हरियाणा के पानीपत शहर में मझौले आकार के उद्यम, पैसा वर्थ के प्रबंध साझेदार पंकज गुप्ता एक परेशान शख्स हैं. अक्टूबर से जनवरी त्यौहारों का सीजन है. दशहरा, दिवाली, क्रिसमस और नया साल इसी बीच आते हैं. आमतौर पर पंकज के लिए यह साल का सबसे व्यस्त समय होता है. पैसा वर्थ की कुल सालाना बिक्री का अस्सी फीसदी इन्हीं चार महीनों में होता है. कंपनी बिस्तर की चादरें, कालीन और पायदान बेचती है. पिछले साल त्यौहार के सीजन में इस कंपनी ने लगभग बीस करोड़ रुपए की बिक्री की. लेकिन इस साल ऐसा नहीं है. उन्होंने अपने लैपटॉप पर आए बिक्री के आर्डरों की तरफ इशारा करते हुए मुझे बताया कि व्यापार में 60 फीसदी की गिरावट आई है. “अगर हम पांच करोड़ रुपए का सामान बेच लेते हैं तो खुशकिस्मत होंगे.” इस साल कंपनी को अपने लगभग अस्सी प्रतिशत कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी. गुप्ता को यकीन नहीं है कि वह बाकी बचे 70 कर्मचारियों को इस साल दिवाली बोनस दे पाएंगे. अपने वातानुकूलित ऑफिस में बैठे सिगरेट के लंबे-लंबे कश खींचते हुए गुप्ता ने कहा, "बिजनेस कम हो रहा है, मेरी कमाई कम हो रही है और ब्लड प्रेशर बढ़ रहा है."
शहर के दूसरी ओर, श्याम सिंह मलिक ने भी गुप्ता की चिंताओं पर अपनी हां में हां मिलाई. मलिक एक मझोले आकार का उद्यम चलाते हैं जो कपड़ा बुनने वाली मशीनरी का निर्माण करता है. उनके व्यापार के बुनियादी ढांचे में दो विनिर्माण इकाइयां, दो स्पेयर-पार्ट्स ट्रेडिंग इकाइयां और एक लोहा ढलाई कारखाना शामिल हैं. मलिक ने मुझे बताया कि उनके कारोबार में सत्तर प्रतिशत की गिरावट आई है. उनके व्यवसाय में मुख्यतः "नोटबंदी और माल एवं सेवा कर" का काफी ज्यादा असर पड़ा है. उन्होंने कहा, “जीएसटी की वजह से बाजार में पैसा नहीं है और हमें पूंजी जुटाने में मुश्किल हो रही है.”
पानीपत से बीस किलोमीटर दूर, समालखा शहर के कुलदीप आर्य की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. आर्य नट—बोल्ट बनाने का काम करते हैं. वे 1994 से इस धंधे में हैं. उन्होंने कहा कि इस साल, उनका व्यवसाय सबसे खराब मंदी झेल रहा है. "ऐसी मंदी कभी नहीं देखी." आर्य ने मुझे बताया कि जीएसटी से पहले, "बैंक में मेरी कंपनी की क्रेडिट सीमा 30 लाख रुपए थी," लेकिन मुझे इसे 1.1 करोड़ रुपए तक बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि बाजार में पैसों की कमी थी. उन्होंने भी अपनी स्थिति के लिए जीएसटी को दोषी ठहराया. उनकी फर्म का मासिक कारोबार लगभग 50 लाख रुपए का है और उन्हें हर महीने की बीस तारीख तक 9 लाख रुपए जीएसटी के रूप में जमा कराने होते हैं. “हर कंपनी के साथ ऐसा ही है. पैसा सरकार के पास जमा किया जा रहा है और बाजार में कुछ भी नहीं है.” आर्य को 18 प्रतिशत की जीएसटी दर का भुगतान करना पड़ता है जो उस पांच प्रतिशत मूल्यवर्धित कर (वैट) की तुलना में अधिक है जिसका वह पहले भुगतान किया करते थे.
