गुरदासपुर में बीआरओ के जवान की लिंचिंग के बाद हिंदू-सिख को लड़ाने का खेल

दीपक सिंह अपनी बीवी दीपक माला और बेटी के साथ. गुरदासपुर के लालसिंह कुल्ली वाले गुरुद्वारा परिसर में 30 जून और 1 जुलाई की मध्यरात्री में दीपक के साथ हुई मारपीट के बाद उनकी मौत हो गई.
सौजन्य : दीपक माला
दीपक सिंह अपनी बीवी दीपक माला और बेटी के साथ. गुरदासपुर के लालसिंह कुल्ली वाले गुरुद्वारा परिसर में 30 जून और 1 जुलाई की मध्यरात्री में दीपक के साथ हुई मारपीट के बाद उनकी मौत हो गई.
सौजन्य : दीपक माला

30 जून और 1 जुलाई की दरमियानी रात में पंजाब के गुरदासपुर स्थित गुरुद्वारा लालसिंह कुल्ली वाले के परिसर के भीतर जीआरईएफ (बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन) के जवान दीपक सिंह की लिंचिंग कर हत्या कर दी गई.

दीपक सिंह अरुणाचल प्रदेश में पोस्टेड थे और उनके पिता ओंकार सिंह जल आपूर्ति विभाग के अवकाश प्राप्त जूनियर इंजीनियर हैं. बेटे के साथ हुए जघन्य अपराध के बारे में जिस वक्त मैंने उनसे फोन पर बात की तब वह गुरदासपुर के सिविल अस्पताल में अपने बेटे का मृत्यु प्रमाण पत्र और पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेने आए थे. लेकिन उस दिन अस्पताल के डॉक्टर के बेटे का जन्मदिन था और वह छुट्टी पर था. उन्होंने बताया, “वह (डॉक्टर) मेरा फोन नहीं उठा रहे हैं और यहां लोग बता रहे हैं कि वह कल आएंगे. मैं यहां से 30 किलोमीटर दूर रहता हूं और रात को आना पड़ता है. मैं 69 साल का हूं और इस उम्र में बेटे को खो देने का दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकता. हो सकता है जब आप मुझे अगली बार मुझे फोन करें तो मैं जिंदा ही न रहूं.” फिर खुद को संभालते हुए उन्होंने कहा, “हे भगवान जीवन कितना अनिश्चित है. मेरे बेटे की 9 साल की एक बेटी है और मेरी बहू प्राइवेट स्कूल में मामूली तनख्वाह पर पढ़ाती है. मुझे नहीं पता कि मेरे बाद उनका क्या होगा. हमारे पास बस दो एकड़ जमीन है और अब मैं किसी पर विश्वास नहीं करता. हम सभी धर्मों का सम्मान करते थे. दीपक परिवार के साथ स्वर्ण मंदिर जाया करता था. उसने हत्यारों को बताया होगा कि वह कौन है. वे उसके साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? अब मुझे बैक डेट पर मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए एक नया आवेदन लिखना है.” ऐसा कहते कहते वह रोने लगे.

दीपक की पत्नी दीपक माला जब मुझसे फोन पर बात कर रही थीं तो बेहद टूटी हुई सी लग रही थीं. उन्होंने कहा, “मेरा मानवता पर से विश्वास उठ गया है. मैं नहीं मानती कि अच्छा होना अच्छी बात है. मेरे पति बहुत भले इंसान थे. वह सबसे बहुत विनम्रता से बात करते थे. उनकी पूरी तनख्वाह दूसरों की मदद करने या लोगों की बेटियों की शादी में खर्च हो जाया करती. ऑर्थोडॉक्स राजपूत परिवार से आते थे लेकिन वह बहुत उदार थे. क्या कोई यकीन करेगा कि गांव में रहते हुए भी हमारी केवल एक ही बेटी है? हम लोग ने कभी दूसरे बच्चे के बारे में सोचा नहीं. हम अपनी बेटी को ही अपना बेटा मानते थे. वह बेटी के सभी दोस्तों को खिलौने लाकर देते थे, उन्हें झूला झुलाने ले जाते और मिठाइयां लेकर देते. वह इतने दान कर देते थे कि कई बार मेरे ससुर को हमारी पैसों से मदद करनी पड़ती थी. उनका भगवान पर अटूट विश्वास था और वह मुझे दरबार साहिब के दर्शन के लिए ले जाया करते थे. उन्होंने आईटीआई की परीक्षा मेरिट में पास की थी और उनकी दो बहनें टॉपर रही हैं एक ने एमटेक किया है और दूसरी ब्रिटेन में रहती है. मैंने सुना है कि जिन लोगों ने उनके साथ यह किया है वे बहुत रसूखदार लोग थे और इसलिए उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है. आप बस इतना कर दीजिए कि दोषियों को सजा मिल जाए.”

उन्होंने मुझे दीपक की यूनिट से आए वे पत्र भी दिखाएं जो पुलिस और जिला प्रशासन के नाम थे. उनमें दीपक के मामले की स्टेटस रिपोर्ट और दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग की गई थी. माला ने बताया कि दीपक ने 30 जून को रात 9.15 पर अमृतसर से गुरदासपुर जाने वाली बस की टिकट लेते वक्त उनसे बात की थी. उन्होंने बताया, “हमने कुछ 37 सेकंड ही बात की. वह छह महीनों बाद घर आने के लिए बेताब थे.”

पिता ओंकार सिंह ने बताया कि अमृतसर में लैंड करने के बाद दीपक बस से घर आने वाले थे. बस ड्राइवर में उन्हें गलत जगह पर उतार दिया था और जैसा कि पंजाब की संस्कृति है वह गुरुद्वारा चला गया. उन्होंने कहा, “आधी रात में गुरुद्वारा से ज्यादा सुरक्षित स्थान क्या हो सकता है?”

जतिंदर कौर तुड़ वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले दो दशकों से इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और डेक्कन क्रॉनिकल सहित विभिन्न राष्ट्रीय अखबारों में लिख रही हैं.

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