद्द किया गया है तो पांडियान ने मुझसे कहा, “मुझे राजनीति के बारे में कुछ नहीं पता. मैंने सिर्फ चुनाव प्रक्रिया का पालन किया था”. पांडियान ने यह भी कहा कि नामांकन पत्र भरे जाने के बाद सिंह ने उनके साथ बदतमीजी की थी. “वह चिल्ला रहे थे और गालियां दे रहे थे और यहां का माहौल खराब कर रहे थे”. संजीव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में नामांकन खारिज किए जाने के खिलाफ याचिका दायर की. 9 मई को अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. पांडियान कहते हैं, “कोर्ट के आदेश से साफ हो गया है कि मैंने सही प्रक्रिया का पालन किया था”.


तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.