9 फरवरी को गोवा के कैथोलिक चर्च के आर्चबिशप ने नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के खिलाफ वक्तव्य जारी कर सरकार से इस कानून को “बिना शर्त फौरन वापस लेने और एनआरसी और एनआरपी को लागू न करने” की अपील की. अब लग रहा है कि चर्च की इस घोषणा का उन 8 कैथोलिक विधायकों के राजनीतिक भाग्य पर प्रतिकूल असर पड़ा है जो पिछले साल जुलाई में कांग्रेस को छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. चर्च की अपील के बाद इन विधायकों के कैथोलिक मतदाताओं के समर्थन में कमी आ रही है. राज्य में 26 फीसदी कैथोलिक मतदाता हैं. इसके अलावा सरकार से सीधी टक्कर ले रहा चर्च भी इन विधायकों का समर्थन करता नहीं दिख रहा है.
जिन बीजेपी सदस्यों से मैंने बातचीत की उन्होंने हालात पर अपनी चिंता जताई. गोवा बीजेपी के प्रचार टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि इसका सबसे प्रतिकूल असर उपरोक्त 8 विधायकों पर पड़ सकता है. वैसे तो अन्य कैथोलिक विधायक भी हैं लेकिन मौविन गोडिन्हो जैसे अन्य कैथोलिक विधायकों को घटनाक्रम के इस विकास से शायद फर्क न पड़े. गोडिन्हो गोवा के यातायात और पंचायत राज सहित पांच पोर्टफोलियो संभाल रहे हैं लेकिन वह बीजेपी के टिकट पर विधायक बने हैं. प्रचार टीम के वरिष्ठ सदस्य ने बताया, “इन नए विधायकों ने मुझे बताया है कि अल्पसंख्यक मतदाताओं को मनाना मुश्किल होगा. यही सच्चाई है. एक विधायक, जो अपनी पहचान नहीं बताना चाहते, को अपने जीतनी की संभावना में शक होने लगा है. उन्होंने कहा, “मेरे निर्वाचन क्षेत्र में 1000 के आसपास मुस्लिम मतदाता भी हैं और मुझे उनके वोट पक्का नहीं मिलेंगे. मेरे कैथोलिक वोटर भी छिटक जाएंगे और अगर मैं उन्हें दूसरे तरीकों से मदद नहीं कर पाया तो वे मेरा साथ नहीं देंगे. और निहायत ही निजी समर्थकों के अलवा कांग्रेस के वोट तो मुझे बिलकुल नहीं मिलेंगे. हमारे लिए सांत्वना इतनी भर है कि अब भी हमारे पास दो साल बचे हैं और इसमें कुछ भरपाई हो सकती है.” कुछ विधायक अपने चुनावी भविष्य को लेकर परेशान हो गए हैं. सांता क्रूज के बीजेपी विधायक एंटोनियो फर्नांडिस कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने वाले 8 विधायकों में से एक हैं. उन्होंने मुझे बताया, “मैं जमीनी हकीकत पर नजर रख रहा हूं और अगर मुझे लगा कि मैं चुनाव जीत सकता हूं तभी चुनाव लड़ूंगा अन्यथा नहीं लड़ूंगा.”
मध्य गोवा के अर्ध शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में पसरी मायूसी साफ दिखाई देती है. गांव के गिरजाघर में इकट्ठा अनुयाइयों में पूर्व के हर्षोल्लास का स्थान हताशा ने ले लिया है. इस क्षेत्र के विधायक ने कांग्रेज पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था लेकिन बाद में बीजेपी का दामन पकड़ लिया. गोवा में सामुदायिक कार्यों और चर्च की गतिविधियों में जिस तरह की भूमिका विधायकों की होती है, उसकी पृष्ठभूमि में 8 विधायकों के बीजेपी में चले जाने को समझा जा सकता है. गोवा में किसी भी विधायक के लिए उसकी सबसे बड़ी ताकत उसकी नौकरी दिला पाने की क्षमता होती है. इसके बाद विधायकों के दूसरे कामों में गांवों में मेलों और फुटबॉल मैचों का आयोजन करना और गांवों के सामाजिक कामों के लिए चंदा देना होता है. जाहिर है कि सत्ताधारी पार्टियों के विधायकों के लिए पैसा उपलब्ध कराना आसान होता है और यही विवशता विधायकों को पार्टी या विचारधारा से बांधे नहीं रख पाती. एक विधायक ने मुझे बताया, “हममें से कई बीजेपी में इसलिए शामिल हुए थे क्योंकि कांग्रेस के विधायकों के काम नहीं हो रहे थे.”
यह सच है कि बीजेपी में शामिल होने से ये विधायक नौकरियां दिला पा रहे हैं और पैसों तक इनकी पहुंच भी बनी है लेकिन चर्च के सीएए के खिलाफ हो जाने से ये लोग दुविधा में पड़ गए हैं. 24 जनवरी को आर्चडाइअसीस ऑफ गोवा की सामाजिक न्याय और अमन परिषद ने सीएए के खिलाफ रैली निकाली. इसके बाद गोवा के आर्चबिशप ने सीएए को वापस लेने की मांग की. डाइअसीस के सामाजिक संपर्क केंद्र ने 9 फरवरी को वक्तव्य निकाल कर कहा है कि “सीएए में धर्म का इस्तेमाल देश के धर्मनिर्पेक्ष तानेबाने के खिलाफ है.” सीएए की भेदभाव वाली प्रकृति ने कैथोलिक समुदाय को इस कानून के खिलाफ कर दिया है और इसका असर बीजेपी पर भी पड़ा है. बीजेपी में शामिल होने वाले विधायक भी इस बात को मानते हैं और उन्होंने मुझे बताया कि अपने मतदाताओं के साथ उनके संबंध बदल गए हैं.
टकराहट तीव्र होती जा रही है. कैथोलिक चर्च के बयान को आर्चबिशप का ही नहीं संपूर्ण कैथोलिक सामज का वक्तव्य माना जा रहा जो राज्य की राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इसका एक मतलब यह है कि चर्च के नेतृत्व को यह विश्वास है कि उनका स्टैंड अधिकांश कैथोलिकों की भावना से अलग नहीं है. पादरी और सीएसजेपी के कार्यकारी सचिव सावियो फर्नांडिस ने मुझे बताया, “लोगों को अपने-अपने विधायकों से सवाल करने के लिए कहने की प्रक्रिया चालू है. लेकिन लोगों ने सीएए और अन्य मामलों पर अपने विचार साफ कर दिए हैं.” सीएसजेपी ने कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं से सीएए और एनआरसी पर अपने-अपने विधायकों से सवाल पूछने की प्रक्रिया चालू की है. इससे लगता है कि टकराहट और बढ़ेगी. सावियो ले बताया कि उन्हें नहीं पता कि चर्च के स्टैंड और जनता के विरोध से 2022 के विधानसभा चुनावों पर कैसा असर पड़ेगा लेकिन “हम यह दावे के साथ कह सकते हैं कि लोगों ने इस मामले पर अपना स्टैंड साफ कर दिया है.”
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