पानीपत कपड़ा उद्योग का एक प्रमुख केंद्र है. सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों के केंद्रीय मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 में पानीपत के कपड़ा उद्योग में कुल 2369 इकाइयों में 33993 श्रमिक कार्यरत थे. हालांकि केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार की आर्थिक नीतियों की बदौलत भारतीय अर्थव्यवस्था में आई मंदी का पानीपत के कपड़ा उद्योग पर बहुत बुरा असर पड़ा है और इसमें काम करने वाले मजदूरों को भी इसे झेलना पड़ा.
पानीपत में एक प्लेसमेंट एजेंसी के निदेशक आकाश बाटला ने मुझे बताया कि कपड़ा उद्योग में बेरोजगारी का संकट है. पिछले एक साल में इस क्षेत्र में नौकरियां खत्म हो गई हैं. “पहले, हमें हर महीने दस से 12 रिज्यूमे मिलते थे और हम उनके लिए नौकरी ढूंढ लेते थे. लेकिन जब से मंदी आई है, हमें 20-25 आवेदन मिल रहे हैं और हम कहीं भी नौकरी नहीं ढूंढ पा रहे हैं. एक बिजनेस-इंटेलिजेंस फर्म, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़े बाटला के दावे को सही ठहराते हैं. मई और अगस्त 2019 के बीच हरियाणा में बेरोजगारी दर 21.38 प्रतिशत थी. इस मामले मे राज्य देश में दूसरे नंबर पर रहा. 20 से 24 वर्ष आयु वर्ग में यह दर 65.55 फीसदी से भी अधिक है.
इस आर्थिक अनिश्चितता के बावजूद, राज्य की सत्तारूढ़ बीजपी सरकार को भरोसा है कि वह आगामी 21 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी सत्ता बरकरार रखेगी. पानीपत ग्रामीण से हरियाणा विधानसभा के सदस्य, महिपाल ढांडा ने मुझसे कहा कि स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दे मिलकर उन्हें दुबारा सत्ता में पहुंचाएंगे. मैंने उनसे पूछा कि क्या आर्थिक मंदी उनकी पार्टी की राजनीतिक संभावनाओं को नुकसान पहुंचाएगी. उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने का हवाला देकर सवाल का जवाब देते हुए कहा, "क्या राष्ट्र को मजबूत करना अपराध है?" उन्होंने कहा कि ज्यादा जरूरी यह था कि "भारत के लोग पिछले 70 सालों से पीड़ित हैं और अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ खुश हैं." उनके अनुसार, "अनुच्छेद 370 को समाप्त करना यहां के लोगों के दिलों को छू गया और चुनाव में बीजेपी को इसका इनाम मिलेगा.”
पानीपत और इसके आसपास के इलाकों में मैंने जितने लोगों से बात की, उनमें से अधिकांश ने ढांडा की बात को ही दोहराया. लोगों का कहना था कि पूरी संभावना है कि बीजेपी फिर से सत्ता में आ जाएगी. गुप्ता ने मुझे बताया कि आर्थिक संकट की बातें पीछे छूट गई हैं क्योंकि "बीजेपी मार्केटिंग करने में उस्ताद है. वह कांग्रेस को एक मुस्लिम पार्टी और खुद को हिंदुओं की सर्वेसर्वा पार्टी के रूप में पेश करने में सफल रही है." मलिक का मानना था कि "नंबर एक मुद्दा जिस पर लोग बीजपी को वोट देंगे, वह है अनुच्छेद 370." उन्होंने कहा कि "अब कश्मीर पूरी तरह से हमारा है.” गुप्ता, सरकार के अनुच्छेद 370 को प्रभावी रूप से समाप्त करने के फैसले का भी समर्थन कर रहे थे.
