हिंदू राष्ट्र का साउंडट्रैक

नफरत की राजनीति को सुलगाता हिंदुत्व पॉप संगीत

15 July, 2022

इस साल अप्रैल में राम नवमी के जुलूस के दौरान भारत के कई राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी. इन सभी घटनाओं में हिंदुत्ववादी भीड़ द्वारा मुसलमानों के मोहल्लों में घुसकर तलवारें और लाठियां भांजते सांप्रदायिक नारे लगाने और तेज संगीत बजाने जैसा एक ही तरीका अपनाया गया था. उन्होंने मस्जिदों के सामने इस्लामोफोबिया से भरे भड़काऊ गीतों पर डांस किया. इसमें औरते और बच्चे भी शामिल थे. ज्यादातर जगहों पर यह घटनाएं दोपहर बाद घटित हुई, जब नमाज पढ़ने और रमजान का रोजा खोलने का समय होता है.

दोनों समुदायों के बीच छिड़ी लड़ाई में आगजनी, पथराव और तोड़फोड़ तक हुई. कई लोगों को चोटें आईं और यहां तक ​​कि कुछ लोगों के मारे जाने की भी खबर है. बिहार के मुजफ्फरपुर और मध्य प्रदेश के खरगोन में भगवा गमछा पहने पुरुष मस्जिदों पर चढ़कर भगवा झंडा लगाने की कोशिश करने लगे और कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया. मुंबई में वाहनों में तोड़फोड़ करने की भी खबरें आईं. इस हिंसा के बाद भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रशासित राज्य और स्थानीय अधिकारियों ने मुसलमानों के घरों को गिराने के लिए बुलडोजर भेजे. हालांकि उन्होंने इसे अतिक्रमण विरोधी अभियान बताया. लेकिन गिराए गए घर और दुकानें ज्यादातर मुसलमानों की थीं.

हमारे देश में इस तरह के धार्मिक जुलूसों के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा के कई उदाहरण पहले से मौजूद हैं. वर्ष 1992 में विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अन्य सहयोगियों के नेतृत्व में राम रथ यात्रा बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर जाकर समाप्त हुई थी. इसी जुलूस में जोर-शोर से "मंदिर वहीं बनाएंगे" के नारे लगाए गए थे.हाल के दिनों में भी रैलियों के इर्द-गिर्द कलह होना एक आम बात रही है, खासकर रामनवमी के आसपास. लेकिन इस बार हिंसा में एक चीज अलग थी. इन हिंसक घटनाओं के लिए माहौल को गरमाने का काम रैलियों में बजाए गए गीतों ने किया था. इन जुलूसों से कई वीडियो सामने आए हैं जिसमें जोशीला माहौल और गानों में सांप्रदायिक उत्तेजना साफ दिखाई दे रही है.

कर्नाटक के रायचूर शहर में उस्मानिया मस्जिद के सामने जयकारे के साथ "मंदिर वहीं बनाएंगे" गाना बजाया गया और भगवा झंडे लहराए गऐ. तरुण सागर के इस गीत के असली वीडियो में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के फुटेज दिखाए गए हैं. उत्तराखंड में रुड़की के पास एक गांव दादा जलालपुर में कन्हैया मित्तल का गाना "जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे" बजाते हुए एक मुस्लिम मोहल्ले से जुलूस निकाला गया.

इसके बाद प्रेम कृष्णवंशी का “मुल्लों जाओ पाकिस्तान” भी बजाया गया. हैदराबाद में रामनवमी की रैली में बीजेपी विधायक टी राजा सिंह ने "जो राम का नाम ना ले, उसे भारत से भगाना है" गाया. दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में तलवार और बंदूक लिए लड़कों ने हिंदू एकता के नाम पर लक्ष्मी दुबे के गीत पर रैली निकाली. राजस्थान के करौली जिले में बड़ी दूर से ही संदीप चतुर्वेदी का "टोपी वाला भी सर झुका कर जय श्री राम बोलेगा" सुना जा सकता था.

यह सभी गीत मोदी युग में उभरे एक अलग किस्म के हिंदुत्व का हिस्सा हैं. जिसे "हिंदुत्व पॉप" या "डीजे हिंदुत्व" के रूप में जाना जाने लगा है. वे भक्ति गीतों के पुराने रूप को इलेक्ट्रॉनिक बीट और ऑटोट्यून के साथ जोड़ते हैं जिससे जहर बुझे लेकिन आकर्षक गाने बनकर तैयार होते हैं. इस नई शैली के गीत बीजेपी की राजनीति के सबसे बड़े मुद्दों अति-राष्ट्रवाद, छद्म—युद्ध-भ्रम, गाय की राजनीति, पाकिस्तान-द्रोह और इस्लामोफोबिया पर आधारित होते हैं.

