सवालों के घेरे में हल्द्वानी अतिक्रमण के भारतीय रेलवे के दावे

18 जनवरी 2023
नोटिस जारी करते हुए विवादित भूमि का आकार 29 से बढ़ा कर 78 एकड़ कर दिया गया जबकि आधिकारिक रिकॉर्ड में कहीं भी विवादित भूमि 78 एकड़ नहीं है. रेलवे का दावा है कि उसके पास 29 एकड़ जमीन है लेकिन उसने 2016 में 78 एकड़ में सीमांकन और खंभे लगा दिए थे.
कारवां के लिए पारिजात
नोटिस जारी करते हुए विवादित भूमि का आकार 29 से बढ़ा कर 78 एकड़ कर दिया गया जबकि आधिकारिक रिकॉर्ड में कहीं भी विवादित भूमि 78 एकड़ नहीं है. रेलवे का दावा है कि उसके पास 29 एकड़ जमीन है लेकिन उसने 2016 में 78 एकड़ में सीमांकन और खंभे लगा दिए थे.
कारवां के लिए पारिजात

5 जनवरी 2023 की सर्द सुबह से ही उत्तराखंड के हल्द्वानी के बनभूलपुरा और आस-पड़ोस के लोग गली नंबर 17 में जमा थे. सुप्रीम कोर्ट से आस लगाए उस माहौल में बैचेनी तारी थी. अगर अदालत से फौरन कोई राहत उन्हें नहीं मिलती तो 10 जनवरी का दिन दशकों से बसे यहां के निवासियों की बेदखली के लिए मुकर्रर था. चेहरों की मायूसी यह भी बता रही थी कि सुप्रीम कोर्ट के अलावा फिलहाल अभी उनके पास अपने घरों को बचाने की कोई दूसरी कारगर रणनीति नहीं थी. 4365 परिवारों की लगभग 50000 आबादी फौरन घर से बेघर हो जाने के बीच झूल रही थी, जिनमें से करीब 35000 लोगों के पास वोटर आईडी कार्ड हैं. गली के मुहाने पर जमे मजमे में एक इस्लामिक विद्वान तसल्लीबख्श अफ्लाकी तालीम का कायदा बुलंद आवाज में बता रहे थे.

उस दिन सुप्रीम कोर्ट ने सात दिन में लोगों को हटाने के नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देश पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सात दिन में 50000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है.

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने 20 दिसंबर 2022 को उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा पारित फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिकाओं के एक बैच में उत्तराखंड राज्य और रेलवे को नोटिस जारी करते हुए यह आदेश पारित किया और अदालत ने मामले को 7 फरवरी, 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया. अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और रेलवे को व्यावहारिक समाधान खोजने के लिए कहा.

बीती 20 दिसंबर 2022 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से कथित अतिक्रमणकारियों की बेदखली का आदेश देते हुए कहा था, "हम लंबे विचार-विमर्श के बाद आखिरकार इस नतीजे पर पहुंचे कि हल्द्वानी के बनभूलपुरा के निवासियों और अनुबंध कर्ताओं का, जिस जमीन पर वे रह रहे हैं, कानूनी अधिकार नहीं बनता है. इसको पूरी ताकत से खाली कराया जाना चाहिए."

इसके साथ ही अदालत के इस फैसले को अंजाम देने के लिए सचिव सहित पुलिस प्रशासन, जिलाधिकारी और उनके तथा रेलवे के मातहत के अधिकारियों को हिदायत देते हुए सुनिश्चित करने के लिए कहा कि "अदालत के हुक्म की तामील के लिए फौरन रेलवे की अनाधिकृत कब्जे वाली जमीन को खाली कराया जाए. हुक्म की तामील के लिए स्थानीय पुलिस बल साथ ही रेलवे सुरक्षा बल का इस्तेमाल किया जाए और अगर जनता की ओर से इस फैसले को लागू करने पर किसी तरह का प्रतिरोध होता है तो जरूरत मुताबिक अर्द्ध सैनिक बलों को भी लगाया जा सकता है."

पारिजात कारवां में अनुवादक हैं.

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