बीजेपी की जीत की उम्मीद को बढ़ावा देने वाला एक अन्य कारक यह सामान्य धारणा है कि कोई सक्षम विपक्ष नहीं है. गुप्ता ने मुझे बताया कि बीजेपी के “सोशल मीडिया मैसेजिंग ने जनता के दिमाग में डाल दिया है कि राहुल गांधी एक पप्पू हैं.” उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या कोई व्यवहारिक विकल्प है?" हरियाणा में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है. ओम प्रकाश चौटाला की अगुवाई वाला पूर्ववर्ती क्षेत्रीय सत्ता केंद्र इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ध्वस्त हो चुका है. पार्टी संरक्षक चौटाला भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं और उनके बेटे और पोते पार्टी पर राजनीतिक नियंत्रण को लेकर तीखे पारिवारिक झगड़े में उलझे हुए हैं. लेकिन कांग्रेस न तो इस पार्टी के पतन का और न ही बीजेपी की आर्थिक विफलताओं का लाभ उठाने में समर्थ दिखाई देती है. कांग्रेस खुद ही नेतृत्व के संघर्ष, आंतरिक बदलाव और विद्रोही उम्मीदवारों की समस्या से जूझ रही है.
5 अक्टूबर को कांग्रेस की राज्य इकाई के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले तंवर को सितंबर में कथित रूप से प्रभावशाली जाट नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के इशारे पर राज्य प्रमुख के पद से हटा दिया गया था. चुनाव अभियान में अब हुड्डा पार्टी का प्रमुख चेहरा हैं. पार्टी पर नियंत्रण कायम करने के लिए उन्होंने और तंवर ने खुलेआम एक-दूसरे पर छींटाकशी की. तंवर का सिरसा और उसके आसपास काफी प्रभाव रहा है, जिससे वहां कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान हो सकता है.
हुड्डा के एक करीबी सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री ने पार्टी हाईकमान को आश्वासन दिया था कि कांग्रेस राज्य की 90 सीटों में से 32 पर जीत हासिल करेगी लेकिन अंदर ही अंदर हुड्डा खेमे को उम्मीद थी कि यह संख्या 15 से 20 ही होगी. उन्होंने ढांडा की बात को दोहराया कि "आर्थिक मुद्दे और आजीविका" प्रासंगिक नहीं हैं. "यह एक ऐसा चुनाव है जिसे जातिगत आधार और राष्ट्रवाद के साथ लड़ा जा रहा है. ऐसे में बीजेपी को सीटें मिलेंगी." उन्होंने भी अनुच्छेद 370 का जिक्र किया. उन्होंने मुझे बताया, "गुलाम नबी आजाद हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी हैं. एक कश्मीरी मुस्लिम होने के नाते उन्होंने अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने का विरोध किया था.” उनका मानना है कि पार्टी के लिए यह भी एक समस्या बनेगा क्योंकि "हरियाणा का आम आदमी 370 हटाए जाने के पक्ष में है." चुनाव प्रभावी बनाए जाने से पहले अपनी तरफ से हुड्डा अनुच्छेद 370 को हटाए जाने पर पार्टी द्वारा की गई आलोचना के लिए पार्टी को फटकार चुके हैं. लेकिन अपना नेतृत्व सुनिश्चित हो जाने के बाद उन्होंने इसे बीजेपी का चुनावी पैंतरा बताया है.
विद्रोही उम्मीदवार कांग्रेस के लिए एक और खतरा है. चार बार के कांग्रेस विधायक चौधरी निर्मल सिंह और उनकी बेटी चित्रा सरवारा इसके उदाहरण हैं. इस धारणा के बावजूद कि वे हुड्डा गुट के हैं, दोनों ही कांग्रेस के घोषित उम्मीदवारों के खिलाफ क्रमशः अंबाला शहर और अंबाला छावनी से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. जब मैंने सहयोगी से पूछा कि हुड्डा अपनी ही पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए क्यों तैयार हुए, तो उन्होंने कहा, "कांग्रेस इस चुनाव को जीतने के लिए नहीं लड़ रही है, बल्कि हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा के वर्चस्व को फिर से बहाल करने के लिए लड़ रही है."