यह कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश में मुसलमान को वफादारी साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. 2019 में नरेन्द्र मोदी के फिर से चुने जाने के बाद हुई कई घटनाओं ने मुसलमानों को मुश्किल में डाल दिया है. इसमें नागरिकता (संशोधन) अधिनियम जिसने देश के अल्पसंख्यकों के लिए एक मूलभूत संकट पैदा कर दिया है; राम मंदिर का फैसला, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ध्वस्त बाबरी मस्जिद के स्थान पर मंदिर के निर्माण की अनुमति दी और धर्मांतरण विरोधी कानून, जि​सका इस्तेमाल ईसाइयों और मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए किया गया है, शामिल है.

जेनोसाइड वॉच के संस्थापक ग्रेगरी स्टैंटन ने जनवरी में कहा था, "हम चेतावनी दे रहे हैं कि भारत में बहुत बुरी तरह से नरसंहा हो सकता है." एक स्वतंत्र अमेरिकी निकाय ने बाइडेन सरकार से सिफारिश की कि भारत को "विशेष परिस्थिति वाला देश" माना जाए, क्योंकि यहां धार्मिक स्वतंत्रता खतरे में है. रिपोर्ट में कहा गया है, "सरकार मौजूदा और नए कानून बनाकर देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति शत्रुतापूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन करके राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर एक हिंदू राज्य की अपनी वैचारिक दृष्टि को स्थापित कर रही है." इसे उसी महीने रामनवमी हिंसा के बाद जारी किया गया था.

हिंसा के बाद जब मैंने रुड़की और करौली का दौरा किया तो पाया कि इन रैलियों में भाग लेने वाले अधिकांश लोगों को यह गीत जुबानी याद थे. छोटे बच्चों से लेकर अधेड़ उम्र के पुरुषों तक, वे सभी अपने पसंदीदा गीतों और उनके कलाकारों के नाम बता सकते थे. इन कलाकारों में संदीप आचार्य, लक्ष्मी दुबे, प्रेम कृष्णवंशी और कन्हैया मित्तल शामिल थे, जिनका मैंने इस साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले हिंदुत्व की राजनीति को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका को समझने के लिए साक्षात्कार किया था.

चुनाव के समय प्रचार रैलियों में इन गीतों का उपयोग बहुत आम हो गया था. इनमें से कई गाने बेतहाशा लोकप्रिय हैं और यूट्यूब पर लाखों लोग इन्हें देख चुके हैं. उन्हें मंदिरों, राजनीतिक रैलियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अक्सर बजाया जाता है.

मैंने जिन मुस्लिम निवासियों से बात की उन्होंने मुझे इन गीतों से होने वाली परेशानी के बारे में बताया. रुड़की के रहने वाले फैज ने बताया, “हमारा मुद्दा रैलियों में इस्तेमाल होने वाले गाने नहीं, बल्कि गानों में इस्तेमाल होने वाले शब्द हैं. मुझे समझ में नहीं आता कि इन गानों को सेंसर क्यों नहीं किया गया." हिंदू दक्षिणपंथ विचार रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि मुसलमानों ने जुलूसों पर पथराव करके हिंसा को बढ़ाया था. करौली के एक कार्यकर्ता अबरार अहमद ने कहा, "हम स्वीकार करते हैं कि मुसलमान भी हिंसा में शामिल थे, लेकिन समस्या उकसाने की है और गानों के शब्द ही इसका कारण बने.” इन सबसे ऊपर सवाल यह है कि वे कौन लोग हैं जो एक समुदाय के खिलाफ ऐसे गाने बनाते हैं? इन गायकों को हमारे खिलाफ नफरत फैलाने से क्या मिलता है?”

