मुसलमानों को हिंदुओं के अधीन रखने वाले गोलवलकर के विचारों को लागू करने जा रहा संघ?

04 अप्रैल 2022
दिसंबर 2018 में दिल्ली में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी मनाता एक प्रदर्शनकारी. जब से मोदी सत्ता में आए हैं, गोलवलकर की मुसलमानों से निपटने की योजना पूरे भारत में धूम मचा रही है.
सज्जाद हुसैन/एएफपी/गैटी इमेजिस
दिसंबर 2018 में दिल्ली में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी मनाता एक प्रदर्शनकारी. जब से मोदी सत्ता में आए हैं, गोलवलकर की मुसलमानों से निपटने की योजना पूरे भारत में धूम मचा रही है.
सज्जाद हुसैन/एएफपी/गैटी इमेजिस

इस साल हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की भारी भरकम जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब अहमदाबाद में रोड शो करने पहुंचे तो उसी समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शहर में आयोजित अपने वार्षिक सम्मेलन में एमएस गोलवलकर के विवादास्पद विचारों में से एक में चोरी छिपे जान भरने की कोशिश कर रहा था. गोलवलकर का यह विवादास्पद विचार मुसलमानों से नागरिकता छीन लेने की मांग करता है.

12 मार्च को सम्मेलन में जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आरएसएस ने कहा "संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में सांप्रदायिक उन्माद, रैलियां, प्रदर्शन, सामाजिक अनुशासन और परंपराओं का उल्लंघन, मामूली बातों पर हिंसा भड़काने और अवैध गतिविधियों जैसी कायरतापूर्ण गतिविधियों का सिलसिला बढ़ रहा है. ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारी तंत्र में प्रवेश करने के लिए एक विशेष समुदाय द्वारा विस्तृत योजनाएं बनाई गईं हैं. लगता है कि इन सबके पीछे एक दीर्घकालीन लक्ष्य के साथ एक गहरी साजिश को अंजाम दिया जा रहा है. समाज की एकता, अखंडता और सद्भाव की खातिर संगठित शक्ति, जागृति और सक्रियता के साथ इस साजिश को नाकाम करने के लिए हर संभव प्रयास करना आवश्यक है."

यह साफ है कि उपरोक्त रिपोर्ट भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुसलमानों के बारे में बात कर रही है और यह दावा कर कि इसकी "आड़" लेकर साजिश की जा रही है, "संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता" पर सवाल खड़े करने का आधार तैयार कर रही है.

आरएसएस के नए सूत्र का मूल यह है कि जब मुसलमानों की बात आती है तो संविधान भारतीय नागरिकों के अधिकार ताक पर होते हैं. हालांकि रिपोर्ट में गोलवलकर के सूत्रीकरण के केंद्रीय तत्वों को लाग लपेट के साथ कहा गया है. गोलवलकर के विचारों की सबसे स्पष्ट और बिना सेंसर की अभिव्यक्ति उनकी पुस्तक वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड में मिलती है जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए पूर्ण जातीय अधीनता की बात करते हुए संघ की हिंदू राष्ट्र बनाने की परियोजना की तुलना एडॉल्फ हिटलर के यहूदी विरोध से की है.

सरसंघचालक गोलवलकर ने 1939 में अपनी किताब में लिखा है, "जाति और उसकी संस्कृति की शुद्धता को बनाए रखने के लिए, जर्मनी ने देश की यहूदी नस्ल का शुद्धीकरण कर दुनिया को चकाचौंध कर दिया. जर्मनी ने यह भी दिखाया है कि ऐसी नस्लों और संस्कृतियों के लिए, जिसमें मतभेद जड़ तक फैले हैं, कितना असंभव है संयुक्त होकर रहना. हमारे लिए हिंदुस्तान में यह सीखे जाने लायक सबक है." 

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