सहयोगी ने यह भी कहा कि बीजेपी ने खुद को गैर-जाट पार्टी के रूप में पेश किया था. वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पंजाबी हैं और “जाटों को छोड़कर हर वर्ग बीजेपी को वोट देगा.” साथ ही, "खट्टर शासन के पिछले पांच वर्षों में भ्रष्टाचार उस स्तर का नहीं है जितना ओम प्रकाश चौटाला के समय में रहा. यह सब बीजेपी के हक में जाएगा."
इसके अलावा, जाट समुदाय पर हुड्डा की पकड़ बहुत मजबूत नहीं है. मैं पानीपत के बाहरी इलाके में एक जाट-बहुल गांव सिवान में गया. सरपंच के घर पर जाट समुदाय के कुछ पुरुष हुक्का पीते हुए राजनीति पर चर्चा कर रहे थे. मैंने पानीपत ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या के बारे में हो रही बातचीत सुनी. उनमें से अधिकांश किसान थे और हर कोई इस बात से सहमत था कि खेती फायदे का सौदा नहीं रह गई है क्योंकि अपनी फसलों के लिए उन्हें मिलने वाली कीमत गिर रही है जबकि लागत बढ़ रही है. हर कोई कश्मीर में सरकारी कार्रवाई का समर्थन कर रहा था. हुक्का पी रहे लोगों में से एक जयदीप कादियान ने मुझसे कहा, "इस गांव के लगभग हर जाट परिवार से कोई न कोई सशस्त्र बल में है और हम सभी खुश हैं कि कश्मीर आखिरकार भारत में मिल गया है." उन्होंने कहा, "जाटों का एक समूह बीजेपी से खुश नहीं हैं क्योंकि पार्टी ने एक पंजाबी को मुख्यमंत्री बनाया."
सिवान के एक अन्य निवासी यशपाल कादियान बीजेपी के कट्टर समर्थक हैं, उन्होंने कहा, "खट्टर ने अच्छा काम किया है और बीजेपी को एक मौका और दिया जाना चाहिए." उन्होंने दावा किया कि बीजेपी की लहर है और जीएसटी की आलोचना को खारिज कर दिया गया है. कादियान ने कहा, "मोदी ने जीएसटी लागू कर एक साहसी कदम उठाया."
एक पंचायत कार्यालय में जाट और ब्राह्मण समुदाय के पुरुषों के बीच अनुच्छेद 370 के बारे में चर्चा फिर से सुनाई दी. जाट समुदाय बीजेपी की चुनावी संभावनाओं पर विभाजित होता दिखा. जबकि कुछ ने दावा किया कि बीजेपी को 30 से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी, अन्य लोगों को यकीन था कि सत्तारूढ़ पार्टी जीतेगी. एक व्यक्ति ने कहा, "कश्मीर में अब गुंडागर्दी खत्म हो जाएगी" जबकि एक अन्य ने कहा, "मुसलमान बेलगाम बच्चे पैदा करते हैं, लेकिन तीन तलाक पर लगाम लगाकर इसे ठीक कर दिया गया है."
28 सीटों पर चुनाव लड़ रही स्वराज इंडिया के राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने बताया, "बीजेपी ने अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक राजनीति से अलग कर दिया है. अभी अर्थव्यवस्था बहुत ज्यादा संकट में है, लेकिन बीजेपी लोगों को यह समझाने में सफल रही है कि अर्थव्यवस्था पर नहीं बल्कि राष्ट्रीय भावना के आधार पर वोट करें. वे यह भी बताने में कामयाबी रहे हैं कि मोदी के खिलाफ कोई नहीं है, वह एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो देश की समस्याओं को हल कर सकते हैं.” उन्होंने आगे कहा, "कांग्रेस राज्य में गायब रही है, इनेलो बिखर गई है और इसने एक राजनीतिक शून्यता पैदा कर दी है." यादव के अनुसार, "मुद्दा यह नहीं है कि मतदाता बीजेपी द्वारा किए गए कार्यों से बहुत खुश हैं, लेकिन जब वे विकल्प तलाशते हैं तो उन्हें कोई नजर नहीं आता.”