इस हिंदुत्व पॉप उद्योग में ऐसे कईं शुभचिंतक हैं जो भारत को "आतंकवादी," "जिहादी," "पश्चिमी संस्कृति" और हिंदू धर्म और उसके ब्राह्मणवादी लोकाचार को "नष्ट" करने की कोशिश करने वाले लोगों से बचाने की कोशिश कर रहे हैं. इनके प्रसार में बीजेपी की आईटी सेल सहायता करती है जो पार्टी के आधिकारिक चैनलों पर इनमें से कई गीतों को लगाकर बढ़ावा देती रहती है. अधिकांश उच्च जाति के गायकों के बीजेपी नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध हैं. मैंने इन घटनाओं को समझने और इन गायकों को इस तरह के गीत लिखने के कारण को जानने के लिए महीनों बिताए हैं. बीजेपी नेताओं के संरक्षण और इन गीतों को रिंगटोन के रूप में इस्तेमाल करने वाले युवाओं के बीच उनकी व्यापक लोकप्रियता यह साफ तौर पर बताती है कि इन गीतों को अब हिंदू संस्कृति से अलग नहीं रखा जा सकता है.

कन्हैया मित्तल ने 13 फरवरी को वाराणसी के त्रिदेव मंदिर में एक कॉन्सर्ट किया था. जिसमें दो घंटे की देरी होने के कारण भीड़ इंतजार करते-करते बेचैन हो उठी थी. अधिक भीड़ की वजह से लोग खड़े होने तक की जगह बनाने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे. बाहर सड़कें ट्रैफिक से खचाखच भरी थीं. सड़कों पर बड़े-बड़े बैनरों में राम के साथ मित्तल की तस्वीर लगी थी. रात करीब 10 बजे मित्तल के पहुंचते ही भीड़ में हड़कंप मच गया. वह लगभग पंद्रह लोगों के सुरक्षा घेरे में चलते हुए बैकस्टेज में चले गए. उन्होंने सफेद कुर्ता के साथ गले में केसरिया गमछा और एक बड़ा सुनहरा लॉकेट पहना हुआ था जो दूर से भी आसानी से देखा जा सकता था. कार्यक्रम शुरू करने से पहले उन्होंने मुझे बताया, "यह कार्यक्रम के लिए मेरी पोशाक है."

वहां कोई मंच नहीं था लेकिन जैसे ही मित्तल ने दर्शकों के बीच में कदम रखा एक रॉकस्टार की तरह तालियों और जयकारों के साथ उनका स्वागत किया गया. उन्होंने भीड़ में सभी के चेहरों को देखा और फिर अपने पीछे क्षेत्रीय देवता श्याम की मूर्ति की तरफ मुड़ गए. उन्होंने अपने हाथ जोड़ लिए, जो उन्होंने बैंड के लिए कार्यक्रम शुरू करने का संकेत था. पहले कुछ गीत श्याम को समर्पित भक्ति गीत थे जो पारंपरिक भजन के विपरीत पॉप की ताल पर थे. धीरे-धीरे मित्तल ने अपना सिर और अपना शरीर हिलाना शुरू कर दिया और भीड़ ने भी ऐसा ही करना शुरू कर दिया.

मंच पर खड़े मित्तल का व्यक्तित्व काफी आकर्षक था. वह अपने दर्शकों को बांधे रखते हुए गीतों को भगवान के साथ अपने संबंधों से जोड़कर पेश करते हैं. लेकिन उनका संदेश हमेशा आध्यात्मिक नहीं होता. उनके आधिकारिक यूट्यूब चैनलों पर अक्टूबर 2021 में रिलीज होने के बाद से लगभग दस मिलियन बार देखे जा चुके गाने "जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे" को गाते समय उनका इशारा आगामी विधानसभा चुनाव की तरफ था. उन्होंने दर्शकों से कहा, "जब आप 7 मार्च को मतदान करेंगे तो ध्यान रखें कि आप अगले पचास वर्षों के लिए कौन सी सरकार चाहेंगे."

मित्तल को तेजी से बढ़ते हिंदुत्व पॉप स्टार और "भजन सम्राट" के रूप में जाना जाता है. उन्होंने उन सभी पांच राज्यों सहित कई अन्य राज्यों में शो किए हैं जहां इस साल विधानसभा चुनाव हुए थे. बीजेपी की कई रैलियों में "जो राम को लाए हैं" गाना बजाया गया था. मित्तल किसी राजनीतिक दल विशेष के साथ सीधे तौर पर संबंध होने का दावा नहीं करते हैं, लेकिन उनका ट्विटर फीड असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जैसे बीजेपी नेताओं के साथ उनकी तस्वीरों से भरा हुआ है. उन्होंने भोजपुरी गायक, अभिनेता और बीजेपी सासंद मनोज तिवारी के साथ एक गीत भी गाया है. उनके सबसे प्रसिद्ध गीत के अंतिम भाग में "योगीजी आऐ हैं, योगीजी आएंगे" पंक्तियां शामिल हैं. उन्होंने अक्सर अपने प्रशंसको से आदित्यनाथ को वोट देने का आग्रह किया है. चुनाव से पहले किए एक ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि "जो राम को लाए हैं" गाने की लोकप्रियता बताती है कि "बाबाजी" फिर से चुने जाएंगे. उन्होंने अपने गाने के बारे में बताते हुए आदित्यनाथ की एक क्लिप भी पोस्ट की.

