मोदी के “धोखे” से नाराज गुजरात के सिख किसानों ने कहा मोदी ने जिन गुजराती सिखों से मुलाकात की वे बीजेपी के सदस्य

23 दिसंबर 2020
15 दिसंबर को गुजरात के कच्छ के 15 सिख किसानों के साथ बैठक करते मोदी. वहां के किसानों का कहना है कि ये किसान असल में बीजेपी के सदस्य हैं.
पीआईबी
15 दिसंबर को गुजरात के कच्छ के 15 सिख किसानों के साथ बैठक करते मोदी. वहां के किसानों का कहना है कि ये किसान असल में बीजेपी के सदस्य हैं.
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केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जब हजारों किसान दिल्ली सीमा पर इकट्ठा होकर आंदोलन करने लगे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने सिखों से अपने संबंधों का प्रचार आरंभ कर दिया. इसके तहत 15 दिसंबर को मोदी ने गुजरात के कच्छ के 15 सिख किसानों के साथ बैठक की. गुजरात के सिख किसानों का कहना है कि इस बैठक का कोई मतलब नहीं था क्योंकि जिन लोगों से प्रधानमंत्री मिले, वे बीजेपी के कच्छ जोन के महासचिव जुगराज सिंह राजू और उनके साथी थे. जुगराज सिंह राजू होटल व्यापारी हैं.

कच्छ के सिख किसानों के नेता सुरिंदर सिंह भुल्लर ने मुझे बताया,“जब भी नरेन्द्र मोदी को सिख किसानों का समर्थन दिखाना होता है, जुगराज सिंह राजू और उनके साथी सिख चेहरा बन कर सामने आ जाते हैं और ऐसे दिखाया जाता है कि मानो गुजरात में बसे सिख किसान मोदी सरकार से बहुत खुश हैं.”

करीब सात साल पहले 24 सितंबर 2013 को मैंने गुजरात में रहने वाले सिख किसानों की जमीनों के मसले पर पंजाब के दैनिक अखबार “देशसेवक” में स्टोरी की थी. स्टोरी के छपने के बाद तत्कालीन अकाली सरकार ने इन्हीं लोगों को गुजराती सिख किसान बताकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह बताने की कोशिश की थी कि मीडिया में आ रही खबरें निराधार हैं और गुजरात के सिख किसान मोदी सरकार से खुश हैं.

गुजरात के सिख किसानों की मुसीबत उस नीति के कारण है जिसके चलते उनके ऊपर जमीन का अधिकार खो देने का खतरा मंडरा रहा है. इन किसानों ने अपनी तकलीफें सामने रखी हैं. इनका कहना है कि मोदी ने न सिर्फ उन्हें बर्बाद किया है बल्कि बीजेपी के स्थानीय नेता उनके घरों पर हमले करवाते रहे हैं और यहां से चले जाने की धमकियां देते हैं. अब ये किसान दिल्ली बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में बड़े स्तर पर शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं.

सन 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सैन्य पृष्टभूमि के 5000 के करीब पंजाबी किसानों को कच्छ-भुज के इलाके में बंजर जमीनें बहुत सस्ते दामों पर अलॉट की थीं. इन किसानों ने अपनी मेहनत से बंजर जमीनों को उपजाऊ बनाया, यहां ट्यूबवेल लगाए और फिर अमेरिकी कपास की बढ़िया फसल होने लगी. इसके बाद यहां फैक्टरियां भी लगाई गईं. 1972 में कांग्रेस सरकार ने 1958 के बॉम्बे अभिधृति और कृषि भूमि (विदर्भ क्षेत्र और कच्छ क्षेत्र) अधिनियम (जो कि गैर-काश्तकारों को जमीन खरीदने से रोकता है) के आधार पर एक सर्कुलर जारी कर नियम बना दिया कि गुजरात के बाहर के लोग गुजरात में जमीन के मालिक नहीं बन सकते.

शिव इंदर सिंह स्वतंत्र पत्रकार और पंजाबी वेबसाइट सूही सवेर के मुख्य संपादक हैं.

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