11 दिसंबर तक, संसद के दोनों सदनों ने 2019 के विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक को पारित कर दिया. सीएबी के तहत 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान या बांग्लादेश से भारत में आए छह समुदायों- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई- के लोगों को अवैध आव्रजक नहीं माना जाएगा. यह बिल उनके लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की आवश्यकताओं को आसान बनाता है. इन देशों के अवैध मुस्लिम प्रवासी बिल के तहत नागरिकता पाने के हकदार नहीं होंगे, और अवैध अप्रवासी माने जाएंगे.
सीएबी पर टिप्पणी करते हुए पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह संभवतः अवैध प्रवासियों की पहचान करने और उन्हें निकाल बाहर करने के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को राष्ट्रव्यापी स्तर पर लागू करने का शुरुआती कदम है. चूंकि गैर-मुस्लिम अवैध प्रवासी सीएबी के माध्यम से भारतीय नागरिकता पाने के हकदार नहीं होंगे, इसलिए यह प्रभावी रूप से केवल मुसलमानों को देश से बाहर करेगा.
10 दिसंबर को लोकसभा द्वारा बिल पास किए जाने के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने ट्विटर पर एक घोषणा की. "अगर सीएबी पारित किया जाता है, तो यह मेरी सिविल नाफरमानी है : मैं आधिकारिक तौर पर मुस्लिम धर्म को अपना लूंगा. फिर मैं एनआरसी के सामने कोई भी दस्तावेज जमा करने से इंकार कर दूंगा. आखिर मैं अपने लिए भी उसी सजा की मांग करूंगा जो दस्तावेज जमा न कर पाने वाले किसी मुस्लिम को मिलती यानी डिटेंसन सेंटर और नागरिकता खत्म करने की. इस सिविल नाफरमानी में शामिल हों.”
बाद में उसी दिन, शिकागो विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र अभिमन्यु चंद्रा ने नई दिल्ली में मंदर से मुलाकात की. उन्होंने मंदर की घोषणा, उसके व्यापक समर्थन की संभावना, और प्रतिक्रिया में उन्हें मिले नफरत भरे संदेशों की यौनिक प्रकृति की चर्चा की. मंदर का मानना है कि सीएबी न केवल "स्वतंत्रता संग्राम या संविधान के केंद्रीय मूल्यों" को बल्कि भारतीय सभ्यता की विरासत को भी ध्वस्त करता है. उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी "सभ्यता है जो विभिन्न धर्मों और पहचानों के लोगों का सहजता से स्वागत करती है. मुझे उम्मीद है कि संकट के इस क्षण में पुरानी सभ्यता अपनी विरासत का दावा करेगी."
अभिमन्यु चंद्रा: सिविल नाफरमानी की अवधारणा को आप किस तरह से कारगर समझते हैं? क्या यह उस समस्या का समाधान है जिसे आप संबोधित करने की कोशिश कर रहे हैं?
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