मित्तल के संगीत कार्यक्रमों में बड़ी चालाकी से राजनीतिक संदेश को जनता तक पहुंचा दिया जाता है. वह अपने भजन पर ही अधिक ध्यान लगाते है जिसमें आदित्यनाथ की किसी भी तरह की प्रशंसा लगभग आकस्मिक लगती है. उन्होंने दर्शकों से कहा, "मैं किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करता, लेकिन मैं उस पार्टी के साथ हूं जो मेरे धर्म के लिए खड़ी है." उन्होंने आगे कहा, “जो राम को लाए हैं," गाना राम मंदिर और काशी के मंदिर को वापस लाने के लिए सरकार को धन्यवाद देने के लिए गाया गया था. जो कोई भी धर्म के लिए काम करता है, चाहे वह कोई भी राजनीतिक दल हो, हर भारतीय नागरिक को उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए."

मित्तल एक बहुत ही धार्मिक परिवार में पले-बढ़े हैं, जिनका संगीत की ओर झुकाव नहीं था. उन्हें कभी औपचारिक रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया था. उन्होंने मुझे बताया, "मैं सात साल की उम्र से गा रहा हूं और देश के महान गायकों और पुजारियों को देखकर मैंने गाना सीखा है. यह सब ईश्वर की देन है." जिन अन्य हिंदुत्ववादी पॉप सितारों का साक्षात्कार मैंने किया उन्होंने बीजेपी और अन्य दक्षिणपंथी राजनीतिक नेताओं के साथ अपने संबंधों के बारे में खुल कर बताया लेकिन मित्तल ने अपने संबंधो को छुपा कर रखा. मित्तल और अन्य हिंदुत्ववादी पॉप सितारों में एक खास अंतर है. जहां अन्य अपने गीतों में मुसलमानों के लिए खुली कट्टरता और नफरत का प्रदर्शन करते हैं, मित्तल हिंदू धर्म के लिए अपने प्यार पर अधिक जोर देते हैं. उनके भीतर हिंदू वर्चस्ववादी विचार अधिक हैं. उन्होंने वाराणसी में हुए संगीत कार्यक्रम में कहा, "हममें से जो सनातन धर्म का पालन करते हैं, उन्हें प्रमाण पत्र दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं है. हमारे माथे का टीका हमारे धर्म के बारे में बताएगा." इस बात में अंतर्निहित धारणा यह थी कि देश हिंदुओं का है, जबकि अन्य को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी. जब मैंने उनसे इस बारे में पूछा तो उनका स्पष्ट जवाब था : "भारत पहले से ही एक हिंदुओं का देश है."

जब बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया उस समय संदीप आचार्य लगभग आठ वर्ष के थे. वह अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन के आवेशित माहौल में ही पले-बढ़े थे. उन्होंने मुझे बताया, "मैं बचपन से ही 'मंदिर वहीं बनाएंगे, राम लला हम आएंगे’ नारा सुन रहा था.” यही उनके इस्लामोफोबिक संगीत में रच बस गया है. आचार्य सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए बदनाम आदित्यनाथ द्वारा स्थापित उग्रवादी संगठन हिंदू युवा वाहिनी के सदस्य हैं. जिस समय मैंने आचार्य का साक्षात्कार किया तब वह विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय संयोजक महेश मिश्रा के साथ थे.

आचार्य ने बताया, "मेरे गाना शुरू करने से पहले से ही नफरत मेरे भीतर घर कर चुकी थी. मुझे याद है कि जब मेरी मां बीमार थी और उन्हें तुरंत खून चढ़ाने की आवश्यकता थी. उस स्थिति में भी, जब खून की सख्त जरूरत थी, मां ने जोर देकर कहा कि खून किसी मुसलमान का नहीं होना चाहिए.

आचार्य को इस हिंदुत्ववादी पॉप शैली के चलन की शुरुआत करने वाला माना जाता है. उन्होंने जोर देकर कहा कि वह 2014 में राष्ट्रीय धार्मिक वातावरण बदलने के पहले से ऐसा कर रहे थे. उन्होंने तर्क दिया कि भजन गाने वाले गायक जिन्होंने पहले कभी राजनीतिक गीत नहीं गाए थे, उन्होंने अपने लिए इस माहौल में एक बाजार देखा और अब वे मोदी सरकार के दिए इस अवसर का फायदा उठा रहे हैं. उन्होंने कहा कन्हैया मित्तल ऐसे गायको में से एक हैं. उन्होंने मुझे बताया, "मित्तल केवल श्याम कीर्तन किया करते थे, लेकिन जब उन्होंने इस तरह के गाने बजते हुए देखे, तब उन्होंने 'जो राम को लाए हैं' गाया और वह हिट हो गया." आचार्य का मानना है कि अधिकांश नए गायक करियर में ज्यादा आगे नहीं जा पाते हैं. उन्होंने कहा, "यदि आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि दो घंटे के कार्यक्रम में अन्य गायक ज्यादातर भक्तिपूर्ण गानों में एक या दो राजनीतिक गानों का उपयोग करते हैं. लेकिन मेरा कार्यक्रम यदि दो घंटे का होता तो मैं पूरे समय केवल गोहत्या, राम मंदिर निर्माण, कृष्ण जन्मभूमि, हिंदुओं में एकता जैसे अपनी पसंद के गीत ही गाता हूं.”

लोकप्रियता की दौड़ में आगे रहने के बावजूद आचार्य देर से हासिल हुई सफलता पर शोक व्यक्त करते रहे. उन्होंने कहा, "मैं आठ साल से गा रहा हूं, लेकिन दो महीने पहले ही आदित्यनाथ से मुश्किल से मिल पाया." आचार्य के आदित्यनाथ पर बने गाने ‘गोरखपुर वाले बाबा’ के आने के बाद मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने उनकी मुलाकात मुख्यमंत्री से कराई थी.

आचार्य दो अन्य भाई-बहनों के साथ एक परिवार में पले-बढ़े थे. उनकी मां को भी गाने का शौक था और आचार्य ने छह साल तक संगीत सीखा. उनका करियर एक तकनीकी प्रगति से जुड़ा है उनका कहना है कि यूट्यूब के उदय के साथ ही उनकी यात्रा शुरू हुई थी. उन्होंने मोदी और रिलायंस जियो को उनके जैसे संगीतकारों के समृद्ध होने के लिए सही परिस्थितियां प्रदान करने का श्रेय दिया. उन्होंने कहा, "कल्पना कीजिए कि एक जीबी डेटा में एल्बम बनाना, संपादित करना और प्रकाशित करना कितना कठिन रहा होता, जिसे हमें पूरे एक महीने तक बचाकर रखना पड़ता." सबसे पहले उन्होंने अपने नाम से एक चैनल शुरू किया जिस पर उन्होंने अपने धार्मिक गाने अपलोड किए. लेकिन यूट्यूब ने इस चैनल को अपने दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए निलंबित कर दिया. हाल ही में शुरू किया गया नया चैनल, रुद्र म्यूजिक- जिसका नाम उनके बेटे के नाम पर रखा गया था, को भी निलंबित कर दिया गया था.

आचार्य ने कहा, "यह भड़काऊ भाषा नहीं है, यह तो सत्य है और सत्य कड़वा होता है." उन्होंने तर्क दिया, चूंकि मुसलमानों को विभाजन के बाद भारत में रहने की अनुमति दी गई थी, इसलिए जरूरी है कि वे अपनी सीमा के भीतर ही रहें. “क्या यह भड़काऊ भाषा है? हमें बताया गया था कि यह लोग हमारे साथ रहेंगे, न कि विभाजन के पचास साल बाद हमारे सिर पर नाचेंगे.” उन्होंने बताया कि एक गाने में सारी सीमाएं पार कर देने पर उनका परिवार उनसे नाराज हो गया था. "भारत में जो देशद्रोही हैं उनकी मां का भोसड़ा" गाना काफी आपत्तिजनक है और यह युवाओं में काफी लोकप्रिय भी रहा है. उन्होंने बताया, “मेरे परिवार ने मुझे डांटा कि अब तक हिंदू-मुस्लिम गाने जो थे वो तो थे ही लेकिन गाली क्यों दे रहे हो?"

प्रेम कृष्णवंशी कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में करियर बनाने की तैयारी कर रहे थे. मित्तल की तरह उनके भी परिवार में किसी की भी संगीत में रुचि नहीं थी. उनके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे. कृष्णवंशी ने अपने पिता से वादा किया था कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने संगीत कैरियर पर ध्यान देंगे.

वह 2017 में संदीप आचार्य से मिले थे. कृष्णवंशी ने बताया, "वह मेरे गुरु हैं. उनके मार्गदर्शन में मैंने उनके लिखे गए गीतों को गाना शुरू किया." आचार्य के संरक्षण में कृष्णवंशी के गीत और अधिक कट्टर होते गए. उन्होंने कहा, "लोग मुझे 'हिंदुवादी गायक' कहने लगे, लेकिन यह बहुत स्पष्ट है कि इस पूरे देश में केवल एक प्रसिद्ध और सबसे लोकप्रिय हिंदुवादी गायक है और वह है संदीप आचार्य. कोई भी उनके जैसा नहीं है." कृष्णवंशी ने बताया कि बीजेपी के लिए उनका पहला गीत  "न कमल खिलेगा, न वोट मिलेगा" आचार्य ने ही लिखा था. यह गीत उन शर्तों को बताता है जिन्हें मोदी को वोट पाने के लिए पूरा करना चाहिए और बीजेपी से अपने वादे पर बने रहने को कहता है. यह गीत “मोदीजी अयोध्या आओ, मंदिर निर्माण कराओ” से शुरू होता है. वीडियो में कृष्णवंशी भगवा कुर्ता पहनकर गाना गाते और अपनी उंगलियो को मोदी, राम, बीजेपी की रैलियों और बाबरी मस्जिद के विनाश की तस्वीरों के सामने लहराते हुए दिखते हैं. कृष्णवंशी ने कहा कि यह उनका पहला हिट गीत था जिसे चार मिलियन से अधिक बार देखा गया था. "यह हर जगह चलन में था और उसके बाद से मैंने वेव म्यूजिक, मयूर म्यूजिक, टीएफ म्यूजिक जैसी कई म्यूजिक कंपनियों के साथ काम किया है." अब उनके यूट्यूब चैनल पर सत्तर हजार से भी अधिक सब्सक्राईबर हैं.

मेरे साथ अपनी बातचीत में कृष्णवंशी ने मुसलमानों से किसी भी तरह की नफरत से इनकार किया और उन्हें अपना दोस्त बताया. लेकिन धर्म की बात आने पर उन्होंने कहा कि वह हमेशा हिंदुओं के साथ रहेंगे. 17 फरवरी को उन्होंने कर्नाटक सरकार द्वारा स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के हालिया विवाद के मुद्दे पर "एक दिन वो हिजाब पहनेंगे" शीर्षक से एक गाना अपलोड किया, जिसमें हिंदुओं को इस्लामवाद के बारे में चेतावनी दी गई थी कि "हे हिंदुओं, सोते रहो, वे तुमसे नमाज अदा कराएंगे."

कृष्णवंशी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के लिए प्रचार करने की भी बात कही. करीब छह महीने से वह हिंदुओं से आदित्यनाथ को वोट देने की अपील कर रहे थे. उनका ट्विटर फीड बीजेपी को समर्थन करने वाले गानों और इस्लामोफोबिक कंटेंट से भरा हुआ था. क्विंट द्वारा हिंदुत्व पॉप संगीत पर बनाए वीडियो में आने के बाद उनके सबसे विवादास्पद गीतों में से एक, "मुल्लों जाओ पाकिस्तान" को यूट्यूब से हटा दिया गया था. कृष्णवंशी ने मुझे बताया कि इस गाने को दस मिलियन से अधिक बार देखा जा चुका था, लेकिन द क्विंट से बात करने के बाद यूट्यूब ने उनके चैनल की पहुंच कम कर दी और वीडियो को भी हटा दिया. उन्होंने बताया, “मैं अभी भी अपने गाने के समर्थन में खड़ा हूं. मैंने ऐसा कोई शब्द नहीं कहा जो गलत हो. पाकिस्तान एक इस्लामिक राज्य बन गया, भारत हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं बन सकता?

चुनाव से कुछ महीने पहले कृष्णवंशी ने मुझे बताया, उन्हें और कुछ अन्य गायकों को मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े किसी व्यक्ति का फोन आया था. और सभी को मुख्यमंत्री की उपलब्धियों पर गीत तैयार करने के लिए कहा गया. कृष्णवंशी ने बाद में आचार्य सहित अन्य गायकों ने मृत्युंजय कुमार के साथ इस सिलसिले में बैठक की. गायकों को सम्मानित किया गया और आदित्यनाथ पर लिखी एक पुस्तक दी गई. 28 सितंबर 2021 को कृष्णवंशी ने फेसबुक पर कुमार से पुस्तक प्राप्त करते हुए अपनी एक तस्वीर पोस्ट की. अगले दिन ही उन्होंने "यूपी में गूंजे दो ही नाम, भाजपा और जय श्री राम" गीत अपलोड किया जिसका कुछ ही समय बाद आचार्य ने "योगी बाबा जैसा कोई नाम" गीत रिलीज किया. कृष्णवंशी ने बताया कि “मुझे कुछ गाने बनाने के लिए कहा गया था, लेकिन मैं अपनी सुविधानुसार ही काम करता हूं. मैं गानों के एक विशेष पैटर्न तक ही सीमित नहीं रहूंगा. मैं जैसा चाहूं लिखूंगा और जो मुझे अच्छा लगेगा वह रिकॉर्ड करुंगा." लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि उनके लिए गाने बनाने के लिए वैचारिक निकटता को देखते हुए उन्होंने सामान्य से कम फीस ली थी. मैं कुमार से इन गायकों को दिए जाने वाले भत्ते के बारे में जानने के लिए संपर्क किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

कृष्णवंशी ने बताया कि उनके गीतों को यूट्यूब प्रोफाइल से उठाकर बीजेपी की आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर खूब प्रचारित किया है. उन्होंने कहा, औसतन उनके गीत एक दिन में पचास हजार से अधिक लोगों तक पहुंचते हैं. उनके गाने बीजेपी के उन पेजों पर भी शेयर किए जाते हैं जिन पर लाखों फॉलोवर हैं. कृष्णवंशी ने कहा, जब से उन्होंने आदित्यनाथ के लिए गाने बनाना शुरू किया, तब से उनकी लोकप्रियता बढ़ गई और उनका फोन बजना बंद ही नहीं हो रहा.

इस तरह के गाने लिखने और गाने वाले पुरुषों का वर्चस्व होने के बाद भी मीडिया का ज्यादातर ध्यान लक्ष्मी दुबे की तरफ रहता है. उनके वीडियो में दुबे को चमकीले रंग की पगड़ी, माथे पर लाल तिलक, गहरे रंग की लिपस्टिक, लाल, बैंगनी और नारंगी रंग के कपड़े पहने हुए देखा जा सकता है, जो राधे मां की तरह जोशीली और क्रोधित धार्मिक उपदेशक की छाप देता है. उनके गीत जोशीले, भड़काऊ और अक्सर सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ाने वाले होते हैं, जो अक्सर राजनीतिक रैलियों में बजाए जाते हैं. हालांकि फोन पर बात करते समय उनकी आवाज शांत थी. आचार्य और कृष्णवंशी की तरह ही वह विभाजन का जिक्र करती रहीं और बयानबाजी करते हुए मुझसे पूछा, "अगर पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बन सकता है, तो हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं बन सकता?"

दुबे और उनके जैसे अन्य लोग इस तथ्य की अवहेलना करते हैं कि भारत ने एक धार्मिक राष्ट्र नहीं बनने का रास्ता नहीं चुना, इसलिए पाकिस्तान से तुलना गलत है. इसके बजाय यह उनके डर और मुसलमानों के प्रति घृणा को बढ़ावा देता है. दुबे ने मुझे बताया, "मुसलमान अपने बच्चों को हिंदुओं को मारना सिखाते हैं, जिन्हें वे काफिर मानते हैं. उनका मानना है कि ऐसा करने से वे स्वर्ग में जाते हैं. हिंदुओं को एकजुट होने की जरूरत है. इसे लेकर आज के युवा काफी सक्रिय हैं. उन सभी को उत्साहित और ऊर्जावान देखने से ज्यादा मेरे लिए खुशी की क्या बात होगी." उनके पास मुसलमानों के बुरे कारनामों के किस्से तैयार थे. उन्होंने बताया, "मेरी छोटी बहनों में से एक की एक दोस्त थी जो एक ऐसे व्यक्ति के जाल में फंस गई जिसने लव जिहाद किया और अपनी असली पहचान छुपाकर उससे शादी कर ली. और बाद में उसकी हत्या कर दी. ऐसी घटनाओं ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया. और यहीं से मैंने हिंदुत्व के लिए काम करना शुरू किया.” फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया हैंडल पर कई लाइव वीडियो में दुबे ने "धर्मनिरपेक्षता" के विचार और इसका समर्थन करने वालों की धमकाने वाले लहजे में आलोचना की है.

दुबे ने बताया कि हिंदुत्व पॉप स्टार बनने से पहले वह पत्रकार थी. सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने मुझे यह बताने से इनकार कर दिया कि वह किस समाचार संस्थान के लिए काम करती थी, लेकिन उन्होंने कहा कि सच्चाई की खोज की ललक के चलते वह इस पेशे की तरफ आकर्षित हो गईं थी.

दुबे का सबसे प्रसिद्ध गीत "हर घर भगवा छाया" साठ मिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है. उन्होंने इसे "राष्ट्रीय भक्ति गीत" बताया. इसमें कहा गया है, "हाथ में तलवार लिए, हम भगवा झंडे लेकर आए हैं और जो भारत में रहना चाहते हैं उन्हें वंदे मातरम कहना होगा." उन्होंने मुझसे कहा कि वह अक्सर बीजेपी के लिए परफॉर्म करती हैं. “मुझे छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए आमंत्रित किया गया था. मुझे इतने निमंत्रण मिलते हैं कि मुझे कुछ राज्यों के प्रोग्राम छोड़ने पड़े.” उनके यूट्यूब चैनल से किसी भी गाने को नहीं हटाया गया है, लेकिन बीजेपी की आईटी सेल उनके गीतों का उपयाग करती रहती है. उन्होंने बताया, “जब मेरा चैनल सस्पेंड हो गया तब केंद्र सरकार मेरे बचाव में आई थी तब से मेरा चैनल अच्छा चल रहा है."

अयोध्या जिले में बीजेपी आईटी सेल का काम देखने वाले प्रवीण दुबे ने मुझे बताया कि आक्रामक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाले और बीजेपी के हिंदुत्व मॉडल से मेल खाने वाले गीतों को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. उन्होंने कहा कि उनका काम यह सुनिश्चित करना कि ऐसे गीतों को व्यापक रूप से साझा किया जाए. "यहां दो बांते हैं. सबसे पहली, गाने हमारे संदेश को जनता तक पहुंचाने का एक आसान माध्यम है. दूसरी, गाने लोगों में एक प्रकार का उत्साह पैदा करते हैं. यह संदेश को बहुत आसानी और जल्दी से प्रसारित करने में मदद करता है." मैंने जब उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले उनसे बात की थी तब उनसे पूछा था कि उस समय उनकी क्या प्राथमिकता थी. उन्होंने बताया कि, "जब गाने की बात आती है तब एक बात हमारे बीच बहुत स्पष्ट है कि हमें यह संदेश देना है कि योगी जी फिर से चुनाव जीत रहें हैं."

अयोध्या के सोशल मीडिया प्रभारी लवकुश तिवारी ने बताया, "आईटी सेल छह शिफ्ट में काम करता है. सबसे पहले सुबह 9 बजे के आसपास लाइव किया जाता है, अगला 11 बजे लाइव होता है, फिर दोपहर 1 बजे के आसपास, फिर शाम 4 बजे, शाम 6 बजे और रात 8 बजे आखिरी बार लाइव होता है. हम लोग इसी तरह काम करते हैं." उन्होंने बताया कि आचार्य उनके और आईटी सेल के कई अन्य सदस्यों के पसंदीदा हिंदुत्व पॉप स्टार थे, लेकिन हम प्रत्यक्ष रूप से उनका समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि हम एक राजनीतिक दल हैं, हम ऐसा करने का जोखिम नहीं उठा सकते, लेकिन हम उन्हें पीछे से पार्टी कार्यकर्ताओं की तरह मदद करते हैं.

यह कहना मुश्किल है कि हिंदुत्व पॉप की लोकप्रियता कितनी अधिक है और इसे हिंदू दक्षिणपंथ के प्रचार तंत्र द्वारा कितना बढ़ावा दिया गया है. हालांकि, यह हमारे सांस्कृतिक ताने-बाने में मजबूती से बस चुका है. संगीत हमारे लिए बहुत कुछ करता है. यह हमारी भावनाओं को व्यक्त करता है, हमारे मन को बहलाता है और कई बार हमें उदासी में भी डाल देता है. यह मन को शांत और स्वभाव को आक्रामक भी कर सकता है. यह निजी और सामूहिक दोनों तरह से आनंद और उत्साह को बढ़ा सकता है. लेकिन सत्ताधारी दल द्वारा इस्तेमाल किया गया भावनाओं पर आधारित हिंसक संगीत एक घटिया राजनीति की राह अपनाने की तरफ इशारा करता है. इनमें से अधिकांश गायक धर्मनिरपेक्षता के विरोधी हैं, जिससे वे स्वतः ही भारत के संविधान के विरुद्ध खड़े हो जाते है.